#ई_लाईन_काहे_लगा_है_भाई बलका हजाम गाँव का इकलौता हजाम था । पूरे गाँव ने उसकी उटपटांग हरकतों और उसकी बे-सर पैर की बातें करने की आदत के बावजू...
#ई_लाईन_काहे_लगा_है_भाई
बलका हजाम गाँव का इकलौता हजाम था । पूरे गाँव ने उसकी उटपटांग हरकतों और उसकी बे-सर पैर की बातें करने की आदत के बावजूद भी कांग्रेस बन कर राहुल जी की तरह लाढ़ प्यार से पाल रखा था । अब इकलौता है भई इकलौते एक तो बड़े दुलारु होते हैं दूसरा साठ साल तक युवा कहलाते हैं । 56 वर्षीय बालक राम भी गाँव का इकलौता युवा हजाम था । बहुत से खाँसी बाज़ों ने इसकी सत्त हिलाने का प्रयास किया मगर ये राजा भईया की तरह एकछत्र राज करता रहा ।
आज गाँव में बड़ा ऐतिहासिक दिन था । बलका हजाम की दुकान पर एकाएक ऐसी भीड़ लग गई थी कि सबसे लम्बी लाईन का विश्व रिकार्ड ए टी एम के हाथों से फिसलता नज़र आने लगा । मटरा हलुआई की चार दिन पुरानी मिठाई अऊर चूड़ा घुघनी को भी इस भूखी भीड़ के हाथों गति मिल गई थी । एक आध बूढ़ पुरनिया जो जमराज को चकमा दे दे कर अभी भी अपने प्रान बचाए हुए थे वे सब इस भीड़ को देख कर कह रहे थे कि अईसन भीड़ तो पच्चपन में जब सूखा पड़ा था तब लगा था सरकार के तरफ से भेजे गए चूड़ा मिट्ठा को पाने के लिए । उनमें से एक ने अपनी उपलब्धी बताते हुए कहा "हाँ हाँ हम ससुर चार बेर लिए थे चूड़ा मिट्ठा का पैकेट । क्या चुस्ती था ऊ टाईम में तीन दिन से एक दाना अन्न का नहीं खाए थे फिर भी भीड़ को चीरते हुए चार पैकेट ले आए थे ।"
चलिए भुखमरी के दौर में भी बाबा ने बहादुरी के और कौन कौन से कारनामे किए ये बाद में सुनेंगे पहले चला जाए भीड़ की तरफ देखें तो सही कि बलका हजाम ने कौन सा जादू कर दिया जो सभी के सभी उलट पड़े उसकी दुकान पर । अरे वो नंदकिसोर सामू से कुछ बतिया रहा है चलिए सुना जाए का कह रहा है ।
"अरे भाई हमारा तो बहुत काम पड़ा हुआ है । मोदी जब जीता था तब से सोचे थे की खपरा हटा के छत पिटबा लेंगे आ दू चार ठो कोठरी आऊरो बनबा लेंगे । बच्चा सब सब कुछ बूझता है, साला देर रात तक जागना पड़ता ई ताक में कि कब ससुरा सब सोएगा । परसूए के बात है हम मंटूआ के माए के साथ प्रेम करने में मगन थे आ एतने में मंटूआ बाप बाप चिल्लाते हुए भागा । हमहूं ससुर हड़बड़ा गए सोच के कि ई सरऊ के एतना रात में का हुआ । जल्दी से धोती ठीक किए आ ओकरा पीछे भागे । बाहर देखे त ऊ गाछी के नीचा खड़ा लोर झोर हुआ जा रहा था । पूछे काहे कान रहा है तो कहता है भुईकंप आया था बाबू पलंग हिल रहा था । का बताएं सामू भईया बड़ा सरम आया । एही खातिर सोचे थे की मोदी जब 15 लाख देगा तऽ सबसे पहिले दू चार कोठरी बनबाएंगे । बाल बच्चा ओही में सूतेगा । एगो कमरा के चलते हमको बस चार ठो लईका हुआ, बड़ा चाओ था हमको कि कम से कम आधा दर्जन हो आ सबको दिल्ली बंबई गुजरात पंजाब भेज दें आ अपने सब लमन जा जा के खूब घूमें । मगर चलो कोनो बात नहीं । मोदी जी के 15 लाख का तो कोनो उम्मीद नहीं मगर जब से सुने हैं मौलबी बाबा माथा छिलाने का 10 लाख दे रहे।हैं तब से एगो नया उम्मीद जाग गया है ।"
"अरे भईया ई कैसे पक्का है की मौलबी सबको 10 लाख देबे करेगा ?"
"सामू भाई पक्का तो मोदिया का भी नहीं था मगर फिर भी भोंट दिए ना, नोट बंदी का समर्थन किए ना । इसका भी तुक्का लगा के देखते हैं । दू चार दिन हुआ हमरा नींद भी खुल जाता है जब ऊ बगल बाला गाँव में मौलबी कुछो कुछो पढ़ता है तो ।"
"पर उसका अबाज इहाँ तक तो बहुत धीमे से आता है कान लगाने पर सुनता है तो भला तुम्हारा नींद कईसे टूट जाता है ।"
"चुप ससुर ई तुम जानता है हम जानते हैं बाकि बाहर बाला थोड़े जानता है कि अबाज धीमा होता है । हमारा नींद है अपना मोन से टूटेगा ।"
"चलिए आप कहते हैं तो मान लेते हैं, दस लाख किसको नहीं सुहाएगा । मान के चलिए हमारा नीन भी टूट जाता है ।"
चलिए दोनों की बात से पता तो लग गया कि सारी भीड़ मौलाना जी द्वारा 10 लाख पाने की उम्मीद में खड़ी है । मगर इन भोले पंछियों को क्या पता वो ऑफर बस सोनू निगम के लिए सीमित था । वैसे भी अजीब मूरख जनता है दस लाख का सपना के पीछे भागते हुए एक दिन के काम का नाश कर लिया । एतना देर मेहनत किए होते तो दू ढेऊआ हो जाता ।
वैसे इस लंबी लाईन को देख कर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये लंबी लाईन यानी कि हम फेसबुकिए हुए जो रेलमपेल ज्ञान बांट रहे हैं, बलका हजाम जुकरबर्ग भईया हो गया जिसे हमारे बे-मतलबी ज्ञान से फायदा हो रहा है और ये गुब्बारे वाले, ये मटरा हलुआई इत्यादि फेसबुक पर हर तीसरी पोस्ट के नीचे आने वाले विज्ञापन हैं जो इस भीड़ को देख अपना भाग्य आज़माने के लिए ठेला लगा लेते हैं ।
नोट - ई पोस्ट रात को लिखा गया था इससे ये सिद्ध होता है कि हम अपना टाईम भेस्ट नहीं किए ।
धीरज झा
बलका हजाम गाँव का इकलौता हजाम था । पूरे गाँव ने उसकी उटपटांग हरकतों और उसकी बे-सर पैर की बातें करने की आदत के बावजूद भी कांग्रेस बन कर राहुल जी की तरह लाढ़ प्यार से पाल रखा था । अब इकलौता है भई इकलौते एक तो बड़े दुलारु होते हैं दूसरा साठ साल तक युवा कहलाते हैं । 56 वर्षीय बालक राम भी गाँव का इकलौता युवा हजाम था । बहुत से खाँसी बाज़ों ने इसकी सत्त हिलाने का प्रयास किया मगर ये राजा भईया की तरह एकछत्र राज करता रहा ।
आज गाँव में बड़ा ऐतिहासिक दिन था । बलका हजाम की दुकान पर एकाएक ऐसी भीड़ लग गई थी कि सबसे लम्बी लाईन का विश्व रिकार्ड ए टी एम के हाथों से फिसलता नज़र आने लगा । मटरा हलुआई की चार दिन पुरानी मिठाई अऊर चूड़ा घुघनी को भी इस भूखी भीड़ के हाथों गति मिल गई थी । एक आध बूढ़ पुरनिया जो जमराज को चकमा दे दे कर अभी भी अपने प्रान बचाए हुए थे वे सब इस भीड़ को देख कर कह रहे थे कि अईसन भीड़ तो पच्चपन में जब सूखा पड़ा था तब लगा था सरकार के तरफ से भेजे गए चूड़ा मिट्ठा को पाने के लिए । उनमें से एक ने अपनी उपलब्धी बताते हुए कहा "हाँ हाँ हम ससुर चार बेर लिए थे चूड़ा मिट्ठा का पैकेट । क्या चुस्ती था ऊ टाईम में तीन दिन से एक दाना अन्न का नहीं खाए थे फिर भी भीड़ को चीरते हुए चार पैकेट ले आए थे ।"
चलिए भुखमरी के दौर में भी बाबा ने बहादुरी के और कौन कौन से कारनामे किए ये बाद में सुनेंगे पहले चला जाए भीड़ की तरफ देखें तो सही कि बलका हजाम ने कौन सा जादू कर दिया जो सभी के सभी उलट पड़े उसकी दुकान पर । अरे वो नंदकिसोर सामू से कुछ बतिया रहा है चलिए सुना जाए का कह रहा है ।
"अरे भाई हमारा तो बहुत काम पड़ा हुआ है । मोदी जब जीता था तब से सोचे थे की खपरा हटा के छत पिटबा लेंगे आ दू चार ठो कोठरी आऊरो बनबा लेंगे । बच्चा सब सब कुछ बूझता है, साला देर रात तक जागना पड़ता ई ताक में कि कब ससुरा सब सोएगा । परसूए के बात है हम मंटूआ के माए के साथ प्रेम करने में मगन थे आ एतने में मंटूआ बाप बाप चिल्लाते हुए भागा । हमहूं ससुर हड़बड़ा गए सोच के कि ई सरऊ के एतना रात में का हुआ । जल्दी से धोती ठीक किए आ ओकरा पीछे भागे । बाहर देखे त ऊ गाछी के नीचा खड़ा लोर झोर हुआ जा रहा था । पूछे काहे कान रहा है तो कहता है भुईकंप आया था बाबू पलंग हिल रहा था । का बताएं सामू भईया बड़ा सरम आया । एही खातिर सोचे थे की मोदी जब 15 लाख देगा तऽ सबसे पहिले दू चार कोठरी बनबाएंगे । बाल बच्चा ओही में सूतेगा । एगो कमरा के चलते हमको बस चार ठो लईका हुआ, बड़ा चाओ था हमको कि कम से कम आधा दर्जन हो आ सबको दिल्ली बंबई गुजरात पंजाब भेज दें आ अपने सब लमन जा जा के खूब घूमें । मगर चलो कोनो बात नहीं । मोदी जी के 15 लाख का तो कोनो उम्मीद नहीं मगर जब से सुने हैं मौलबी बाबा माथा छिलाने का 10 लाख दे रहे।हैं तब से एगो नया उम्मीद जाग गया है ।"
"अरे भईया ई कैसे पक्का है की मौलबी सबको 10 लाख देबे करेगा ?"
"सामू भाई पक्का तो मोदिया का भी नहीं था मगर फिर भी भोंट दिए ना, नोट बंदी का समर्थन किए ना । इसका भी तुक्का लगा के देखते हैं । दू चार दिन हुआ हमरा नींद भी खुल जाता है जब ऊ बगल बाला गाँव में मौलबी कुछो कुछो पढ़ता है तो ।"
"पर उसका अबाज इहाँ तक तो बहुत धीमे से आता है कान लगाने पर सुनता है तो भला तुम्हारा नींद कईसे टूट जाता है ।"
"चुप ससुर ई तुम जानता है हम जानते हैं बाकि बाहर बाला थोड़े जानता है कि अबाज धीमा होता है । हमारा नींद है अपना मोन से टूटेगा ।"
"चलिए आप कहते हैं तो मान लेते हैं, दस लाख किसको नहीं सुहाएगा । मान के चलिए हमारा नीन भी टूट जाता है ।"
चलिए दोनों की बात से पता तो लग गया कि सारी भीड़ मौलाना जी द्वारा 10 लाख पाने की उम्मीद में खड़ी है । मगर इन भोले पंछियों को क्या पता वो ऑफर बस सोनू निगम के लिए सीमित था । वैसे भी अजीब मूरख जनता है दस लाख का सपना के पीछे भागते हुए एक दिन के काम का नाश कर लिया । एतना देर मेहनत किए होते तो दू ढेऊआ हो जाता ।
वैसे इस लंबी लाईन को देख कर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये लंबी लाईन यानी कि हम फेसबुकिए हुए जो रेलमपेल ज्ञान बांट रहे हैं, बलका हजाम जुकरबर्ग भईया हो गया जिसे हमारे बे-मतलबी ज्ञान से फायदा हो रहा है और ये गुब्बारे वाले, ये मटरा हलुआई इत्यादि फेसबुक पर हर तीसरी पोस्ट के नीचे आने वाले विज्ञापन हैं जो इस भीड़ को देख अपना भाग्य आज़माने के लिए ठेला लगा लेते हैं ।
नोट - ई पोस्ट रात को लिखा गया था इससे ये सिद्ध होता है कि हम अपना टाईम भेस्ट नहीं किए ।
धीरज झा
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