बहला रखा है इन चंद बेरुखे लोगों की महफिल में मैने खुद को खुद से ही बहला रखा है तुम लड़ रहे हो ज़मीनी टुकड़े के लिए मैने दिल में ही एक शहर ...
बहला रखा है
इन चंद बेरुखे लोगों की महफिल में
मैने खुद को खुद से ही बहला रखा है
तुम लड़ रहे हो ज़मीनी टुकड़े के लिए
मैने दिल में ही एक शहर बसा रखा है
चाँद से सीखो अकेला ही चमकता है कैसे
और तुम ने खुद को खुद से ही ख़फा रखा है
तुम हमेशा तवज्जोह देते हो महंगे पहरन को
फिर नज़रों को क्यों कपड़ों के अंदर गड़ा रखा है
यहाँ उनके शहर की सड़कें ढकी हैं लाशों से
और बेग़ैरतों ने चेहरे पर मुस्कुराहटों को सजा रखा है
उधर देखो आग इधर ही बढ़ी चली आ रही है
और तुम्हें टी वी समाचारों ने उलझा रखा है
धीरज झा
इन चंद बेरुखे लोगों की महफिल में
मैने खुद को खुद से ही बहला रखा है
तुम लड़ रहे हो ज़मीनी टुकड़े के लिए
मैने दिल में ही एक शहर बसा रखा है
चाँद से सीखो अकेला ही चमकता है कैसे
और तुम ने खुद को खुद से ही ख़फा रखा है
तुम हमेशा तवज्जोह देते हो महंगे पहरन को
फिर नज़रों को क्यों कपड़ों के अंदर गड़ा रखा है
यहाँ उनके शहर की सड़कें ढकी हैं लाशों से
और बेग़ैरतों ने चेहरे पर मुस्कुराहटों को सजा रखा है
उधर देखो आग इधर ही बढ़ी चली आ रही है
और तुम्हें टी वी समाचारों ने उलझा रखा है
धीरज झा
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