सेकुलर समाजसेवी अखाड़ा बूढ़ी नचनिया के कोठे की तरह वीरान पड़े कमरे में चरमराती चार पाई पर गहन मुद्रा बैठे साॅफ्ट सिंह आज अपने नाम के विपरीत क...
सेकुलर समाजसेवी अखाड़ा
बूढ़ी नचनिया के कोठे की तरह वीरान पड़े कमरे में चरमराती चार पाई पर गहन मुद्रा बैठे साॅफ्ट सिंह आज अपने नाम के विपरीत कुछ ज़्यादा ही हार्ड लग रहे थे । माथे पर बल खाती हुईं लकीरें साफ़ तौर पर ईशारा कर रही थीं की आज कोई कहर बरसने वाला है । अब कहर बरसना भी चाहिए था भला कब तक कोई इंसान अपनी बेईज्ज़ती सहेगा । बूढ़ा है तो मने क्या, कोई गली के मरलके कुत्ते की तरह कभी भी लतिया कर चला जाएगा ?
अरे साॅफ्टी सिंह को तो उनके बेटे माइंडलेस सिंह की ज़रूरत से ज़्यादा चालाकी और बंबई वाली फिरंग भौजी के मंद बुद्धि लड़के नो माईंड की संगत ने हरा दिया वरना किसके पिछवाड़े में दम था कि साॅफ्ट सिंह के सामने एक मिनट टिक पाए ।
एक टेम था जब साॅट सिंह मैदान में उतरते तो किसी पहवान को टिकने ना देते । चाहे उनके खेलने का तरीका कैसा भी हो मगर जीत जीत होती है । अभी तक उत्तर टोला याद करता है उस दंगल को जब साढ़ चार फुट से एक आध फुट ज़्यादा और उस फुर्तीली मैजिकवती को पछाड़ कर उत्तर टोला के सरताज बने थे । उससे पहले भी बहुत से पहलवानों को चित किया था साॅफ्ट सिंह ने और जितनी बार साॅफ्ट सिंह जीते उतनी बार आधा हाथ रहा उनके भाई भोलापाल का । जब साॅफ्ट सिंह हारने लगते भोलापान हुड़दंग मचा कर सबका ध्यान भटका देते और इतने में साॅफ्ट सिंह सामने वाले को पटकनी दे कर चित कर देते । पर्दे के पीछे के नायक हमेशा से भोलापाल ही रहे । दोनों ने मिल कर अपना अखाड़ा भी खोला था जिसका नाम रखा गया समाजसेवा अखाड़ा ।
अब उत्तर टोला के सभी लंठों का अड्डा हो गया था समाजसेवी अखाड़ा । और इसी अखाड़े के नाम पर पूरे टोला भर से रंगदारी असूला जाता था । इस अखाड़े का सुखड़ी पहवान भी अपने आपको दारा सिंह से कम नहीं समझता था । कोई गोलगप्पा वाला बस अखाड़े के लौंडों को एक के बजाए दो सूखी पापड़ी मांगने पर गरिया नहीं सकता था । मुंगफली के ठेले से अब जब मन तब मुंगफली उठा कर खाई जाने लगी । सर ए आम लव लैटर पकड़ाए जाने लगे । मतलब समाजसेवी अखाड़े की धाक बन गई थी ह और ये सब था तो बस साॅफ्ट सिंह और चच्चा भोलापाल की वजह से ।
मगर साॅफ्ट सिंह ने एक गलती ये कर दी की जब उसे लगा कि उससे अब और डंड नहीं पेलाएगा तब उसने अखाड़ा की बागडोर भोलापाल की बजाए माईंडलेस बबुआ के हाथों में दे दी । भोलापाल थोड़ा फनफनाए मगर कुछ खास कर नहीं पाए । भाई का हुक्म मान कर चुप रह गए । मगर ये हीनता और नकारे जाने की मार से जो ज़हर भर गया था वो दिन पर दिन बढ़ता रहा ।
साॅफ्ट सिंह के गलत फैसले का नतीजा जल्दी ही सामने आगया । माईंडलेस बाबू के अखाड़ा में बंबई वाली मेम भऊजी के कुपुत्र नो माईंड का आना जाना बढ़ गया और नो माईंड का तो अपनी मंदबुद्धि से अपना ही घर उजाड़ने के कारण नाम हमेशा से चर्चा में था । जो अपना घर नहीं छोड़ा वो भला माईंडलेस बाबू को क्या छोड़ता । ले दे के इस बार के दंगल में बाहर से आई जुमलेंद्र बाबुबली के आखाड़े के पहलवानों ने माईंड लेस के अखाड़े के सारे पहवानों को धूल चटा दी । और फिर जुमलेंद्र बाहुबली के अखाड़े ने उत्तर टोला में अपनी धाक जमा ली । चुंकी जुमलेंद्र बाहुबली जिला लेवल के पहलवान थे इसी कारण वो उत्तर टोला के नया अखाड़ा का अखाड़ाधीश केसलेस बाबा को चुने ।
केसलेस बाबा के बढ़ते धाक ने साॅफ्टसिंह का खटिया खड़ा कर दिया था । थू कर चाटना साॅफ्ट सिंह की आदत नहीं थी इसलिए अब वापिस समाजसेवी अखाड़े में जा नहीं सकते थे । मन ही मन बेटवा को गरिया कर फिर से अपने भाई को याद किया और कहा
"भोलापाल, बहुत हो गया । सारा उम्र बनाबटी ही सही मगर अपना धाक में जिए अब बुढ़ापा में नहीं जाएंगे ई लौंडा सबका गोड़ छूने । तुम नया अखाड़ा बनवाओ और नया पहवान भर्ती करो । अगला दंगल ससुरा हम ही जीतेंगे ।"
भईया जी का बात सुनते भोलापाल का तन मन ए के हंगल से सोनू सूद हो गया मगर एक चिंता की लकीर उनके माथे पर पसीने की बूंदों के रूप में खिंच गई । थोड़ा घबराते सकुचाते हुए बोले "ऊ सब तो बहुत ठीक है भईया जी परंतु अखाड़ा खोलने के लिए चंदा कहाँ से आएगा ?"
"तुम साला हमको भिखारी समझे हो क्या भोलापाल ? अरे एतना दंगल जीते हैं । सबमें हमको सोना का गदा मिला है सब बेच दो । तब भी ना हो तो हमार समधी भालू सिंह को मोतिहारी फोन लगाओ । हम भी उसको महासांठगांठ के समय चुपेचापे बहुत मदद किए अब उसको भी करना होगा ।" भोलापाल भईया जी का पुराना जोश देख के उम्मीद से भर गया । फुसफुसिया रहे सीने को फुलाते हुए अपनी झुकी हुई मुंछों को ताव देते हुए भोलापाल चव्वनिया मुस्कुन बिखेरते हुए मन ही मन सोचने लगे "चलो ससुर कुछ भी हो मगर अब पेंसन पर बाकी का जिंनगी नहीं काटना होगा ।"
मन में फूटा लड्डू समेटते हुए भोलापाल ने भईया जी से एक सवाल और पूछा "भईया जी ठीक है आज से ही नया अखाड़ा का काम सुरू होगा । मगर एक बात बताईए अखाड़ा का नाम क्या होगा ।"
भोलापाल के सवाल पर साॅफ्ट सिंह मुस्कुराते हुए बोले "सेकुलर समाजसेवी अखाड़ा" इसी के साथ भोलापाल जैसे फिर से जवान हो गए और चव्वनिया को अठ्ठनियाँ में बदलते हुए बत्तीसी दिखा कर मुत्तकुराने लगे साॅरी मुस्कुराने लगे ।
धीरज झा
बूढ़ी नचनिया के कोठे की तरह वीरान पड़े कमरे में चरमराती चार पाई पर गहन मुद्रा बैठे साॅफ्ट सिंह आज अपने नाम के विपरीत कुछ ज़्यादा ही हार्ड लग रहे थे । माथे पर बल खाती हुईं लकीरें साफ़ तौर पर ईशारा कर रही थीं की आज कोई कहर बरसने वाला है । अब कहर बरसना भी चाहिए था भला कब तक कोई इंसान अपनी बेईज्ज़ती सहेगा । बूढ़ा है तो मने क्या, कोई गली के मरलके कुत्ते की तरह कभी भी लतिया कर चला जाएगा ?
अरे साॅफ्टी सिंह को तो उनके बेटे माइंडलेस सिंह की ज़रूरत से ज़्यादा चालाकी और बंबई वाली फिरंग भौजी के मंद बुद्धि लड़के नो माईंड की संगत ने हरा दिया वरना किसके पिछवाड़े में दम था कि साॅफ्ट सिंह के सामने एक मिनट टिक पाए ।
एक टेम था जब साॅट सिंह मैदान में उतरते तो किसी पहवान को टिकने ना देते । चाहे उनके खेलने का तरीका कैसा भी हो मगर जीत जीत होती है । अभी तक उत्तर टोला याद करता है उस दंगल को जब साढ़ चार फुट से एक आध फुट ज़्यादा और उस फुर्तीली मैजिकवती को पछाड़ कर उत्तर टोला के सरताज बने थे । उससे पहले भी बहुत से पहलवानों को चित किया था साॅफ्ट सिंह ने और जितनी बार साॅफ्ट सिंह जीते उतनी बार आधा हाथ रहा उनके भाई भोलापाल का । जब साॅफ्ट सिंह हारने लगते भोलापान हुड़दंग मचा कर सबका ध्यान भटका देते और इतने में साॅफ्ट सिंह सामने वाले को पटकनी दे कर चित कर देते । पर्दे के पीछे के नायक हमेशा से भोलापाल ही रहे । दोनों ने मिल कर अपना अखाड़ा भी खोला था जिसका नाम रखा गया समाजसेवा अखाड़ा ।
अब उत्तर टोला के सभी लंठों का अड्डा हो गया था समाजसेवी अखाड़ा । और इसी अखाड़े के नाम पर पूरे टोला भर से रंगदारी असूला जाता था । इस अखाड़े का सुखड़ी पहवान भी अपने आपको दारा सिंह से कम नहीं समझता था । कोई गोलगप्पा वाला बस अखाड़े के लौंडों को एक के बजाए दो सूखी पापड़ी मांगने पर गरिया नहीं सकता था । मुंगफली के ठेले से अब जब मन तब मुंगफली उठा कर खाई जाने लगी । सर ए आम लव लैटर पकड़ाए जाने लगे । मतलब समाजसेवी अखाड़े की धाक बन गई थी ह और ये सब था तो बस साॅफ्ट सिंह और चच्चा भोलापाल की वजह से ।
मगर साॅफ्ट सिंह ने एक गलती ये कर दी की जब उसे लगा कि उससे अब और डंड नहीं पेलाएगा तब उसने अखाड़ा की बागडोर भोलापाल की बजाए माईंडलेस बबुआ के हाथों में दे दी । भोलापाल थोड़ा फनफनाए मगर कुछ खास कर नहीं पाए । भाई का हुक्म मान कर चुप रह गए । मगर ये हीनता और नकारे जाने की मार से जो ज़हर भर गया था वो दिन पर दिन बढ़ता रहा ।
साॅफ्ट सिंह के गलत फैसले का नतीजा जल्दी ही सामने आगया । माईंडलेस बाबू के अखाड़ा में बंबई वाली मेम भऊजी के कुपुत्र नो माईंड का आना जाना बढ़ गया और नो माईंड का तो अपनी मंदबुद्धि से अपना ही घर उजाड़ने के कारण नाम हमेशा से चर्चा में था । जो अपना घर नहीं छोड़ा वो भला माईंडलेस बाबू को क्या छोड़ता । ले दे के इस बार के दंगल में बाहर से आई जुमलेंद्र बाबुबली के आखाड़े के पहलवानों ने माईंड लेस के अखाड़े के सारे पहवानों को धूल चटा दी । और फिर जुमलेंद्र बाहुबली के अखाड़े ने उत्तर टोला में अपनी धाक जमा ली । चुंकी जुमलेंद्र बाहुबली जिला लेवल के पहलवान थे इसी कारण वो उत्तर टोला के नया अखाड़ा का अखाड़ाधीश केसलेस बाबा को चुने ।
केसलेस बाबा के बढ़ते धाक ने साॅफ्टसिंह का खटिया खड़ा कर दिया था । थू कर चाटना साॅफ्ट सिंह की आदत नहीं थी इसलिए अब वापिस समाजसेवी अखाड़े में जा नहीं सकते थे । मन ही मन बेटवा को गरिया कर फिर से अपने भाई को याद किया और कहा
"भोलापाल, बहुत हो गया । सारा उम्र बनाबटी ही सही मगर अपना धाक में जिए अब बुढ़ापा में नहीं जाएंगे ई लौंडा सबका गोड़ छूने । तुम नया अखाड़ा बनवाओ और नया पहवान भर्ती करो । अगला दंगल ससुरा हम ही जीतेंगे ।"
भईया जी का बात सुनते भोलापाल का तन मन ए के हंगल से सोनू सूद हो गया मगर एक चिंता की लकीर उनके माथे पर पसीने की बूंदों के रूप में खिंच गई । थोड़ा घबराते सकुचाते हुए बोले "ऊ सब तो बहुत ठीक है भईया जी परंतु अखाड़ा खोलने के लिए चंदा कहाँ से आएगा ?"
"तुम साला हमको भिखारी समझे हो क्या भोलापाल ? अरे एतना दंगल जीते हैं । सबमें हमको सोना का गदा मिला है सब बेच दो । तब भी ना हो तो हमार समधी भालू सिंह को मोतिहारी फोन लगाओ । हम भी उसको महासांठगांठ के समय चुपेचापे बहुत मदद किए अब उसको भी करना होगा ।" भोलापाल भईया जी का पुराना जोश देख के उम्मीद से भर गया । फुसफुसिया रहे सीने को फुलाते हुए अपनी झुकी हुई मुंछों को ताव देते हुए भोलापाल चव्वनिया मुस्कुन बिखेरते हुए मन ही मन सोचने लगे "चलो ससुर कुछ भी हो मगर अब पेंसन पर बाकी का जिंनगी नहीं काटना होगा ।"
मन में फूटा लड्डू समेटते हुए भोलापाल ने भईया जी से एक सवाल और पूछा "भईया जी ठीक है आज से ही नया अखाड़ा का काम सुरू होगा । मगर एक बात बताईए अखाड़ा का नाम क्या होगा ।"
भोलापाल के सवाल पर साॅफ्ट सिंह मुस्कुराते हुए बोले "सेकुलर समाजसेवी अखाड़ा" इसी के साथ भोलापाल जैसे फिर से जवान हो गए और चव्वनिया को अठ्ठनियाँ में बदलते हुए बत्तीसी दिखा कर मुत्तकुराने लगे साॅरी मुस्कुराने लगे ।
धीरज झा
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