#सम्मान_देना_है_तो_अच्छे_से_दो_वरना_मुझे_कुर्बान_होने_दो "अम्मा परनाम, मैंहहहह" "खुस रहो पोती । क्या हाल है ?" "हा...
#सम्मान_देना_है_तो_अच्छे_से_दो_वरना_मुझे_कुर्बान_होने_दो
"अम्मा परनाम, मैंहहहह"
"खुस रहो पोती । क्या हाल है ?"
"हाल का होगा दादी, बकरे की अम्मा हैं बेटे को लेकर डर तो हमेसा बना ही रहता है ना ।"
"हाँ सो तो है, मगर का करोगी नियम है इंसान का, कमजोर को तो अपना आहार बनाता ही है ।"
"हाँ अम्मा आप तो अईसा ही कहोगी । आपके लिए तो सब लड़ते हैं । आप सबकी माँ जो हो ।"
"हाहाहाहाहाहा ।"
"हंस काहे रही अम्मा । हम झूठ बोले क्या ।"
"नहीं री पगली झूठ नहीं बोली तू । बस वही बोली जो सब बोलते हैं मगर ये जो सब बोलते हैं वो सच कितना है ये कोई नहीं सोचता । मैं इन सबकी माँ हूँ इस बात का बड़ा हल्ला मचा रखा है सबने । पहले मुझे भी लगने लगा था कि मुझे ये सब माँ कह रहे हैं तो मेरा कुछ भला तो सोचेंगे मगर मेरा वहम उतर गया । मैं इनकी माँ हूँ तो बस चुनाव भर के लिए, मैं इनकी माँ हूँ तो हुड़दंग करने के लिए, मैं इनकी माँ नहीं प्यारी बकरी मैं तो बस एक मुद्दा हूँ ।" उस गाय का दुख आँखों से छलक पड़ा था अपनी बात कहते हुए ।
"अम्मा, तुम्हारी बातों में दर्द है मगर हम तो अभी यही देख रहे हैं । अभी एक जोगी बाबा आए हैं वो सभी ऐसे बूचड़खाने बंद करवा रहे जहाँ तुमको काटा जाता है । कहते हैं तुम्हारी हत्या नहीं होने देंगे । हमारे लिए तो ऐसा कोई नहीं आगे आता । तुम तो हिंदूओं की माँ हो कम से कम हिंदू से तो डर नहीं ना तुम्हें । मगर हमारे बच्चों को तो मुस्लिम बना कर बकरीद में अल्लाह के नाम पर कुर्बानी के लिए भी हलाल करते हैं, और हिंदू माता के लिए बलि के नाम पर भी काट देते हैं । और ऐसे तो हम रोज कट ही रहे हैं । तुम कम से कम एक तरफ से महफूज़ तो हो ।" दर्द तो अब बकरी की आँखों में भी उतना ही था ।
"बकरी बेटी तुम बहुत भोली हो हमसे भी ज़्यादा । तुम हमको महफूज़ कह रही हो ? कहती हो एक पक्ष ही हमें काटता है दूसरा तो हमें माँ मानता है । माँ मानता तो क्या हमारी ये दुर्दषा होती ? जितना हम कट कर मरने से दुखी नहीं उतना इस तरह आवारा घूमने से कचरा खाने से दुखी हैं । क्या माँ के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है ? गौ शालाएं खुली हुई हैं मगर वहाँ हम जैसी बूढ़ी गायों को कोई पनाह नहीं देता । हमें सब माँ माँ कह कर पालते हैं हमारे बच्चों के हिस्से का दूध पीते हैं हमारा मलमूत्र तक पवित्र मानते हैं । उस वक्त हमें भी घमण्ड होता है इस बात का कि हम ऐसे धर्म का हिस्सा हैं जो बेज़ुबानों को भी इतना आदर सम्मान देता है भले ही मतलब के लिए ही सही मगर हमारा ये ग़ुरूर चूर चूर हो जाता है जब हम बूढ़ी हो जाने पर कसाईयों के हाथों बेच दी जाती हैं या फिर नाथ पगहा काट कर आवारा बना दी जाती हैं । और रही बात जोगी की तो उसके बारे में हम बता दें कि किसी के मन में झांक कर कोई नहीं देखता मगर जिस तरह से वो काम कर रहा है उस तरह से मन का साफ़ लगता है मगर जोगी से एक ही बात कहना चाहूंगी कि बेटा अगर कहीं ना कहीं मन में हमारे प्रति आप अगर माँ वाला भाव रखते हो तो हमें कटने से बचाने के साथ साथ इस बात की भी सख्ती करो कि हमें ऐसे आवारा सड़कों पर भटकने पर मजबूर ना किया जाए । हमें बाकियों के मुकाबले आधे से भी कम चारा और एक खूंटा किसी गौशाला में मिल जाए तो हम खुश हो जाएंगी, तुम्हें दुआएं देंगी । अगर इतना नहीं हो सकता फिर हमें कटने से भी ना रोको क्योंकि ऐसा जीवन जीने से अच्छा है किसी का आहार हो जाना । ये जो मेरे हमारे नाम पर झंडे ले कर घूमते हैं, ये जगह जगह हमारे कटने का विरोध करते हैं इनमें से कितनों के घरों के आगे से हम मार कर भगाई जाती हैं । क्या तब इनके अंदर से हमारे प्रति माँ का भाव ख़त्म हो जाता है ? आवाज़ ही उठानी है तो हमारे पूरे हक़ की आवाज़ उठे वरना चढ़ जानें दें हमें बलि किसी के कबाब बिर्यानी कलेजी इत्यादी के नाम पर । हर माँ यही चाहती है कि या तो उसके बच्चे उसका पूरी तरह सम्मान करें या फिर वो अपने बच्चों के लिए हंसती हंसती भगवान के पास चली जाए । कम से कम बच्चों को बदनाम तो नहीं होना पड़ेगा ।" वो गाय जिसके अंदर से अब अपने बच्चों के प्रति एक माँ का गुबार फूट रहा था अब बूरी तरह रोने लगी थी । बकरी भी अब ये देख कर थोड़ी भावुक हो गई ।
"अम्मा बुरा मत मानना मगर अब मन में संतोष है ये सोच कर कि भले ही हम बकरे की अम्मा हैं ज़्यादा खैर नहीं मना सकते ना उसकी ना अपनी मगर तुमको देख कर इस बात से संतुष्ट हैं कि कम से कम हमारे साथ तुम जैसा दोगला व्यवहार तो नसीं होता ना । इन्हें जब तक ज़रूरत होती है तब तक कम से कम ठेल कर खिलाते हैं । तुम्हारी तरह माँ कह कर दूध पी कर और बाद में दर दर ठैकर खाने पर मजबूर तो नहीं करते । मगर क्या करोगी अम्मा हम हैं तो इनके गुलाम ही ना । रो मत तुम आओ ज़्यादा तो नसीं मगर थोड़ा चारा खिलाते हैं तुम्हें ।" आँसू बहाती भूखी गऊ माता बकरी के चारे में से थोड़ा खा कर अपनी भूख को थोड़ा कम करने की कोशिश करने लगी ।
धीरज झा
"अम्मा परनाम, मैंहहहह"
"खुस रहो पोती । क्या हाल है ?"
"हाल का होगा दादी, बकरे की अम्मा हैं बेटे को लेकर डर तो हमेसा बना ही रहता है ना ।"
"हाँ सो तो है, मगर का करोगी नियम है इंसान का, कमजोर को तो अपना आहार बनाता ही है ।"
"हाँ अम्मा आप तो अईसा ही कहोगी । आपके लिए तो सब लड़ते हैं । आप सबकी माँ जो हो ।"
"हाहाहाहाहाहा ।"
"हंस काहे रही अम्मा । हम झूठ बोले क्या ।"
"नहीं री पगली झूठ नहीं बोली तू । बस वही बोली जो सब बोलते हैं मगर ये जो सब बोलते हैं वो सच कितना है ये कोई नहीं सोचता । मैं इन सबकी माँ हूँ इस बात का बड़ा हल्ला मचा रखा है सबने । पहले मुझे भी लगने लगा था कि मुझे ये सब माँ कह रहे हैं तो मेरा कुछ भला तो सोचेंगे मगर मेरा वहम उतर गया । मैं इनकी माँ हूँ तो बस चुनाव भर के लिए, मैं इनकी माँ हूँ तो हुड़दंग करने के लिए, मैं इनकी माँ नहीं प्यारी बकरी मैं तो बस एक मुद्दा हूँ ।" उस गाय का दुख आँखों से छलक पड़ा था अपनी बात कहते हुए ।
"अम्मा, तुम्हारी बातों में दर्द है मगर हम तो अभी यही देख रहे हैं । अभी एक जोगी बाबा आए हैं वो सभी ऐसे बूचड़खाने बंद करवा रहे जहाँ तुमको काटा जाता है । कहते हैं तुम्हारी हत्या नहीं होने देंगे । हमारे लिए तो ऐसा कोई नहीं आगे आता । तुम तो हिंदूओं की माँ हो कम से कम हिंदू से तो डर नहीं ना तुम्हें । मगर हमारे बच्चों को तो मुस्लिम बना कर बकरीद में अल्लाह के नाम पर कुर्बानी के लिए भी हलाल करते हैं, और हिंदू माता के लिए बलि के नाम पर भी काट देते हैं । और ऐसे तो हम रोज कट ही रहे हैं । तुम कम से कम एक तरफ से महफूज़ तो हो ।" दर्द तो अब बकरी की आँखों में भी उतना ही था ।
"बकरी बेटी तुम बहुत भोली हो हमसे भी ज़्यादा । तुम हमको महफूज़ कह रही हो ? कहती हो एक पक्ष ही हमें काटता है दूसरा तो हमें माँ मानता है । माँ मानता तो क्या हमारी ये दुर्दषा होती ? जितना हम कट कर मरने से दुखी नहीं उतना इस तरह आवारा घूमने से कचरा खाने से दुखी हैं । क्या माँ के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है ? गौ शालाएं खुली हुई हैं मगर वहाँ हम जैसी बूढ़ी गायों को कोई पनाह नहीं देता । हमें सब माँ माँ कह कर पालते हैं हमारे बच्चों के हिस्से का दूध पीते हैं हमारा मलमूत्र तक पवित्र मानते हैं । उस वक्त हमें भी घमण्ड होता है इस बात का कि हम ऐसे धर्म का हिस्सा हैं जो बेज़ुबानों को भी इतना आदर सम्मान देता है भले ही मतलब के लिए ही सही मगर हमारा ये ग़ुरूर चूर चूर हो जाता है जब हम बूढ़ी हो जाने पर कसाईयों के हाथों बेच दी जाती हैं या फिर नाथ पगहा काट कर आवारा बना दी जाती हैं । और रही बात जोगी की तो उसके बारे में हम बता दें कि किसी के मन में झांक कर कोई नहीं देखता मगर जिस तरह से वो काम कर रहा है उस तरह से मन का साफ़ लगता है मगर जोगी से एक ही बात कहना चाहूंगी कि बेटा अगर कहीं ना कहीं मन में हमारे प्रति आप अगर माँ वाला भाव रखते हो तो हमें कटने से बचाने के साथ साथ इस बात की भी सख्ती करो कि हमें ऐसे आवारा सड़कों पर भटकने पर मजबूर ना किया जाए । हमें बाकियों के मुकाबले आधे से भी कम चारा और एक खूंटा किसी गौशाला में मिल जाए तो हम खुश हो जाएंगी, तुम्हें दुआएं देंगी । अगर इतना नहीं हो सकता फिर हमें कटने से भी ना रोको क्योंकि ऐसा जीवन जीने से अच्छा है किसी का आहार हो जाना । ये जो मेरे हमारे नाम पर झंडे ले कर घूमते हैं, ये जगह जगह हमारे कटने का विरोध करते हैं इनमें से कितनों के घरों के आगे से हम मार कर भगाई जाती हैं । क्या तब इनके अंदर से हमारे प्रति माँ का भाव ख़त्म हो जाता है ? आवाज़ ही उठानी है तो हमारे पूरे हक़ की आवाज़ उठे वरना चढ़ जानें दें हमें बलि किसी के कबाब बिर्यानी कलेजी इत्यादी के नाम पर । हर माँ यही चाहती है कि या तो उसके बच्चे उसका पूरी तरह सम्मान करें या फिर वो अपने बच्चों के लिए हंसती हंसती भगवान के पास चली जाए । कम से कम बच्चों को बदनाम तो नहीं होना पड़ेगा ।" वो गाय जिसके अंदर से अब अपने बच्चों के प्रति एक माँ का गुबार फूट रहा था अब बूरी तरह रोने लगी थी । बकरी भी अब ये देख कर थोड़ी भावुक हो गई ।
"अम्मा बुरा मत मानना मगर अब मन में संतोष है ये सोच कर कि भले ही हम बकरे की अम्मा हैं ज़्यादा खैर नहीं मना सकते ना उसकी ना अपनी मगर तुमको देख कर इस बात से संतुष्ट हैं कि कम से कम हमारे साथ तुम जैसा दोगला व्यवहार तो नसीं होता ना । इन्हें जब तक ज़रूरत होती है तब तक कम से कम ठेल कर खिलाते हैं । तुम्हारी तरह माँ कह कर दूध पी कर और बाद में दर दर ठैकर खाने पर मजबूर तो नहीं करते । मगर क्या करोगी अम्मा हम हैं तो इनके गुलाम ही ना । रो मत तुम आओ ज़्यादा तो नसीं मगर थोड़ा चारा खिलाते हैं तुम्हें ।" आँसू बहाती भूखी गऊ माता बकरी के चारे में से थोड़ा खा कर अपनी भूख को थोड़ा कम करने की कोशिश करने लगी ।
धीरज झा
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