कोहरे में मुस्कुराता प्रेम (गुलाब डे स्पैश्ल) राघव ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा है पीछे से राधिका कमर में बाहें लपेट कर इठलाते हुए मा बोली ...
कोहरे में मुस्कुराता प्रेम (गुलाब डे स्पैश्ल)
राघव ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा है पीछे से राधिका कमर में बाहें लपेट कर इठलाते हुए मा बोली ।
"सुनो ना ?"
"हाँ बोलो ना ।"
"आज कुछ स्पैश्ल नही लग रहा ?" राधिका बड़ी मासूमियत के साथ बोली
"नहीं तो ।" उतने ही रूखेपन्न के साथ राघव ने जवाब दिया ।
"कुछ तो लग रहा होगा ।" राधिका ने राघव को प्यार से हिलाते हुए पूछा ।
"अरे क्यों बच्चों जैसे कर रही हो ? मुझे लेट हो रहा है । और ना आज तुम्हारा बड्डे ना मेरा ना हमारी एनीवर्सरी ना कोई त्यौहार तो कहाँ से लगेगा स्पैश्ल !" आम तौर पर राघव राधिका से ऐसे बात नहीं करता था मगर आज जब राधिका इतना प्यार दिखा रही थी तो राघव रूखा सा बर्ताब कर रहा था । राधिका भी उससे अलग हो कर भरी हुई आँखों के साथ किचन में चली गई । टिफिन टेबल पर रख कर चुपचाप बैठ गई की राघव अब मनाएगा और हमेशा की तरह उसके होंठों को होंठों से छूते हुए उसके सर को चूम लेगा । मगर ये क्या आज तो राघव ने वो वादा भी तोड़ दिया जो प्रेम के दिनों में किया था कि शादी के बाद रोज़ ऑफिस जाते हुए किस्स ज़रूर करेंगे चाहे कितना भी मूड खराब क्यों ना हो । पर आज तो राघव चुपचाप चला गया ।
राधिका की आँखें भर आईं । आज वैलेनटाईन का सप्ताह शुरू हो गया था । शादी से पहले राघव कितने अच्छे से ये सप्ताह मनाता था । कितने सरप्राईज़ देता था । आज रोज़ डे के दिन वो कितने प्यार से उसकी तारीफ़ करते हुए उसे रोज़ डे विश करता था । राधिका रोते रोते पिछले साल आज ही के दिन की यादों में खो गई
आज तो " तुम्हारा दिन है" !
" मेरा दिन ? नही तो "
" हाँ है ना , सभी मना तो रहे हैं "
" अरे आज तो रोज़ डे है ,मेरा दिन कैसे हुआ ?"
" तुम गुलाब ही तो हो , फिर तुम्हारा दिन कैसे नही है | "
" अरे भला मैं गुलाब कैसे हुई | " ( जान बूझ कर सवाल, बस तारीफ सुननेे लिये | जानते हैं ना सबसे अजीज़ के की गई तारीफ की कोई बराबरी कहाँ | )
" अच्छा सुनो तो...
गुलाब के जैसी कोमल हो , गुलाब सा रंग है तुम्हारा , गुलाब सी खिली रहती हो , और सब से बड़ी खास बात गुलाब जैसे बगीया को खुश्बू से महकाये रखता है वैसे ही तुम खुशियों से मेरी ज़िंदगी को महकाये हुये हो और सबसे बड़ी बात मुझे गुलाब बहुत बहुत बहुत ज़्यादा पसन्द हैं जैसे की तुम पसन्द हो | तो कहो हुई ना तुम गुलाब हुआ ना ये दिन तुम्हारा | "
फिर बस आँखों में प्यार गले में बाहों का हार... :)
हैपी रोज़ डे टू माई रोज़..
सारा दिन राधिका ने पुराने दिनों को सोचते हुए बिता दिया । और सोचती रही की कैसे उसने हाथों से कार्ड डिज़ाईन कर के उसकी तस्वीर हाथों से बना कर राघव को भेजी थी और राघव कितना खुश हुआ था । राघव ना वो सब अभी तक संभाल कर रखा है मगर जिस प्यार से वो भेजा था और राघव ने संभाला था वो प्यार शायद वक्त की दौड़ में कहीं गिर गया । वो सोचती रही कि क्या शादी के बाद प्यार खत्म हो जाता है ? क्या प्यार की उम्र इतनी छोटी है । आज राधिका को बहुत बुरा लग रहा था मगर उसने खुद को ये कह कर समझाया कि नहीं राघव बदल नही सकते ज़रूर कोई परेशानी होगी वर्ना वो ऐसा नहीं करते । इसी उधेड़बुन में खोई सी रोई सी मटर छीलने बैठी तब तक फोन आया । फोन राघव का था । पहले तो उसका मन हुआ की उठाए ना फिर उसने सोचा ये तो राघव के घर आने का टाईम है इस बीच वो फोन कर रहा है तो ज़रूरी बात होगी । ये सोच कर उसने फोन उठा लिया ।
"हैलो ।"
"हाँ क्या बात है ?"
"अरे बात क्या होगी मेरी बाईक बंद पड़ गई है । मैं वो हनुमान मंदिर के पास खड़ा हूँ क्या तुम मुझे लेने आ सकती हो । जानता हूँ तुम्हारा मुंह फूला होगा पर फिर भी आ सको तो आ जाओ । अपनी बाईक मैने ठीक होने के लिए दे दी है ।"
"हम्म्म्म्म, आती हूँ ।" ये कह कर राधिका निकल पड़ी और रास्ते भर सोचती रही कि क्या राघव सच में इतना बदल गया । अभी भी उसकी आवाज़ में अफसोस नहीं था उल्टा टोंट कर रहा था । ये सब सोचते वो हनुमान मंदिर के पास पहुंची । वहाँ राघव खड़ा था ।
राधिका के पहुंचते ही वो स्कूटी पर बैठ गया और बोला "ज़रा हाईवे की साईड लेना मैं बाईक की डिग्गी से कुछ पेपर निकालना भूल गया ।" राधिका ने बिना कुछ कहे ही उसकी बताई हुई जगह की तरफ़ स्केटी आगे बढ़ा दी । राधिका इंतज़ार में थी की शायद राघव अब साॅरी बोलेगा उसे पीछे से पकड़ लेगा कस कर जैसा वो शरारत में हमेशा करता है । मगर राघव चुप था राधिका से दूर था । राधिका और दुखी हो गई ।
"बस बस रुको रुको यहीं अंदर की तरफ़ ले लो और वो सामने रोक दो । सुनों यहीं रुकना मैं अभी आया पेपर ले कर ।" राधिका ने कोई जवाब नहीं दिया ना राघव ने जवाब का इंतज़ार किया । पांच मिनट हो गए राघव नहीं आया दस मिनट में भी नसीं आया पंद्रहवें मिनट में राधिका को लगा ज़्यादा देर हो रही है । उसने स्कूटी का स्टैंड लगाया और जैसे ही आगे बढ़ी की अंदर से राघव के चिल्लाने की आवाज़ आई "जाना "
राधिका बुरी तरह डर गई और भागती हुई अंदर घुसी और अंधर घुसते ही जो सामने जो दृश्य था उसे देख कर थोड़ी देर के लिए वो सब भूल गई । सामने पूरा हाॅल गुलाब के फूलों से सजा था । गुलाब की खुशबू से वहाँ का ज़र्रा ज़र्रा गमक उठा था । उसके पैर रखते ही किशोर कुमार का गीत ये गीत बजने लगा "हमें तुम से प्यार कितना ये हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना ।"
हाॅल के बीचों बीच गुलाब के फूलों से एक टेबल सजा था जिस पर एक केक रखा था और अब सामने से राघव आ रहा था नीले रंग के सूट में (नीला रंग राधिका को राघव पर बहुत पसंद था) राधिका आज सारे दिन का गुस्सा थकान दुख सब भूल चुकी थी । बस उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे । राघव घुटने पर बैठता गया और एक गुलाब राधिका की तरफ़ बढ़ाया । राधिका की खुशी का ठिकाना नहीं था । उसके गुलाब लेते ही राघव ने जेब से एक रिंग निकाली और इशारे से राधिका को हाथ आगे करने के लिए कहा । राधिका ने शरमाते हुए हाथ आगे किया और राघव ने अंगूठी उसे पहना दी । अब राघव राधिका का हाथ पकड़ कर टेबल की तरफ ले गया और फिर दोनों ने प्यार से केक काटा । देखते ही देखते केक की टेबल हटा दी गई और खाने का टेबल सजा दिया गया ।
"ये सब सपने जैसा लग रहा है ।" राधिका ने राघव के कंधे पर सर रखते हुए उसकी ऊंगलियोंएं अपनी ऊंगलियाँ फंसाते हुए कहा ।
"तुम्हे पसंद आया ना ?"
"पसंद ! पागल हो ? ये पसंद आने से कहीं लाख गुना ज़्यादा है । ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था । मुझे तो लगा आज तुम सब भूल गए । शादी के बाद बदल गए । कितना कुछ उल्टा सीधा सोच लिया था ।"
"मुझे छोड़ने का तो नहीं सोचा ना ।" राघव हंसते हुए बोला
"मुक्का मार के नाक तोड़ दूँगी बकवास की तो ।" हल्का सा मुक्का मारते हुए राधिका ने कहा
"माफ़ कर दो आज सारा दिन बहुत परेशान किया ना । मगर वैसा ना करता तो ये पल इतना खास नहीं हो पाता ।" राधिका अपनी खुशी को रोक नहीं पाई और राघव के होठों को अपने होठों में कैद कर लिया ।
असल में राघव ने दो दिन पहले ही सारी प्लैनिंग कर ली थी । उसने सोच लिया था की उसे अपना पहला वैलेनटाईन का एक दिन नहीं बल्की पूरा वीक मनाना है । ये उसके दोस्त का मैरेज हाॅल था जिसकी 14 को ओपनिंग होनी थी तब तक इसमें कोई नहीं आता ।राघव ने उसे बताया कि उसे ऐसा करना है तो उसके दोस्त ने ही सारा अरेंज किया राघव की डिमांड पर । राघव आज यहीं था सारा दिन । अब दोनों बहुत खुश थे और स्कूटी पर सवार हो कर घर की ओर चल दिए ।
"अच्छा खर्चा तो बहुत लगा होगा ना ।"
"हाँ लग ही गया मगर कोई ना । सैलरी हर महीने आएगी मगर ये पहला वैलैनटाईन वीक फिर दोबारा नहीं आएगा । ये सब मुफ़्त की खुशियाँ हैं जितनी बटोर सकें बटोर लेते हैं बाद में पैसे से भी ये सब ना खरीद पाएंगे और हाँ अब पूरा सप्ताह तुम खाना नहीं बनाओगी । वो मैं बनाऊंगा और रोज़ एक सरप्राईज़ होगा और वैलेनटाईन डे पर हम कहीं बाहर घूमने जाएंगे ।"
"हाँ बाहर जाना है । पर माँ के पास प्यार का त्यौहार है सब में प्यार बांट कर मनाएंगे ना ।" राधिका की बात पर राघव को अंदर से खुशी हुई । उसने पीछे बैठे हुए राधिका की गर्दन को चूम कर उसके फैसले को सराहा । शहर सो चुका था, आसमान गुनगुना रहा था और प्रेम कोहरे में छुप कर धीरे धीरे ये सोच कर मुस्कुरा रहा था कि चलो मैं अभी भी ज़िंदा हूँ ।
नोट - कहानी पूरी तरह काल्पनिक है । हाँ इसे सच्च करने की कोशिश की जा सकती है तरीका भले ही आपका अपना हो 😊
धीरज झा
राघव ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा है पीछे से राधिका कमर में बाहें लपेट कर इठलाते हुए मा बोली ।
"सुनो ना ?"
"हाँ बोलो ना ।"
"आज कुछ स्पैश्ल नही लग रहा ?" राधिका बड़ी मासूमियत के साथ बोली
"नहीं तो ।" उतने ही रूखेपन्न के साथ राघव ने जवाब दिया ।
"कुछ तो लग रहा होगा ।" राधिका ने राघव को प्यार से हिलाते हुए पूछा ।
"अरे क्यों बच्चों जैसे कर रही हो ? मुझे लेट हो रहा है । और ना आज तुम्हारा बड्डे ना मेरा ना हमारी एनीवर्सरी ना कोई त्यौहार तो कहाँ से लगेगा स्पैश्ल !" आम तौर पर राघव राधिका से ऐसे बात नहीं करता था मगर आज जब राधिका इतना प्यार दिखा रही थी तो राघव रूखा सा बर्ताब कर रहा था । राधिका भी उससे अलग हो कर भरी हुई आँखों के साथ किचन में चली गई । टिफिन टेबल पर रख कर चुपचाप बैठ गई की राघव अब मनाएगा और हमेशा की तरह उसके होंठों को होंठों से छूते हुए उसके सर को चूम लेगा । मगर ये क्या आज तो राघव ने वो वादा भी तोड़ दिया जो प्रेम के दिनों में किया था कि शादी के बाद रोज़ ऑफिस जाते हुए किस्स ज़रूर करेंगे चाहे कितना भी मूड खराब क्यों ना हो । पर आज तो राघव चुपचाप चला गया ।
राधिका की आँखें भर आईं । आज वैलेनटाईन का सप्ताह शुरू हो गया था । शादी से पहले राघव कितने अच्छे से ये सप्ताह मनाता था । कितने सरप्राईज़ देता था । आज रोज़ डे के दिन वो कितने प्यार से उसकी तारीफ़ करते हुए उसे रोज़ डे विश करता था । राधिका रोते रोते पिछले साल आज ही के दिन की यादों में खो गई
आज तो " तुम्हारा दिन है" !
" मेरा दिन ? नही तो "
" हाँ है ना , सभी मना तो रहे हैं "
" अरे आज तो रोज़ डे है ,मेरा दिन कैसे हुआ ?"
" तुम गुलाब ही तो हो , फिर तुम्हारा दिन कैसे नही है | "
" अरे भला मैं गुलाब कैसे हुई | " ( जान बूझ कर सवाल, बस तारीफ सुननेे लिये | जानते हैं ना सबसे अजीज़ के की गई तारीफ की कोई बराबरी कहाँ | )
" अच्छा सुनो तो...
गुलाब के जैसी कोमल हो , गुलाब सा रंग है तुम्हारा , गुलाब सी खिली रहती हो , और सब से बड़ी खास बात गुलाब जैसे बगीया को खुश्बू से महकाये रखता है वैसे ही तुम खुशियों से मेरी ज़िंदगी को महकाये हुये हो और सबसे बड़ी बात मुझे गुलाब बहुत बहुत बहुत ज़्यादा पसन्द हैं जैसे की तुम पसन्द हो | तो कहो हुई ना तुम गुलाब हुआ ना ये दिन तुम्हारा | "
फिर बस आँखों में प्यार गले में बाहों का हार... :)
हैपी रोज़ डे टू माई रोज़..
सारा दिन राधिका ने पुराने दिनों को सोचते हुए बिता दिया । और सोचती रही की कैसे उसने हाथों से कार्ड डिज़ाईन कर के उसकी तस्वीर हाथों से बना कर राघव को भेजी थी और राघव कितना खुश हुआ था । राघव ना वो सब अभी तक संभाल कर रखा है मगर जिस प्यार से वो भेजा था और राघव ने संभाला था वो प्यार शायद वक्त की दौड़ में कहीं गिर गया । वो सोचती रही कि क्या शादी के बाद प्यार खत्म हो जाता है ? क्या प्यार की उम्र इतनी छोटी है । आज राधिका को बहुत बुरा लग रहा था मगर उसने खुद को ये कह कर समझाया कि नहीं राघव बदल नही सकते ज़रूर कोई परेशानी होगी वर्ना वो ऐसा नहीं करते । इसी उधेड़बुन में खोई सी रोई सी मटर छीलने बैठी तब तक फोन आया । फोन राघव का था । पहले तो उसका मन हुआ की उठाए ना फिर उसने सोचा ये तो राघव के घर आने का टाईम है इस बीच वो फोन कर रहा है तो ज़रूरी बात होगी । ये सोच कर उसने फोन उठा लिया ।
"हैलो ।"
"हाँ क्या बात है ?"
"अरे बात क्या होगी मेरी बाईक बंद पड़ गई है । मैं वो हनुमान मंदिर के पास खड़ा हूँ क्या तुम मुझे लेने आ सकती हो । जानता हूँ तुम्हारा मुंह फूला होगा पर फिर भी आ सको तो आ जाओ । अपनी बाईक मैने ठीक होने के लिए दे दी है ।"
"हम्म्म्म्म, आती हूँ ।" ये कह कर राधिका निकल पड़ी और रास्ते भर सोचती रही कि क्या राघव सच में इतना बदल गया । अभी भी उसकी आवाज़ में अफसोस नहीं था उल्टा टोंट कर रहा था । ये सब सोचते वो हनुमान मंदिर के पास पहुंची । वहाँ राघव खड़ा था ।
राधिका के पहुंचते ही वो स्कूटी पर बैठ गया और बोला "ज़रा हाईवे की साईड लेना मैं बाईक की डिग्गी से कुछ पेपर निकालना भूल गया ।" राधिका ने बिना कुछ कहे ही उसकी बताई हुई जगह की तरफ़ स्केटी आगे बढ़ा दी । राधिका इंतज़ार में थी की शायद राघव अब साॅरी बोलेगा उसे पीछे से पकड़ लेगा कस कर जैसा वो शरारत में हमेशा करता है । मगर राघव चुप था राधिका से दूर था । राधिका और दुखी हो गई ।
"बस बस रुको रुको यहीं अंदर की तरफ़ ले लो और वो सामने रोक दो । सुनों यहीं रुकना मैं अभी आया पेपर ले कर ।" राधिका ने कोई जवाब नहीं दिया ना राघव ने जवाब का इंतज़ार किया । पांच मिनट हो गए राघव नहीं आया दस मिनट में भी नसीं आया पंद्रहवें मिनट में राधिका को लगा ज़्यादा देर हो रही है । उसने स्कूटी का स्टैंड लगाया और जैसे ही आगे बढ़ी की अंदर से राघव के चिल्लाने की आवाज़ आई "जाना "
राधिका बुरी तरह डर गई और भागती हुई अंदर घुसी और अंधर घुसते ही जो सामने जो दृश्य था उसे देख कर थोड़ी देर के लिए वो सब भूल गई । सामने पूरा हाॅल गुलाब के फूलों से सजा था । गुलाब की खुशबू से वहाँ का ज़र्रा ज़र्रा गमक उठा था । उसके पैर रखते ही किशोर कुमार का गीत ये गीत बजने लगा "हमें तुम से प्यार कितना ये हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना ।"
हाॅल के बीचों बीच गुलाब के फूलों से एक टेबल सजा था जिस पर एक केक रखा था और अब सामने से राघव आ रहा था नीले रंग के सूट में (नीला रंग राधिका को राघव पर बहुत पसंद था) राधिका आज सारे दिन का गुस्सा थकान दुख सब भूल चुकी थी । बस उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे । राघव घुटने पर बैठता गया और एक गुलाब राधिका की तरफ़ बढ़ाया । राधिका की खुशी का ठिकाना नहीं था । उसके गुलाब लेते ही राघव ने जेब से एक रिंग निकाली और इशारे से राधिका को हाथ आगे करने के लिए कहा । राधिका ने शरमाते हुए हाथ आगे किया और राघव ने अंगूठी उसे पहना दी । अब राघव राधिका का हाथ पकड़ कर टेबल की तरफ ले गया और फिर दोनों ने प्यार से केक काटा । देखते ही देखते केक की टेबल हटा दी गई और खाने का टेबल सजा दिया गया ।
"ये सब सपने जैसा लग रहा है ।" राधिका ने राघव के कंधे पर सर रखते हुए उसकी ऊंगलियोंएं अपनी ऊंगलियाँ फंसाते हुए कहा ।
"तुम्हे पसंद आया ना ?"
"पसंद ! पागल हो ? ये पसंद आने से कहीं लाख गुना ज़्यादा है । ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था । मुझे तो लगा आज तुम सब भूल गए । शादी के बाद बदल गए । कितना कुछ उल्टा सीधा सोच लिया था ।"
"मुझे छोड़ने का तो नहीं सोचा ना ।" राघव हंसते हुए बोला
"मुक्का मार के नाक तोड़ दूँगी बकवास की तो ।" हल्का सा मुक्का मारते हुए राधिका ने कहा
"माफ़ कर दो आज सारा दिन बहुत परेशान किया ना । मगर वैसा ना करता तो ये पल इतना खास नहीं हो पाता ।" राधिका अपनी खुशी को रोक नहीं पाई और राघव के होठों को अपने होठों में कैद कर लिया ।
असल में राघव ने दो दिन पहले ही सारी प्लैनिंग कर ली थी । उसने सोच लिया था की उसे अपना पहला वैलेनटाईन का एक दिन नहीं बल्की पूरा वीक मनाना है । ये उसके दोस्त का मैरेज हाॅल था जिसकी 14 को ओपनिंग होनी थी तब तक इसमें कोई नहीं आता ।राघव ने उसे बताया कि उसे ऐसा करना है तो उसके दोस्त ने ही सारा अरेंज किया राघव की डिमांड पर । राघव आज यहीं था सारा दिन । अब दोनों बहुत खुश थे और स्कूटी पर सवार हो कर घर की ओर चल दिए ।
"अच्छा खर्चा तो बहुत लगा होगा ना ।"
"हाँ लग ही गया मगर कोई ना । सैलरी हर महीने आएगी मगर ये पहला वैलैनटाईन वीक फिर दोबारा नहीं आएगा । ये सब मुफ़्त की खुशियाँ हैं जितनी बटोर सकें बटोर लेते हैं बाद में पैसे से भी ये सब ना खरीद पाएंगे और हाँ अब पूरा सप्ताह तुम खाना नहीं बनाओगी । वो मैं बनाऊंगा और रोज़ एक सरप्राईज़ होगा और वैलेनटाईन डे पर हम कहीं बाहर घूमने जाएंगे ।"
"हाँ बाहर जाना है । पर माँ के पास प्यार का त्यौहार है सब में प्यार बांट कर मनाएंगे ना ।" राधिका की बात पर राघव को अंदर से खुशी हुई । उसने पीछे बैठे हुए राधिका की गर्दन को चूम कर उसके फैसले को सराहा । शहर सो चुका था, आसमान गुनगुना रहा था और प्रेम कोहरे में छुप कर धीरे धीरे ये सोच कर मुस्कुरा रहा था कि चलो मैं अभी भी ज़िंदा हूँ ।
नोट - कहानी पूरी तरह काल्पनिक है । हाँ इसे सच्च करने की कोशिश की जा सकती है तरीका भले ही आपका अपना हो 😊
धीरज झा
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