अभी बच्चे थे तो किस्से सुनते थे राँझे हीर और लैला मजनू के सुनाते थे बताते थे खुदा का नाम लेने से गंगा में नहाने से भी ज़्यादा मोहब्बत पाक...
अभी बच्चे थे तो किस्से सुनते थे
राँझे हीर और लैला मजनू के
सुनाते थे बताते थे
खुदा का नाम लेने से
गंगा में नहाने से भी ज़्यादा
मोहब्बत पाक होती है
अमन और चैन का
असल निशान होती है
हम बच्चे थे मन के सच्चे थे
सच इन बातों को मान बैठे थे
मोहब्बत करने की ठान बैठे थे
मगर जब मन का हमको
हमारा हमदम मिला
चलने लगा
सपने सजाने का सिलसिला
वही मोहब्बत के हिमायती
बन के दुश्मन सामने आ गए
जो मोहब्बत पाक थी
वो अब गुनाह बन गई
आज़ाद मुल्क में भी
आज़ादी हमारी छिन गई
ये कैसा समाज है
ये कैसे रिवाज हैं
क्यों नफरतें मोहब्बत से
क्या गिला इस इबादत से
मगर रखना याद ये कि
हम हवाओं जैसे हैं
कितने भी पहरे लगा लो
हम तो बहते ही रहते हैं
मोहब्बत जंजीरों में
जकड़ी कब रही है
इसे हथकड़ी भी कब लगी है
धीरज झा
राँझे हीर और लैला मजनू के
सुनाते थे बताते थे
खुदा का नाम लेने से
गंगा में नहाने से भी ज़्यादा
मोहब्बत पाक होती है
अमन और चैन का
असल निशान होती है
हम बच्चे थे मन के सच्चे थे
सच इन बातों को मान बैठे थे
मोहब्बत करने की ठान बैठे थे
मगर जब मन का हमको
हमारा हमदम मिला
चलने लगा
सपने सजाने का सिलसिला
वही मोहब्बत के हिमायती
बन के दुश्मन सामने आ गए
जो मोहब्बत पाक थी
वो अब गुनाह बन गई
आज़ाद मुल्क में भी
आज़ादी हमारी छिन गई
ये कैसा समाज है
ये कैसे रिवाज हैं
क्यों नफरतें मोहब्बत से
क्या गिला इस इबादत से
मगर रखना याद ये कि
हम हवाओं जैसे हैं
कितने भी पहरे लगा लो
हम तो बहते ही रहते हैं
मोहब्बत जंजीरों में
जकड़ी कब रही है
इसे हथकड़ी भी कब लगी है
धीरज झा
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