पंजाब से हैं हम...लोहड़ी का नाम सुनते मुह में अपने आप से ही मूंगफली रेबड़ी और गच्चक का स्वाद अपने आप घुल जाता है । लोहड़ी को आते ही यादा आ ...
पंजाब से हैं हम...लोहड़ी का नाम सुनते मुह में अपने आप से ही मूंगफली रेबड़ी और गच्चक का स्वाद अपने आप घुल जाता है । लोहड़ी को आते ही यादा आ जाता है वो बेफिक्रा सा बच्चपन, जब बच्चे “सुन्दर मुंदरिये होए, तेरा कौन बचारा होए, दुल्ला भट्टी वाला होए\, दुल्ले दी धी व्याही होए, सेर शक्कर पाई होए” गेट हुए निकल जाया करते थे लोहड़ी से 5 6 दिन पहले ही लोहड़ी मांगने के लिए और लोहड़ी का त्यौहार खतम होते होते अपनी गुल्लक को सिक्कों की खनक और लिफाफों को मूंगफली और गच्चक से भर लेते थे ।
हालांकि हमें ये सुख बहुत कम मिला क्योंकि पा को ये सब पसंद नहीं था वो सुबह सुबह खुद ही 20 का नोट पकड़ा देते थे और फिर क्या था हमारी लोहड़ी पतंग और डोर के साथ मजे में कट जाती । आस पड़ोस की औंतियों के लाडले हम शुरू से रहे हैं तो 25 50 उधर से भी मिल ही जाते थे अपने आप ही । अब 100 तक की कमाई हो जाये तो भला लोहड़ी अच्छी कैसे ना मने ।
मगर अब वो बात कहाँ, ना वो बेफिक्रा बच्चपन रहा ना पापा रहे ना वो मस्तियाँ रहीं । हाँ पर मन अभी भी पंजाब की उसी खूंटी पर टेंगा हुआ है यादों की ट्रेन से सफ़र कर आते हैं उन पुराने दिनों के गुमनाम स्टेशनों पर । खैर खुशियों का त्यौहार है खुशियाँ मानिए आग जलाइए, मूंगफली गच्चक खाइए नाचिए गाइए । बाकि पापा अपना फर्ज़ कभी नहीं भूलेंगे जनता हूँ शाम होते होते उनकी वाली लोहड़ी मिल ही जाएगी । आप सभी के साथ हम सब के प्यारे गुमशुदा बच्चपन को भी लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई ।
धीरज झा
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