हर बात पर रूठना और रूठ कर कह देना कि अब जा रहा हूँ मैं बच्चकाना है जवानी के आखरी पड़ाव पर खड़े लड़के के लिए तो सच में बच्चकाना है वह लड़का ...
हर बात पर रूठना
और रूठ कर कह देना
कि अब जा रहा हूँ मैं
बच्चकाना है
जवानी के आखरी पड़ाव
पर खड़े लड़के के लिए तो
सच में बच्चकाना है
वह लड़का जो बहादुर है
वो लड़का जो हर परिस्थिती से
लड़ने की हिम्मत रखता है
तुम्हारे लिए उसका रो देना
और रो कर कहना कि जा रहा हूँ मैं
वाकई बच्चकाना है
मगर ये बच्चपना तुम से ही क्यों ?
ये रोना धोना ये धमकाना
हर बात पर छोड़ जाने की कह जाना
ये सब तुम्हारे साथ ही क्यों ?
क्योंकि तुम हक़ हो उसका
वह जानता है कि तुम हर बार
रोक लोगी उसे हाथ पकड़ कर
उसके गले से लिपट कर
तुम आत्मा हो
वो शरीर है
शरीर चोट खा सकता है
दर्द महसूस कर सकता है
मगर अपनी मर्ज़ी से आत्मा
से अलग नहीं हो सकता
कभी कहो उसे पलट कर
कि हाँ ठीक है जाओ चले जाओ
तब देखो उस बड़े से लड़के का
बच्चों की तरह फूट फूट कर रोना
वो हर बार चाहता है
तुम मनाओ अपनी व्यस्तता से
कुछ पल चुरा कर उसके साथ बिताओ
और कहो कि जाने की ज़िद्द ना करो
यकीन मानों वो दूसरी बार
तुम्हे ये बोल गुनगुनाने नहीं देगा
माफ़ी भी मांगेगा हमेशा की तरह
माँ का अंश भी है तुम में
और वो बच्चे की तरह है
धमकाता है डराता है
बस इसीलिए कि तुम देखो उसे
उसे मनाओ उसे दुलारो
एक दिन मनाना छोड़ देना
और देखना वो चला आएगा
सुबह के भूले की तरह शाम को लौट कर घर
मायूस सी सूरत लिए हुए
एक बात याद रखना
जिस दिन कभी वो तुमसे अलग हो जाए ना
उस दिन से वो खुद से अलग सा दिखने लगेगा
और धीरे धीरे हो जाएगा
गाँव की मिट्टी की तरह
जिसे शहर की पक्की इमारतों ने
समेट लिआ है अपने भीतर
याद रखना तुम से ही उसका वजूद है
तुम नहीं तो वो खुद खुद का भी नहीं
धीरज झा
और रूठ कर कह देना
कि अब जा रहा हूँ मैं
बच्चकाना है
जवानी के आखरी पड़ाव
पर खड़े लड़के के लिए तो
सच में बच्चकाना है
वह लड़का जो बहादुर है
वो लड़का जो हर परिस्थिती से
लड़ने की हिम्मत रखता है
तुम्हारे लिए उसका रो देना
और रो कर कहना कि जा रहा हूँ मैं
वाकई बच्चकाना है
मगर ये बच्चपना तुम से ही क्यों ?
ये रोना धोना ये धमकाना
हर बात पर छोड़ जाने की कह जाना
ये सब तुम्हारे साथ ही क्यों ?
क्योंकि तुम हक़ हो उसका
वह जानता है कि तुम हर बार
रोक लोगी उसे हाथ पकड़ कर
उसके गले से लिपट कर
तुम आत्मा हो
वो शरीर है
शरीर चोट खा सकता है
दर्द महसूस कर सकता है
मगर अपनी मर्ज़ी से आत्मा
से अलग नहीं हो सकता
कभी कहो उसे पलट कर
कि हाँ ठीक है जाओ चले जाओ
तब देखो उस बड़े से लड़के का
बच्चों की तरह फूट फूट कर रोना
वो हर बार चाहता है
तुम मनाओ अपनी व्यस्तता से
कुछ पल चुरा कर उसके साथ बिताओ
और कहो कि जाने की ज़िद्द ना करो
यकीन मानों वो दूसरी बार
तुम्हे ये बोल गुनगुनाने नहीं देगा
माफ़ी भी मांगेगा हमेशा की तरह
माँ का अंश भी है तुम में
और वो बच्चे की तरह है
धमकाता है डराता है
बस इसीलिए कि तुम देखो उसे
उसे मनाओ उसे दुलारो
एक दिन मनाना छोड़ देना
और देखना वो चला आएगा
सुबह के भूले की तरह शाम को लौट कर घर
मायूस सी सूरत लिए हुए
एक बात याद रखना
जिस दिन कभी वो तुमसे अलग हो जाए ना
उस दिन से वो खुद से अलग सा दिखने लगेगा
और धीरे धीरे हो जाएगा
गाँव की मिट्टी की तरह
जिसे शहर की पक्की इमारतों ने
समेट लिआ है अपने भीतर
याद रखना तुम से ही उसका वजूद है
तुम नहीं तो वो खुद खुद का भी नहीं
धीरज झा
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