मैंने नहीं सजाये थे सपने मोहब्बत के कॉलेज ख़तम होते तक भी मैं घबराता रहा लड़कियों से मुझे डर लगता था इन्हें देख कर नहीं जनता क्यों पर लगता था ...
मैंने नहीं सजाये थे सपने मोहब्बत के
कॉलेज ख़तम होते तक भी मैं घबराता रहा लड़कियों से
मुझे डर लगता था इन्हें देख कर
नहीं जनता क्यों पर लगता था
फिर मोहब्बत ने एक दिन
खुद से मुझे पत्र लिखा
और इच्छा ये ज़ाहिर की
कि वो मुझमें घर करना चाहती है
मनमौजी था मगर
जिम्मेदारियों का अहसास रखता था
क्योंकि मैं बड़ा था
मैंने सुना था
मोहब्बत बहुत रुलाती है बहुत तडपती है
मैंने मोहब्बत से एक समझौता किया
कि वो मुझे रुलाएगी नहीं
तड़पाएगी नहीं
भटकाएगी नहीं
मोहब्बत ने मुस्कुरा कर हामी भर दी
मैंने भी उसे दिल में रहने की इजाज़त दे दी
दौर शुरू हुआ खेल शुरू हुआ
हसीन बातों से होते हुए
दो दिलों का मेल शुरू हुआ
ज़िन्दगी तो जैसे दिवाली पर
तनख्वाह के साथ मिलने वाला बोनस हो गई
एक वो याद रही बाकि कुल यादाश्त खो गई
हमने उन्हें खूब गरियाया जो मोहब्बत को
बुरा भला कहा करते थे
प्यार भरी बातें कर के मस्त रहा करते थे
मगर कौन जनता था
ये तो महज़ कुछ दिनों का मज़ा है
बाकि तो उम्र भर कि सजा है
हज़ार कोशिशें होने लगीं थी एक होने की
दोनों में से किसी के पास हिम्मत नहीं थी
एक दुसरे को खोने की
दिन उदासी में तो रात रो रो के कटने लगी
मोहब्बत हसीन है ये
ग़लतफ़हमी भी दिमाग से हटने लगी
मगर सच तो ये था कि
मोहब्बत हमेशा से खूबसूरत ही थी
उसे बदसूरती तो ज़माने
कि कुरीतियों ने दी थी
मोहब्बत लड़ सकती थी
बग़ावत कर सकती थी
मगर मोहब्बत तो खुशियाँ
बाँटती है
सुकून कि धूप से
दुश्मनी के बदल छांटती है
भला कैसे हथियार उठती
कैसे अपना गुस्सा दिखाती
बस अपनी शराफ़त में
कुर्बान हो गई
ज़माने ने बनाए रिवाज़
और मोहब्बत बेचारी खामखाह
बदनाम हो गई
धीरज झा
कॉलेज ख़तम होते तक भी मैं घबराता रहा लड़कियों से
मुझे डर लगता था इन्हें देख कर
नहीं जनता क्यों पर लगता था
फिर मोहब्बत ने एक दिन
खुद से मुझे पत्र लिखा
और इच्छा ये ज़ाहिर की
कि वो मुझमें घर करना चाहती है
मनमौजी था मगर
जिम्मेदारियों का अहसास रखता था
क्योंकि मैं बड़ा था
मैंने सुना था
मोहब्बत बहुत रुलाती है बहुत तडपती है
मैंने मोहब्बत से एक समझौता किया
कि वो मुझे रुलाएगी नहीं
तड़पाएगी नहीं
भटकाएगी नहीं
मोहब्बत ने मुस्कुरा कर हामी भर दी
मैंने भी उसे दिल में रहने की इजाज़त दे दी
दौर शुरू हुआ खेल शुरू हुआ
हसीन बातों से होते हुए
दो दिलों का मेल शुरू हुआ
ज़िन्दगी तो जैसे दिवाली पर
तनख्वाह के साथ मिलने वाला बोनस हो गई
एक वो याद रही बाकि कुल यादाश्त खो गई
हमने उन्हें खूब गरियाया जो मोहब्बत को
बुरा भला कहा करते थे
प्यार भरी बातें कर के मस्त रहा करते थे
मगर कौन जनता था
ये तो महज़ कुछ दिनों का मज़ा है
बाकि तो उम्र भर कि सजा है
हज़ार कोशिशें होने लगीं थी एक होने की
दोनों में से किसी के पास हिम्मत नहीं थी
एक दुसरे को खोने की
दिन उदासी में तो रात रो रो के कटने लगी
मोहब्बत हसीन है ये
ग़लतफ़हमी भी दिमाग से हटने लगी
मगर सच तो ये था कि
मोहब्बत हमेशा से खूबसूरत ही थी
उसे बदसूरती तो ज़माने
कि कुरीतियों ने दी थी
मोहब्बत लड़ सकती थी
बग़ावत कर सकती थी
मगर मोहब्बत तो खुशियाँ
बाँटती है
सुकून कि धूप से
दुश्मनी के बदल छांटती है
भला कैसे हथियार उठती
कैसे अपना गुस्सा दिखाती
बस अपनी शराफ़त में
कुर्बान हो गई
ज़माने ने बनाए रिवाज़
और मोहब्बत बेचारी खामखाह
बदनाम हो गई
धीरज झा
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