उन औरतों और लड़कियों की आज़ादी के लिए हम।सब हमेशा आवाज़ उठाते रहते हैं जो आज भी समाज की संकुचित मानसिक्ता की ग़ुलाम हैं । हम सब चाहते हैं कि ...
उन औरतों और लड़कियों की आज़ादी के लिए हम।सब हमेशा आवाज़ उठाते रहते हैं जो आज भी समाज की संकुचित मानसिक्ता की ग़ुलाम हैं । हम सब चाहते हैं कि उन्हें खुल कर बोलने दिया जाए अपनी पसंद नापसंद के बारे में, उन्हें घूंघट और बुर्के से बाहर आकर खुली हवा में साँस लेने दिया जाए (अगर वो घुट रही हैं तो, अगर नहीं घुट रहीं तो वह उनकी अपनी खुशी है ) वो आगे बढ़ना चाहती हैं तो बढ़ने दिया जाए । मगर मुझे ना जाने क्यों उस तरह की आज़ादी की मांग से घिन सी आती हैं जिसमें अलूल जलूल कुछ भी मांग की जाती है आज़ादी के नाम पर मर्यादा खो कर अटपटे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है ।
माँ बाप द्वारा बाहर आने जाने पर रोका टोका जाना, देर रात बाहर ना जाने की मनाही, आप किससे दोस्ती बढ़ा रहे हैं इस बात पर माँ बाप की सलाह, ये सब उनकी फिक्र है जो लड़की और लड़के के लिए एक समान ही रहती है । मैने हमेशा चर्चा की है कि मेरे पिता जी हम भाईयों को बेमतलब बाहर आवारागर्दी करने नहीं देते थे । रात आठ बजे के बाद बिना किसी बहुत ज़रूरी काम के बाहर जाने पर हमेशा मनाही रही, उन्हें डर लगता था कि कहीं किसी से झगड़ा ना हो जाए, ये किसी गलत संगत में ना पड़ जाए, कहीं इसके दिमाग में इसी उम्र से इश्क का बुखार ना ज़ोर पकड़ने लगे । ऐसे ही सौ तरह के डर से घिरे रहते थे जबकि हम तो लड़के थे हमें भला क्या हो सकता था, पर फिर भी उन्हें डर लगता था ।
जब भी उनसे पूछते कि पापा आपको हमारे स्वभाव का पता है अपने दिए संस्कारों पर भरोसा है फिर भी इतना क्यों डरते हैं तो हर बार वो मुस्कुरा कर एक ही जवाब देते "जब एक पिता बनोगे ना तब खुद ही जवाब मिल जाएगा कि ये डर किस वजह से होता है ।" मगर मुझे अपने पिता बनने का इंतज़ार नहीं करना पड़ा क्योंकि उनके जाते ही मैं समझ गया कि वो जिसे मैं भी कभी कभी रोक टोक समझता था असल में वो कितना ज़रूरी है एक बच्चे के लिए फिर भले ही वो लड़का हो या लड़की ।
अगर माँ बाप का टोकना बेकार बेवजह बेफज़ूल है तो फिर माँ बाप की ज़रूरत तो हमें पाल पोस कर थोड़ा बड़ा कर देने के बाद खत्म हो जानी चाहिए । इस हिसाब से तो जो बदकिस्मत अनाथ हैं सही मायनों में वही खुशकिस्मत हुए ? असल बात है यहाँ सबको विरोध के नाम पर ड्रामा करना पसंद है ऐसा बेहूदा ड्रामा जिसमें योनि लिंग वक्ष जैसे अंगों पर बार बार ज़ोर दिया जाए और किसी लञकी या महिला के मुंह से ये शब्द सुनते ही कुछ मानसिक अपंग उसी तरह जीभ लंबी करते हुए भागे आएं जैसे मांस का टुकड़ा देख कुत्ता भागा आता है ।
आपके पास ताक़त है हिम्मत है जो सभी महिलाओं या लड़कियों में नहीं होती आप आवाज़ उठा सकती हैं उन सब के जायज़ हक़ के लिए जिनमें बोल पाने की हिम्मत नही । अगर आपकी आवाज़ बुलंद है तो उसे किसी काम में लाइए, सुकून मिलेगा ।
धीरज झा
माँ बाप द्वारा बाहर आने जाने पर रोका टोका जाना, देर रात बाहर ना जाने की मनाही, आप किससे दोस्ती बढ़ा रहे हैं इस बात पर माँ बाप की सलाह, ये सब उनकी फिक्र है जो लड़की और लड़के के लिए एक समान ही रहती है । मैने हमेशा चर्चा की है कि मेरे पिता जी हम भाईयों को बेमतलब बाहर आवारागर्दी करने नहीं देते थे । रात आठ बजे के बाद बिना किसी बहुत ज़रूरी काम के बाहर जाने पर हमेशा मनाही रही, उन्हें डर लगता था कि कहीं किसी से झगड़ा ना हो जाए, ये किसी गलत संगत में ना पड़ जाए, कहीं इसके दिमाग में इसी उम्र से इश्क का बुखार ना ज़ोर पकड़ने लगे । ऐसे ही सौ तरह के डर से घिरे रहते थे जबकि हम तो लड़के थे हमें भला क्या हो सकता था, पर फिर भी उन्हें डर लगता था ।
जब भी उनसे पूछते कि पापा आपको हमारे स्वभाव का पता है अपने दिए संस्कारों पर भरोसा है फिर भी इतना क्यों डरते हैं तो हर बार वो मुस्कुरा कर एक ही जवाब देते "जब एक पिता बनोगे ना तब खुद ही जवाब मिल जाएगा कि ये डर किस वजह से होता है ।" मगर मुझे अपने पिता बनने का इंतज़ार नहीं करना पड़ा क्योंकि उनके जाते ही मैं समझ गया कि वो जिसे मैं भी कभी कभी रोक टोक समझता था असल में वो कितना ज़रूरी है एक बच्चे के लिए फिर भले ही वो लड़का हो या लड़की ।
अगर माँ बाप का टोकना बेकार बेवजह बेफज़ूल है तो फिर माँ बाप की ज़रूरत तो हमें पाल पोस कर थोड़ा बड़ा कर देने के बाद खत्म हो जानी चाहिए । इस हिसाब से तो जो बदकिस्मत अनाथ हैं सही मायनों में वही खुशकिस्मत हुए ? असल बात है यहाँ सबको विरोध के नाम पर ड्रामा करना पसंद है ऐसा बेहूदा ड्रामा जिसमें योनि लिंग वक्ष जैसे अंगों पर बार बार ज़ोर दिया जाए और किसी लञकी या महिला के मुंह से ये शब्द सुनते ही कुछ मानसिक अपंग उसी तरह जीभ लंबी करते हुए भागे आएं जैसे मांस का टुकड़ा देख कुत्ता भागा आता है ।
आपके पास ताक़त है हिम्मत है जो सभी महिलाओं या लड़कियों में नहीं होती आप आवाज़ उठा सकती हैं उन सब के जायज़ हक़ के लिए जिनमें बोल पाने की हिम्मत नही । अगर आपकी आवाज़ बुलंद है तो उसे किसी काम में लाइए, सुकून मिलेगा ।
धीरज झा
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