गंदगी हूँ मैं, मैं तुम्हारे आस पास नहीं तुम्हारी सोच में बसी हुई हूँ तुम जितना दूसरों को मेरा नाम लेकर कोसोगे मैं उतना तुम्हे अपने वश मे...
गंदगी हूँ मैं,
मैं तुम्हारे आस पास नहीं
तुम्हारी सोच में बसी हुई हूँ
तुम जितना दूसरों को मेरा नाम लेकर कोसोगे
मैं उतना तुम्हे अपने वश में करती जाऊंगा
क्योंकि गंदगी हूँ मैं
छूत की बीमारी जैसी
तुमसे किसी और में
और से किसी और में फैलती जाउंगी
क्या लगता है तुम्हे कि
तुम्हीं हो सबसे स्वच्छ
क्योंकि रोज़ बर्बाद करते हो पानी
खुद के शरीर की मैल निकलने के लिए
चलो मैल निकल गई
शरीर चमक गया
मगर मन का क्या
जहाँ से मैं हूँ हर वक़्त तुम्हे बर्बाद करती हुई
मगर तुम्हे अपनी फ़िक्र हो तब ना
तुमने तो सोच लिया है
कि मैं तुम में हूँ ही नहीं
तुम हो चुके हो उस कबूतर की तरह
जो कर लेता है बिल्ली को देख बंद अपनी ऑंखें
मगर ऑंखें बंद करने या दूसरों को कोसने से
मैं तुम्हारे अन्दर से जाने वाली नहीं
जिस दिन तुम निकाल फैंकोगे मुझे अपने भीतर से
उस दिन तुम्हे अपने आस पास की गंदगी में
भारी मात्र में कमी नज़र आएगी
नहीं तो मैं
डसती रहूंगी नागिन की तरह
फैलती रहूंगी बीमारी की तरह
कर दूंगी तुम्हे और तुम्हारी सोच को इतना छोटा
की फिर तुम्हे उसका असर अपने घर में भी दिखेगा
सम्भाल जाओ
मैं किसी की सगी नहीं
क्योंकि गंदगी हूँ मैं
तुम्हारे अन्दर की
तुम्हारी सोच की गन्दगी
धीरज झा
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