#आस्था_से_भरपूर_वर्षा आज सालों बाद बारिश में भीगा हूँ और वो भी ऐसी वैसी बारिश नहीं, सौ प्रतिशत प्रमाणित आस्था वाली बारिश में । जिसकी हर बूं...
#आस्था_से_भरपूर_वर्षा
आज सालों बाद बारिश में भीगा हूँ और वो भी ऐसी वैसी बारिश नहीं, सौ प्रतिशत प्रमाणित आस्था वाली बारिश में । जिसकी हर बूंद प्रमाण है मेरे गाँव की उस आस्था के सच्चे होने का जो ना जाने कितनी सदियों से यहाँ के लोगों के मन में बसी हुई है ।
मैं यहाँ नहीं रहा मगर मैने अपने गाँव से नाता नहीं तोड़ा या ऐसा कहूँ इस गाँव ने खुद से मेरा नाता टूटने ही नहीं दिया । हर बार जब मैं खुदगर्ज़ इसे भूलने को होता हूँ तो ये बहाने से बुला लेता है मुझे । इस बार भी बुला लिया । जेठ आषाढ़ और सावन इन महीनों में मेरा आना काफी बार हुआ है यहाँ ।
हर बार जब जब इस मौसम में यहाँ रहा हूँ तो एक बहुत खास बात मैने देखी है । गाँव की एक बहुत पुरानी परंपरा है जो इतनी पुरानी है कि किसी बुजुर्ग तक को याद नही कि कब और किसने इसकी शुरूआत की । बस पीढ़ी दर पीढ़ी श्रद्धा से इसे मनाते आ रहे हैं । यहाँ आषाढ़ महीने के किसी भी शुभ दिन पर सवा लाख पार्थी (मिट्टी के शिवलिंग) पूजन कर के महादेव की आराधना की जाती है, जिसे यहाँ "लखरांओं" कहा जाता है । वैसे कोई भी व्यक्तिगत तौर पर ये पूजन कभी भी कर सकता है मगर 'गंवला' (गाँव वालों का सम्मिलित) पूजन इन्हीं दिनों में होता है ।
इस बार भी संयोग से इस दिन गांव में ही हूँ । सुबह हे ही हर घर से अपनी अपनी क्षमता के अनुसार मिट्टी के पार्थी बन कर पूजा स्थल पर पहुंचाए गये और फिर उनका पूजन संपन्न हुआ । धूम धाम से मनाए जाने वाले इस पार्थी पूजन की सबसे खास बात यह है कि जब पूजा संपन्न होने के बाद गाँव वालों द्वारा पार्थी अभिषेक का समय आता है तो उस समय ज़ोर की वर्षा होना निश्चित है । किसी साल सूखा भी पड़ा हो तो चाहे बूंदा बांदी ही क्यों ना हो कर रह जाए मगर होगी ज़रूर ।
आज दोपहर तक सूरज बाबा का प्रकोप छाया हुआ था मगर जैसे जैसे दिन संध्या मिलन की तरफ बढ़ता रहा वैसे वैसे ही आसमान को घने काले बादलों की सेना ने घेर लिया और जैसे ही अभिषेक शुरू हुआ वैसे ही गगन से इंद्रदेव ने अपने हिस्से का जल महादेव पर अर्पित कर दिया । और मज़े की बात देखिये कि अभिषेक के बाद ब्राह्मण भोजन होना होता है और मेघ के कारण इसमें रुकावट आ सकती है इसीलिए अभिषेक के तुरन्त बाद ही आसमान एक दम साफ़ हो जाता है और दीये के समान तारे आसमान में ऐसे जगमगाने लगते हैं कि जैसे जल अर्पण के बाद महादेव की दीप वंदना के लिए असंख्य दीप जला दिये हों प्रकृति ने ।
मैने इसे देखा ना होता तो शायद मानना थोड़ा मुश्किल होता मगर मैने आस्था के इस प्रमाण को छः सात बार से ज़्यादा देखा है और हर बार पूजन की यही प्रक्रिया देखने को मिली है । मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ कि मुझे इस आस्था से भरपूर वर्षा में भीगने का मौका मिलता रहा है ।
भले ही कुछ लोग इस पर अंधविश्वास की बात करें मगर मेरे महादेव, उनके लिये मेरी आस्था और उनसे जुड़े भक्तों की आस्था में मेरा अटूट विश्वास है ।
हर हर महादेव
धीरज झा
आज सालों बाद बारिश में भीगा हूँ और वो भी ऐसी वैसी बारिश नहीं, सौ प्रतिशत प्रमाणित आस्था वाली बारिश में । जिसकी हर बूंद प्रमाण है मेरे गाँव की उस आस्था के सच्चे होने का जो ना जाने कितनी सदियों से यहाँ के लोगों के मन में बसी हुई है ।
मैं यहाँ नहीं रहा मगर मैने अपने गाँव से नाता नहीं तोड़ा या ऐसा कहूँ इस गाँव ने खुद से मेरा नाता टूटने ही नहीं दिया । हर बार जब मैं खुदगर्ज़ इसे भूलने को होता हूँ तो ये बहाने से बुला लेता है मुझे । इस बार भी बुला लिया । जेठ आषाढ़ और सावन इन महीनों में मेरा आना काफी बार हुआ है यहाँ ।
हर बार जब जब इस मौसम में यहाँ रहा हूँ तो एक बहुत खास बात मैने देखी है । गाँव की एक बहुत पुरानी परंपरा है जो इतनी पुरानी है कि किसी बुजुर्ग तक को याद नही कि कब और किसने इसकी शुरूआत की । बस पीढ़ी दर पीढ़ी श्रद्धा से इसे मनाते आ रहे हैं । यहाँ आषाढ़ महीने के किसी भी शुभ दिन पर सवा लाख पार्थी (मिट्टी के शिवलिंग) पूजन कर के महादेव की आराधना की जाती है, जिसे यहाँ "लखरांओं" कहा जाता है । वैसे कोई भी व्यक्तिगत तौर पर ये पूजन कभी भी कर सकता है मगर 'गंवला' (गाँव वालों का सम्मिलित) पूजन इन्हीं दिनों में होता है ।
इस बार भी संयोग से इस दिन गांव में ही हूँ । सुबह हे ही हर घर से अपनी अपनी क्षमता के अनुसार मिट्टी के पार्थी बन कर पूजा स्थल पर पहुंचाए गये और फिर उनका पूजन संपन्न हुआ । धूम धाम से मनाए जाने वाले इस पार्थी पूजन की सबसे खास बात यह है कि जब पूजा संपन्न होने के बाद गाँव वालों द्वारा पार्थी अभिषेक का समय आता है तो उस समय ज़ोर की वर्षा होना निश्चित है । किसी साल सूखा भी पड़ा हो तो चाहे बूंदा बांदी ही क्यों ना हो कर रह जाए मगर होगी ज़रूर ।
आज दोपहर तक सूरज बाबा का प्रकोप छाया हुआ था मगर जैसे जैसे दिन संध्या मिलन की तरफ बढ़ता रहा वैसे वैसे ही आसमान को घने काले बादलों की सेना ने घेर लिया और जैसे ही अभिषेक शुरू हुआ वैसे ही गगन से इंद्रदेव ने अपने हिस्से का जल महादेव पर अर्पित कर दिया । और मज़े की बात देखिये कि अभिषेक के बाद ब्राह्मण भोजन होना होता है और मेघ के कारण इसमें रुकावट आ सकती है इसीलिए अभिषेक के तुरन्त बाद ही आसमान एक दम साफ़ हो जाता है और दीये के समान तारे आसमान में ऐसे जगमगाने लगते हैं कि जैसे जल अर्पण के बाद महादेव की दीप वंदना के लिए असंख्य दीप जला दिये हों प्रकृति ने ।
मैने इसे देखा ना होता तो शायद मानना थोड़ा मुश्किल होता मगर मैने आस्था के इस प्रमाण को छः सात बार से ज़्यादा देखा है और हर बार पूजन की यही प्रक्रिया देखने को मिली है । मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ कि मुझे इस आस्था से भरपूर वर्षा में भीगने का मौका मिलता रहा है ।
भले ही कुछ लोग इस पर अंधविश्वास की बात करें मगर मेरे महादेव, उनके लिये मेरी आस्था और उनसे जुड़े भक्तों की आस्था में मेरा अटूट विश्वास है ।
हर हर महादेव
धीरज झा
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