शर्मीला सा बच्चपन था मेरा, मस्तीखोरी में कॉलेज के दिन कटे और बड़े होने का आभास होते ही मैं भी आम आदमी क्षमा करें साधारण आदमी की भीड़ का एक...
शर्मीला सा बच्चपन था मेरा, मस्तीखोरी में कॉलेज के दिन कटे और बड़े होने का आभास होते ही मैं भी आम आदमी क्षमा करें साधारण आदमी की भीड़ का एक चेहरा बन गया । इसी कारण से कभी राजनीति के गलियारों में घूमने या वहां की झूठी चकाचौंध देखने का कोई खास अनुभव नहीं मिला । हम लोग वास्तविक्ता में जीने वाले इंसान हैं हमें ये अपने फायदे के लिए खेले हुए झूठे फरेबी खेल पसन्द नहीं आते । मगर अब तो राजनैतिक मुद्दे इतना शोर करने लगे हैं कि एक ना सुन पाने वाला इंसान भी आराम से इनका शोर सुन ले । वैसे भी अब इन पचड़ों में पड़े हैं तो थोड़ी बहुत समझ तो इस खेल की आ ही गयी है ।
उत्तर प्रदेश की राजनीति इस कड़ाके की ठण्ड में भी इन दिनों तंदूर की तरह धधक रही है । हर पार्टी ने सर पर कफ़न बांध कर अपनी अपनी ताल ठोक ली है । जनता ने चौपालों, चाय की दुकानों इत्यादि अहम जगहों पर अपना फैसला सुनाना शुरू भी कर दिया है । इसी बीच मैं अपनी भी एक भविष्यवाणी कह दूँ तो अच्छा रहेगा । जैसा की खुश मन से या अनमने मन से सब जानते हैं कि भाजपा इस बार प्रबल दावेदार नज़र आ रही है । मगर इस बात से सपा बसपा बहुत परेशान हैं । बसपा को अपनी खोई हुई विरासत वापिस चाहिए और सपा अपने हाथों से ये विरासत किसी और के हाथ में जाने नहीं देना चाहेगी । इस बीच भाजपा की बढती लोकप्रियता इन्हें बेचैन कैसे ना करे । जैसा कि दिख ही रहा है की बसपा इस खेल से बहार होती जा रही है, कोई चमत्कार हो जाए तो बात अलग है । मगर सपा की इज्ज़त का सवाल है उसे हर दांव खेल कर ये रण जीतना है ।
जैसा की सब जानते हैं चुनाव के समय में तो लोग मतभेद भुला कर गठबंधन तक कर लेते हैं जीतने के लिए मगर ये क्या प्रदेश की सत्ता पर बैठी ये पार्टी अचानक से चुनाव से कुछ महीने पहले से ही आपसी कलह में उलझ गई । बड़ा बवाल हुआ, सपा पार्टी की छत माननीय मुलायम सिंह यादव जी को संभाले उनके दो स्तम्भ, उनके बेटे माननीय मुख्यमंत्री अखिलेश जी और उनके भाई शिवपाल यादव जी आपस में ही भिड गए । चलिए ये तमाशा भी बंद हुआ । मगर अब जब चुनाव इतने नजदीक हैं तो ये कलह की चिंगारी फिर से सुलग गई, पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के नाम की घोषणा को ले कर । चाचा कह रहे हैं बड़ा मैं हूँ मैं अपने मन से चुनुँगा भतीजा कह रहा है ये अधिकार मेरा है मैं अपने ढंग से चुनुँगा । जनता समझ नहीं पा रही हो क्या रहा है
अब समझिए कि हो क्या रहा है और होने क्या वाला है । हो ये रहा है कि सब देख रहे हैं शिवपाल जी द्वारा चुने गए प्रत्याशी दागी छवि के हैं लोगों की पसंद से विपरीत और इसके उल्ट अखिलेश जी द्वारा चुने हुए प्रत्याशी ऐसे होंगे जिन्हें जनता ने थोड़ा ही सही मगर सम्मान दिया है । अब होगा ये की शिवपाल जी द्वारा छेने सरे प्रत्याशियों से टिकट वापिस ले ली जाएगी और आखिर में अखिलेश जी के प्रत्याशियों को ही टिकेट मिलेगी । ये कोई मनमुटाव या कलह नहीं है बल्कि सोची समझी चाल है । इससे होगा ये की अखिलेश जी की साफ सुथरी छवि जैसी की उनकी पहले से है सबके सामने आएगी जनता उन्हें सराहेगी उनके इस कड़े विरोध का समर्थन करेगी और जो लोग सपा से किनारा करने की सोच रहे थे उनका वोट भी अब अखिलेश जी के नाम पर सपा को ही जायेगा ।
हो सकता है ऐसा ना हो लोग उनका समर्थन उतना न करें मगर ये सब खेल इसी सोच के तहत खेली जा रही है । डूबता हुआ इंसान जब बचने की उम्मीद खो देता है तब ना उम्मीदी में हाथ पैर मरने लगता है ये सोच कर की शायद इसी से मैं किनारे तक पहुँच जाऊं । सपा पार्टी भी अपना वही आखरी दांव खेल रही है अखिलेश जी के नाम से । अखिलेश यादव निसंदेह एक बढ़िया इन्सान और मुख्यमंत्री हैं ये बात अलग है की पार्टी के दागी मंत्रियों की छवि के साथ उनकी छवि भी धूमिल सी होगई है । वो अगर अपनी कोई अन्य पार्टी का गठन करते हैं तो शायद उम्मीदें जग सकती हैं, जिसकी सम्भावना ना के बराबर है । बाकि पार्टी कोई भी आए बस जनता को निराश ना करे ।
धीरज झा
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