हे मेरे राम मेरे राम, मेरे आराध्य राम, मेरे आदर्श राम, कैसे आपका गुणगान करूँ, कैसे आपके रूप का बखान करूँ । कैसे गिनवाऊं वे सब बलिदान जो आप...
हे मेरे राम
मेरे राम, मेरे आराध्य राम, मेरे आदर्श राम, कैसे आपका गुणगान करूँ, कैसे आपके रूप का बखान करूँ । कैसे गिनवाऊं वे सब बलिदान जो आप ने मर्यादा पालन में हंसते हंसते दे दिए, कैसे समझाऊं सबको कि आपने अपनी मर्यादा के पालन में क्या क्या न्यौछावर कर दिया । जानते हैं राम जी, जब कभी कोई किसी भी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को उसके कितने ही अच्छे कामों के बावजूद भी बुरा भला कहता है ना तो मैं आपको सोच कर मुस्कुरा देता हूँ । आप विष्णु अवतार मर्यादापुरुषोत्तम राम होने के बाद भी समस्त प्रजा को खुश नहीं कर पाए तो भला ये इंसान कैसे सब को खुश रख पाएंगे ।
राम जी मैं हमेशा से चाहता था कि आपके आदर्शों पर चलूं मगर मैं नहीं चल सकता । मुझ में वे सहनशक्ति नहीं कि मैं अपने समाज के कहने पर अपनी प्राणों से प्यारी पत्नी को अपने से दूर कर दूं । मैं उस समय समाज की नहीं सोच सकता मैं उस समय स्वार्थी हो जाऊंगा । आपने अपनी प्रजा का मन रखने के लिए उस सीता माता का त्याग कर दिया जिनके लिए आपने इतना बड़ा युद्ध लड़ा । भला मैं इतना त्याग कहाँ कर पाऊंगा । मगर अफ़सोस आपके इतने बड़े त्याग को भी सब समझ नहीं पाए । राजा हो या रंक भला कौन नहीं चाहेगा कि वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ खुश रहे । सीता माता के साथ बहुत बुरा हुआ मगर अच्छा तो आपके साथ भी नहीं हुआ उधर सीता माता वनवास काट रही थीं तो इधर आपने भी अपने परिवार वियोग में सोने की जेल काटी । मगर हे मेरे राम आप पुरूष थे आपका बुरा कहलाना तो निश्चित था, आपके त्याग को कोई नहीं देख सकता, आपकी पीड़ा को ये छोटी मानसिक्ता वाले महसूस नहीं कर सकते ।
हाँ मगर एक बात तय है आप किसी की खुशी के लिए करें या किसी के दबाब में आ कर करें या मर्यादाओं के पालन के लिए करें मगर पाप पाप ही होता है, इस पाप के बदले मिले श्राप से तो आपके पिता तक ना बच पाए तो भला आप कैसे बचते । आपने भले ही मर्यादाओं के पालन के लिए ही सीता माता को वनवास भोगने भेजा हो मगर ये पाप था, एक अबला नारी को इस तरह से निसहाय कर के अकेला छोड़ देना कहीं का न्याय नहीं था और यही वो पाप था शायद जिसका दण्ड शायद आप आज तक भोग रहे हैं । अयोध्या के राजा मर्यादापुरूषोत्तम राम का इतनी सदियों तक बिना घर के रहना एक टूटी छप्परी के नीचे वर्षों बिता देना शायद उसी पाप का प्रयाश्चित है प्रभु । मैं तो अज्ञानी हूँ आप सबसे ही सीखा है और यही सीखा है कि आपकी करनी का फल नियती आपको ज़रूर देती है भले आप कोई भी हो ।
आपने एक मर्यादावान होने का दण्ड पाया है आपने एक पुरूष होने का दण्ड पाया है आपने दण्ड पाया है एक ऐसा राजा होने का जिसने प्रजा की एक आवाज़ पर अपनी पत्नी को खुद से अलग कर दिया । भला हम जैसे इंसान कैसे राम हो सकते हैं, हमारे अंदर इतनी सहनशक्ति कभी नहीं आ सकती प्रभु ।
जय श्री राम
धीरज झा
मेरे राम, मेरे आराध्य राम, मेरे आदर्श राम, कैसे आपका गुणगान करूँ, कैसे आपके रूप का बखान करूँ । कैसे गिनवाऊं वे सब बलिदान जो आप ने मर्यादा पालन में हंसते हंसते दे दिए, कैसे समझाऊं सबको कि आपने अपनी मर्यादा के पालन में क्या क्या न्यौछावर कर दिया । जानते हैं राम जी, जब कभी कोई किसी भी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को उसके कितने ही अच्छे कामों के बावजूद भी बुरा भला कहता है ना तो मैं आपको सोच कर मुस्कुरा देता हूँ । आप विष्णु अवतार मर्यादापुरुषोत्तम राम होने के बाद भी समस्त प्रजा को खुश नहीं कर पाए तो भला ये इंसान कैसे सब को खुश रख पाएंगे ।
राम जी मैं हमेशा से चाहता था कि आपके आदर्शों पर चलूं मगर मैं नहीं चल सकता । मुझ में वे सहनशक्ति नहीं कि मैं अपने समाज के कहने पर अपनी प्राणों से प्यारी पत्नी को अपने से दूर कर दूं । मैं उस समय समाज की नहीं सोच सकता मैं उस समय स्वार्थी हो जाऊंगा । आपने अपनी प्रजा का मन रखने के लिए उस सीता माता का त्याग कर दिया जिनके लिए आपने इतना बड़ा युद्ध लड़ा । भला मैं इतना त्याग कहाँ कर पाऊंगा । मगर अफ़सोस आपके इतने बड़े त्याग को भी सब समझ नहीं पाए । राजा हो या रंक भला कौन नहीं चाहेगा कि वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ खुश रहे । सीता माता के साथ बहुत बुरा हुआ मगर अच्छा तो आपके साथ भी नहीं हुआ उधर सीता माता वनवास काट रही थीं तो इधर आपने भी अपने परिवार वियोग में सोने की जेल काटी । मगर हे मेरे राम आप पुरूष थे आपका बुरा कहलाना तो निश्चित था, आपके त्याग को कोई नहीं देख सकता, आपकी पीड़ा को ये छोटी मानसिक्ता वाले महसूस नहीं कर सकते ।
हाँ मगर एक बात तय है आप किसी की खुशी के लिए करें या किसी के दबाब में आ कर करें या मर्यादाओं के पालन के लिए करें मगर पाप पाप ही होता है, इस पाप के बदले मिले श्राप से तो आपके पिता तक ना बच पाए तो भला आप कैसे बचते । आपने भले ही मर्यादाओं के पालन के लिए ही सीता माता को वनवास भोगने भेजा हो मगर ये पाप था, एक अबला नारी को इस तरह से निसहाय कर के अकेला छोड़ देना कहीं का न्याय नहीं था और यही वो पाप था शायद जिसका दण्ड शायद आप आज तक भोग रहे हैं । अयोध्या के राजा मर्यादापुरूषोत्तम राम का इतनी सदियों तक बिना घर के रहना एक टूटी छप्परी के नीचे वर्षों बिता देना शायद उसी पाप का प्रयाश्चित है प्रभु । मैं तो अज्ञानी हूँ आप सबसे ही सीखा है और यही सीखा है कि आपकी करनी का फल नियती आपको ज़रूर देती है भले आप कोई भी हो ।
आपने एक मर्यादावान होने का दण्ड पाया है आपने एक पुरूष होने का दण्ड पाया है आपने दण्ड पाया है एक ऐसा राजा होने का जिसने प्रजा की एक आवाज़ पर अपनी पत्नी को खुद से अलग कर दिया । भला हम जैसे इंसान कैसे राम हो सकते हैं, हमारे अंदर इतनी सहनशक्ति कभी नहीं आ सकती प्रभु ।
जय श्री राम
धीरज झा
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