जोगी जी के पहरे में पलता प्रेम 😂😂(छोटी सी प्रेम कहानी) "हेलो" बड़ी धीरे सी आवाज़ में "हं बोलो" मायूसी भरी आवाज़ में ...
जोगी जी के पहरे में पलता प्रेम 😂😂(छोटी सी प्रेम कहानी)
"हेलो" बड़ी धीरे सी आवाज़ में
"हं बोलो" मायूसी भरी आवाज़ में
"हमको तुमसे मिलना है उहे आज के आजे"
"पगलाई हो का ? पुलिसबला सब ध के कूट देगा ।"
"तब का हुआ पेयार में लोग जहर खा लेता है तुम तनिका कूट नहीं खा सकते ।"
"जहर खिआ दो खा लेंगे पर जोगी के बौराए परसासन का मार नहीं खा सकते । खल्ला ओईल देगा ।"
"हम न जानते हैं कुछो, तुमको आना होगा । हम पौने पांच भोला बबा के मंदिर पर इंतजार करेंगे । आऊर जदि न आए तुम तो देख लेना कभी बात नहीं करेंगे ।" बस इतना कह कर चंपा ने फोन काट दिया । इधर किसोर बेचारा दुविधा में था । एक तरफ छओ साल चार महीना चौबिस दिन का प्रेम और दूसरी तरफ तेल पिआया हुआ पुलिस का लाठी । मगर प्रेम तो अग्नि परिक्षा ही है ना किसोर भी परिक्षा देने को तैयार हो गया । मगर मन में जोगी जी को कोसने लगा ये सोच कर कि जोगी जी जदि स्काड ही बनाना था तो ई लईकी सबके लिए भी बनाते । तब इनको भी डर लगता मगर आप तो हमनी लोग के बैंड बजा दिए ।
खैर जान हथेली पर ले कर किसोर चोर की तरह मुंह नुकाते हुए पहुंच गया भोला बाबा के मंदिर सामने चंपा अपना साईकिल लिए खड़ी थी । साईकिल देखते ही किसोर के मन में एक ही हूक उठी "हे समाजबाद कहाँ चले गए तुम । साला हम लईकन जिनसे गलती हो जाने पर भी कोई कुछो नहीं बोलता था उसको अब बिना बात के लात खाना पड़ रहा है । आपस में तो लड़बे कर खुद तो डूबे साथे साथे हमको भी ले डूबे ।" इतना सोच ही रहा था किसोर कि चंपा किसोर को देखते उसकी तरफ दौड़ पड़ी । उसे अपनी तरफ दौड़ कर आता हुआ देख किसोर चंपा से ऐसे दूर भागा जैसे उत्तर प्रदेश में "विकास" के डर से "बोलता हुआ काम" भाग खड़ा हुआ था ।
चंपा ये देख कर दुखी होती हुई बोली कि "पहिले हमको देखने के लिए दू दू घंटा स्कूल के बाहर खड़े रहते थे । और अब अईसे भाग रहे हो जईसे हमको छूत का बिमारी है । आग लगे इस रोमिओ स्काड को जो तुमको एतना डेरा दिया है कि हमारे पास आने से डरने लगे हो ।" औरत के आंसू तो लोहा पिघला देते हैं ये तो किसोर का दिल था भला कैसे ना पिघलता ।
डरते डरते इधर उधर देखते हुए चंपा के पास आया और उसका हाथ पकड़ कर बोला "धत अइसे रोते हैं का । तुम्हो ना पगलिया हो । आऊर सुनो ई काम जो हो रहा है ना इसको तुम बुरा नहीं कहो । जानती हो चाहे तुमसे मिल ना पाएं मगर एक संतोस ई रहता है कि अब तुमको कोई ससुरा छेड़ेगा तो नहीं ना । हम अकेले केतना से झगड़ा करते तुमारे पीछे । अब कम से कम हम चैन से तो रहेंगे ना । अच्छा ई सब छोड़ो, चलो तुमको गोलगप्पा खिलाते हैं ।"
"का हुआ अब डर नहीं लग रहा का ?"
"अरे पगलिआ, गाना नहीं सुनी का, पेयार किया तो डरना का ।" इसके बाद दोनों प्रेमी बिना किसी भय के गोलगप्पा खाते हुए एक दूसरे की आँखों में डूब गए ।
धीरज झा
"हेलो" बड़ी धीरे सी आवाज़ में
"हं बोलो" मायूसी भरी आवाज़ में
"हमको तुमसे मिलना है उहे आज के आजे"
"पगलाई हो का ? पुलिसबला सब ध के कूट देगा ।"
"तब का हुआ पेयार में लोग जहर खा लेता है तुम तनिका कूट नहीं खा सकते ।"
"जहर खिआ दो खा लेंगे पर जोगी के बौराए परसासन का मार नहीं खा सकते । खल्ला ओईल देगा ।"
"हम न जानते हैं कुछो, तुमको आना होगा । हम पौने पांच भोला बबा के मंदिर पर इंतजार करेंगे । आऊर जदि न आए तुम तो देख लेना कभी बात नहीं करेंगे ।" बस इतना कह कर चंपा ने फोन काट दिया । इधर किसोर बेचारा दुविधा में था । एक तरफ छओ साल चार महीना चौबिस दिन का प्रेम और दूसरी तरफ तेल पिआया हुआ पुलिस का लाठी । मगर प्रेम तो अग्नि परिक्षा ही है ना किसोर भी परिक्षा देने को तैयार हो गया । मगर मन में जोगी जी को कोसने लगा ये सोच कर कि जोगी जी जदि स्काड ही बनाना था तो ई लईकी सबके लिए भी बनाते । तब इनको भी डर लगता मगर आप तो हमनी लोग के बैंड बजा दिए ।
खैर जान हथेली पर ले कर किसोर चोर की तरह मुंह नुकाते हुए पहुंच गया भोला बाबा के मंदिर सामने चंपा अपना साईकिल लिए खड़ी थी । साईकिल देखते ही किसोर के मन में एक ही हूक उठी "हे समाजबाद कहाँ चले गए तुम । साला हम लईकन जिनसे गलती हो जाने पर भी कोई कुछो नहीं बोलता था उसको अब बिना बात के लात खाना पड़ रहा है । आपस में तो लड़बे कर खुद तो डूबे साथे साथे हमको भी ले डूबे ।" इतना सोच ही रहा था किसोर कि चंपा किसोर को देखते उसकी तरफ दौड़ पड़ी । उसे अपनी तरफ दौड़ कर आता हुआ देख किसोर चंपा से ऐसे दूर भागा जैसे उत्तर प्रदेश में "विकास" के डर से "बोलता हुआ काम" भाग खड़ा हुआ था ।
चंपा ये देख कर दुखी होती हुई बोली कि "पहिले हमको देखने के लिए दू दू घंटा स्कूल के बाहर खड़े रहते थे । और अब अईसे भाग रहे हो जईसे हमको छूत का बिमारी है । आग लगे इस रोमिओ स्काड को जो तुमको एतना डेरा दिया है कि हमारे पास आने से डरने लगे हो ।" औरत के आंसू तो लोहा पिघला देते हैं ये तो किसोर का दिल था भला कैसे ना पिघलता ।
डरते डरते इधर उधर देखते हुए चंपा के पास आया और उसका हाथ पकड़ कर बोला "धत अइसे रोते हैं का । तुम्हो ना पगलिया हो । आऊर सुनो ई काम जो हो रहा है ना इसको तुम बुरा नहीं कहो । जानती हो चाहे तुमसे मिल ना पाएं मगर एक संतोस ई रहता है कि अब तुमको कोई ससुरा छेड़ेगा तो नहीं ना । हम अकेले केतना से झगड़ा करते तुमारे पीछे । अब कम से कम हम चैन से तो रहेंगे ना । अच्छा ई सब छोड़ो, चलो तुमको गोलगप्पा खिलाते हैं ।"
"का हुआ अब डर नहीं लग रहा का ?"
"अरे पगलिआ, गाना नहीं सुनी का, पेयार किया तो डरना का ।" इसके बाद दोनों प्रेमी बिना किसी भय के गोलगप्पा खाते हुए एक दूसरे की आँखों में डूब गए ।
धीरज झा
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