#मैं_भले_बिहार_में_नहीं_रहता_मगर_बिहार_मेरे_खून_में_दौड़ता_है ****************************************** "रे रमजनमां तोहर बेटा स्कूल न...
#मैं_भले_बिहार_में_नहीं_रहता_मगर_बिहार_मेरे_खून_में_दौड़ता_है
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"रे रमजनमां तोहर बेटा स्कूल नहीं जाता का रे ? भर दिन देखते हैं भईंसीए चराता रहता है ।"
"न मालिक इस्कूल जा के का करेगा । करना तऽ मजुरिए है फेर काहे बेकार में समय बरबाद करें, एही खातिर भईंसी चराता है ।"
"दुर बुड़बक, रे कम से कम नामों लिखबा न दो ।"
"मालिक खाली नाम लिखबैला से का हो जाएगा ?"
"नाम लिखबैला से एक तऽ रूपईया मिलेगा दुसरा एक टाईम का भोजन मिल जाएगा आ तीसरा कहीं भाग भरोसे पास हो गया, नकल चीट से तऽ दस हजार रुपईया मिलेगा ।"
"मालिक साँचों ?"
"अऊर नहीं तऽ का ! तू हमरी कौन सारी लगता है जे तोहरा से मजाक करेंगे ।" सारी संबोधन से रमजनमां लजा गया ।
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रमजनमा ने अपने लड़के और लड़की का दाखिला स्कूल में करा दिया । वैसे तो मिड डे मील में अच्छा खासा आईटम सब का लिस्ट टांग कर दीवार पर लटकाया होता है मगर देहात के स्कूलों में उस अच्छे खासे भोजन का स्वाद बस वह दीवार चखती है जहाँ ये टांग कर लटकाया होता है । बाकि बच्चों को तो पिलुआ युक्त चावल की खिचड़ी और आलू चोखा ही नसीब होता है । मगर यह खिचड़ी चोखा भी उनके लिए बहुत है जिन्हें दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल है । हेडमास्टर साहेब इसका फायदा उठाते हैं, बच्चों को खिंचड़ी खिला कर खुद बाकी रुपईया खाते हैं ।
बाकी शिक्षा के नाम पर तो "लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर, सोरह दूना आठ" वाला हिसाब चलता है । मास्टर साहेब व्हाट्स ऐप पर व्यस्त हैं । मैडम जी दो दो घन्टें फोन पर अपनी ननदिया का हाल का हाल चाल पूछती रहती हैं । इस बीच बच्चे "तोहरा महतारी के बू&$" जैसी गालियों का अभ्यास करने में व्यस्त होते हैं ।
मतलब बच्चपन तो ऐसे ही बीतता है और आठवां नौवां से एकदम ही सर पर मैट्रिक का बोझ लाद दिया जाता है । इसके बाद बारी आती है "टू स्मार्ट कोचिंग सेंटर" नामक किसी कोचिंग में भीड़ जुटाने की । जहाँ बड़ी मुश्किल से इंटर पास नरेस, महेस, सुरेस आदि कोई भी सर जी दो सौ में ऑल सबजैक्ट पढ़ा कर पास कराने की गारेंटी के नाम पर अपना पेट पोस रहे होते हैं । और जब रिज़ल्ट आता है तो यही बच्चे (जो पहले से जानते हैं कि अगर "रूबी राय" वाली बयार ना बही तो हमें झोला उठा कर बंबई वाले मौसा के पास जा कर अलकतरा फैक्ट्री में मजदूरी ही करनी है) वजह बनते हैं बिहार के 62% फेल रिजल्ट का ।
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ऐसे 60% बच्चों (जिन्हें बिहार के शिक्षा व्यवस्थापकों ने ने शिक्षा पर एक बोझ बना दिया है) के साथ बाकी 40% मेहनती बच्चों का हर साल परिक्षा परिणाम घोषित होते ही सारे देश में बिहार की शिक्षा की खिल्ली उड़ने लगती है । मगर इस खिल्ली के बावजूद भी एक बड़ी संख्या में आई पी एस, आई ए एस, आई आई टी एन इसी प्रदेश से निकलते हैं । शिक्षा तो मिली ही उन 40% को बाकि के 60% तो सिर्फ मिड डे मील और कुछ रुपयों के लिए पढ़े ।
सर नितीश एक बात ध्यान से सुनिए, दलित अथवा गरीब के बच्चे का सिर्फ स्कूल जाना ज़रूरी नहीं वहाँ उसका पढ़ना भी ज़रूरी है । सिर्फ भोजन और कुछ पैसों के लालच में आप उन्हें स्कूलों में तो भर सकते हैं मगर उनको शिक्षित नहीं बना सकते । इसके लिए आपको ध्यान देना होगा कि सर्व शिक्षा का जो अभियान चलाया गया है वो ठीक से चल रहा है या नहीं । पिछड़े गाँवों में सरकार से मोटी तनख्वाह प्राप्त कर रहे मास्टर साहेब व्हाट्स ऐप से बाहर आ कर बच्चों को पढ़ा रहे।हैं या नहीं । मिड डे मील का जो पैसा इन्हें मिल रहा है उसका पूरा लाभ बच्चों को मिल रहा है या नहीं ।
बच्चे तो बच्चे होते हैं वो पढ़ते नहीं उन्हें पढ़ाना पड़ता है । जिनके माँ बाप थोड़ा पढ़े लिखे हैं वो बच्चों को डांट डपट कर, उनके डूबने वाले भविष्य की झलक दिखा कर पढ़ने पर मजबूर कर देते हैं । मगर वो माता पिता जिनका सारा दिन दो जून की रोटी जुटाने में चला जाता है वो अपने बच्चे का भविष्य किसी ऐसे काम में ही ढूंढते हैं । मगर यहाँ तो सर्व शिक्षा अभियान के लिए करोड़ों का ग्रांट हथियाना है और बच्चा सब नहीं आएगा तो अभियान चल रहा।है यह कैसे दिखेगा । तो बस लालच दो और भीड़ जुटाओ और इस भीड़ का हर्जाना भुगतेंगे बाकी के वो बच्चे जिन्होंने पढ़ने के लिए ना जाने कितने यतन किए हैं ।
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नितिश सर याद रहे यह खिलवाड़ सिर्फ शिक्षा के साथ नहीं बल्कि बिहार और उन बच्चों के भविष्य के साथ हो रहा है जो आने वाले वक्त में प्रदेश के साथ साथ देश का नाम भी रौशन करने वाले हैं । मेरा बिहार से बस अपने नाम के पीछे लगे सरनेम "झा" भर का ही नाता है । ना मैं आपका वोटर हूँ ना ही बिहार का वासी हूँ । मगर मेरे खून में बिहार दौड़ता है इसी कारण अपने सरनेम के पीछे कुमार शर्मा वत्स इत्यादि लगा कर मैं बिहार का ना होने से मुंह नहीं मोड़ पाता । मुझे अंदर से कचोटता है जब जब कोई बिहार को गरियाता है या जब कोई बिहारियों का मज़ाक उड़ाता है । मेरा बिहार अपने अंदर एक महान इतिहास को संभाले बैठा है मगर इस ऐतिहासिक बिहार का सर आप सब की राजनीति ने शर्म से झुका दिया है । कोई हमारा वर्तमान देख कर हमारा सम्मान करता है, भूत के दम पर कब तक हम अपने आपको बड़ा साबित करने में लगे रहेंगे । ये आए दिन के अपहरण, हत्याएं, बलात्कार हमें भी कसीं ना कसीं यकीन करने पर मजबूर करते रहते हैं कि हमारा बिहार नहीं सुधरने वाला । मगर क्या करें बिहारी हैं ना जब तक जीत नहीं जाते तब तक लड़ते रहने की बुरी आदत है ।
बिहार की बस शिक्षा व्यवस्था सही हो जाए, मैं लिखित देता हूँ कि आने वाले सालों में बिहार का नक्शा बदल जाएगा । बिहार में जानवर बहुत होते जा रहे हैं यहाँ इंसानों की ज़रूरत है जो बस शिक्षा से ही उपज सकते हैं । आप बैठे रहें कुर्सियों पर हम खुद संभाल लेंगे बिहार को सब यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह सुधार दें । अपने बिहार के लिए आप इतना तो कर ही सकते हैं ।
धीरज झा
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"रे रमजनमां तोहर बेटा स्कूल नहीं जाता का रे ? भर दिन देखते हैं भईंसीए चराता रहता है ।"
"न मालिक इस्कूल जा के का करेगा । करना तऽ मजुरिए है फेर काहे बेकार में समय बरबाद करें, एही खातिर भईंसी चराता है ।"
"दुर बुड़बक, रे कम से कम नामों लिखबा न दो ।"
"मालिक खाली नाम लिखबैला से का हो जाएगा ?"
"नाम लिखबैला से एक तऽ रूपईया मिलेगा दुसरा एक टाईम का भोजन मिल जाएगा आ तीसरा कहीं भाग भरोसे पास हो गया, नकल चीट से तऽ दस हजार रुपईया मिलेगा ।"
"मालिक साँचों ?"
"अऊर नहीं तऽ का ! तू हमरी कौन सारी लगता है जे तोहरा से मजाक करेंगे ।" सारी संबोधन से रमजनमां लजा गया ।
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रमजनमा ने अपने लड़के और लड़की का दाखिला स्कूल में करा दिया । वैसे तो मिड डे मील में अच्छा खासा आईटम सब का लिस्ट टांग कर दीवार पर लटकाया होता है मगर देहात के स्कूलों में उस अच्छे खासे भोजन का स्वाद बस वह दीवार चखती है जहाँ ये टांग कर लटकाया होता है । बाकि बच्चों को तो पिलुआ युक्त चावल की खिचड़ी और आलू चोखा ही नसीब होता है । मगर यह खिचड़ी चोखा भी उनके लिए बहुत है जिन्हें दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल है । हेडमास्टर साहेब इसका फायदा उठाते हैं, बच्चों को खिंचड़ी खिला कर खुद बाकी रुपईया खाते हैं ।
बाकी शिक्षा के नाम पर तो "लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर, सोरह दूना आठ" वाला हिसाब चलता है । मास्टर साहेब व्हाट्स ऐप पर व्यस्त हैं । मैडम जी दो दो घन्टें फोन पर अपनी ननदिया का हाल का हाल चाल पूछती रहती हैं । इस बीच बच्चे "तोहरा महतारी के बू&$" जैसी गालियों का अभ्यास करने में व्यस्त होते हैं ।
मतलब बच्चपन तो ऐसे ही बीतता है और आठवां नौवां से एकदम ही सर पर मैट्रिक का बोझ लाद दिया जाता है । इसके बाद बारी आती है "टू स्मार्ट कोचिंग सेंटर" नामक किसी कोचिंग में भीड़ जुटाने की । जहाँ बड़ी मुश्किल से इंटर पास नरेस, महेस, सुरेस आदि कोई भी सर जी दो सौ में ऑल सबजैक्ट पढ़ा कर पास कराने की गारेंटी के नाम पर अपना पेट पोस रहे होते हैं । और जब रिज़ल्ट आता है तो यही बच्चे (जो पहले से जानते हैं कि अगर "रूबी राय" वाली बयार ना बही तो हमें झोला उठा कर बंबई वाले मौसा के पास जा कर अलकतरा फैक्ट्री में मजदूरी ही करनी है) वजह बनते हैं बिहार के 62% फेल रिजल्ट का ।
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ऐसे 60% बच्चों (जिन्हें बिहार के शिक्षा व्यवस्थापकों ने ने शिक्षा पर एक बोझ बना दिया है) के साथ बाकी 40% मेहनती बच्चों का हर साल परिक्षा परिणाम घोषित होते ही सारे देश में बिहार की शिक्षा की खिल्ली उड़ने लगती है । मगर इस खिल्ली के बावजूद भी एक बड़ी संख्या में आई पी एस, आई ए एस, आई आई टी एन इसी प्रदेश से निकलते हैं । शिक्षा तो मिली ही उन 40% को बाकि के 60% तो सिर्फ मिड डे मील और कुछ रुपयों के लिए पढ़े ।
सर नितीश एक बात ध्यान से सुनिए, दलित अथवा गरीब के बच्चे का सिर्फ स्कूल जाना ज़रूरी नहीं वहाँ उसका पढ़ना भी ज़रूरी है । सिर्फ भोजन और कुछ पैसों के लालच में आप उन्हें स्कूलों में तो भर सकते हैं मगर उनको शिक्षित नहीं बना सकते । इसके लिए आपको ध्यान देना होगा कि सर्व शिक्षा का जो अभियान चलाया गया है वो ठीक से चल रहा है या नहीं । पिछड़े गाँवों में सरकार से मोटी तनख्वाह प्राप्त कर रहे मास्टर साहेब व्हाट्स ऐप से बाहर आ कर बच्चों को पढ़ा रहे।हैं या नहीं । मिड डे मील का जो पैसा इन्हें मिल रहा है उसका पूरा लाभ बच्चों को मिल रहा है या नहीं ।
बच्चे तो बच्चे होते हैं वो पढ़ते नहीं उन्हें पढ़ाना पड़ता है । जिनके माँ बाप थोड़ा पढ़े लिखे हैं वो बच्चों को डांट डपट कर, उनके डूबने वाले भविष्य की झलक दिखा कर पढ़ने पर मजबूर कर देते हैं । मगर वो माता पिता जिनका सारा दिन दो जून की रोटी जुटाने में चला जाता है वो अपने बच्चे का भविष्य किसी ऐसे काम में ही ढूंढते हैं । मगर यहाँ तो सर्व शिक्षा अभियान के लिए करोड़ों का ग्रांट हथियाना है और बच्चा सब नहीं आएगा तो अभियान चल रहा।है यह कैसे दिखेगा । तो बस लालच दो और भीड़ जुटाओ और इस भीड़ का हर्जाना भुगतेंगे बाकी के वो बच्चे जिन्होंने पढ़ने के लिए ना जाने कितने यतन किए हैं ।
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नितिश सर याद रहे यह खिलवाड़ सिर्फ शिक्षा के साथ नहीं बल्कि बिहार और उन बच्चों के भविष्य के साथ हो रहा है जो आने वाले वक्त में प्रदेश के साथ साथ देश का नाम भी रौशन करने वाले हैं । मेरा बिहार से बस अपने नाम के पीछे लगे सरनेम "झा" भर का ही नाता है । ना मैं आपका वोटर हूँ ना ही बिहार का वासी हूँ । मगर मेरे खून में बिहार दौड़ता है इसी कारण अपने सरनेम के पीछे कुमार शर्मा वत्स इत्यादि लगा कर मैं बिहार का ना होने से मुंह नहीं मोड़ पाता । मुझे अंदर से कचोटता है जब जब कोई बिहार को गरियाता है या जब कोई बिहारियों का मज़ाक उड़ाता है । मेरा बिहार अपने अंदर एक महान इतिहास को संभाले बैठा है मगर इस ऐतिहासिक बिहार का सर आप सब की राजनीति ने शर्म से झुका दिया है । कोई हमारा वर्तमान देख कर हमारा सम्मान करता है, भूत के दम पर कब तक हम अपने आपको बड़ा साबित करने में लगे रहेंगे । ये आए दिन के अपहरण, हत्याएं, बलात्कार हमें भी कसीं ना कसीं यकीन करने पर मजबूर करते रहते हैं कि हमारा बिहार नहीं सुधरने वाला । मगर क्या करें बिहारी हैं ना जब तक जीत नहीं जाते तब तक लड़ते रहने की बुरी आदत है ।
बिहार की बस शिक्षा व्यवस्था सही हो जाए, मैं लिखित देता हूँ कि आने वाले सालों में बिहार का नक्शा बदल जाएगा । बिहार में जानवर बहुत होते जा रहे हैं यहाँ इंसानों की ज़रूरत है जो बस शिक्षा से ही उपज सकते हैं । आप बैठे रहें कुर्सियों पर हम खुद संभाल लेंगे बिहार को सब यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह सुधार दें । अपने बिहार के लिए आप इतना तो कर ही सकते हैं ।
धीरज झा
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