हे स्त्री विशेष ***************************************** हे स्त्री विशेष जिन्हें तुम ढूंढते हुए उधेड़ रही हो बखिया समूचे पुरुष समाज की वह...
हे स्त्री विशेष
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हे स्त्री विशेष
जिन्हें तुम ढूंढते हुए
उधेड़ रही हो बखिया
समूचे पुरुष समाज की
वह ना पुरुष हैं ना ही मानव
वे हो भी नहीं सकते पशु
पशु करता है शिकार केवल
शांत करने के लिए
अपने उदर की अग्नि
जिनको तुम ढूंढ रही हो
वो वासना से लिप्त कीटों का
एक समूह है
जिनका कोई सरोकार नहीं
मानवता या पशुता से
उन्हें केवल आता है
अपनी वासना को शांत करना
फिर जानवर हो या मासूम बच्ची
उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता
हे स्त्री विशेष
क्या ऐसे नीच कुकर्मी के लिए
सही रहेगा समूचे पुरुष समाज
को एक ही तराजू में तोलना
तुलना करना उनके लिंग की
परम आराध्य महादेव से
क्या तुमें ज्ञात नहीं शिवलिंग
है क्या ?
क्या तुम अपने आक्रोश की
आग में जला चुकी हो अपनी
सोचने की क्षमता ?
मैं गौरवान्वित होता हूँ
ये स्वीकार करने में
कि मैं रहा हूँ
गर्भ में नौ महीने
मैं जन्मा हूँ योनि के मार्ग से
मगर क्या तुम ये भूल गई कि
तुम्हारे जीवन की बूंद
उत्पन्न हुई है लिंग से ही
क्या तुम भूल गई
तुम्हारा सहोदरा, तुम्हारे पिता
तुम्हारा प्रेमी या पति
सब लिंगधारी पुरुष ही हैं ?
तुम्हारी कुंठा ने क्यों उस पुरुष को
इतने नीचले दर्जे का बना दिया
जो तुम्हारा पालनहार रहा
जिसने तुम्हारे सुख सुविधाओं
के लिए अपनी छोटी से बड़ी
हर खुशी के साथ कर लिया समझौता
क्या तुम एक वहशी से करोगी तुलना
उस पिता उस पति उस प्रेमी या
अपने ही बेटे की ?
जिनका प्रेम सदैव समर्पित रहा
तुम्हारे लिए ।
हे स्त्री विशेष
मत पीसो घून जैसे वहशियों को
गेंहूँ जैसे पुरुषों के साथ
गेंहूँ कम है
घून ज़्यादा हैं
कहीं गेंहूँ घून
के गंदे लहू के कारण
लाल हो गया तो
आँटे को तरसोगी
वैसे भी गेंहूँ की तरह पुरुष
पहले ही बहुत बुरी तरह
पिस रहा है
हे स्त्री विशेष
इसे पुरुषों का
विनम्र निवेदन ही समझो
कि मत करो संबोधित
किसी घृणित वहशी को
पुरुष कह कर
धीरज झा
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हे स्त्री विशेष
जिन्हें तुम ढूंढते हुए
उधेड़ रही हो बखिया
समूचे पुरुष समाज की
वह ना पुरुष हैं ना ही मानव
वे हो भी नहीं सकते पशु
पशु करता है शिकार केवल
शांत करने के लिए
अपने उदर की अग्नि
जिनको तुम ढूंढ रही हो
वो वासना से लिप्त कीटों का
एक समूह है
जिनका कोई सरोकार नहीं
मानवता या पशुता से
उन्हें केवल आता है
अपनी वासना को शांत करना
फिर जानवर हो या मासूम बच्ची
उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता
हे स्त्री विशेष
क्या ऐसे नीच कुकर्मी के लिए
सही रहेगा समूचे पुरुष समाज
को एक ही तराजू में तोलना
तुलना करना उनके लिंग की
परम आराध्य महादेव से
क्या तुमें ज्ञात नहीं शिवलिंग
है क्या ?
क्या तुम अपने आक्रोश की
आग में जला चुकी हो अपनी
सोचने की क्षमता ?
मैं गौरवान्वित होता हूँ
ये स्वीकार करने में
कि मैं रहा हूँ
गर्भ में नौ महीने
मैं जन्मा हूँ योनि के मार्ग से
मगर क्या तुम ये भूल गई कि
तुम्हारे जीवन की बूंद
उत्पन्न हुई है लिंग से ही
क्या तुम भूल गई
तुम्हारा सहोदरा, तुम्हारे पिता
तुम्हारा प्रेमी या पति
सब लिंगधारी पुरुष ही हैं ?
तुम्हारी कुंठा ने क्यों उस पुरुष को
इतने नीचले दर्जे का बना दिया
जो तुम्हारा पालनहार रहा
जिसने तुम्हारे सुख सुविधाओं
के लिए अपनी छोटी से बड़ी
हर खुशी के साथ कर लिया समझौता
क्या तुम एक वहशी से करोगी तुलना
उस पिता उस पति उस प्रेमी या
अपने ही बेटे की ?
जिनका प्रेम सदैव समर्पित रहा
तुम्हारे लिए ।
हे स्त्री विशेष
मत पीसो घून जैसे वहशियों को
गेंहूँ जैसे पुरुषों के साथ
गेंहूँ कम है
घून ज़्यादा हैं
कहीं गेंहूँ घून
के गंदे लहू के कारण
लाल हो गया तो
आँटे को तरसोगी
वैसे भी गेंहूँ की तरह पुरुष
पहले ही बहुत बुरी तरह
पिस रहा है
हे स्त्री विशेष
इसे पुरुषों का
विनम्र निवेदन ही समझो
कि मत करो संबोधित
किसी घृणित वहशी को
पुरुष कह कर
धीरज झा
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