पानी होता तो सूख जाता रंग होता तो छुट जाता मगर लहू है जो आज भी टपकता है उन यादों में से जो दुखती हैं जिसमें बच्चों से बूढ़ों तक की चीखें और...
पानी होता तो सूख जाता
रंग होता तो छुट जाता
मगर लहू है जो आज भी टपकता है
उन यादों में से
जो दुखती हैं
जिसमें बच्चों से बूढ़ों तक की
चीखें और कराहटें कैद हैं
ज़ख्म होता तो भर जाता
टूटी हड्डी होती तो जुड़ जाती
मगर ये तो बुढ़ापे में उठने वाले
घुटनों का दर्द है
हर पुरवैया हवा के साथ टीस मरता है
याद दिलाता है उस हैवानियत को
जिसने बक्शा नहीं था मासूमों तक को
जवानों की शहादत याद आती है
बच्चों का बिलखना
ज़ख़्मी देहों का तड़पना याद आता है
बहुत से हादसे और भी हुए
बहुत से दिल और भी दुखे
न जाने कब तक बहेगा खून यूँ ही
न जाने कब तक देता रहेगा
हर घर का बीटा बलिदान अपना
न जाने कब तक रोती रहेंगी माँएं
ना जाने कब तक .........
26।11 के हमले में शहीद हुए जवानों और उन भाई बहनों बूढ़े बच्चों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली जो इस अमानवीय घटना में हमें छोड़ कर चले गए । मालिक अब अमन चैन लाए\ क्योंकि बेवजह इतनी मौतें अब इंसान होने का प्रायश्चित भोगने जैसा बोध कराती हैं ।
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