क्या तुम जानते हो गुलामी किसको कहते हैं ? किसी की कैद में रहना लबों को सी कर चुप चाप सब सहना मुंह से उफ्फ़ तक ना कह पाने कि तड़प कैसी होत...
क्या तुम जानते हो
गुलामी किसको कहते हैं ?
किसी की कैद में रहना
लबों को सी कर
चुप चाप सब सहना
मुंह से उफ्फ़ तक ना कह पाने
कि तड़प कैसी होती है ?
तुम्हे गालियाँ देने से रोका
देश को बुरा कहने पर टोका
बम गोली के धमाकों की आज़ादी ना दी
तो क्या गुलाम हो गए तुम ?
सुनों मैं बतलाता हूँ किसे कहते हैं
आज़ादी का छिन जाना
क्या होता है चाह कर भी
मुंह से आह तक ना कह पाना
जब किसी गोरी चमड़ी के आगे
छींका गया था
कांटा चुभने पर जब चीखा गया था
काट डाली थी ज़ुबान उस ग़रीब की
क्योंकि गोरे को आदत नहीं थी शोर की
एक आठ साल का अबोध बच्चा
मार मार कर कर दिया गया था अधमरा
क्योंकि छू दिया था अपने मैले हाथों से
गोरे की चमकती अचकन को
लगान दे नहीं पाया था जब वो गरीब
तब मारा गया था उसे कोड़ों से
और चीखने पर डाला गया था नमक
उसके ज़ख्मों पर
इतने के बाद भी मजाल है
कोई उफ्फ़ कहता
वो गुलाम था कैसे ना
सब चुप चाप सहता
तुम बोलते हो गालियाँ
देश को कहते हो बुरा
फिर भी लेते हो इसी देश की
हवा में सांस
खाते हो इसी देश का अन्न
तब भी कहते हो हैं हम गुलाम
कुछ तो शर्म करो
कहो जो मन में हो क्योंकि आज़ाद हो तुम
मगर मत उछालो किचड़
अपनी ही भारत माँ के आँचल पर
रखो अपनी रंजिशों को देश के अंदर
मत करो बदनाम अपने ही वतन को
क्योंकि इसी देश से है पहचान तुम्हारी
धीरज झा
गुलामी किसको कहते हैं ?
किसी की कैद में रहना
लबों को सी कर
चुप चाप सब सहना
मुंह से उफ्फ़ तक ना कह पाने
कि तड़प कैसी होती है ?
तुम्हे गालियाँ देने से रोका
देश को बुरा कहने पर टोका
बम गोली के धमाकों की आज़ादी ना दी
तो क्या गुलाम हो गए तुम ?
सुनों मैं बतलाता हूँ किसे कहते हैं
आज़ादी का छिन जाना
क्या होता है चाह कर भी
मुंह से आह तक ना कह पाना
जब किसी गोरी चमड़ी के आगे
छींका गया था
कांटा चुभने पर जब चीखा गया था
काट डाली थी ज़ुबान उस ग़रीब की
क्योंकि गोरे को आदत नहीं थी शोर की
एक आठ साल का अबोध बच्चा
मार मार कर कर दिया गया था अधमरा
क्योंकि छू दिया था अपने मैले हाथों से
गोरे की चमकती अचकन को
लगान दे नहीं पाया था जब वो गरीब
तब मारा गया था उसे कोड़ों से
और चीखने पर डाला गया था नमक
उसके ज़ख्मों पर
इतने के बाद भी मजाल है
कोई उफ्फ़ कहता
वो गुलाम था कैसे ना
सब चुप चाप सहता
तुम बोलते हो गालियाँ
देश को कहते हो बुरा
फिर भी लेते हो इसी देश की
हवा में सांस
खाते हो इसी देश का अन्न
तब भी कहते हो हैं हम गुलाम
कुछ तो शर्म करो
कहो जो मन में हो क्योंकि आज़ाद हो तुम
मगर मत उछालो किचड़
अपनी ही भारत माँ के आँचल पर
रखो अपनी रंजिशों को देश के अंदर
मत करो बदनाम अपने ही वतन को
क्योंकि इसी देश से है पहचान तुम्हारी
धीरज झा
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