चोर पकड़ा गया "साले हरामखोर ! चोरी करता है । साले तेरे जैसे बच्चे ही बड़े हो कर लुटेरे बनते हैं, पैसों के लिए लोगो का खून करते हैं ।&qu...
चोर पकड़ा गया
"साले हरामखोर ! चोरी करता है । साले तेरे जैसे बच्चे ही बड़े हो कर लुटेरे बनते हैं, पैसों के लिए लोगो का खून करते हैं ।" सेठ जी अपनी बड़ी सी दुकान के बाहर अपनी नई चप्पल से घुंघरूआ को धून रहे हैं । जहाँ लोगों के पास अपनों के पास बैठने तक का समय नहीं उस व्यस्त समय में भी लोगों की बड़ी भीड़ जमा है मगर सिर्फ खड़ी है, कोई कुछ बोल नहीं रहा ।
एक ने हिम्मत कर के कहा "अरे सेठ जी छोड़ दो अब इसे । जितने चुराए नहीं होंगे उससे ज़्यादा तो इसकी मरहम पट्टी में लग जाएंगे ।"
"मरने दो हरामी को, ऐसे बच्चे जो कल को समाज के लिए खतरा बन जाएं उनका मर जाना ही बेहतर है । साले ने पूरे "डेढ सौ" रुपए चुराए हैं । पहले भी हाथ मारता रहा होगा । मैने गरीब जान कर नौकरी पर रखा और इस माद.....
"सेठ जी जितना मारना है मार लो पर माँ को गाली मत दो ।" अभी तक चुप चाप मार खा रहा घुंघरूआ माँ की गाली सुनते ही आँखें लाल कर के चेतावनी भरे स्वर में बोला ।
"हरामी, चोरी करता है ऊपर से ज़ुबान चलाता है । दूंगा तेरी माँ को हज़ार बार गाली दूंगा । ना जाने किसके पाप को उस बाज़ारू...." 'बाज़ारू' शब्द के बाद पता ही नहीं लगा कब घुंघरूआ ने सेठ का हाथ छुड़ा कर सेठ के सर पर पास पड़े ईंट का टुकड़ा चला कर मार दिया । सेठ के मुँह से अब गंदे शब्दों की जगह दर्द भरी चीख़ निकली । जब तक सेठ कुछ समझ पाता घुंघरूआ भीड़ को चीर कर फरार हो चुका था ।
एक बात तो है भीड़ बेचारी भीड़ ही होती है । मार खाते भी चुपचाप देखती है और भागते भी चुपचाप देखती है । एक समान व्यवहार करती है भीड़ । इसे बस तमाशे से मतलब है । तमाशा खत्म होते ही सबको अपने अपने काम याद आजाते हैं ।
सेठ जी दर्द से छटपटाते रहे हैं बुरी तरह । देश का बहुत भला सोचते हैं ना सेठ जी उसी की सज़ा मिली बेचारे को । इतना दर्द सहने के बावजूद भी उन्हें यही चिंता सताए जा रही है कि उनके डेढ सौ रूपए ले कर भागा घुंघरूआ समाज के लिए खतरा है ।
अब थोड़ा आराम आगया था सेठ जी को । मुंशी ने पास आ कर कहा "सेठ जी मिलावट का सामान आगया है । एक नई आईटम आई है "प्लास्टिक के चावल" । एकदम असली जैसे । मिलावट शुरू करवा दूँ ?"
प्लास्टिक वाले चावलों का नाम सुनते ही देश और समाज की फिक्र करने वाले सेठ जी दर्द में भी एक ज़हरीली सी मुस्कान छोड़ते हुए बोले "नहीं पहले घर का राशन निकाल दो उसके बाद मिलावट कर देना । और उस चोर को पकड़ के लाओ उसे पहले खूब मारेंगे फिर पुलिस के हवाले करेंगे ।"
सेठ जी का आदेश मिलते ही मुंशी जी ने दो मुश्टंडे घुंघरूआ के घर भेज दिए । गंदगी का बोझ उठाए हुए एक तंग सी गली में घुंघरूआ का घर है जहाँ उधर रह रहे लोगों के अलावा तीसरा इंसान दस मिनट से ज़्यादा नहीं टिक सकता । मगर मुशटंडे तो मुशटंडे हैं वो पहुंच गए घुंघरूआ के घर । उसके किराए के घर (जो शायद आखरी बार देश आज़ाद होने की खुशी में रंगा गया था) में उसकी माँ बेसुध पड़ी है उसके सिरहाने एक सिरप और कुछ और दवाईयाँ रखी हैं जो शायद अभी अभी लाई गई हैं और माँ के पैरों बैठा है वो बच्चा जो समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा है । जिसने अभी कुछ देर पहले मिलावटी सेठ के यहाँ से पूरे डेढ़ सौ रूपए चुराए हैं ।
उसे देखते ही मुश्टंडे ये सोच कर जीत वाली मुस्कुराहट छोड़ते हैं कि "अब चोर पकड़ा गया । बच के अब कहाँ भागेगा ।" अब इस चोर की खैर नहीं ।
शायद अब समाज सुरक्षित होगा ।
धीरज झा
"साले हरामखोर ! चोरी करता है । साले तेरे जैसे बच्चे ही बड़े हो कर लुटेरे बनते हैं, पैसों के लिए लोगो का खून करते हैं ।" सेठ जी अपनी बड़ी सी दुकान के बाहर अपनी नई चप्पल से घुंघरूआ को धून रहे हैं । जहाँ लोगों के पास अपनों के पास बैठने तक का समय नहीं उस व्यस्त समय में भी लोगों की बड़ी भीड़ जमा है मगर सिर्फ खड़ी है, कोई कुछ बोल नहीं रहा ।
एक ने हिम्मत कर के कहा "अरे सेठ जी छोड़ दो अब इसे । जितने चुराए नहीं होंगे उससे ज़्यादा तो इसकी मरहम पट्टी में लग जाएंगे ।"
"मरने दो हरामी को, ऐसे बच्चे जो कल को समाज के लिए खतरा बन जाएं उनका मर जाना ही बेहतर है । साले ने पूरे "डेढ सौ" रुपए चुराए हैं । पहले भी हाथ मारता रहा होगा । मैने गरीब जान कर नौकरी पर रखा और इस माद.....
"सेठ जी जितना मारना है मार लो पर माँ को गाली मत दो ।" अभी तक चुप चाप मार खा रहा घुंघरूआ माँ की गाली सुनते ही आँखें लाल कर के चेतावनी भरे स्वर में बोला ।
"हरामी, चोरी करता है ऊपर से ज़ुबान चलाता है । दूंगा तेरी माँ को हज़ार बार गाली दूंगा । ना जाने किसके पाप को उस बाज़ारू...." 'बाज़ारू' शब्द के बाद पता ही नहीं लगा कब घुंघरूआ ने सेठ का हाथ छुड़ा कर सेठ के सर पर पास पड़े ईंट का टुकड़ा चला कर मार दिया । सेठ के मुँह से अब गंदे शब्दों की जगह दर्द भरी चीख़ निकली । जब तक सेठ कुछ समझ पाता घुंघरूआ भीड़ को चीर कर फरार हो चुका था ।
एक बात तो है भीड़ बेचारी भीड़ ही होती है । मार खाते भी चुपचाप देखती है और भागते भी चुपचाप देखती है । एक समान व्यवहार करती है भीड़ । इसे बस तमाशे से मतलब है । तमाशा खत्म होते ही सबको अपने अपने काम याद आजाते हैं ।
सेठ जी दर्द से छटपटाते रहे हैं बुरी तरह । देश का बहुत भला सोचते हैं ना सेठ जी उसी की सज़ा मिली बेचारे को । इतना दर्द सहने के बावजूद भी उन्हें यही चिंता सताए जा रही है कि उनके डेढ सौ रूपए ले कर भागा घुंघरूआ समाज के लिए खतरा है ।
अब थोड़ा आराम आगया था सेठ जी को । मुंशी ने पास आ कर कहा "सेठ जी मिलावट का सामान आगया है । एक नई आईटम आई है "प्लास्टिक के चावल" । एकदम असली जैसे । मिलावट शुरू करवा दूँ ?"
प्लास्टिक वाले चावलों का नाम सुनते ही देश और समाज की फिक्र करने वाले सेठ जी दर्द में भी एक ज़हरीली सी मुस्कान छोड़ते हुए बोले "नहीं पहले घर का राशन निकाल दो उसके बाद मिलावट कर देना । और उस चोर को पकड़ के लाओ उसे पहले खूब मारेंगे फिर पुलिस के हवाले करेंगे ।"
सेठ जी का आदेश मिलते ही मुंशी जी ने दो मुश्टंडे घुंघरूआ के घर भेज दिए । गंदगी का बोझ उठाए हुए एक तंग सी गली में घुंघरूआ का घर है जहाँ उधर रह रहे लोगों के अलावा तीसरा इंसान दस मिनट से ज़्यादा नहीं टिक सकता । मगर मुशटंडे तो मुशटंडे हैं वो पहुंच गए घुंघरूआ के घर । उसके किराए के घर (जो शायद आखरी बार देश आज़ाद होने की खुशी में रंगा गया था) में उसकी माँ बेसुध पड़ी है उसके सिरहाने एक सिरप और कुछ और दवाईयाँ रखी हैं जो शायद अभी अभी लाई गई हैं और माँ के पैरों बैठा है वो बच्चा जो समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा है । जिसने अभी कुछ देर पहले मिलावटी सेठ के यहाँ से पूरे डेढ़ सौ रूपए चुराए हैं ।
उसे देखते ही मुश्टंडे ये सोच कर जीत वाली मुस्कुराहट छोड़ते हैं कि "अब चोर पकड़ा गया । बच के अब कहाँ भागेगा ।" अब इस चोर की खैर नहीं ।
शायद अब समाज सुरक्षित होगा ।
धीरज झा
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