मुझे प्रम है तुम से उस हद तक जिस हद तक लोग जा ही नही पाते रोक लेता है उन्हे वहाँ जाने से शारीरिक प्रेम मगर मैं तुम से वो प्रेम करता हूँ ज...
मुझे प्रम है तुम से उस हद तक
जिस हद तक लोग जा ही नही पाते
रोक लेता है उन्हे वहाँ जाने से
शारीरिक प्रेम
मगर मैं तुम से वो प्रेम करता हूँ
जिसमें तुम्हारी कमीं महसूस होती है
कुछ इस तरह जिस तर महसूस होता है
एक माँ को अपने बड़े हो चुके
दूर रहते बच्चे कि कमी का अहसास
जब थका आता हूँ ऑफिस से
तब पहले तुम महसूस होती हो दरवाज़े कि
ओट से राह निहारती
और उसके तुरंत बाद महसूस होती
है कमी तुम्हारी
महसूस होती हो तुम किसी प्ले में
मेरी बगल वाली सीट पर
जब मैं टटोलता हूँ उस खाली सीट को
तब तुम्हारा महसूस होना
बदल जाता है तुम्हारी कमी मे
तुम महसूस होती हो हर उस पल
जब मैं होता हूँ हद से ज़्यादा मायूस
या हद से ज़्यादा खुश
जब मुझे सुनानी होती हैं तुम्हे
दिन भर की ढेर सारी बातें
जब देखना होता है तुम्हारी
सुकून से भर देने वाली हंसी को
सच कहूँ तो तुम अब महसूस होती हो
हर लम्हे में हर पल में हर वक्त
जिस तरह तुम्हे करता हूँ महसूस
काश कोई कर पाता महसूस
तुम्हारे लिए मेरी तड़प को
काश तुम्हे कर देता मेरा
काश !
धीरज झा
जिस हद तक लोग जा ही नही पाते
रोक लेता है उन्हे वहाँ जाने से
शारीरिक प्रेम
मगर मैं तुम से वो प्रेम करता हूँ
जिसमें तुम्हारी कमीं महसूस होती है
कुछ इस तरह जिस तर महसूस होता है
एक माँ को अपने बड़े हो चुके
दूर रहते बच्चे कि कमी का अहसास
जब थका आता हूँ ऑफिस से
तब पहले तुम महसूस होती हो दरवाज़े कि
ओट से राह निहारती
और उसके तुरंत बाद महसूस होती
है कमी तुम्हारी
महसूस होती हो तुम किसी प्ले में
मेरी बगल वाली सीट पर
जब मैं टटोलता हूँ उस खाली सीट को
तब तुम्हारा महसूस होना
बदल जाता है तुम्हारी कमी मे
तुम महसूस होती हो हर उस पल
जब मैं होता हूँ हद से ज़्यादा मायूस
या हद से ज़्यादा खुश
जब मुझे सुनानी होती हैं तुम्हे
दिन भर की ढेर सारी बातें
जब देखना होता है तुम्हारी
सुकून से भर देने वाली हंसी को
सच कहूँ तो तुम अब महसूस होती हो
हर लम्हे में हर पल में हर वक्त
जिस तरह तुम्हे करता हूँ महसूस
काश कोई कर पाता महसूस
तुम्हारे लिए मेरी तड़प को
काश तुम्हे कर देता मेरा
काश !
धीरज झा
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