बड़ा स्त्री या पुरुष नहीं बड़ा है कर्म (पढ़ने के साथ साथ समझिएगा ज़रूर नहीं तो मामला हरिद्वार से कश्मीर हो जाएगा ) मैं स्त्रियों का सम्मान क...
बड़ा स्त्री या पुरुष नहीं बड़ा है कर्म
(पढ़ने के साथ साथ समझिएगा ज़रूर नहीं तो मामला हरिद्वार से कश्मीर हो जाएगा )
मैं स्त्रियों का सम्मान करता हूँ इसका ये मतलब नहीं कि मैं पुरूष हो कर पुरूषों के प्रति ज़हर उगलूं । मेरी नज़र में हमेशा कोई स्त्री या पुरूष अच्छा बुरा नहीं होता, मेरी नज़र में बुरा या अच्छा है वो इंसान जिसने बुरा या अच्छा किया है । रमा ने बुरा किया तो सिर्फ रमा बुरी होनी चाहिए रमा के बुरा करने से समूची महिलाएं बुरी नहीं हो जातीं । इसी तरह अगर रमन ने बुरा किया तो बुरा रमन है सभी पुरूष नहीं । अगर कोई रमा दहेज के कारण अपने ससुराल मे प्रताड़ित हुई तो याद रखिए किसी रमन का घर भी रमा द्वारा लगाई आग से जल गया । अगर कोई रमन क्रूर हुआ तो किसी रमा ने भी दहेज का झूठा आरोप लगा कर किसी रमन को दर दर मारा मारा फिरने के लिए मजबूर कर दिया । हाँ ये बात ज़रूर है कि समाज में रमन की संख्या ज़्यादा रही है मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप हर रमन को रमा पर ज़ुल्म करने वाला दरिंदा बताएं, या हर रमा को रमन का घर तोड़ने का ज़िम्मेदार बना दें । अगर आपको लगता है कि 50% महिलाएं या पुरूष बुरे हैं तो उन 50% का नाम लिखिए जिससे बाकि के 50% बे-मतलब बदनाम ना हों ।
हर बात में ये विशेष तरह का विरोधी दस्ता सभी पुरूषों कोसता नज़र आएगा । जैसे भक्त कांग्रेस को और और नाॅन भक्त मोदी को गरियाते नज़र आते हैं वैसे ही, भले गलती हो या ना हो गलियाना इनका अधिकार है । कल ही एक देवी जी की लिखी कविता पढ़ी जिसमें उन्होंने महिलाओं को हर महीने होने वाले पीरियडस की वो असहनीय पीड़ा और उस पीड़ा में भी अपने नियमित कामों को करते रहने के साहस का वर्णन किया था और साथ ही में उन दिनों मज़ाक बन जाने के उस जाने पहचाने डर का ज़िक्र था और कविता के अंत में एक संदेश भी था कि जिस में उन्होंने कहा कि हमारी जिस कमज़ोरी पर तुम हंसते हो उसी कमज़ोरी के कारण ही तुम्हारा अस्तित्व है । मैं इस कविता के लिए उनको मन से नमन करता हूँ । मैं नहीं जानता उन्होंने ये बात सभी पुरूषों के लिए कही या सिर्फ उन घिनौनी नज़रों के लिए जिन्हें उन्हें हर महीने चार से पांच दिन सहना पड़ता है । मुझे दुख हुआ उनकी कविता पर आए कई कमेंटस से जहाँ पुरूषों ने ही पुरूषों को जम कर कोसा कई देवियों ने तो हद ही कर दी, पुरूषों की इज़्जत लूट ली पूरी तरह से ।
जिन्हें लगता है कि स्त्री की दुर्दशा का कारण पूरा पुरुष समाज है उन्हें ये कहना चाहूंगा कि फिर आप कभी किसी पुरुष से मिले ही नहीं । आप जानते हैं पुरुष कौन है ? नहीं आप नहीं जानते मैं बताता हूँ कि पुरुष कौन हैं । पुरुष वो नहीं जिनकी गंदी नज़रों ने आपके जिस्म को टटोला पुरूष वो है जो आपके घर बैठा है बाप भाई पति के रूप में जो उन गंदी नज़रों की रौशनी छीन ले अगर उसे पता लग जाए कि आपके साथ ऐसा हुआ है । पुरुष वो है जो अखबार में किसी बच्ची के साथ हुई किसी दुर्घटना को पढ़ कर उस बच्ची की जगह अपनी बहन बेटी को रख कर अंदर तक कांप जाए । पुरुष वो है जिसने माँ की तरह नौ महीनें आपको पेट में तो नहीं रखा मगर पिता बन कर आपको आपके पैरों पर खड़ा कर देने तक हर वक्त अपने दिल ओ दिमाग में रखा । जिसने आपकी पढ़ाई से आपकी शादी तक का खर्च उठाने के लिए ना जाने क्या क्या ना सहा ना जाने कितनी मेहनत की ना जाने कितने लोगों की बातें सुनी ।
पुरुष वो है जिसने प्रेमी या पति बन कर आपके चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेरने के लिए ना जाने कौन कौन से उल्टे सीधे उपाए ढूंढे, आपकी आँखों का एक आँसू उसके दिल पर गर्म लावे की तरह गिरा । पुरुष वो है जो चार लफंगों को आपके पीछे आता देख अंजान होने के बावजूद आपके पीछे पीछे चला और आपको बिना बताए सुरक्षित घर छोड़ने के बाद अपने काम के लिए आगे बढ़ा । पुरुष वो है जो आपको बस की भीड़ में पिसता हुआ देख अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ । पुरुष वो है जिसने बिना किसी लालच के एक दोस्त बन कर हमेशा आपकी मदद इसलिए की क्योंकि कहीं आप खुद को किसी काम के लिए असक्षम ना समझने लगें । अगर आप आज तक ऐसे पुरुष से नहीं मिले तो आप पुरुष से मिले ही नहीं । पुरुष असल में वो है जो अपना दायित्व बहुत अच्छे से समझता है । ऐसे गंदी सोच और घिनौनी नज़रों वाले किसी भी ऐरे गैरे को पुरुष बता कर समूची पुरुष जाती को बदनाम ना करें । और हाँ एक बात जननी आप हैं मगर आपको जननी बनने का गौरव प्रदान करने वाला पुरुष ही है । धरती भले ही कितनी भी ऊपजाऊ क्यों ना हो मगर बिना बीज के कोई फसल पेड़ या पौधा नहीं उगा सकती ।
महिला और पुरुष इस श्रृष्टि को चलाने वाले वो दो पहिए हैं जिनका साथ चलना ज़रूरी है जिनकी महत्वता एक समान है । दोनो में से एक भी ना हो तो श्रृष्टि आगे बढ़ ही ना पाएगी । यहाँ हर कोई अपने कर्म करने आया है जिसका जैसा कर्म होगा उसे करना ही पड़ेगा और आपकी महत्वता आपका कर्म निर्धारित करता है फिर भले आप स्त्री हों या पुरुष । बाकि हमने जितना जाना जितना समझा जितना अनुभव किया वो सब आपके आगे रख दिया । सहमति असहमति अपनी अपनी है । खुश रहें आबाद रहें दिल्ली रहें इलाहाबाद रहें ।
धीरज झा
(पढ़ने के साथ साथ समझिएगा ज़रूर नहीं तो मामला हरिद्वार से कश्मीर हो जाएगा )
मैं स्त्रियों का सम्मान करता हूँ इसका ये मतलब नहीं कि मैं पुरूष हो कर पुरूषों के प्रति ज़हर उगलूं । मेरी नज़र में हमेशा कोई स्त्री या पुरूष अच्छा बुरा नहीं होता, मेरी नज़र में बुरा या अच्छा है वो इंसान जिसने बुरा या अच्छा किया है । रमा ने बुरा किया तो सिर्फ रमा बुरी होनी चाहिए रमा के बुरा करने से समूची महिलाएं बुरी नहीं हो जातीं । इसी तरह अगर रमन ने बुरा किया तो बुरा रमन है सभी पुरूष नहीं । अगर कोई रमा दहेज के कारण अपने ससुराल मे प्रताड़ित हुई तो याद रखिए किसी रमन का घर भी रमा द्वारा लगाई आग से जल गया । अगर कोई रमन क्रूर हुआ तो किसी रमा ने भी दहेज का झूठा आरोप लगा कर किसी रमन को दर दर मारा मारा फिरने के लिए मजबूर कर दिया । हाँ ये बात ज़रूर है कि समाज में रमन की संख्या ज़्यादा रही है मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप हर रमन को रमा पर ज़ुल्म करने वाला दरिंदा बताएं, या हर रमा को रमन का घर तोड़ने का ज़िम्मेदार बना दें । अगर आपको लगता है कि 50% महिलाएं या पुरूष बुरे हैं तो उन 50% का नाम लिखिए जिससे बाकि के 50% बे-मतलब बदनाम ना हों ।
हर बात में ये विशेष तरह का विरोधी दस्ता सभी पुरूषों कोसता नज़र आएगा । जैसे भक्त कांग्रेस को और और नाॅन भक्त मोदी को गरियाते नज़र आते हैं वैसे ही, भले गलती हो या ना हो गलियाना इनका अधिकार है । कल ही एक देवी जी की लिखी कविता पढ़ी जिसमें उन्होंने महिलाओं को हर महीने होने वाले पीरियडस की वो असहनीय पीड़ा और उस पीड़ा में भी अपने नियमित कामों को करते रहने के साहस का वर्णन किया था और साथ ही में उन दिनों मज़ाक बन जाने के उस जाने पहचाने डर का ज़िक्र था और कविता के अंत में एक संदेश भी था कि जिस में उन्होंने कहा कि हमारी जिस कमज़ोरी पर तुम हंसते हो उसी कमज़ोरी के कारण ही तुम्हारा अस्तित्व है । मैं इस कविता के लिए उनको मन से नमन करता हूँ । मैं नहीं जानता उन्होंने ये बात सभी पुरूषों के लिए कही या सिर्फ उन घिनौनी नज़रों के लिए जिन्हें उन्हें हर महीने चार से पांच दिन सहना पड़ता है । मुझे दुख हुआ उनकी कविता पर आए कई कमेंटस से जहाँ पुरूषों ने ही पुरूषों को जम कर कोसा कई देवियों ने तो हद ही कर दी, पुरूषों की इज़्जत लूट ली पूरी तरह से ।
जिन्हें लगता है कि स्त्री की दुर्दशा का कारण पूरा पुरुष समाज है उन्हें ये कहना चाहूंगा कि फिर आप कभी किसी पुरुष से मिले ही नहीं । आप जानते हैं पुरुष कौन है ? नहीं आप नहीं जानते मैं बताता हूँ कि पुरुष कौन हैं । पुरुष वो नहीं जिनकी गंदी नज़रों ने आपके जिस्म को टटोला पुरूष वो है जो आपके घर बैठा है बाप भाई पति के रूप में जो उन गंदी नज़रों की रौशनी छीन ले अगर उसे पता लग जाए कि आपके साथ ऐसा हुआ है । पुरुष वो है जो अखबार में किसी बच्ची के साथ हुई किसी दुर्घटना को पढ़ कर उस बच्ची की जगह अपनी बहन बेटी को रख कर अंदर तक कांप जाए । पुरुष वो है जिसने माँ की तरह नौ महीनें आपको पेट में तो नहीं रखा मगर पिता बन कर आपको आपके पैरों पर खड़ा कर देने तक हर वक्त अपने दिल ओ दिमाग में रखा । जिसने आपकी पढ़ाई से आपकी शादी तक का खर्च उठाने के लिए ना जाने क्या क्या ना सहा ना जाने कितनी मेहनत की ना जाने कितने लोगों की बातें सुनी ।
पुरुष वो है जिसने प्रेमी या पति बन कर आपके चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेरने के लिए ना जाने कौन कौन से उल्टे सीधे उपाए ढूंढे, आपकी आँखों का एक आँसू उसके दिल पर गर्म लावे की तरह गिरा । पुरुष वो है जो चार लफंगों को आपके पीछे आता देख अंजान होने के बावजूद आपके पीछे पीछे चला और आपको बिना बताए सुरक्षित घर छोड़ने के बाद अपने काम के लिए आगे बढ़ा । पुरुष वो है जो आपको बस की भीड़ में पिसता हुआ देख अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ । पुरुष वो है जिसने बिना किसी लालच के एक दोस्त बन कर हमेशा आपकी मदद इसलिए की क्योंकि कहीं आप खुद को किसी काम के लिए असक्षम ना समझने लगें । अगर आप आज तक ऐसे पुरुष से नहीं मिले तो आप पुरुष से मिले ही नहीं । पुरुष असल में वो है जो अपना दायित्व बहुत अच्छे से समझता है । ऐसे गंदी सोच और घिनौनी नज़रों वाले किसी भी ऐरे गैरे को पुरुष बता कर समूची पुरुष जाती को बदनाम ना करें । और हाँ एक बात जननी आप हैं मगर आपको जननी बनने का गौरव प्रदान करने वाला पुरुष ही है । धरती भले ही कितनी भी ऊपजाऊ क्यों ना हो मगर बिना बीज के कोई फसल पेड़ या पौधा नहीं उगा सकती ।
महिला और पुरुष इस श्रृष्टि को चलाने वाले वो दो पहिए हैं जिनका साथ चलना ज़रूरी है जिनकी महत्वता एक समान है । दोनो में से एक भी ना हो तो श्रृष्टि आगे बढ़ ही ना पाएगी । यहाँ हर कोई अपने कर्म करने आया है जिसका जैसा कर्म होगा उसे करना ही पड़ेगा और आपकी महत्वता आपका कर्म निर्धारित करता है फिर भले आप स्त्री हों या पुरुष । बाकि हमने जितना जाना जितना समझा जितना अनुभव किया वो सब आपके आगे रख दिया । सहमति असहमति अपनी अपनी है । खुश रहें आबाद रहें दिल्ली रहें इलाहाबाद रहें ।
धीरज झा
COMMENTS