प्रेमी बनों वहशी नहीं नयनों का मिलन प्रेम का पहला पड़ाव है और शरीर का मिलन अंतिम पड़ाव जहाँ पर प्रेम ठहर जाता है समर्पित हो जाता है एक...
प्रेमी बनों वहशी नहीं
नयनों का मिलन प्रेम का पहला पड़ाव है
और शरीर का मिलन अंतिम पड़ाव
जहाँ पर प्रेम ठहर जाता है
समर्पित हो जाता है
एक दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से
नयनों से शरीर के मिलन के बीच
प्रेम की अगन उठती है,
विचारों का संगम बनता है,
अहसासों का आदान प्रदान होता है,
एक नई ऊर्जा जन्म लेती है मन में
जिससे हमें मिलती है एक दूसरे के अहसासों को
बिना कहे सुने जान लेने की अद्भुत शक्ति
एक दूसरे की पीड़ा का आभास
हमें अपनी पीड़ा से अधिक होने लगता है
यह वो रिश्ता बन जाता है जो होता है
एक भक्त और ईश्वर के बीच
बस अंतर इतना है कि यहाँ
दोनो ईश्वर हें और दोनो भक्त भी
प्रेम वंदना के समान हो जाता है
इन सबके बाद जब प्रेमी एक दूसरे से
पूरी तरह संतुष्ट हो जाते हैं
तब होता है समर्पण जो
जो एक क्रिया है जिसमें हम
शरीर के माध्यम से एक दूसरे को
अपनी आत्मा समर्पित करते हैं
यह पावन है पवित्र है
संसार के संचालन का मुख्य सूत्र है
मगर जब यह अंतिम पड़ाव
पहला पड़ाव बन जाता है
तब प्रेम नहीं अपितु मात्र
वासना रह जाती है
चाहते हो प्रेम को ज़िंदा रखना
तो प्रेम करो वासना नहीं
प्रमी बनों वहशी नहीं
धीरज झा
नयनों का मिलन प्रेम का पहला पड़ाव है
और शरीर का मिलन अंतिम पड़ाव
जहाँ पर प्रेम ठहर जाता है
समर्पित हो जाता है
एक दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से
नयनों से शरीर के मिलन के बीच
प्रेम की अगन उठती है,
विचारों का संगम बनता है,
अहसासों का आदान प्रदान होता है,
एक नई ऊर्जा जन्म लेती है मन में
जिससे हमें मिलती है एक दूसरे के अहसासों को
बिना कहे सुने जान लेने की अद्भुत शक्ति
एक दूसरे की पीड़ा का आभास
हमें अपनी पीड़ा से अधिक होने लगता है
यह वो रिश्ता बन जाता है जो होता है
एक भक्त और ईश्वर के बीच
बस अंतर इतना है कि यहाँ
दोनो ईश्वर हें और दोनो भक्त भी
प्रेम वंदना के समान हो जाता है
इन सबके बाद जब प्रेमी एक दूसरे से
पूरी तरह संतुष्ट हो जाते हैं
तब होता है समर्पण जो
जो एक क्रिया है जिसमें हम
शरीर के माध्यम से एक दूसरे को
अपनी आत्मा समर्पित करते हैं
यह पावन है पवित्र है
संसार के संचालन का मुख्य सूत्र है
मगर जब यह अंतिम पड़ाव
पहला पड़ाव बन जाता है
तब प्रेम नहीं अपितु मात्र
वासना रह जाती है
चाहते हो प्रेम को ज़िंदा रखना
तो प्रेम करो वासना नहीं
प्रमी बनों वहशी नहीं
धीरज झा
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