आपकी सोच ही गंदी है प्रशांत भूषण इंसान अपनी सोच के हिसाब से दुनिया को देखता है । यही दुनिया है जो किसी के लिए स्वर्ग तो किसी के लिए नर्क है...
आपकी सोच ही गंदी है प्रशांत भूषण
इंसान अपनी सोच के हिसाब से दुनिया को देखता है । यही दुनिया है जो किसी के लिए स्वर्ग तो किसी के लिए नर्क है । हाँ मगर एक बात तो है यही सोच का नज़रिया आपका इंसान और जानवर बनाता है । हम सब जानवर ही जन्में हैं क्योंकि पैदा हुए तो जानवर की तरह ही अमूक थे इंसान हमें बनाया हमारी सोच और नज़रिए ने । जिनका सही रहा वो इंसान हो गए और जिनका गलत वो अभी भी बोलने वाले जानवर ही हैं ।
बच्चे को दूध पिलाती माँ में कुछ लोग ममता देखते बैं तो वहीं कुछ की नज़र स्तनों को घूरने में लगी रहती है । खुछ के लिए वो दूध पिलाने वाली उम्र में भले ही छोटी हो मगर माँ दिखती है तो किसी को उस में सिर्फ औरत दिखती है जिसे नोच लिया जाए बस । ऐसे जानवरों को हम पहचान भी नहीं सकते किस में छुपे हैं कौन जाने ।
एक बच्चे को देखते ही औरतें लड़कियाँ सब उसका गाल नोचती हैं उसे चूमती हैं बच्चा भी कभी उनके गाल पकड़ता है कभी नाक तो कभी वो भी पलट कर उन्हें चूम लेता है । प्रेम है ये जिसे समझने की ज़रूरत है । रासलीला को अगर आप छेड़खानी कह रहे हैं, उस नटखट की शैतानियों को आप लुच्चागिरी कह रहे हैं जिसके एक दिन ना दिखने से गोपियाँ मुर्झाए फूल की तरह हो जाती थीं तो आपकी सोच सच में इंसानों वाली नहीं है । ये आपकी हद से ज़्यादा गिरी हुई सोच को दिखाता है कि आप किसी के बारे में पूरी तरह जाने बिना उस पर इस तरह की टिप्पणी कर देते हैं । आपके पास विरोध के बहुत तरीके थे मगर आपने वो तरीका वो उदाहरण चुना जिसने आपकी गंदी मानसिक्ता को सबके सामने ला खड़ा किया । 12 साल का एक बालक जब अपनी बांसुरी बजाता था तो गांव की सारी गापियाँ अपना सुध खो देती थीं । तब उनके मन में कृष्ण के लिए वो प्रेम उठता था जिसे आप जैसा इंसान कभी सोच तक नहीं सकता । क्या एक बालक रस्सियों से बांध कर गोपियों को रास रचाने के लिए ले आता था ? क्या आपको पता भी है कि रास होता क्या है ? रास एक योग साधना है जिससे मिलने वाले सुख और शांति की आप जैसा इंसान कल्पना भी नसीं कर सकता ।
आप गंदगी पर उड़ने वाली मक्खी के जैसे हैं आप जब खोजेंगे गंदगी ही खोजेंगे । आपने सारी उम्र गंदगी में बिता दी आपको पता ही नहीं कि फूलों की सुगंध होती कैसी है । आप सुगंध को भी उस गंदगी से उठने वाली दुर्गंध के समान ही समझेंगे । ये आपकी गलती नहीं आपके संस्कारों की गलती है जिसने आपको सही और गलत के बीच का अंतर सिखाया ही नहीं । दूसरी बात आप किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं रखते भले आप कोई भी हों । इतिहास के साथ आज की तुलना करेंगे तो बहुत से धर्मों के ना जाने कितने उदाहरणों को तोड़ मरोड़ कर सामने रख सकते हैं मगर आपको सबसे कमज़ोर कृष्ण दिखे क्योंकि आप जानते थे आप किसी और धर्म के लिए मुंह खोलेंगे तो दोबारा बोलने लायक नहीं रहेंगे । वैसे किसी भी धर्म के पीर पैगंबर या भगवान पर आपको ऐसी टिप्पणी करने का अधिकार नहीं मगर आपने चुना ही उसे है जिसके लिए आप पर ना केस होगा ना आपको जेल होगी । हाँ मगर एक बात है आप अगर इसी तरह नज़रों से गिरते रहे तो भले ही आपकी हड्डियाँ ना टूटें मगर आपकी आत्मा चूर चूर हो जाएगी ।
धीरज झा
इंसान अपनी सोच के हिसाब से दुनिया को देखता है । यही दुनिया है जो किसी के लिए स्वर्ग तो किसी के लिए नर्क है । हाँ मगर एक बात तो है यही सोच का नज़रिया आपका इंसान और जानवर बनाता है । हम सब जानवर ही जन्में हैं क्योंकि पैदा हुए तो जानवर की तरह ही अमूक थे इंसान हमें बनाया हमारी सोच और नज़रिए ने । जिनका सही रहा वो इंसान हो गए और जिनका गलत वो अभी भी बोलने वाले जानवर ही हैं ।
बच्चे को दूध पिलाती माँ में कुछ लोग ममता देखते बैं तो वहीं कुछ की नज़र स्तनों को घूरने में लगी रहती है । खुछ के लिए वो दूध पिलाने वाली उम्र में भले ही छोटी हो मगर माँ दिखती है तो किसी को उस में सिर्फ औरत दिखती है जिसे नोच लिया जाए बस । ऐसे जानवरों को हम पहचान भी नहीं सकते किस में छुपे हैं कौन जाने ।
एक बच्चे को देखते ही औरतें लड़कियाँ सब उसका गाल नोचती हैं उसे चूमती हैं बच्चा भी कभी उनके गाल पकड़ता है कभी नाक तो कभी वो भी पलट कर उन्हें चूम लेता है । प्रेम है ये जिसे समझने की ज़रूरत है । रासलीला को अगर आप छेड़खानी कह रहे हैं, उस नटखट की शैतानियों को आप लुच्चागिरी कह रहे हैं जिसके एक दिन ना दिखने से गोपियाँ मुर्झाए फूल की तरह हो जाती थीं तो आपकी सोच सच में इंसानों वाली नहीं है । ये आपकी हद से ज़्यादा गिरी हुई सोच को दिखाता है कि आप किसी के बारे में पूरी तरह जाने बिना उस पर इस तरह की टिप्पणी कर देते हैं । आपके पास विरोध के बहुत तरीके थे मगर आपने वो तरीका वो उदाहरण चुना जिसने आपकी गंदी मानसिक्ता को सबके सामने ला खड़ा किया । 12 साल का एक बालक जब अपनी बांसुरी बजाता था तो गांव की सारी गापियाँ अपना सुध खो देती थीं । तब उनके मन में कृष्ण के लिए वो प्रेम उठता था जिसे आप जैसा इंसान कभी सोच तक नहीं सकता । क्या एक बालक रस्सियों से बांध कर गोपियों को रास रचाने के लिए ले आता था ? क्या आपको पता भी है कि रास होता क्या है ? रास एक योग साधना है जिससे मिलने वाले सुख और शांति की आप जैसा इंसान कल्पना भी नसीं कर सकता ।
आप गंदगी पर उड़ने वाली मक्खी के जैसे हैं आप जब खोजेंगे गंदगी ही खोजेंगे । आपने सारी उम्र गंदगी में बिता दी आपको पता ही नहीं कि फूलों की सुगंध होती कैसी है । आप सुगंध को भी उस गंदगी से उठने वाली दुर्गंध के समान ही समझेंगे । ये आपकी गलती नहीं आपके संस्कारों की गलती है जिसने आपको सही और गलत के बीच का अंतर सिखाया ही नहीं । दूसरी बात आप किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं रखते भले आप कोई भी हों । इतिहास के साथ आज की तुलना करेंगे तो बहुत से धर्मों के ना जाने कितने उदाहरणों को तोड़ मरोड़ कर सामने रख सकते हैं मगर आपको सबसे कमज़ोर कृष्ण दिखे क्योंकि आप जानते थे आप किसी और धर्म के लिए मुंह खोलेंगे तो दोबारा बोलने लायक नहीं रहेंगे । वैसे किसी भी धर्म के पीर पैगंबर या भगवान पर आपको ऐसी टिप्पणी करने का अधिकार नहीं मगर आपने चुना ही उसे है जिसके लिए आप पर ना केस होगा ना आपको जेल होगी । हाँ मगर एक बात है आप अगर इसी तरह नज़रों से गिरते रहे तो भले ही आपकी हड्डियाँ ना टूटें मगर आपकी आत्मा चूर चूर हो जाएगी ।
धीरज झा
COMMENTS