राॅइटरय_बनाम_लेखक "अरे बधाई हो साहब, चार महीने में ही आपके किताब की लगभग दो लाख काॅपियाँ सेल हो गई हैं ।" पब्लिशर के चेहरे की खु...
राॅइटरय_बनाम_लेखक
"अरे बधाई हो साहब, चार महीने में ही आपके किताब की लगभग दो लाख काॅपियाँ सेल हो गई हैं ।" पब्लिशर के चेहरे की खुश उसके शब्दों में घुल कर फोन के इस तरफ़ तक महसूस हो रही थी
"वाॅव दैट्स वंडरफुल मेहरा जी । सो वाॅह्टस् माई राॅयल्टी मेहरा जी एंड वेन आई विल गेट इट ?" इधर राॅईटर महोदय भी खुशी में बेर से तरबूज हुए जा रहे थे ।
"अरे सर आप राॅयल्टी की क्या बात करते हैं यहाँ पब्लिकेशन ही आपका है । कल ही मैं चेक लगवा देता हूँ । और जानते हैं दो लाख काॅपियों में सैंतीस हज़ार काॅपियाँ आपकी किताब के हिंदी रूपांतरण की बिकी हैं ।"
"हाहाहाहाहाहा गुड गुड । ओके देन बाॅय एंड आई विल मीट यू वेरी सून ।" इधर से फोन कट गया । शायद राईटर महोदय कुछ ज़्यादा ही व्यस्त थे ।
****************************************
"सर तीन दिन से फोन कर रहा हूँ, आप मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहे ?" लेखक महोदय ने प्रकाशक से सवाल किया ।
"अरे यार बहुत से काम होते हैं उन्हीं में व्यस्त था । हाँ बताइए क्या बात है ?" प्रकाशक ने भी रूखा सा जवाब दिया ।
"बात क्या होगी, किताब के लाभांश के बारे में बात करनी थी । मुझे पैसों की ज़रूरत है ।"
"हाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहा अभी चार महीने ही हुए हैं और इसमें आप अपना लाभांश ढूंढ रहे हैं । आपकी पांच सौ सत्तर किताबें बिकी हैं जिसका लाभांश संतावन सौ रुपये हुआ । कहेंगे तो आठ दस दिन में भिजवा दूंगा ।"
"अरे हद है अभी तक सिर्फ पांच सौ सत्तर किताबें ही बिकी हैं ?"
"जनाब हिंदी के इतने ही पाठक हैं । आप भाग्यशाली हैं कि आपकी इतनी पुस्तकें बिक गईं वरना यहाँ तो लोगों का सैंकड़ा पार होना मुश्किल हो जाता है । हाँ आपकी जब दो चार पुस्तकें आ जाएं तब आप पांच हजारी बनने का सपना देखें ।"
"बहुत बुरा हाल है सर ये तो । अच्छा ठीक है उतने ही भिजवा दीजिए बहुत ज़रूरत है ।"
"ठीक है आठ दस दिन इंतज़ार कीजिए ।" उधर से फोन कट गया । शायद प्रकाशक महोदय लेखक महोदय का और टाॅर्चर झेल नहीं पाये ।
इंग्लिश हैं हम वतन है हिंदोस्ताँ हमारा
धीरज झा
"अरे बधाई हो साहब, चार महीने में ही आपके किताब की लगभग दो लाख काॅपियाँ सेल हो गई हैं ।" पब्लिशर के चेहरे की खुश उसके शब्दों में घुल कर फोन के इस तरफ़ तक महसूस हो रही थी
"वाॅव दैट्स वंडरफुल मेहरा जी । सो वाॅह्टस् माई राॅयल्टी मेहरा जी एंड वेन आई विल गेट इट ?" इधर राॅईटर महोदय भी खुशी में बेर से तरबूज हुए जा रहे थे ।
"अरे सर आप राॅयल्टी की क्या बात करते हैं यहाँ पब्लिकेशन ही आपका है । कल ही मैं चेक लगवा देता हूँ । और जानते हैं दो लाख काॅपियों में सैंतीस हज़ार काॅपियाँ आपकी किताब के हिंदी रूपांतरण की बिकी हैं ।"
"हाहाहाहाहाहा गुड गुड । ओके देन बाॅय एंड आई विल मीट यू वेरी सून ।" इधर से फोन कट गया । शायद राईटर महोदय कुछ ज़्यादा ही व्यस्त थे ।
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"सर तीन दिन से फोन कर रहा हूँ, आप मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहे ?" लेखक महोदय ने प्रकाशक से सवाल किया ।
"अरे यार बहुत से काम होते हैं उन्हीं में व्यस्त था । हाँ बताइए क्या बात है ?" प्रकाशक ने भी रूखा सा जवाब दिया ।
"बात क्या होगी, किताब के लाभांश के बारे में बात करनी थी । मुझे पैसों की ज़रूरत है ।"
"हाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहा अभी चार महीने ही हुए हैं और इसमें आप अपना लाभांश ढूंढ रहे हैं । आपकी पांच सौ सत्तर किताबें बिकी हैं जिसका लाभांश संतावन सौ रुपये हुआ । कहेंगे तो आठ दस दिन में भिजवा दूंगा ।"
"अरे हद है अभी तक सिर्फ पांच सौ सत्तर किताबें ही बिकी हैं ?"
"जनाब हिंदी के इतने ही पाठक हैं । आप भाग्यशाली हैं कि आपकी इतनी पुस्तकें बिक गईं वरना यहाँ तो लोगों का सैंकड़ा पार होना मुश्किल हो जाता है । हाँ आपकी जब दो चार पुस्तकें आ जाएं तब आप पांच हजारी बनने का सपना देखें ।"
"बहुत बुरा हाल है सर ये तो । अच्छा ठीक है उतने ही भिजवा दीजिए बहुत ज़रूरत है ।"
"ठीक है आठ दस दिन इंतज़ार कीजिए ।" उधर से फोन कट गया । शायद प्रकाशक महोदय लेखक महोदय का और टाॅर्चर झेल नहीं पाये ।
इंग्लिश हैं हम वतन है हिंदोस्ताँ हमारा
धीरज झा
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