क्या आज से पहले आपको आडवाणी याद नहीं थे ? सुना है भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए महामहीम रामनाथ कोविंद जी का नाम सामने रखा है । चलिए कुछ सोच...
क्या आज से पहले आपको आडवाणी याद नहीं थे ?
सुना है भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए महामहीम रामनाथ कोविंद जी का नाम सामने रखा है । चलिए कुछ सोच समझ कर ही रखा होगा । बाकि ये भी सुनने में आ रहा है कि श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को राष्ट्रपति उम्मीदवार ना घोषित करने पर भाजपा पार्टी और प्रधानमंत्री जी की घोर निंदा की जा रही है । निंदा करने वालों में वह भी शामिल हैं जो अडवाणी जी का नाम सुनते ही नीम की पत्तियाँ चबाए हुए व्यक्ति की तरह मुंह सिकोड़ कर आँखें बाहर कर लिया करते थे । बाकि भक्त भी दो गुटों में बंटे हुए नज़र आ रहे हैं ।
चलिए मान लिया अडवाणी जी बहुत ही वरिष्ठ और योग्य उम्मीदवार थे और मानना क्या वरिष्ठ अनुभवी और योग्य तो वह हमेशा से रहे हैं । भारतीय जनता पार्टी के कृष्ण बन कर उन्हों ने समय समय पर अर्जुनों का मार्ग दर्शन किया है । हाँ कृष्ण की तरह सत्ता लोभ से परे ना रह सके मगर ये भी सच है कि उन्होंने सत्ता के लोभ में पार्टी की लुटिया डुबोने का लांछन भी अपने सर नहीं मढ़वाया कभी । राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ हो या जनसंघ या फिर भारतीय जनता पार्टी हर मोर्चे पर लाला जी सबसे आगे खड़े रहे हैं । माननीय अटल बिहारी जी हों या नरेंद्र मोदी जी सबके लिए सार्थी कृष्ण रहे हैं लाला जी ।
लाला जी इतने योग्य हैं कि उनकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी छिन जाने से एक बड़ा वर्ग बहुत दुःखी है । मगर एक बात समझ नहीं आई कि यह 90 साल का बुजुर्ग क्या इसी साल योग्य हुआ है ? वो भी तब जब राष्ट्रपति चुनाव की बारी आई ? क्या इससे पहले आडवाणी जी के पास योग्यता की कमी थी या तब तक वह वरिष्ठ नहीं हुए थे ? दो सीटों से उठा कर भाजपा को देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बनाने में उनका इतना बड़ा योगदान आज से पहले किसी को याद नहीं था ?
जब हर हर मोदी घर घर मोदी का नारा लिये हर कोई गाँव और शहर की गलियाँ एक किए हुआ था तब किसी को लाला जी के योगदानों और अनुभवता का ख़याल नहीं आया ? तब किसी ने नहीं सोचा कि हम "अबकी लिखेगा नयी कहानी, लालकृष्ण आडवाणी" जैसा कोई नारा लगायें ? क्यों, क्या आपको संदेह था कि वह चुनाव ना जीत पायेंगे ? क्या आपको तब उनके अनुभव त्याग और योग्यता पर संदेह था ?
सुना है कि अबकी बारी अटल बिहारी का नारा लगा कर अडवाणी जी खुद अटल जी के रास्ते से हट गये थे । तो क्या इस जनता का ये दायित्व नहीं बनता था कि उनके बलिदान के बदल 2014 में वह आडवाणी जी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग करते ? मगर यहाँ तो उन्हें कोई पद तक ना दिया गया । 6 रथ यात्राएं निकाल कर भारतीय राजनीति में यात्राओं का नया इतिहास लिखने वाले इंसान की राजनीतिक यात्रा को उनके अपनों द्वारा ही 'मार्ग दर्शक' नाम का झुनझुना दे कर रोक दिया जाता है और आपको रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आपको युगप्रवर्तक श्री नरेंद्र दास मोदी मिल गये थे तो फिर आज उसी नरेंद्र दास मोदी के फैसले पर ये विलाप क्यों ?
एक बात का हमेशा ध्यान रखिये आप किसी भी पार्टी का सिर्फ इसलिये समर्थन करते हैं क्योंकि वह भारतीय यानी हमारे देश की राजनीति से जुड़ी है क्योंकि हम चाहते हैं कि जिस पार्टी को हम चुने वो देश के हित में काम करे, मतलब कि हमारे लिये सबसे पहले देश है और राष्ट्रपति देश के प्रथम नागरिक होते हैं । क्या आपको यह ज़रा भी सही लगता है राष्ट्रपति पद के लिये किसी को सिर्फ इसलिए सबसे योग्य मानें क्योंकि वह किसी पार्टी विशेष के वरिष्ठ नेता हैं ? क्योंकि पहले उन्हें कोई पद नहीं दिया गया इसीलिए उनकी मृत्यु से पहले उन्हें किसी बड़े पद पर बिठाया जाये ? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो क्षमा करें आप देशहित में नहीं सोच रहे ।
यदी आप आडवाणी जी की और विशेषताओं को सामने रख कर यह माँग करें तो कुछ हद तक जायज भी होगा मगर सिर्फ इसलिए कि उनका पार्टी में बड़ा योगदान रहा है उन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर दिया जाये बिल्कुल सही नहीं । सरकार को जवाब देना पड़ता है वह कभी भी अपनी तरफ से ऐसा उम्मीदवार नहीं चुनना चाहेगी जिसकी छवि पर किसी भी पक्ष का कोई सवाल हो ।
बाकि श्री लालकृष्ण आडवाणी जी वरिष्ठ हैं, अनुभवी हैं, हर उम्र दराज इंसान की तरह अच्छा बुरा बहुत कुछ देखा है इसलिये उनका सम्मान तो करना ही चाहिए ।
धीरज झा
सुना है भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए महामहीम रामनाथ कोविंद जी का नाम सामने रखा है । चलिए कुछ सोच समझ कर ही रखा होगा । बाकि ये भी सुनने में आ रहा है कि श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को राष्ट्रपति उम्मीदवार ना घोषित करने पर भाजपा पार्टी और प्रधानमंत्री जी की घोर निंदा की जा रही है । निंदा करने वालों में वह भी शामिल हैं जो अडवाणी जी का नाम सुनते ही नीम की पत्तियाँ चबाए हुए व्यक्ति की तरह मुंह सिकोड़ कर आँखें बाहर कर लिया करते थे । बाकि भक्त भी दो गुटों में बंटे हुए नज़र आ रहे हैं ।
चलिए मान लिया अडवाणी जी बहुत ही वरिष्ठ और योग्य उम्मीदवार थे और मानना क्या वरिष्ठ अनुभवी और योग्य तो वह हमेशा से रहे हैं । भारतीय जनता पार्टी के कृष्ण बन कर उन्हों ने समय समय पर अर्जुनों का मार्ग दर्शन किया है । हाँ कृष्ण की तरह सत्ता लोभ से परे ना रह सके मगर ये भी सच है कि उन्होंने सत्ता के लोभ में पार्टी की लुटिया डुबोने का लांछन भी अपने सर नहीं मढ़वाया कभी । राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ हो या जनसंघ या फिर भारतीय जनता पार्टी हर मोर्चे पर लाला जी सबसे आगे खड़े रहे हैं । माननीय अटल बिहारी जी हों या नरेंद्र मोदी जी सबके लिए सार्थी कृष्ण रहे हैं लाला जी ।
लाला जी इतने योग्य हैं कि उनकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी छिन जाने से एक बड़ा वर्ग बहुत दुःखी है । मगर एक बात समझ नहीं आई कि यह 90 साल का बुजुर्ग क्या इसी साल योग्य हुआ है ? वो भी तब जब राष्ट्रपति चुनाव की बारी आई ? क्या इससे पहले आडवाणी जी के पास योग्यता की कमी थी या तब तक वह वरिष्ठ नहीं हुए थे ? दो सीटों से उठा कर भाजपा को देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बनाने में उनका इतना बड़ा योगदान आज से पहले किसी को याद नहीं था ?
जब हर हर मोदी घर घर मोदी का नारा लिये हर कोई गाँव और शहर की गलियाँ एक किए हुआ था तब किसी को लाला जी के योगदानों और अनुभवता का ख़याल नहीं आया ? तब किसी ने नहीं सोचा कि हम "अबकी लिखेगा नयी कहानी, लालकृष्ण आडवाणी" जैसा कोई नारा लगायें ? क्यों, क्या आपको संदेह था कि वह चुनाव ना जीत पायेंगे ? क्या आपको तब उनके अनुभव त्याग और योग्यता पर संदेह था ?
सुना है कि अबकी बारी अटल बिहारी का नारा लगा कर अडवाणी जी खुद अटल जी के रास्ते से हट गये थे । तो क्या इस जनता का ये दायित्व नहीं बनता था कि उनके बलिदान के बदल 2014 में वह आडवाणी जी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग करते ? मगर यहाँ तो उन्हें कोई पद तक ना दिया गया । 6 रथ यात्राएं निकाल कर भारतीय राजनीति में यात्राओं का नया इतिहास लिखने वाले इंसान की राजनीतिक यात्रा को उनके अपनों द्वारा ही 'मार्ग दर्शक' नाम का झुनझुना दे कर रोक दिया जाता है और आपको रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आपको युगप्रवर्तक श्री नरेंद्र दास मोदी मिल गये थे तो फिर आज उसी नरेंद्र दास मोदी के फैसले पर ये विलाप क्यों ?
एक बात का हमेशा ध्यान रखिये आप किसी भी पार्टी का सिर्फ इसलिये समर्थन करते हैं क्योंकि वह भारतीय यानी हमारे देश की राजनीति से जुड़ी है क्योंकि हम चाहते हैं कि जिस पार्टी को हम चुने वो देश के हित में काम करे, मतलब कि हमारे लिये सबसे पहले देश है और राष्ट्रपति देश के प्रथम नागरिक होते हैं । क्या आपको यह ज़रा भी सही लगता है राष्ट्रपति पद के लिये किसी को सिर्फ इसलिए सबसे योग्य मानें क्योंकि वह किसी पार्टी विशेष के वरिष्ठ नेता हैं ? क्योंकि पहले उन्हें कोई पद नहीं दिया गया इसीलिए उनकी मृत्यु से पहले उन्हें किसी बड़े पद पर बिठाया जाये ? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो क्षमा करें आप देशहित में नहीं सोच रहे ।
यदी आप आडवाणी जी की और विशेषताओं को सामने रख कर यह माँग करें तो कुछ हद तक जायज भी होगा मगर सिर्फ इसलिए कि उनका पार्टी में बड़ा योगदान रहा है उन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर दिया जाये बिल्कुल सही नहीं । सरकार को जवाब देना पड़ता है वह कभी भी अपनी तरफ से ऐसा उम्मीदवार नहीं चुनना चाहेगी जिसकी छवि पर किसी भी पक्ष का कोई सवाल हो ।
बाकि श्री लालकृष्ण आडवाणी जी वरिष्ठ हैं, अनुभवी हैं, हर उम्र दराज इंसान की तरह अच्छा बुरा बहुत कुछ देखा है इसलिये उनका सम्मान तो करना ही चाहिए ।
धीरज झा
COMMENTS