मैं महादेव में आस्था रखता हूँ अटूट आस्था, रुद्राक्ष पहनता हूँ क्योंकि उस से लगता है महादेव हर समय मेरे साथ हैं । मैं अपने जान्ने वालों से ...
मैं महादेव में आस्था रखता हूँ अटूट आस्था, रुद्राक्ष पहनता हूँ क्योंकि उस से लगता है महादेव हर समय मेरे साथ हैं । मैं अपने जान्ने वालों से जब बात करता हूँ तो हर हर महादेव कहता हूँ । मेरी हर प्रार्थना में ईश्वर का संबोधन नहीं बल्कि महादेव का संबोधन होता है । मुझे वो अपने साथ महसूस होते हैं । मैं भक्त नहीं हूँ मैं उनका चाहने वाला हूँ । टीका भी लगता हूँ राम राम भी कहता हूँ ।
पर अगर मैं ये सब आये दिन अपनी फेसबुक वाल पर पोस्ट करने लागुन तो सब मुझे साम्प्रदायिक कहेंगे । कुछ मेरे ही भाई कहेंगे की ये भक्ति का दिखावा करता है और सच कहूँ तो मुझे ये पसंद भी नहीं । मेरी आस्था मैं अपने तक ही सिमित रखता हूँ ना मैं इस पर तर्क वितर्क करता हूँ जब तक हद न हो जाए । मैं धर्म से हिन्दू हिन्दू हूँ जाति से ब्राह्मण हूँ इसका गर्व भी है मुझे क्योंकि मैं मानता हूँ अगर मैं ही अपनी जाति धर्म पर गर्व नहीं करूँगा तो कोई और कैसे करेगा हाँ मगर मैं हर बार में कहता नहीं रहता की मैं हिन्दू हूँ क्योंकि उसके साथ साथ मैं एक इन्सान भी हूँ और मेरा धर्म मुझे यही सिखाता है कि मानवता पहला धर्म है । मगर यदि मैं ये सब बातें सार्वजानिक तरीके से बोलने लागुन तो मैं साम्प्रदायिक हो जाऊंगा मुझ पर देश को मानवता को बाँटने का आरोप लगेगा । ठीक है लग्न भी चाहिए धर्म आस्था अपने तक रहे तो बेहतर है ।
मगर क्या इस बात से सभी धर्म सहमत हैं ? और अगर नहीं सहमत तो उनके आगुओं को कुछ क्यों नहीं कहा जाता । मैं किसी विशेष धर्म के विरोध में न कभी था न हूँ । मैं विरोध किसी एक इन्सान का करता हूँ उसके साथ उसकी पूरी जाति का नहीं । मैं अभी ये बातें कर रहा हूँ न कई लोग मुझसे असहमत होंगे होना भी चाहिए यार मैं मानवता को दो भागों में बाँट रहा हूँ । आये दिन तिलक चन्दन लगाए गेरुआ पहने बाबा लोग जब अपने धर्म को बचने की बात करते हैं तो उनका विरोध होता है होना भी चाहिए भाई काहे नहीं होगा, कितना बुरा बोलते हैं अपने धर्म की बात करते हैं, साम्प्रदायिकता फैलाते हैं, मैं भी घोर निंदा करता हूँ इसकी ।
मगर कल ही मैंने ओवैसी साहब का एक डिबेट देखा जिसमें वो बार बार कह रहे थे हमारे मुस्लिम समाज के लिए सर्कार ने कभी कुछ नहीं किया । यहाँ तक की उन्होंने प्रधानमंत्री तक को हमारा प्रधानमंत्री कहने तक से साफ मन कर दिया । कल को वो देश को अपना देश कहने से मन करेंगे । मगर वो सही हैं क्योंकि वो अपने कौम की बात कर रहे हैं बाकि सब धर्म की बात करते हैं इसी लिए गलत हो जाते हैं । असल में न वो गलत नहीं हैं गलत हैं हम जो उनकी बातों में आजाते हैं ।
हमारे जैसे अधिकांश इंसान छोटी उम्र से ऐसे स्कूलों में पढ़ते हैं जहाँ जात पात का पता ही नहीं होता हम अहमद नासिर थॉमस पीटर गुरप्रीत इत्यादि के साथ खेलते हैं मस्ती करते हैं घूमते हैं और बड़े होते ही इन जैसा कोई हमारे दिमाग में भरने लगता है कि राघव हिन्दू है इरफ़ान मुसलमान है फलाना सिक्ख धिम्काना इसाई है एक दुसरे में ही सिखाते रहते हैं इनसे दूर रहो इनकी कौम ही खराब है । एक बन्दे की तुलना उसकी पूरी कौम से हो जाती है । और हद तो ये है कि उसे इज्ज़त दी जाती है उसकी बातों को मान लिया जाता है । एक बात याद रखियेगा सामने से आपकी किसी से लड़ाई नहीं होती भले इब्राहिम मिले गुरप्रीत मिले या थॉमस मिले आप दोस्त ही होते हो मगर ऐसे इन्सान की बात सुनते ही आपके दिमाग में मज़हब और धर्म की गलत छवि वाला कीड़ा दौड़ने लगता है । मैं अगर किसी बाबा की सबको पाकिस्तान भेजने की बात का विरोध कर रहा हूँ तो आपका भी ये हक़ बनता है की अपने मजहब के उन लोगों का विरोध करें जो आपके दिमाग में ज़हर भर रहे हैं । वर्ना हाल ऐसा होगा की लाशों को कन्धा देने वाले भी नहीं मिलेंगे सब आपस में ही लड़ कट कर मर जायेंगे और ऐसा होगा अगर हम नहीं सुधरे तो ऐसा पक्का होगा ।
कोई भी दोस्त अगर आपको गलत समझ रहा है तो आप कब तक उसे अपने सही होने का सबूत देंगे भाई, एक दिन आप खुद भी गलत हो जायेंगे और उसे गरियाते हुए कहेंगे हाँ बे मैं गलत हूँ उखड ले जो उखड़ता है । और फिर उसके बाद से चलाए रखिये अपनी दुश्मनी । अब भी हम सबके पास वक्त है सम्भालने का सम्भाल जाएँ तो बेहतर है वरना विनाश होगा वो भी अपना अपनों के हाथों ही । अगर एक सही है तो सब सही हैं अगर एक गलत है तो सब के सब गलत है फिर वो किसी जाति धर्म या मज़हब का हो । इन्हें सत्ता मिलेगी इज्ज़त मिलेगी रुतबा मिलेगा, हमें क्या मिलेगा ? अच्छे भविष्य के लिए विरोध ज़रूरी है । बाकि आपकी मर्ज़ी है आपका फैसला है खुद में खुश रहना है या बातों में आकर लड़ मरना है । चलता हूँ ख्याल रखिए अपना माहौल बहुत ख़राब है, कोई चुपके से आपके दिमाग में घुस कर आपको दिमाग से अपंग बना सकता है ।
धीरज झा
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