#प्रेम_की_उड़ान "तुमने क्या समझा कि मैं अपनी बेटी से प्यार करता हूँ तो उसकी हर उल्टी सीधी ज़िद्द को पूरा कर दूंगा । तुम्हारे अपने रहने ...
#प्रेम_की_उड़ान
"तुमने क्या समझा कि मैं अपनी बेटी से प्यार करता हूँ तो उसकी हर उल्टी सीधी ज़िद्द को पूरा कर दूंगा । तुम्हारे अपने रहने खाने का कोई ठिकाना नहीं तो मेरी फूल सी बच्ची को क्या खाक संभालोगे । वो नादान है और तुमने उसकी नादानी का खूब फायदा उठाया । अच्छे से जानता हूँ तुम जैसे लड़कों को मैं । अब सीधे से बताओ कितने पैसे लोगे मेरी बेटी से दूर जाने के ।" मेहता साहब ने अपना सारा गुस्सा एक ही बार में कबीर के सामने उगल दिया ।
असल में बेटी के पिता को कभी यकीन ही नहीं होता कि उनसे ज़्यादा कोई उनकी बेटी को प्यार कर सकता है । पिता के मन मस्तिष्क में युगों से यह बात घर कर गई है कि उनके द्वारा लिया गया फैसला ही उनकी संतानों के लिए सही होगा । कई बार तो वो सही होते हैं मगर कई बार उनकी यही सोच उनके बच्चों की ज़िंदगी की लय बिगाड़ देती है ।
हंसमुख चेहरे वाले कबीर ने मेहता साहब की बात सुन कर अपने चेहरे की मुस्कुराहट को और गहरा कर लिया । फिर थोड़ा गंभीर हो कर हाथ घुमा कर मन ही मन कुछ हिसाब लगाते हुए बोला "अच्छा ऐसा करिए सर तीस बत्तीस लाख दे दिजिए ।" चाय की ट्रे ले कर आ रही रश्मि के कदम कबीर की यह बात सुनते ही वहीं ठिठक गये । कबीर के मुंह से ऐसा सुनने को मिलेगा इसकी अपेक्षा उसने सपने में भी नहीं की थी । उसने एक पल के लिए खुद को ये सोच कर तैयार कि वो सामने जा कर कबीर को दो थप्पड़ मारे और उसके घर और ज़िंदगी से हमेशा के लिए निकल जाने को कहे । मगर कबीर के प्रति उसका विश्वास इतना भी कमज़ोर नहीं था इसी कारण उसके कदम वहीं जम गये ।
"हाहाहाहाहाहा यू चीटर, मैं जानता था तुम्हारी इतनी ही औकात है । तुम करोड़ भी मांगते तो मैं दे देता । अपना अकाऊट नं लिखो और दफा हो जाओ यहाँ से । कल तक तुम्हारे अकाऊंट में पैसे ट्रांसफर हो जाएंगे ।" मेहता साहब ने अपनी दूरदर्शी सोच की विजय होती देख गर्व से फूल गये ।
"जी सर जा रहा हूँ और अकाऊंट नंबर आप रश्मि से ले लीजिएगा और उसके अकाऊंट में वो पैसे डाल दीजिएगा । वैसे तो इसकी नौबत नहीं आएगी क्योंकि मुझे अपनी काबलीयत पर पूरा भरोसा है मगर फिर भी भगवान ना करे उसे भविष्य में कोई भी दिक्कत हुई तो वो इन पैसों को अपने लिये इस्तेमाल कर लेगी । और हाँ मैं परसो रश्मि को लेने आऊंगा । वो मना कर दे तो दोबारा आपके घर की तरफ मैं पैर भी नही बढ़ाऊंगा लेकिन अगर उसका फैसला बरकरार रहा तो परसो ही हम शादी करेंगे । चलता हूँ सर ।" इतना कहते ही कबीर सोफे से उठ कर दरवाज़े की ओर मुड़ा तो सामने से रश्मि ने गीली आँखों से दो आँसू गिरा कर कबर से मन ही मन क्षमा मांगी और उसके गले लग गई ।
मेहता जी समझ गये कि इन दोनों के प्रेम की उड़ान अब हर लोभ लालच के आसमान से ऊपर की है । आँसुओं की नमी में सनी उनकी मुस्कुराहट बता रही थी कि आज एक बाप ने अपनी बेटी के लिए खुद से ज़्यादा प्यार करने वाला ढूंढ लिया है ।
धीरज झा
"तुमने क्या समझा कि मैं अपनी बेटी से प्यार करता हूँ तो उसकी हर उल्टी सीधी ज़िद्द को पूरा कर दूंगा । तुम्हारे अपने रहने खाने का कोई ठिकाना नहीं तो मेरी फूल सी बच्ची को क्या खाक संभालोगे । वो नादान है और तुमने उसकी नादानी का खूब फायदा उठाया । अच्छे से जानता हूँ तुम जैसे लड़कों को मैं । अब सीधे से बताओ कितने पैसे लोगे मेरी बेटी से दूर जाने के ।" मेहता साहब ने अपना सारा गुस्सा एक ही बार में कबीर के सामने उगल दिया ।
असल में बेटी के पिता को कभी यकीन ही नहीं होता कि उनसे ज़्यादा कोई उनकी बेटी को प्यार कर सकता है । पिता के मन मस्तिष्क में युगों से यह बात घर कर गई है कि उनके द्वारा लिया गया फैसला ही उनकी संतानों के लिए सही होगा । कई बार तो वो सही होते हैं मगर कई बार उनकी यही सोच उनके बच्चों की ज़िंदगी की लय बिगाड़ देती है ।
हंसमुख चेहरे वाले कबीर ने मेहता साहब की बात सुन कर अपने चेहरे की मुस्कुराहट को और गहरा कर लिया । फिर थोड़ा गंभीर हो कर हाथ घुमा कर मन ही मन कुछ हिसाब लगाते हुए बोला "अच्छा ऐसा करिए सर तीस बत्तीस लाख दे दिजिए ।" चाय की ट्रे ले कर आ रही रश्मि के कदम कबीर की यह बात सुनते ही वहीं ठिठक गये । कबीर के मुंह से ऐसा सुनने को मिलेगा इसकी अपेक्षा उसने सपने में भी नहीं की थी । उसने एक पल के लिए खुद को ये सोच कर तैयार कि वो सामने जा कर कबीर को दो थप्पड़ मारे और उसके घर और ज़िंदगी से हमेशा के लिए निकल जाने को कहे । मगर कबीर के प्रति उसका विश्वास इतना भी कमज़ोर नहीं था इसी कारण उसके कदम वहीं जम गये ।
"हाहाहाहाहाहा यू चीटर, मैं जानता था तुम्हारी इतनी ही औकात है । तुम करोड़ भी मांगते तो मैं दे देता । अपना अकाऊट नं लिखो और दफा हो जाओ यहाँ से । कल तक तुम्हारे अकाऊंट में पैसे ट्रांसफर हो जाएंगे ।" मेहता साहब ने अपनी दूरदर्शी सोच की विजय होती देख गर्व से फूल गये ।
"जी सर जा रहा हूँ और अकाऊंट नंबर आप रश्मि से ले लीजिएगा और उसके अकाऊंट में वो पैसे डाल दीजिएगा । वैसे तो इसकी नौबत नहीं आएगी क्योंकि मुझे अपनी काबलीयत पर पूरा भरोसा है मगर फिर भी भगवान ना करे उसे भविष्य में कोई भी दिक्कत हुई तो वो इन पैसों को अपने लिये इस्तेमाल कर लेगी । और हाँ मैं परसो रश्मि को लेने आऊंगा । वो मना कर दे तो दोबारा आपके घर की तरफ मैं पैर भी नही बढ़ाऊंगा लेकिन अगर उसका फैसला बरकरार रहा तो परसो ही हम शादी करेंगे । चलता हूँ सर ।" इतना कहते ही कबीर सोफे से उठ कर दरवाज़े की ओर मुड़ा तो सामने से रश्मि ने गीली आँखों से दो आँसू गिरा कर कबर से मन ही मन क्षमा मांगी और उसके गले लग गई ।
मेहता जी समझ गये कि इन दोनों के प्रेम की उड़ान अब हर लोभ लालच के आसमान से ऊपर की है । आँसुओं की नमी में सनी उनकी मुस्कुराहट बता रही थी कि आज एक बाप ने अपनी बेटी के लिए खुद से ज़्यादा प्यार करने वाला ढूंढ लिया है ।
धीरज झा
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