उस वक़्त पटना में था । हॉस्टल से बच्चों की छुट्टी हो गई थी तो हमने सोचा हम भी दिवाली में घर हो आयें । चिड़िया घर के पास से ऑटो पकड़ा स्टेशन पहु...
उस वक़्त पटना में था । हॉस्टल से बच्चों की छुट्टी हो गई थी तो हमने सोचा हम भी दिवाली में घर हो आयें । चिड़िया घर के पास से ऑटो पकड़ा स्टेशन पहुच गया । ये जानते हुए की भारतीय रेल अपने लेट लतीफ़ सवारियों का खासा ध्यान रखते हुए घंटा दो घंटे लेट ही आती है फिर भी मैं हर बार घंटा पहले ही पहुँच जाता था ये सोच कर कहीं ड्राइवर की घडी दो घंटे आगे न हो और वो गलती से कहीं टाइम पर न आजाये । मैं रेलवे स्टेशन पहुँच कर हनुमानमंदिर के आगे से होता हुआ स्टेशन की तरफ बढ़ रहा था हाथ जोड़े हनुमान जी से हमेशा की तरह भिखमंगे स्टाईल में कुछ मांग रहा था तभी पीछे से आवाज़ आई “ए भईया, सुनो” अब वहां पहले ही इतने भैया दीदियाँ अंकिल एंटी लोग थे कि मैं काहे ध्यान देता पीछे । मगर आवाज़ और पास पास और पास हांफती हुई एक दम पास आगई और पीछे से मेरी शर्ट पकड़ के खिंचा । मैंने अचरज से पीछे देखा तो एक 12 13 साल का लड़का मेरी शर्ट पकडे पैरों पर बैठा हांफे जा रहा था । मैंने उस से पूछा “भाई कहा भूकंप आगया जो तू ऐसे भाग रहा है और मेरी शर्ट काहे पकड़ी” तब तक उसकी साँस में साँस आगयी थी, लड़का तेज था छोटी उम्र के बड़े बच्चे अक्सर तेज होते हैं उसकी फटी कमीज का खड़ा कालर और फोल्ड किये बाजु बता रहे लौंडा उम्र से ज्यादा सयाना है ।
“इहाँ तो भुइकंप नहिए आया पर तुम जब ट्रेन में चढ़ते न तब जरूर आता”
“काहे बे ऐसा का गजब होगया जो ट्रेन में भूकंप आता ?”
“अपना बटुआ देखो खुदे बुझा जायेगा”
अरे साला बटुआ गायब था, एक तो कभी कभी पर्स ले कर चक्लते हैं वो भी गायब, बटुए में पैसे टिकेट सब था । लौंडा हँसे जा रहा था ।
“आगया न भुइकंप ? ई लो जहाँ ऑटो बाला को पैसा दिए उहवें गिर गया था” अब तो उसमे मुझे साक्षात् बजरंगबली संकटमोचन दिखने लगे, हाथ में गदा वही मुकुट आहा क्या सरूप था पीछे से बैकराऊंड में हनुमानचालीसा भी बजने लगा जो बस मुझे सुन रहा था । जब ध्यान भंग हुआ तो प्रभु जा रहे थे मैंने लपक के पकड़ा । मेरे पकड़ते वो हड़बडाया और झट से बोला “हम कुछो नहीं लिए, आप गिन लो”
मैं उसकी भोली ईमानदारी पे मुस्कुरा दिया, मैंने कहा “अबे हम कहाँ कहे तुम लिए हो बाकि दिल जरूर जीते हो, इनाम तो बनता है भाई ई लो पचास रुपये ऐश करो” मैंने सोचा वो ख़ुशी से पैसे लेगा, जाएगा शिखर का पुड़िया कल्ला तरे दबाएगा बाकि का कुछ खा पी जायेगा मगर लौंडे ने जो कहा मैं दांग हो गया यार ।
“तुम्हारा था भईया तुमको लौटा दिए इसमें हम कोनसा तीर मारे जो तुमसे इनाम लें, सगे सम्बन्धी हमरे हो नहीं जो दुलार दोगे और भीख लेना हमको लानत लगता है ।” हम दंग रह गए यार इत्ता सा लौंडा और बात साली ललनटाप, हद करदी यार । हम सदमे से निकल भी नहीं पाए थे तब तक ऊ फिर बोला “हाँ बहुत खुश हो तो एक काम कार लो हमारे लिए, चलो सामने हमसे जुते पालिश करवा लो उ हमारा काम है उसके बदले मिला मेहनताना हमको पचता है । अईसहूँ जूता गंदा हो गया है तुम्हारा।” लौंडे की बात सुन कर मन किया सलाम ठोक दूँ उसे । मैं कोई बिलगेट्स के सगे वाला या कोई बड़ा समाजसेवी तो था नहीं जो उसकी मदद करता या भाषण देता की बाल मजदूरी है पाप है मत करो पढ़ो और बढ़ो । भाई किसी मज़बूरी से ही कोई बाल मजदूरी करता है सामर्थ हो तो उसे पढ़ाएंगे नहीं तो फ़ोकट का ज्ञान काहे बाँटने जायेंगे । जूते पालिश के 20 रुपये दिए ऊपर से 100 की पत्त्ती दी तो फिर बोला “भईया पाहिले भी कहे न की ऐसे ही नहीं ले सकते”
हम भी तैश में आगए हमने भी कहा “का बोले थे तुम हमारा कौन सगा सम्बन्धी हो जो प्यार दोगे, तब से भईया भईया कहे जा रहे हो अभी भी कहते हो सगे सम्बन्धी नहीं हैं, अब ससुर पकड़ लो नहीं तो कंटाप देंगे खिंच के, सयाने न बनो जादा हमसे ।” लड़के की ऑंखें नम थीं होंठ मुस्कुरा रहे थे बोला “भईया 100 का नोट नहीं है ये ये वो चीज़ है जो हमको कभी नहीं मिली, ये प्रेम है भईया ।”
हमने घड़ी निहारी गाड़ी का टाइम हो चला था हमने उस से विदा लेते हुए कहा “पान पुडिया में ना उड़ा देना,” फिर ससुरे ने दिल जीतने वाला जवाब दिया, बोला “भईया जानते हैं जिसको परिवार के लिए रात की रोटी की चिंता होती है ना, उनके लिए इस तरह अचानक मिला रुपया बहुत मायने रखता है, और मायने रखने वाली चीज को कोनो पान पुड़िया में नही उड़ाता ।" उसकी बात दिल को छू गई पर कुछ बोला नही गया । बस मुस्कुरा कर सर पर हाथ फेरे और ख्याल रखने की हिदायत दे कर स्टेशन की तरफ हो लिए । पीछे मुड़ कर देखने की हिम्मत नही हुई क्योंकि फिर हमारा ट्रेन छूट जाता ।
दोबारा जब भी उधर से गुज़रे उसको बहुत खोजा पर कहीं नही मिला । शायद मजबूरियों ने उसका ठिकाना बदल दिया हो । पर मन से दुआ ज़रूर निकलती है जब कभी वो या उस जैसे बच्चों का ख़्याल आ जाए तो । बहुत जगह दिख जाऐंगे अपनी उम्र से बड़े बच्चे ।
धीरज झा
“इहाँ तो भुइकंप नहिए आया पर तुम जब ट्रेन में चढ़ते न तब जरूर आता”
“काहे बे ऐसा का गजब होगया जो ट्रेन में भूकंप आता ?”
“अपना बटुआ देखो खुदे बुझा जायेगा”
अरे साला बटुआ गायब था, एक तो कभी कभी पर्स ले कर चक्लते हैं वो भी गायब, बटुए में पैसे टिकेट सब था । लौंडा हँसे जा रहा था ।
“आगया न भुइकंप ? ई लो जहाँ ऑटो बाला को पैसा दिए उहवें गिर गया था” अब तो उसमे मुझे साक्षात् बजरंगबली संकटमोचन दिखने लगे, हाथ में गदा वही मुकुट आहा क्या सरूप था पीछे से बैकराऊंड में हनुमानचालीसा भी बजने लगा जो बस मुझे सुन रहा था । जब ध्यान भंग हुआ तो प्रभु जा रहे थे मैंने लपक के पकड़ा । मेरे पकड़ते वो हड़बडाया और झट से बोला “हम कुछो नहीं लिए, आप गिन लो”
मैं उसकी भोली ईमानदारी पे मुस्कुरा दिया, मैंने कहा “अबे हम कहाँ कहे तुम लिए हो बाकि दिल जरूर जीते हो, इनाम तो बनता है भाई ई लो पचास रुपये ऐश करो” मैंने सोचा वो ख़ुशी से पैसे लेगा, जाएगा शिखर का पुड़िया कल्ला तरे दबाएगा बाकि का कुछ खा पी जायेगा मगर लौंडे ने जो कहा मैं दांग हो गया यार ।
“तुम्हारा था भईया तुमको लौटा दिए इसमें हम कोनसा तीर मारे जो तुमसे इनाम लें, सगे सम्बन्धी हमरे हो नहीं जो दुलार दोगे और भीख लेना हमको लानत लगता है ।” हम दंग रह गए यार इत्ता सा लौंडा और बात साली ललनटाप, हद करदी यार । हम सदमे से निकल भी नहीं पाए थे तब तक ऊ फिर बोला “हाँ बहुत खुश हो तो एक काम कार लो हमारे लिए, चलो सामने हमसे जुते पालिश करवा लो उ हमारा काम है उसके बदले मिला मेहनताना हमको पचता है । अईसहूँ जूता गंदा हो गया है तुम्हारा।” लौंडे की बात सुन कर मन किया सलाम ठोक दूँ उसे । मैं कोई बिलगेट्स के सगे वाला या कोई बड़ा समाजसेवी तो था नहीं जो उसकी मदद करता या भाषण देता की बाल मजदूरी है पाप है मत करो पढ़ो और बढ़ो । भाई किसी मज़बूरी से ही कोई बाल मजदूरी करता है सामर्थ हो तो उसे पढ़ाएंगे नहीं तो फ़ोकट का ज्ञान काहे बाँटने जायेंगे । जूते पालिश के 20 रुपये दिए ऊपर से 100 की पत्त्ती दी तो फिर बोला “भईया पाहिले भी कहे न की ऐसे ही नहीं ले सकते”
हम भी तैश में आगए हमने भी कहा “का बोले थे तुम हमारा कौन सगा सम्बन्धी हो जो प्यार दोगे, तब से भईया भईया कहे जा रहे हो अभी भी कहते हो सगे सम्बन्धी नहीं हैं, अब ससुर पकड़ लो नहीं तो कंटाप देंगे खिंच के, सयाने न बनो जादा हमसे ।” लड़के की ऑंखें नम थीं होंठ मुस्कुरा रहे थे बोला “भईया 100 का नोट नहीं है ये ये वो चीज़ है जो हमको कभी नहीं मिली, ये प्रेम है भईया ।”
हमने घड़ी निहारी गाड़ी का टाइम हो चला था हमने उस से विदा लेते हुए कहा “पान पुडिया में ना उड़ा देना,” फिर ससुरे ने दिल जीतने वाला जवाब दिया, बोला “भईया जानते हैं जिसको परिवार के लिए रात की रोटी की चिंता होती है ना, उनके लिए इस तरह अचानक मिला रुपया बहुत मायने रखता है, और मायने रखने वाली चीज को कोनो पान पुड़िया में नही उड़ाता ।" उसकी बात दिल को छू गई पर कुछ बोला नही गया । बस मुस्कुरा कर सर पर हाथ फेरे और ख्याल रखने की हिदायत दे कर स्टेशन की तरफ हो लिए । पीछे मुड़ कर देखने की हिम्मत नही हुई क्योंकि फिर हमारा ट्रेन छूट जाता ।
दोबारा जब भी उधर से गुज़रे उसको बहुत खोजा पर कहीं नही मिला । शायद मजबूरियों ने उसका ठिकाना बदल दिया हो । पर मन से दुआ ज़रूर निकलती है जब कभी वो या उस जैसे बच्चों का ख़्याल आ जाए तो । बहुत जगह दिख जाऐंगे अपनी उम्र से बड़े बच्चे ।
धीरज झा
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