मज़दूर अपने आप में एक योद्धा है, एक ऐसा योद्धा जो लड़ता है अपनी परिस्थितियों से, अपनी ग़रीबी से अपनी मजबूरी से, अपने ऊपर पड़ रहे काम के दबाव स...
मज़दूर अपने आप में एक योद्धा है, एक ऐसा योद्धा जो लड़ता है अपनी परिस्थितियों से, अपनी ग़रीबी से अपनी मजबूरी से, अपने ऊपर पड़ रहे काम के दबाव से, शासन से । इन सब के बावजूद वो मेहनत करता है । अगर आपको एक एक रुपए की सही कीमत जाननी है तो आप जानिए उस मज़दूर से जो अपने जिस्म का पसीना बहा कर सारा दिन जी तोड़ मेहनत करता है फिर जा कर शाम को उसे इतने रुपए मिलते जिससे वो अपना घर चला सके । उसके लिए अच्छा खाने का, अच्छा पहनने का, अच्छे घर में रहने का, सपना देखना एक बहुत बड़ा गुनाह है । दूसरों के लिए महल खड़ा करने वाला, दूसरों का फैलाया कूड़ा उठाने वाला, दूसरों का भार ढोने वाला जब खुद तारों की छांव में सोता होगा, खुद को बेबस महसूस करता होगा तब उस पर क्या गुज़रती होगी ये आप और हम सोच भी नहीं सकते ।
मगर इन सबमें कुछ ऐसे ज़िद्दी भी निकल आते हैं जो नियती को बदल देने की ठान लेते हैं । आज आपको बताएंगे कुछ ऐसी हस्तियों के नाम जिन्होंने किस्मत से लड़ कर मज़दूर से मशहूर होने तक का एक बहुत ही कठिन सफ़र तय किया ।
1. क्या आप मान सकते हैं एक कूड़ा कचरा उठाने वाली बच्ची 18 वर्ष की उम्र में एक अखबार की संपादक बन गई हो । अगर नहीं मानते तो मिलिए 'चांदनी' से । फूटपाथ पर अपने पिता के साथ करतब दिखाने और कूड़ा कचरा उठाने वाली चांदनी को गैर सरकारी संगठन चेतना ने स्कूल जाने में मदद की, उसे स्कालरशिप दिलवाई, उसके बाद तो जैसे चांदनी को उड़ने के लिए खुला आसमान मिल गया । आज चांदनी 'बालकनामा' नामक अखबार की संपादक हैं । साथ ही साथ आश्चर्य की बात यह है कि यह अखबार चौदह सदस्यों की टीम के दम पर चलता है जिनमें सब के सब फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे ही हैं । यह फुटपाथ की अमुक कहानियों को शब्द दे कर लोगों तक पहुंचाते हैं ।
2. एक वक्त था जब भारतीय क्रिकेट टीम की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसके पास तेज़ गति का एक भी गेंदबाज़ नहीं था । मगर कौन जानता था भारतीय क्रिकेट की इस सबसे बड़ी कमी को एक मजदूर का बेटा जो खुद मज़दूरी किया करता था वह पूरा करेगा । भारतीय टीम के तेज़ गेंदबाज़ उमेश यादव की कहानी आपको इस बात का अच्छे से यकीन दिला देगी की अगर कोई सपना आपने जागती आँखों से देखा और उसे पाने के लिए रात की नींद और दिन का चैन कुर्बान किया तो उसे पूरा करने से दुनिया की कोई ताक़त आपको नहीं रोक सकती । घर चलाने के लिए किसी समय में उमेश पिता के साथ मज़दूर किया करता था और आज वही उमेश अपनी लगन और मेहनत के दम पर भारतीय क्रिकेट के नगीनों में गिना जाता है ।
3. सर जडेजा के नाम से मशहूर रविन्द्र जड़ेजा किसी समय में अपने चौकीदार पिता की जगह पर चौकीदारी किया करते थे और आज क्रिकेट जगत में इनका नाम गिने चुने खिलाड़ियों में लिया जाता है ।
4. अपने गाँव में सबसे अलग दिखने वाला वो भयानक बच्चा जिसकी लम्बाई और चौड़ाई को देखने लोग दूर दूर से आते थे । वह घर चलाने के लिए अपने भाई के साथ मजदूरी करने जाता था । अपनी ताक़त से जब वो भारी भारी सामान को मज़े से उठा लेता तो लोग चकित रह जाते । कौन जानता था वह मज़दूर बच्चा एक दिन अमेरिका के डब्ल्यू डब्ल्यू ई में अंडरटेकर जैसे पहलवानों से लोहा लेने वाला पहला भारतीय बनेगा । जी हाँ हम बात कर रहे हैं उस मजदूर बच्चे दिलीप सिंह राणा की जिसकी लगन और कड़े परिश्रम ने उसे उस मुकाम पर पहुंचा दिया जहाँ तक उससे पहले कोई नहीं पहुंच पाया था ।
5. एक इंसान कपड़ा मिल में 14 15 रुपये दरमाहा पर मज़दूरी करता है और फिर एक दिन वह बैठ जाता है मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री पद पर । है ना एक फिल्मी कहानी जैसा । मगर ये कहानी नहीं श्री बाबूलाल गौर जी की हकीक़त है । किसी समय में कपड़ा मिल में एक रूपए की देहाड़ी पर काम करने वाले बाबूलाल गौर जो लगातार दस बार विधायक बने तथा उमा भारती को पद से हटाने के बाद उन्हें मध्यप्रदेश के मंत्री पद पर बैठा दिया गया ।
ये महज़ कुछ एक उदाहरण थे जिन्होंने मज़दूरी तो की मगर किसी का मकान बनाने के लिए नहीं बल्कि अपना भविष्य बनाने और एक इतिहास लिखने के लिए की । किस्मत भी मेहनत और हिम्मत की गुलाम हुआ करती है बस इरादा पक्का होना चाहिए । आज मज़दूर दिवस पर भारत के सभी मज़दूर भाईयों को बहुत बहुत बधाई । याद रहे आप देश के निर्माता है पूरे देश में एक आप ही हैं जो सही मायनों में अपनी मेहनत की रोटी खाते हैं । आपकी मेहनत और हिम्मत को हमारा सलाम । प्रार्थना है कि आप सब की मेहनत रंग लाए और आप या आपके बच्चे इन सब की तरह एक नया इतिहास लिख दें ।
धीरज झा
मगर इन सबमें कुछ ऐसे ज़िद्दी भी निकल आते हैं जो नियती को बदल देने की ठान लेते हैं । आज आपको बताएंगे कुछ ऐसी हस्तियों के नाम जिन्होंने किस्मत से लड़ कर मज़दूर से मशहूर होने तक का एक बहुत ही कठिन सफ़र तय किया ।
1. क्या आप मान सकते हैं एक कूड़ा कचरा उठाने वाली बच्ची 18 वर्ष की उम्र में एक अखबार की संपादक बन गई हो । अगर नहीं मानते तो मिलिए 'चांदनी' से । फूटपाथ पर अपने पिता के साथ करतब दिखाने और कूड़ा कचरा उठाने वाली चांदनी को गैर सरकारी संगठन चेतना ने स्कूल जाने में मदद की, उसे स्कालरशिप दिलवाई, उसके बाद तो जैसे चांदनी को उड़ने के लिए खुला आसमान मिल गया । आज चांदनी 'बालकनामा' नामक अखबार की संपादक हैं । साथ ही साथ आश्चर्य की बात यह है कि यह अखबार चौदह सदस्यों की टीम के दम पर चलता है जिनमें सब के सब फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे ही हैं । यह फुटपाथ की अमुक कहानियों को शब्द दे कर लोगों तक पहुंचाते हैं ।
2. एक वक्त था जब भारतीय क्रिकेट टीम की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसके पास तेज़ गति का एक भी गेंदबाज़ नहीं था । मगर कौन जानता था भारतीय क्रिकेट की इस सबसे बड़ी कमी को एक मजदूर का बेटा जो खुद मज़दूरी किया करता था वह पूरा करेगा । भारतीय टीम के तेज़ गेंदबाज़ उमेश यादव की कहानी आपको इस बात का अच्छे से यकीन दिला देगी की अगर कोई सपना आपने जागती आँखों से देखा और उसे पाने के लिए रात की नींद और दिन का चैन कुर्बान किया तो उसे पूरा करने से दुनिया की कोई ताक़त आपको नहीं रोक सकती । घर चलाने के लिए किसी समय में उमेश पिता के साथ मज़दूर किया करता था और आज वही उमेश अपनी लगन और मेहनत के दम पर भारतीय क्रिकेट के नगीनों में गिना जाता है ।
3. सर जडेजा के नाम से मशहूर रविन्द्र जड़ेजा किसी समय में अपने चौकीदार पिता की जगह पर चौकीदारी किया करते थे और आज क्रिकेट जगत में इनका नाम गिने चुने खिलाड़ियों में लिया जाता है ।
4. अपने गाँव में सबसे अलग दिखने वाला वो भयानक बच्चा जिसकी लम्बाई और चौड़ाई को देखने लोग दूर दूर से आते थे । वह घर चलाने के लिए अपने भाई के साथ मजदूरी करने जाता था । अपनी ताक़त से जब वो भारी भारी सामान को मज़े से उठा लेता तो लोग चकित रह जाते । कौन जानता था वह मज़दूर बच्चा एक दिन अमेरिका के डब्ल्यू डब्ल्यू ई में अंडरटेकर जैसे पहलवानों से लोहा लेने वाला पहला भारतीय बनेगा । जी हाँ हम बात कर रहे हैं उस मजदूर बच्चे दिलीप सिंह राणा की जिसकी लगन और कड़े परिश्रम ने उसे उस मुकाम पर पहुंचा दिया जहाँ तक उससे पहले कोई नहीं पहुंच पाया था ।
5. एक इंसान कपड़ा मिल में 14 15 रुपये दरमाहा पर मज़दूरी करता है और फिर एक दिन वह बैठ जाता है मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री पद पर । है ना एक फिल्मी कहानी जैसा । मगर ये कहानी नहीं श्री बाबूलाल गौर जी की हकीक़त है । किसी समय में कपड़ा मिल में एक रूपए की देहाड़ी पर काम करने वाले बाबूलाल गौर जो लगातार दस बार विधायक बने तथा उमा भारती को पद से हटाने के बाद उन्हें मध्यप्रदेश के मंत्री पद पर बैठा दिया गया ।
ये महज़ कुछ एक उदाहरण थे जिन्होंने मज़दूरी तो की मगर किसी का मकान बनाने के लिए नहीं बल्कि अपना भविष्य बनाने और एक इतिहास लिखने के लिए की । किस्मत भी मेहनत और हिम्मत की गुलाम हुआ करती है बस इरादा पक्का होना चाहिए । आज मज़दूर दिवस पर भारत के सभी मज़दूर भाईयों को बहुत बहुत बधाई । याद रहे आप देश के निर्माता है पूरे देश में एक आप ही हैं जो सही मायनों में अपनी मेहनत की रोटी खाते हैं । आपकी मेहनत और हिम्मत को हमारा सलाम । प्रार्थना है कि आप सब की मेहनत रंग लाए और आप या आपके बच्चे इन सब की तरह एक नया इतिहास लिख दें ।
धीरज झा
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