#आत्महत्या_क्यों जब तुम्हें परेशानियां घेर लेती हैं ऐसे जैसे कोई बवंडर घेर लेता है किसी मरियल से तने वाले पेड़ को तब तुम भी हार मान कर ब...
#आत्महत्या_क्यों
जब तुम्हें परेशानियां घेर लेती हैं ऐसे
जैसे कोई बवंडर घेर लेता है
किसी मरियल से तने वाले पेड़ को
तब तुम भी हार मान कर
बह जाना चाहते हो
उस परेशानियों के बवंडर में
तब हो जाते हो सनलाईट में भी
अंधेरे में सड़ रहे एक
बंद खिड़कियों वाले कमरे की तरह
जिसकी खिड़कियों की पलकों तक रौशनी
आती है दस्तक देने
मगर उस कमरे को
अंधेरे के सिवा और कुछ नहीं है देखना
उसी तरह तुमको भी अब खूबसूरती नहीं दिखेगी
तुम्हें फूलों के खिलते चेहरों को
चूमते भंवरे नहीं दिखेंगे
तुम्हें सर्दियों में आईसक्रीम
पा जाने वाले बच्चे की
खिलखिलाहट नहीं दिखेगी
तुम नहीं देख पाओगे
एक बेटे को सालों बाद
देखने पर माँ के चेहरे पर उमड़ा संतोष
तुम्हें रात की खामोशी में चुपके से
आसमान को चूम कर
सितारों को अपने होठों पर सजाने का मन नहीं करेगा
क्योंकि तुम डर चुके हो परेशानियों से
मगर ज़रा देखो अपने चारों तरफ
यहाँ कौन परेशान नहीं
किसने पा लिया है वो सब
जो उसने सोचा
हर किसी की ज़िंदगी कमियों के बावजूद भी
बढ़ती चली जा रही है
मगर तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम्हें तो शोर भी सन्नाटे सा लगेगा
और उस सन्नाटे को चीरती हुई
एक ही आवाज़ सुनाई देगी
और वो आवाज़ होगी
आत्महत्या की
तुम नादानों की तरह ये समझोगे
एक छलावे में जिओगे कि
जिस दिन कर लोगे खुद को खत्म
उस दिन हर बंधन हर परेशानी से
हो जाओगे मुक्त
मगर मेरे दोस्त ये छलावा है
बस एक अफवाह है
ये परेशानियाँ ये दिक्कतें तुम्हें
हर जहान में सताएंगी
और तब तुम हो चुके होगे कोमा के मरीज़ जैसे
जो सब देखेगा मगर अपने अहसास बयान ना कर पायेगा
ना तुम रो पाओगे
ना तुम चिल्ला पाओगे
ना तुम लौट कर वापिस आ पाओगे
एक बीवी और दो बच्चों की ज़िम्मेदारी ने
क्या तुम्हें इतना कमज़ोर कर दिया है ?
कि तुम चले हो अपनी बेशकीमती ज़िंदगी
को ज़हर दे कर मार देने
सोचो जो अपने बड़े से परिवार का बोझ उठाता है
वो कैसे हंस रहा है ?
कैसे उसे कोई परेशानी नहीं
है उसे तुम से ज़्यादा परेशानियाँ हैं
मगर उसे हुनर है
अपने दुःख परिवार वालों में बांट देने का
अपने दर्द से उठने वाली हर चीख़ को
अपनों के होंठों पर थोड़ा थोड़ा सजा देने का
अपने परिवार से बदले में हिम्मत ले लेने का
तुम भी सीखो ये हुनर
बांटो अपने हर दर्द और हर दुःख को
और बदले में ले लो हिम्मत
और फिर देखो कैसे तुम
जलते कोयले पर भी हँसते हुए
चल जाओगे
समझो मेरी बात ज़िंदगी हसीन है
इसे महबूबा की तरह बेपनाह मोहब्बत दो
बदले में ये तुम्हें अपनी खनकती हँसी से
हमेशा खुश रखेगी
धीरज झा
जब तुम्हें परेशानियां घेर लेती हैं ऐसे
जैसे कोई बवंडर घेर लेता है
किसी मरियल से तने वाले पेड़ को
तब तुम भी हार मान कर
बह जाना चाहते हो
उस परेशानियों के बवंडर में
तब हो जाते हो सनलाईट में भी
अंधेरे में सड़ रहे एक
बंद खिड़कियों वाले कमरे की तरह
जिसकी खिड़कियों की पलकों तक रौशनी
आती है दस्तक देने
मगर उस कमरे को
अंधेरे के सिवा और कुछ नहीं है देखना
उसी तरह तुमको भी अब खूबसूरती नहीं दिखेगी
तुम्हें फूलों के खिलते चेहरों को
चूमते भंवरे नहीं दिखेंगे
तुम्हें सर्दियों में आईसक्रीम
पा जाने वाले बच्चे की
खिलखिलाहट नहीं दिखेगी
तुम नहीं देख पाओगे
एक बेटे को सालों बाद
देखने पर माँ के चेहरे पर उमड़ा संतोष
तुम्हें रात की खामोशी में चुपके से
आसमान को चूम कर
सितारों को अपने होठों पर सजाने का मन नहीं करेगा
क्योंकि तुम डर चुके हो परेशानियों से
मगर ज़रा देखो अपने चारों तरफ
यहाँ कौन परेशान नहीं
किसने पा लिया है वो सब
जो उसने सोचा
हर किसी की ज़िंदगी कमियों के बावजूद भी
बढ़ती चली जा रही है
मगर तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम्हें तो शोर भी सन्नाटे सा लगेगा
और उस सन्नाटे को चीरती हुई
एक ही आवाज़ सुनाई देगी
और वो आवाज़ होगी
आत्महत्या की
तुम नादानों की तरह ये समझोगे
एक छलावे में जिओगे कि
जिस दिन कर लोगे खुद को खत्म
उस दिन हर बंधन हर परेशानी से
हो जाओगे मुक्त
मगर मेरे दोस्त ये छलावा है
बस एक अफवाह है
ये परेशानियाँ ये दिक्कतें तुम्हें
हर जहान में सताएंगी
और तब तुम हो चुके होगे कोमा के मरीज़ जैसे
जो सब देखेगा मगर अपने अहसास बयान ना कर पायेगा
ना तुम रो पाओगे
ना तुम चिल्ला पाओगे
ना तुम लौट कर वापिस आ पाओगे
एक बीवी और दो बच्चों की ज़िम्मेदारी ने
क्या तुम्हें इतना कमज़ोर कर दिया है ?
कि तुम चले हो अपनी बेशकीमती ज़िंदगी
को ज़हर दे कर मार देने
सोचो जो अपने बड़े से परिवार का बोझ उठाता है
वो कैसे हंस रहा है ?
कैसे उसे कोई परेशानी नहीं
है उसे तुम से ज़्यादा परेशानियाँ हैं
मगर उसे हुनर है
अपने दुःख परिवार वालों में बांट देने का
अपने दर्द से उठने वाली हर चीख़ को
अपनों के होंठों पर थोड़ा थोड़ा सजा देने का
अपने परिवार से बदले में हिम्मत ले लेने का
तुम भी सीखो ये हुनर
बांटो अपने हर दर्द और हर दुःख को
और बदले में ले लो हिम्मत
और फिर देखो कैसे तुम
जलते कोयले पर भी हँसते हुए
चल जाओगे
समझो मेरी बात ज़िंदगी हसीन है
इसे महबूबा की तरह बेपनाह मोहब्बत दो
बदले में ये तुम्हें अपनी खनकती हँसी से
हमेशा खुश रखेगी
धीरज झा
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