#मट्ठू_बाबू_का_ज्ञान (व्यंग) भारत की लचर शिक्षा व्यवस्था से मट्ठू बाबू का मन उस साल ही उठ गया था जिस साल जी तोड़ मेहनत कर के चिट्ट बनाई और फ...
#मट्ठू_बाबू_का_ज्ञान (व्यंग)
भारत की लचर शिक्षा व्यवस्था से मट्ठू बाबू का मन उस साल ही उठ गया था जिस साल जी तोड़ मेहनत कर के चिट्ट बनाई और फिर वहाँ वहाँ उन्हें घुसाया जहाँ से निकालने में उन्हें खुद शर्मिंदगी झेलनी पड़ी और बावजूद इतनी मेहनत के भी वह इंटर पास ना हो सके तो उन्होंने ठान लिया कि ज्ञानी बनने के लिए उन्हें इस खोखली शिक्षा व्यवस्था की कोई आवश्यकता नहीं । वह खुद से ही मेहनत करेंगे और महा ज्ञानी बनेंगे ।
भगवान ने उनकी सुनी या नहीं यह तो नहीं कह सकता मगर जुक्कू भईया ने इनकी प्रार्थना सुनी और फेसबुक का निर्माण किया जहाँ मट्ठू बाबू जैसी बहुत सी छुपी प्रतिभाओं को एक मंच मिला । जुक्कू भईया कि मेहरबानी को और मजबूत किया गूगल बाबा ने । जिनके पास "1. सलमान अपनी जीवनलीला समाप्त होने से पहले शादी कर पाएंगे अथवा नहीं
2. जब पदारथ पाँच साल से बाहर था तो घर लौटने पर उसके साढ़े दो साल के बेटे ने तोतलाती ज़ुबान से उसे पापा कह कर कैसे बुलाया"
इन दो सवालों को छोड़ कर बाकी हर सवाल का जवाब मौजूद था ।
पिता जी की अथाह संपत्ति के तिकलौते वारिस मट्ठू बाबू का लक्ष्य तो अब सांसारिक मोहमाया त्याग कर सिर्फ ज्ञान अर्जित कर के उसे मूर्खों तक पहुंचाना था । गूगल बाबा के आशीर्वाद और अपने अथक प्रयासों से वह शिक्षा व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते हुए जल्द ही एक बड़े ज्ञानी बन गये । देश के हर छोटे बड़े मुद्दे पर उनकी कलम इतनी बारीकी से चलने लगी कि उसकी कलम की बारीकी के आगे नग्न आँखों से ना दिखने वाले सूक्ष्म जीव भी हाथी के समान लगते ।
धीरे धीरे उनकी ख्याति पाँच हज़ार जनसंख्या वाले भारत के इस कोने से उस कोने तक फैल गई । कुछ सौ फाॅलोअर तो विदेश से भी आए । अब रोज़ डेढ़ बित्ता की पोस्ट पर सैंकड़े के हिसाब से लाइक कमेंट आने लगे । मुद्दा कोई भी हो मट्ठू बाबू दंगल ब्वाय की तरह पिल पड़ते थे । और फिर दे दांव पर दांव । अब तो मट्ठू बाबू के इतने चेले थे कि किसी की मजाल ना थी मट्ठू बाबू के खिलाफ़ कोई एक शब्द भी गलत बोल जाये, चेले वहीं लिटा लिटा कर पेलते थे ।
देश निर्माण में भी मट्ठू बाबू का योगदान अविस्मरणीय रहा । दो साल के अथक प्रयास के बाद मट्ठू बाबू ने युगों बाद देश को एक यशस्वी प्रधानमंत्री दिया । सुना है प्रधानमंत्री जी ने भी मन ही मन मट्ठू बाबू की खूब प्रशंसा और फिर आभार व्यक्त किया था, हालांकि इसकी पुष्टी अभी तक हो नहीं पाई है मगर मट्ठू बाबू के चेहरे का तेज यह बताता है कि यह हुआ है ।
आज भी मट्ठू बाबू फेसबुक पर अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए अपने दो बित्ते लम्बी पोस्ट के रूप में एक दीपक जला कर उठे ही थे कि पिता जी के मधुर और सम्मानजनक शब्द कानों में पड़े "ई हरामी, अभी तक सुतले है का ? ससुर एतना निक्कमा है कि तास खेलने वाले भी इसको देख के फूल जाते हैं कि चलो कम से कम हम कुछो तो करते हैं । मगर ई ससुर को तो तनिको लाज बीज नहीं है । एकरा पैदा करने से अच्छा कोनो भईंस पोस लेते तो दू टाईम दूध जम के पीते ।" खैर इससे आगे भी पिता जी बहुत सम्मान किये जिसका हाल हम नहीं बता सकते । मगर मट्ठू बाबू को कोनो फर्क नहीं काहे कि वो तो ज्ञान को प्राप्त कर लिये थे उनके लिये ये सब मोह माया मात्र था ।
माँ का कलेजा तो मोम से भी कोमल है इसलिए वो हमेशा पिता के प्रकोप से बचाने के लिए मट्ठू बाबू को दूध सब्जी तरकारी या कोई और सामान लाने भेज देती । मट्ठू बाबू को ये सब तौहीन लगता कि हम साले ज्ञान के भंडार और हमसे ऐसा नौकर चाकर वाला काम करवाते हैं । कभी कभी मट्ठू बाबा को बहुत हंसी आता इन सब की अज्ञानता पर । अब झोला ले कर मट्ठू बाबू जब बाहर निकलते तो वो सोचते कि साला इस अनपढ़ गाँव का कोई लौंडा तो फेसबुक पर चलाता होगा । कहीं वो हमारे ज्ञान के सागर में गोता खा लिया हुआ तो आज बीच बजरिया हमारे पैरों में लोटेगा । मगर मट्ठू बाबू के तमाम ख़याल डेंगू के बिमार तड़प तड़प कर दम तोड़ देते जब कोई इंसान तो छोड़ो गली का लंगड़ुआ कुत्ता भी इनकी आहट सुन कर अपनी जगह से नहीं हिलता । वैसे तो वो बहुत डरपोक था मगर उसे ये भी पता था कि मट्ठू बाबू इतने आलसी हैं कि हमें मारने के लिए वो लात तक उठाने की हिम्मत ना करेंगे, पत्थर तो दूर की बात है ।
मट्ठू बाबू सारा गाँव घूम आते हैं लेकिन एक भी अज्ञानी इनके ज्ञान से प्रभावित हो कर इनका हाल समाचार नहीं पूछता । एक दो जगह बिना कहे अपना विचार रखने की कोशिश भी किये मगर लोगों कि अनदेखी ने उनसे साफ़ कह दिया कि "बेटा ये गाँव की बकचोदी है, तुम से ना हो पाएगी तुम रहने दो और जाओ फेसबुक पर अपना ज्ञान दो ।"
ऐसे अज्ञानियों के बीच रह कर कभी कभी मट्ठू बाबू का हिम्मत टूटने लगता । आज भी मट्ठू बाबू के निर्लज स्वभाव पर मायूसी भारी पड़ रही थी कि इतने में फेसबुक ऑन हो गया और नाॅटिफिकेश्नस की बाढ़ आगई । कितने तो मैसेज थे । भईया गजब, भईया क्या पेले हैं, वाह साहब वाह, अतुल्य, अदम्य, सराहनीय, अद्भुत जैसे कमेंटों ने मट्ठू बाबू की क्षीण होती ऊर्जा को फिर से नया जीवन दिया ।
एक बड़ी सी एस्माइल के साथ मट्ठू बाबू मन ही मन सोचे "सच में हमारे चारो तरफ़ बहुत अज्ञान है । फेसबुक को तो मैने अपने ज्ञान से प्रकाशमान कर दिया मगर ना जाने ये आस पास की दुनिया को मेरा ज्ञान कब नसीब होगा । कोई बात नहीं मैं हिम्मत नहीं हारूंगा और आजीवन अपने ज्ञान से फेसबुकिया जगत को प्रकाशित रखूंगा और एक दिन मेरे द्वारा बांटा गया यही प्रकाश सारे संसार की अज्ञानता का नाश करेगा ।"
इतने में पिता जी के मधुर शब्द फिर से कानों में पड़े "रे इस निकम्मा से कहो कि कोनो काम नहीं है त कम से कम दुआर बहाड़ ले ।" मगर पिता जी की बात तो सिर्फ मोह माया थी जिस पर परम ज्ञानी मट्ठू बाबू मंद मंद मुस्कुरा रहे थे ।
धीरज झा
भारत की लचर शिक्षा व्यवस्था से मट्ठू बाबू का मन उस साल ही उठ गया था जिस साल जी तोड़ मेहनत कर के चिट्ट बनाई और फिर वहाँ वहाँ उन्हें घुसाया जहाँ से निकालने में उन्हें खुद शर्मिंदगी झेलनी पड़ी और बावजूद इतनी मेहनत के भी वह इंटर पास ना हो सके तो उन्होंने ठान लिया कि ज्ञानी बनने के लिए उन्हें इस खोखली शिक्षा व्यवस्था की कोई आवश्यकता नहीं । वह खुद से ही मेहनत करेंगे और महा ज्ञानी बनेंगे ।
भगवान ने उनकी सुनी या नहीं यह तो नहीं कह सकता मगर जुक्कू भईया ने इनकी प्रार्थना सुनी और फेसबुक का निर्माण किया जहाँ मट्ठू बाबू जैसी बहुत सी छुपी प्रतिभाओं को एक मंच मिला । जुक्कू भईया कि मेहरबानी को और मजबूत किया गूगल बाबा ने । जिनके पास "1. सलमान अपनी जीवनलीला समाप्त होने से पहले शादी कर पाएंगे अथवा नहीं
2. जब पदारथ पाँच साल से बाहर था तो घर लौटने पर उसके साढ़े दो साल के बेटे ने तोतलाती ज़ुबान से उसे पापा कह कर कैसे बुलाया"
इन दो सवालों को छोड़ कर बाकी हर सवाल का जवाब मौजूद था ।
पिता जी की अथाह संपत्ति के तिकलौते वारिस मट्ठू बाबू का लक्ष्य तो अब सांसारिक मोहमाया त्याग कर सिर्फ ज्ञान अर्जित कर के उसे मूर्खों तक पहुंचाना था । गूगल बाबा के आशीर्वाद और अपने अथक प्रयासों से वह शिक्षा व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते हुए जल्द ही एक बड़े ज्ञानी बन गये । देश के हर छोटे बड़े मुद्दे पर उनकी कलम इतनी बारीकी से चलने लगी कि उसकी कलम की बारीकी के आगे नग्न आँखों से ना दिखने वाले सूक्ष्म जीव भी हाथी के समान लगते ।
धीरे धीरे उनकी ख्याति पाँच हज़ार जनसंख्या वाले भारत के इस कोने से उस कोने तक फैल गई । कुछ सौ फाॅलोअर तो विदेश से भी आए । अब रोज़ डेढ़ बित्ता की पोस्ट पर सैंकड़े के हिसाब से लाइक कमेंट आने लगे । मुद्दा कोई भी हो मट्ठू बाबू दंगल ब्वाय की तरह पिल पड़ते थे । और फिर दे दांव पर दांव । अब तो मट्ठू बाबू के इतने चेले थे कि किसी की मजाल ना थी मट्ठू बाबू के खिलाफ़ कोई एक शब्द भी गलत बोल जाये, चेले वहीं लिटा लिटा कर पेलते थे ।
देश निर्माण में भी मट्ठू बाबू का योगदान अविस्मरणीय रहा । दो साल के अथक प्रयास के बाद मट्ठू बाबू ने युगों बाद देश को एक यशस्वी प्रधानमंत्री दिया । सुना है प्रधानमंत्री जी ने भी मन ही मन मट्ठू बाबू की खूब प्रशंसा और फिर आभार व्यक्त किया था, हालांकि इसकी पुष्टी अभी तक हो नहीं पाई है मगर मट्ठू बाबू के चेहरे का तेज यह बताता है कि यह हुआ है ।
आज भी मट्ठू बाबू फेसबुक पर अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए अपने दो बित्ते लम्बी पोस्ट के रूप में एक दीपक जला कर उठे ही थे कि पिता जी के मधुर और सम्मानजनक शब्द कानों में पड़े "ई हरामी, अभी तक सुतले है का ? ससुर एतना निक्कमा है कि तास खेलने वाले भी इसको देख के फूल जाते हैं कि चलो कम से कम हम कुछो तो करते हैं । मगर ई ससुर को तो तनिको लाज बीज नहीं है । एकरा पैदा करने से अच्छा कोनो भईंस पोस लेते तो दू टाईम दूध जम के पीते ।" खैर इससे आगे भी पिता जी बहुत सम्मान किये जिसका हाल हम नहीं बता सकते । मगर मट्ठू बाबू को कोनो फर्क नहीं काहे कि वो तो ज्ञान को प्राप्त कर लिये थे उनके लिये ये सब मोह माया मात्र था ।
माँ का कलेजा तो मोम से भी कोमल है इसलिए वो हमेशा पिता के प्रकोप से बचाने के लिए मट्ठू बाबू को दूध सब्जी तरकारी या कोई और सामान लाने भेज देती । मट्ठू बाबू को ये सब तौहीन लगता कि हम साले ज्ञान के भंडार और हमसे ऐसा नौकर चाकर वाला काम करवाते हैं । कभी कभी मट्ठू बाबा को बहुत हंसी आता इन सब की अज्ञानता पर । अब झोला ले कर मट्ठू बाबू जब बाहर निकलते तो वो सोचते कि साला इस अनपढ़ गाँव का कोई लौंडा तो फेसबुक पर चलाता होगा । कहीं वो हमारे ज्ञान के सागर में गोता खा लिया हुआ तो आज बीच बजरिया हमारे पैरों में लोटेगा । मगर मट्ठू बाबू के तमाम ख़याल डेंगू के बिमार तड़प तड़प कर दम तोड़ देते जब कोई इंसान तो छोड़ो गली का लंगड़ुआ कुत्ता भी इनकी आहट सुन कर अपनी जगह से नहीं हिलता । वैसे तो वो बहुत डरपोक था मगर उसे ये भी पता था कि मट्ठू बाबू इतने आलसी हैं कि हमें मारने के लिए वो लात तक उठाने की हिम्मत ना करेंगे, पत्थर तो दूर की बात है ।
मट्ठू बाबू सारा गाँव घूम आते हैं लेकिन एक भी अज्ञानी इनके ज्ञान से प्रभावित हो कर इनका हाल समाचार नहीं पूछता । एक दो जगह बिना कहे अपना विचार रखने की कोशिश भी किये मगर लोगों कि अनदेखी ने उनसे साफ़ कह दिया कि "बेटा ये गाँव की बकचोदी है, तुम से ना हो पाएगी तुम रहने दो और जाओ फेसबुक पर अपना ज्ञान दो ।"
ऐसे अज्ञानियों के बीच रह कर कभी कभी मट्ठू बाबू का हिम्मत टूटने लगता । आज भी मट्ठू बाबू के निर्लज स्वभाव पर मायूसी भारी पड़ रही थी कि इतने में फेसबुक ऑन हो गया और नाॅटिफिकेश्नस की बाढ़ आगई । कितने तो मैसेज थे । भईया गजब, भईया क्या पेले हैं, वाह साहब वाह, अतुल्य, अदम्य, सराहनीय, अद्भुत जैसे कमेंटों ने मट्ठू बाबू की क्षीण होती ऊर्जा को फिर से नया जीवन दिया ।
एक बड़ी सी एस्माइल के साथ मट्ठू बाबू मन ही मन सोचे "सच में हमारे चारो तरफ़ बहुत अज्ञान है । फेसबुक को तो मैने अपने ज्ञान से प्रकाशमान कर दिया मगर ना जाने ये आस पास की दुनिया को मेरा ज्ञान कब नसीब होगा । कोई बात नहीं मैं हिम्मत नहीं हारूंगा और आजीवन अपने ज्ञान से फेसबुकिया जगत को प्रकाशित रखूंगा और एक दिन मेरे द्वारा बांटा गया यही प्रकाश सारे संसार की अज्ञानता का नाश करेगा ।"
इतने में पिता जी के मधुर शब्द फिर से कानों में पड़े "रे इस निकम्मा से कहो कि कोनो काम नहीं है त कम से कम दुआर बहाड़ ले ।" मगर पिता जी की बात तो सिर्फ मोह माया थी जिस पर परम ज्ञानी मट्ठू बाबू मंद मंद मुस्कुरा रहे थे ।
धीरज झा
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