हर शख़्स यहाँ खुद में सैलाब लिए चलता है बेशक हो खामोश मगर अंदर ही अंदर जलता है वो तो वक़्त की मार कहो या आदत किसी की वरना देख कर रंग आज के ह...
हर शख़्स यहाँ खुद में सैलाब लिए चलता है
बेशक हो खामोश मगर अंदर ही अंदर जलता है
वो तो वक़्त की मार कहो या आदत किसी की
वरना देख कर रंग आज के हर शख्स का खून उबलता है
तू चमकता रहा है तो खुद को सूरज समझ के न गुरुर कर
यहाँ हर शाम एक सूरज समंदर की कोख में जा ढलता है
बस ज़िम्मेदारियों ने हर इक की ज़ुबाँ को है बांध रखा
वरना तेरे बारे में तो हर कोई कुछ कहने को मचलता है
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