अभी कुछ दिनों पहले मुंबई जाना हुआ था तो वहीं चेतन भगत सर से मुलाकात का मौका मिला । थोड़ी बहुत इधर उधर की बात चीत के बाद मैने उनसे पूछा कि &q...
अभी कुछ दिनों पहले मुंबई जाना हुआ था तो वहीं चेतन भगत सर से मुलाकात का मौका मिला । थोड़ी बहुत इधर उधर की बात चीत के बाद मैने उनसे पूछा कि "सर आप किताबें इंगलिश में लिखते हैं तो फिर फिल्म हिंदी में क्यों होती ?"
चेतन सर से मुँह बिचकाते हुए जवाब दिया "यार धीरज बात ऐसी है कि किताब इंग्लिश में लिखो तो शो बाज़ी के कारण आधी बिक जाती है मगर फिल्म इंग्लिश में कितने लोग जाएंगे देखने । इसीलिए फिल्म हिंदी में बनाते हैं ।"
"आप कैसे कह सकते हैं कि शो बाज़ी होती है ?"
"अरे भई शो बाज़ी ना होती तो उसे किताब का हिंदी अनुवाद इतना कैसे बिक पाता । आधे से ज़्यादा लोग पढ़ते हिंदी में हैं और शो करते हैं हमने इंग्लिश में पढ़ी है । अब आपने मेरी कोई भी किताब पढ़ी उसकी कहानी आपको पता लग गई फिर कोई ये थोड़े पूछने जाएगा कि किताब इंग्लिश में पढ़ी या हिंदी में ।"
"मतलब किताब से ज़्यादा भाषा और शो बाज़ी मायने रखती है ?"
"एकदम ! यही किताबें मैने हिंदी में लिखी होतीं तो मुझे भी फेसबुक के सिवा और कोई घास ना डालता ।"
इसी बात पर हम दोनों हँस पड़े । उनकी हँसी ना जाने कैसी थी मगर मेरी हँसी में तो हिंदी के लिए दर्द था । दर्द बढ़ता रहा साथ साथ हँसी भी बढ़ती रही और बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गई कि मैं बेड से नीचे गिर पड़ा औरेरी नींद खुल गई । आँख खुली तो जल्दी से उठ कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा । खैर हुआ कि किसी ने देखा नहीं वरना सब मज़ाक उड़ाते ।
धीरज झा
चेतन सर से मुँह बिचकाते हुए जवाब दिया "यार धीरज बात ऐसी है कि किताब इंग्लिश में लिखो तो शो बाज़ी के कारण आधी बिक जाती है मगर फिल्म इंग्लिश में कितने लोग जाएंगे देखने । इसीलिए फिल्म हिंदी में बनाते हैं ।"
"आप कैसे कह सकते हैं कि शो बाज़ी होती है ?"
"अरे भई शो बाज़ी ना होती तो उसे किताब का हिंदी अनुवाद इतना कैसे बिक पाता । आधे से ज़्यादा लोग पढ़ते हिंदी में हैं और शो करते हैं हमने इंग्लिश में पढ़ी है । अब आपने मेरी कोई भी किताब पढ़ी उसकी कहानी आपको पता लग गई फिर कोई ये थोड़े पूछने जाएगा कि किताब इंग्लिश में पढ़ी या हिंदी में ।"
"मतलब किताब से ज़्यादा भाषा और शो बाज़ी मायने रखती है ?"
"एकदम ! यही किताबें मैने हिंदी में लिखी होतीं तो मुझे भी फेसबुक के सिवा और कोई घास ना डालता ।"
इसी बात पर हम दोनों हँस पड़े । उनकी हँसी ना जाने कैसी थी मगर मेरी हँसी में तो हिंदी के लिए दर्द था । दर्द बढ़ता रहा साथ साथ हँसी भी बढ़ती रही और बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गई कि मैं बेड से नीचे गिर पड़ा औरेरी नींद खुल गई । आँख खुली तो जल्दी से उठ कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा । खैर हुआ कि किसी ने देखा नहीं वरना सब मज़ाक उड़ाते ।
धीरज झा
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