#हाँ_मैं_सच_में_अन्नदाता_हूँ "जाओ किसान बन कर हुड़दंग करो ।" "जींस में हूँ, घिसा पजामा और फटी बनियाईन तो पहनने दो ।" &q...
#हाँ_मैं_सच_में_अन्नदाता_हूँ
"जाओ किसान बन कर हुड़दंग करो ।"
"जींस में हूँ, घिसा पजामा और फटी बनियाईन तो पहनने दो ।"
"किसान यही पहनते हैं क्या ?"
"इसीलिए कहता हूँ ए सी कार में बैठे बैठे ही सही गाँव देहात घूम आया करो । ऐसे नेतागिरी नहीं चलेगी ।"
"ठीक है तुम भाषण ना दो वो मेरा काम है । तुम जाओ और हाँ भीड़ ले जाना साथ ।"
"दूध, फलों और सब्जियों का क्या हुआ ।"
"वहाँ सब इंतज़ाम है जाओ तुम ।"
"सालों इतना सब सीधा किसानों से खरीदा होता तो आज किसान खुशहाल होता ।"
"अबे कम अक्ल किसान खुशहाल होता तो अभी ये नाटक करना ही क्यों पड़ता । चौकीदार ने इनका नाम ले कर अपना काम निकाला अब हम इनका नाम ले कर चौकीदार का काम तमाम करेंगे ।"
"हो तो जन्म से ही हरामी ।"
"हेहेहेहेहेहे नहीं नेता हैं, हेहेहेहेहे ।"
दूसरी तरफ
"सुना किसान मर रहे हैं ।"
"सभी नकली हैं ।"
"कोई तो मर रहा है ना ।"
"मरने दो, नकली किसानों की मौत में हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है ।"
"अरे मौत तो देश में ही हो रही है ना । और दूसरा, इन किसानों की यह दुर्दशा ही क्यों हुई कि उनके नाम पर सबको सड़कों पर उतरना पड़े ।"
"कहा ना नकली किसान हैं । जींस टी शर्ट पहने थे ।"
"तुम झोंपड़ी के पागल हो क्या समझ क्यों नहीं रहे ।"
"तुम नहीं समझ रहे कि वह सब नकली किसान थे । अब चुप रहो मुझे इंग्लैंड आतंकी हमलों पर ट्वीट करने दो ।"
तीसरे कोने में कोई खड़ा था जो चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था । जिसका पेट पीठ से सटा हुआ था । जिसकी आँखें सियासी धूप ने सुखा कर बंजर बना दी थीं । जिसके होंठ उस सूखे तट की तरह थे जहाँ पड़ा एक पुराना नांव देख कर खोजकर्ता बता देते थे कि यहाँ पहले पानी हुआ करता था । और उसकी पीठ पर लदा था एक बस्ता जिस पर कुछ लिखा था । शायद ये 'कर्ज' लिखा था । दोनों कोनों की बात सुन कर उस पीठ में सटे पेट वाले इंसान ने लंबी सांस खींचने की असफल कोशिश की और बिना कुछ बोले आँखें मूंद कर सो गया ।
उसके सोते ही सामने दो कुछ लोग आए । पहले शीशे में अपना चेहरा संवारा फिर केरा सेट किया और फिर "ब्रेकिंग न्यूज़ :- किसान ने की आत्महत्या । मगर क्या ये असली किसान था ।"
"हाँ ये असली किसान था ।"
"नहीं जींस पहने था ।"
इधर सोशल मीडिया वार शुरू हो गया । "किसान नहीं विपक्षी थे । चाल है चाल । जींस टी शर्ट वाले किसान नहीं होते ।"
"तुम साले गधे भक्तों । तुम्हें क्या पता किसान क्या होते हैं उनकी भूख क्या होती है ।"
भीड़ अपना काम करती रही और इधर किसान की लावारिस लाश को जानवर और चील कौए खाने लगे । किसान की आत्मा मुस्कुरा कर सोच रही थी "जिया तो खेत में उपजा कर इंसानों को खिलाया, मरा तो जानवरों का पेट भर रहा हूँ । हाँ मैं तो सच में अन्नदाता हूँ । हाहाहाहाहाहाहा सही सही मैं सच में अन्नदाता हूँ ।"
आसमान मौन है धरती लज्जित है राजनीति बेशर्म है मुद्दे गर्म हैं । "जय जवान जय किसान"
धीरज झा
"जाओ किसान बन कर हुड़दंग करो ।"
"जींस में हूँ, घिसा पजामा और फटी बनियाईन तो पहनने दो ।"
"किसान यही पहनते हैं क्या ?"
"इसीलिए कहता हूँ ए सी कार में बैठे बैठे ही सही गाँव देहात घूम आया करो । ऐसे नेतागिरी नहीं चलेगी ।"
"ठीक है तुम भाषण ना दो वो मेरा काम है । तुम जाओ और हाँ भीड़ ले जाना साथ ।"
"दूध, फलों और सब्जियों का क्या हुआ ।"
"वहाँ सब इंतज़ाम है जाओ तुम ।"
"सालों इतना सब सीधा किसानों से खरीदा होता तो आज किसान खुशहाल होता ।"
"अबे कम अक्ल किसान खुशहाल होता तो अभी ये नाटक करना ही क्यों पड़ता । चौकीदार ने इनका नाम ले कर अपना काम निकाला अब हम इनका नाम ले कर चौकीदार का काम तमाम करेंगे ।"
"हो तो जन्म से ही हरामी ।"
"हेहेहेहेहेहे नहीं नेता हैं, हेहेहेहेहे ।"
दूसरी तरफ
"सुना किसान मर रहे हैं ।"
"सभी नकली हैं ।"
"कोई तो मर रहा है ना ।"
"मरने दो, नकली किसानों की मौत में हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है ।"
"अरे मौत तो देश में ही हो रही है ना । और दूसरा, इन किसानों की यह दुर्दशा ही क्यों हुई कि उनके नाम पर सबको सड़कों पर उतरना पड़े ।"
"कहा ना नकली किसान हैं । जींस टी शर्ट पहने थे ।"
"तुम झोंपड़ी के पागल हो क्या समझ क्यों नहीं रहे ।"
"तुम नहीं समझ रहे कि वह सब नकली किसान थे । अब चुप रहो मुझे इंग्लैंड आतंकी हमलों पर ट्वीट करने दो ।"
तीसरे कोने में कोई खड़ा था जो चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था । जिसका पेट पीठ से सटा हुआ था । जिसकी आँखें सियासी धूप ने सुखा कर बंजर बना दी थीं । जिसके होंठ उस सूखे तट की तरह थे जहाँ पड़ा एक पुराना नांव देख कर खोजकर्ता बता देते थे कि यहाँ पहले पानी हुआ करता था । और उसकी पीठ पर लदा था एक बस्ता जिस पर कुछ लिखा था । शायद ये 'कर्ज' लिखा था । दोनों कोनों की बात सुन कर उस पीठ में सटे पेट वाले इंसान ने लंबी सांस खींचने की असफल कोशिश की और बिना कुछ बोले आँखें मूंद कर सो गया ।
उसके सोते ही सामने दो कुछ लोग आए । पहले शीशे में अपना चेहरा संवारा फिर केरा सेट किया और फिर "ब्रेकिंग न्यूज़ :- किसान ने की आत्महत्या । मगर क्या ये असली किसान था ।"
"हाँ ये असली किसान था ।"
"नहीं जींस पहने था ।"
इधर सोशल मीडिया वार शुरू हो गया । "किसान नहीं विपक्षी थे । चाल है चाल । जींस टी शर्ट वाले किसान नहीं होते ।"
"तुम साले गधे भक्तों । तुम्हें क्या पता किसान क्या होते हैं उनकी भूख क्या होती है ।"
भीड़ अपना काम करती रही और इधर किसान की लावारिस लाश को जानवर और चील कौए खाने लगे । किसान की आत्मा मुस्कुरा कर सोच रही थी "जिया तो खेत में उपजा कर इंसानों को खिलाया, मरा तो जानवरों का पेट भर रहा हूँ । हाँ मैं तो सच में अन्नदाता हूँ । हाहाहाहाहाहाहा सही सही मैं सच में अन्नदाता हूँ ।"
आसमान मौन है धरती लज्जित है राजनीति बेशर्म है मुद्दे गर्म हैं । "जय जवान जय किसान"
धीरज झा
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