मैं और मेरे जैसी लाखों की आबादी औरों के मुकाबले 2 इंच ज़्यादा तक घिसा लेती है अपनी तशरिफ़ ताउम्र नौ से सात की चाकरी करते हुए घर से दूर मन क...
मैं और मेरे जैसी लाखों की आबादी
औरों के मुकाबले 2 इंच ज़्यादा तक
घिसा लेती है अपनी तशरिफ़
ताउम्र नौ से सात की चाकरी करते हुए
घर से दूर मन को मार कर चले आते हैं
ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाए हुए
मार लेते हैं अपने अंदर का वो लोफ़र
जो मिलता है सबको बच्चपने से
जवानी की ओर जाती हुई सड़क पर
आँखें मटका कर सीटी बजाता हुआ
देख कर किसी लड़की को
जब जागने लगते हैं गंदे वाले अरमान
तब माँ की बातें बहन की यादें
और प्रेमिका का विश्वास
दबा कर उस गंदगी को
बना देता है हमें सभ्य
फिर हम इतने सभ्य हो जाते हैं कि
डकार जाने के बाद आधी बोतल
हमें गंदे ख़्यालों की जगह
माँ की याद बीते ख़्याल
और देश का हाल सताता है
हम इतने चरित्रहीन हैं कि
नशे में भी बुरा ख़्याल
हमारे पास ना आता है
एक दूसरे पर लदे हुए
जब सफ़र करते हैं बस ट्रेनों में
कहीं आगे खड़ी हो कोई अप्सरा
जैसी लड़की तो उसे खुद से रगड़ कर
अंदर की खुजली मिटाने के बजाए
खुद को बचाते फिरते हैं उसकी छुअन से
तब मन में बस ये होता है
कि कहीं उसे ये ना लगे कि
हम उठा रहे हैं भीड़ का फायदा
कर रहे हैं उसका मानसिक बलात्कार
शायद यही चरित्रहीनता
की निशानी है हमारी
एक बार प्रेम में पड़ गए तो
लुटा देते हैं पूरी ज़िंदगी
किसी एक के नाम
कर लेते हैं खुद को तबाह
अगर मिले ना वो
मगर फिर देते नहीं बद्दुआ उसे
प्रेम की लाज को बनाए रखने के लिए
कहते नहीं उसके पिता से बुरा भला
क्योंकि जानते हैं वो समाज की
बेड़ियों में जकड़े हुए निभा रहे होते हैं
अपना पिता होने का धर्म
ये सब इस वजह से
क्योंकि हम चरित्रहीन हैं
इसीलिए तो दी जाती हैं हमें गालियाँ
किसी एक की वजह से
कहा जाता है हम सबको वो
जिसे सुन कर हम अपना आपा खो बैठें
मगर फिर भी हम सामने से नहीं बोल पाते कुछ
ये सोच कर कि सामने बोलने वाली महिला है
शायद इसीलिए हम हैं चरित्रहीन
अगर यही है चरित्र का हीन हो
जाना है तो हम बिना चरित्र के ही
खुश हैं अपनी बेरंग दुनियां में
धीरज झा
औरों के मुकाबले 2 इंच ज़्यादा तक
घिसा लेती है अपनी तशरिफ़
ताउम्र नौ से सात की चाकरी करते हुए
घर से दूर मन को मार कर चले आते हैं
ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाए हुए
मार लेते हैं अपने अंदर का वो लोफ़र
जो मिलता है सबको बच्चपने से
जवानी की ओर जाती हुई सड़क पर
आँखें मटका कर सीटी बजाता हुआ
देख कर किसी लड़की को
जब जागने लगते हैं गंदे वाले अरमान
तब माँ की बातें बहन की यादें
और प्रेमिका का विश्वास
दबा कर उस गंदगी को
बना देता है हमें सभ्य
फिर हम इतने सभ्य हो जाते हैं कि
डकार जाने के बाद आधी बोतल
हमें गंदे ख़्यालों की जगह
माँ की याद बीते ख़्याल
और देश का हाल सताता है
हम इतने चरित्रहीन हैं कि
नशे में भी बुरा ख़्याल
हमारे पास ना आता है
एक दूसरे पर लदे हुए
जब सफ़र करते हैं बस ट्रेनों में
कहीं आगे खड़ी हो कोई अप्सरा
जैसी लड़की तो उसे खुद से रगड़ कर
अंदर की खुजली मिटाने के बजाए
खुद को बचाते फिरते हैं उसकी छुअन से
तब मन में बस ये होता है
कि कहीं उसे ये ना लगे कि
हम उठा रहे हैं भीड़ का फायदा
कर रहे हैं उसका मानसिक बलात्कार
शायद यही चरित्रहीनता
की निशानी है हमारी
एक बार प्रेम में पड़ गए तो
लुटा देते हैं पूरी ज़िंदगी
किसी एक के नाम
कर लेते हैं खुद को तबाह
अगर मिले ना वो
मगर फिर देते नहीं बद्दुआ उसे
प्रेम की लाज को बनाए रखने के लिए
कहते नहीं उसके पिता से बुरा भला
क्योंकि जानते हैं वो समाज की
बेड़ियों में जकड़े हुए निभा रहे होते हैं
अपना पिता होने का धर्म
ये सब इस वजह से
क्योंकि हम चरित्रहीन हैं
इसीलिए तो दी जाती हैं हमें गालियाँ
किसी एक की वजह से
कहा जाता है हम सबको वो
जिसे सुन कर हम अपना आपा खो बैठें
मगर फिर भी हम सामने से नहीं बोल पाते कुछ
ये सोच कर कि सामने बोलने वाली महिला है
शायद इसीलिए हम हैं चरित्रहीन
अगर यही है चरित्र का हीन हो
जाना है तो हम बिना चरित्र के ही
खुश हैं अपनी बेरंग दुनियां में
धीरज झा
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