#सिर्फ_मेरे_अल्फाज़_और_कुछ_नहीं मैने कल ख़ंजर से उसे हाथों को ख़ुरचते देखा मैं लकीरों में नहीं फिर किसी ने बताया होगा यूं तो खेत खलिहानों ...
#सिर्फ_मेरे_अल्फाज़_और_कुछ_नहीं
मैने कल ख़ंजर से उसे हाथों को ख़ुरचते देखा
मैं लकीरों में नहीं फिर किसी ने बताया होगा
यूं तो खेत खलिहानों की हवा सी बेफिक्र है वो
ज़रूर कल के ख़यालों ने उसे सताया होगा
पिता की डांट माँ की हिदायतें ही वजह होंगी
वरना फूल सा चेहरा बेवजह क्यों मुर्झाया होगा
गाँव की सुबह सा चहकता चेहरा
शहर की भीड़ सा बोझिल क्यों है
शायद कोई फिक्रमंद रिशतेदार उसका
नया कोई रिश्ता ले कर आया होगा
आज शर्मों हया को भूल चुंबनों की बारिश कैसी
हो ना हो रात सपनों ने मेरी मौत मंजर इसे दिखाया होगा
धीरज झा
मैने कल ख़ंजर से उसे हाथों को ख़ुरचते देखा
मैं लकीरों में नहीं फिर किसी ने बताया होगा
यूं तो खेत खलिहानों की हवा सी बेफिक्र है वो
ज़रूर कल के ख़यालों ने उसे सताया होगा
पिता की डांट माँ की हिदायतें ही वजह होंगी
वरना फूल सा चेहरा बेवजह क्यों मुर्झाया होगा
गाँव की सुबह सा चहकता चेहरा
शहर की भीड़ सा बोझिल क्यों है
शायद कोई फिक्रमंद रिशतेदार उसका
नया कोई रिश्ता ले कर आया होगा
आज शर्मों हया को भूल चुंबनों की बारिश कैसी
हो ना हो रात सपनों ने मेरी मौत मंजर इसे दिखाया होगा
धीरज झा
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