"भारत" एक सुंदर देश जो अजीब किस्म के लोगों से घिरा हुआ है । यहाँ हर इंसान अपनी अपनी सोच की वजह से उलझा हुआ है । अपने घर का चुल्हा ...
"भारत" एक सुंदर देश जो अजीब किस्म के लोगों से घिरा हुआ है । यहाँ हर इंसान अपनी अपनी सोच की वजह से उलझा हुआ है । अपने घर का चुल्हा कैसे जले इसकी फिक्र कम है मगर आज पड़ोसी के यहाँ से मुर्गा पकने की महक क्यों आ रही है क्या वो बहुत खुश है पर क्यों खुश है ? इसकी फिक्र ज़्यादा है । अपना दुख भले बढ़ जाए सामने वाले कि खुशी नही बढ़नी चाहिए । आप किसी गाँव में चले जाईए वहाँ बैठक में लगभग एक ही चर्चा सुनने को मिले "फलनवां के बेटवा मोटरसाईकिल खरीदा है" फिर जवाब मिलता है "हं हं खररिदबे करेगा । खेत बेचा होगा ।" अरे साला तुमको का मतलब है कोनो घर बेचे दुआर बेचे साईकिल मोटर कुछो खरीदे । तुमको पता है तुम्हारा लौंडा जो कल फीस के नाम पर दो हज़ार ऐंठ गया उसका बैठ के दारू पिया है । बताओ अपने घर का हाल नही जानते और चले हो दूसरे के घर का बहि खाता खोलने ।
भारत के पिछड़े होने का सबसे बड़ा कारण जानते हैं क्या है ? यहाँ लोगों को सामने वाले के कर्म से मतलब नही बल्की उसके खोखले दिखावे और बनावटी आचरण से मतलब है । कोई पुरूष किसी महिला के साथ हंसता मुस्कुराता दिख जाए बस लोग झट से दोनो को चरित्रहीनता का तमगा दे देते हैं । असल में ये जलन है ये सोच कर कि उसके साथ हंस के बात करती है मेरे साथ क्यों नही । अरे भाई तुमको किसी से लेना देना क्या है । तुम उसके काम देखो ना उसकी आदतों पर क्यों जा रहे हो तुम्हे उसे घर में तो रखना नही है । विदेश के राष्ट्रपति लोग सामने से अपनी उम्र से कहीं ज़्यादा छोटी लड़कियों के साथ सबके सामने घूम रहे हैं चूम रहे हैं जनता को घन्टा फर्क नही पड़ता मगर तुम्हारी नींद बस इसलिए उड़ जाती है कि दिगविजय ने बुढ़ापे में शादी की तो कैसे कि, मोदी ने मिसेज अंबानी का हाथ पकड़ा तो कैसे पकड़ा पड़ोस के मिश्रा जी ने पड़ोसन गुप्ताईन को लिफ्ट दी तो क्यों दी । कमाल ही है ना ये तो ।
यहाँ अगर हर कोई दूसरों कि बजाए बस खुद को देखे तो शायद खुद के साथ देश में भी सुधार आ जाए । देश के आधा से ज़्यादा मसले बस इसी वजह से उलझे हैं कि लोगों का ध्यान सही जगह ना हो कर वहाँ है जहाँ उनकी ज़रूरत ही नही । चलिए हमको क्या लेना हम तो भई बुरे हैं और खुश हैं ये सोच कर कि हमें पता है हम बुरे हैं ।
धीरज झा
भारत के पिछड़े होने का सबसे बड़ा कारण जानते हैं क्या है ? यहाँ लोगों को सामने वाले के कर्म से मतलब नही बल्की उसके खोखले दिखावे और बनावटी आचरण से मतलब है । कोई पुरूष किसी महिला के साथ हंसता मुस्कुराता दिख जाए बस लोग झट से दोनो को चरित्रहीनता का तमगा दे देते हैं । असल में ये जलन है ये सोच कर कि उसके साथ हंस के बात करती है मेरे साथ क्यों नही । अरे भाई तुमको किसी से लेना देना क्या है । तुम उसके काम देखो ना उसकी आदतों पर क्यों जा रहे हो तुम्हे उसे घर में तो रखना नही है । विदेश के राष्ट्रपति लोग सामने से अपनी उम्र से कहीं ज़्यादा छोटी लड़कियों के साथ सबके सामने घूम रहे हैं चूम रहे हैं जनता को घन्टा फर्क नही पड़ता मगर तुम्हारी नींद बस इसलिए उड़ जाती है कि दिगविजय ने बुढ़ापे में शादी की तो कैसे कि, मोदी ने मिसेज अंबानी का हाथ पकड़ा तो कैसे पकड़ा पड़ोस के मिश्रा जी ने पड़ोसन गुप्ताईन को लिफ्ट दी तो क्यों दी । कमाल ही है ना ये तो ।
यहाँ अगर हर कोई दूसरों कि बजाए बस खुद को देखे तो शायद खुद के साथ देश में भी सुधार आ जाए । देश के आधा से ज़्यादा मसले बस इसी वजह से उलझे हैं कि लोगों का ध्यान सही जगह ना हो कर वहाँ है जहाँ उनकी ज़रूरत ही नही । चलिए हमको क्या लेना हम तो भई बुरे हैं और खुश हैं ये सोच कर कि हमें पता है हम बुरे हैं ।
धीरज झा
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