#मेरे_लिये_क्यों_पूज्यनीय_हैं_मेरे_महादेव उन दिनों हम अपने जीवन का सबसे भयावह दौर झेल रहे थे । ऐसा दौर जिसकी डर के मारे कभी कल्पना भी नहीं क...
#मेरे_लिये_क्यों_पूज्यनीय_हैं_मेरे_महादेव
उन दिनों हम अपने जीवन का सबसे भयावह दौर झेल रहे थे । ऐसा दौर जिसकी डर के मारे कभी कल्पना भी नहीं की थी । प्रेम अगर आपके मन और आत्मा को मजबूती देता है तो प्रेम ही आपके मन और आत्मा को कमज़ोर भी बनाता है । निष्ठुर मनुष्य से कहीं गुणा अधिक दुःख उस मनुष्य को झेलना पड़ता है जिसका मन कोमल है, जिसके अंदर संवेदनाएं हैं । ऐसे मनुष्य को अपने दुःख से अधिक अपनों का दुःख पीड़ित करता है ।
पिता जी अचानक ही बिस्तर पकड़ चुके थे । हर जगह हर तरह से इलाज चल रहा था मगर उनकी पीड़ा हर रोज़ हर दिन बढ़ती जाती थी । ना दिमाग संतुलित था ना शरीर की पीड़ा कम हो रही थी । ऐसे समय में हमारी क्या हालत होगी इसका अंदाज़ा बहुत ही कम लोगों को होगा । इन्हीं दिनों एक रात जब पिता जी की हालत पहले से बहुत बिगड़ गई और वो एक दम बेचैन हो गये । तीन रातों से उनकी पलकें एक मिनट के लिए भी नहीं झपकी थीं । रात के साढ़े दस बज रहे थे, पिता जी की बेचैनी बिना थके बढ़ते हुए हम लोगों के मन तक आ गई थी ।
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है । बीस दिन हाॅस्पिटल में रखने के बाद लाखों रुपये ऐंठ कर बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे डाॅक्टरों ने कहा कि "कोई खास दिक्कत नहीं । हमने अपना ट्रीटमेंट कर दिया अब दवाईयों से आराम आजायेगा आप इन्हें घर ले जाईए ।"
मगर घर आकर उनकी बेचैनी और पीड़ा और बढ़ गई थी । उस रात संयम टूट चुका था, मगर करें तो क्या करें कुछ समझ नहीं आरहा था । पिता जी को नींद के लिए तड़पते देख आत्मा छिल रही थी । शून्य की स्थिति में जा चुके मन में अचानक कुछ हलचल मची । मैं उठा और नहाने लगा । माँ हैरान थी मगर कुछ नहीं बोलीं । मैं नहा कर कटोरी में गंगाजल ले कर शिवालय की ओर बढ़ा । मन ही मन रोता रहा मगर महादेव से कहा कुछ नहीं । मेरी एक बहुत बुरी आदत है, मैने आज तक महादेव से कुछ नहीं मांगा कभी नहीं । मैं बस उन्हें नमन करता हूँ और मन ही मन रो लेता हूँ, मेरा मानना है कि वो खुद मेरी पीड़ा को समझ लेंगे, भावनाओं से बढ़ कर कोई शब्द नहीं और इसकी भाषा मेरे महादेव अच्छे से समझते हैं ।
मैने गंगाजल को कुछ मंत्रों से अभिमंत्रित किया, महादेव को नमन किया और वो जल पिता जी को पिला दिया । मैं खुद इस पर यकी नहीं कर पा रहा था कि ऐसा करने के कुछ देर बाद ही पिता जी गहरी नींद में थे । पीड़ा भले खत्म नहीं हुई मगर उस रात उन्हें कुछ आराम ज़रूर मिला ।
जिस दिन पिता जी हमें छोड़ कर गये उस दिन जब मैं कमरे में गया तो खुद को संभालना इस तरह था जैसे संपूर्ण श्रृष्टि मेरे कंधों पर हो और मुझे उसका भार उठाए मीलों चलना हो । कोई कह रहा था अभी सांस बाकि है, कोई कह रहा था नहीं अब खत्म, माँ चिल्ला रही थी, भाई बेसुद्ध थे । मैं बड़ा था मुझे सबको संभालना था मगर मेरी हिम्मत खत्म होती जा रही थी । मैं बिना कुछ सोचे समझे शिवालय की तरफ भागा, शिवलिंग को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने आँसुओं से उसका अभिषेक करते हुए जीवन में पहली बार महादेव से मांगा कि महादेव पापा को लौटा दो, महादेव पापा को लौटा दो । बार बार यही शब्द थे मेरी ज़ुबान पर ।
ऐसा लगा जैसे कोई पीठ पर हाथ रख कर कह रहा हो कि "बेटा ये नियती है, टाली नहीं जा सकती मगर हाँ मैं तुझे हिम्मत देता हूँ, खुद को और अपनों को संभालने की हिम्मत । मैं उठा बाहर गया । पिता जी को पास के हाॅस्पिटल ले जाया गया था इस उम्मीद में कि उनकी सांसे अभी चल रही हैं । मगर उनका पीला पड़ चुका चेहरा ये बता रहा था कि उन्हें गये हुए कई पल बीत गये । मेरी आँखों का पानी उस रात सूख गया था, क्योंकि मुझ में हिम्मत थी । पापा को लेकर मैं सबसे पहले अपनी हिम्मत छोड़ देने वालों में से था मगर आज मैं ही सबको हिम्मत दे रहा था । मुझे महादेव ने ये हिम्मत दी थी जिसके बिना ना जाने उस दिन क्या कर बैठता ।
मेरी दुर्गम परिस्थियाँ, मेरी पीड़ा, मेरा दुःख ये सब मेरी नियती है । मेरे कर्मों का लेखा जोखा । मैं नहीं जानता वे कौन से कर्म हैं जिनके बदले में मुझे ये सब झेलना पड़ रहा है । मैं जानता हूँ इसे ईश्वर भी नहीं बदल सकते, वो बस इससे निकलने का रास्ता बता सकते हैं इसे सहने की हिम्मत दे सकते हैं, इसीलिए मैं महादेव को कभी दोषी नहीं मानता । पिता जी ने सिखाया है कि महादेव को ज्य़ादा दुःख नहीं सुनाये जाते, वो खुद आपको हिम्मत देते हैं ।
मुझे भी मेरे महादेव से यही मिलता है, लड़ने की, आगे बढ़ने की हिम्मत । बाकि जो है सो मेरी नियती मेरे कर्म हैं । वो परमपिता हैं रास्ता दिखाएंगे उस रास्ते पर बढ़ते रहने की हिम्मत देंगे, मेरी रक्षा करते आए हैं और करते रहेंगे ।
महादेव आप सबकी रक्षा करें 🙏
हर हर महादेव
बम शंकर
धीरज झा
उन दिनों हम अपने जीवन का सबसे भयावह दौर झेल रहे थे । ऐसा दौर जिसकी डर के मारे कभी कल्पना भी नहीं की थी । प्रेम अगर आपके मन और आत्मा को मजबूती देता है तो प्रेम ही आपके मन और आत्मा को कमज़ोर भी बनाता है । निष्ठुर मनुष्य से कहीं गुणा अधिक दुःख उस मनुष्य को झेलना पड़ता है जिसका मन कोमल है, जिसके अंदर संवेदनाएं हैं । ऐसे मनुष्य को अपने दुःख से अधिक अपनों का दुःख पीड़ित करता है ।
पिता जी अचानक ही बिस्तर पकड़ चुके थे । हर जगह हर तरह से इलाज चल रहा था मगर उनकी पीड़ा हर रोज़ हर दिन बढ़ती जाती थी । ना दिमाग संतुलित था ना शरीर की पीड़ा कम हो रही थी । ऐसे समय में हमारी क्या हालत होगी इसका अंदाज़ा बहुत ही कम लोगों को होगा । इन्हीं दिनों एक रात जब पिता जी की हालत पहले से बहुत बिगड़ गई और वो एक दम बेचैन हो गये । तीन रातों से उनकी पलकें एक मिनट के लिए भी नहीं झपकी थीं । रात के साढ़े दस बज रहे थे, पिता जी की बेचैनी बिना थके बढ़ते हुए हम लोगों के मन तक आ गई थी ।
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है । बीस दिन हाॅस्पिटल में रखने के बाद लाखों रुपये ऐंठ कर बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे डाॅक्टरों ने कहा कि "कोई खास दिक्कत नहीं । हमने अपना ट्रीटमेंट कर दिया अब दवाईयों से आराम आजायेगा आप इन्हें घर ले जाईए ।"
मगर घर आकर उनकी बेचैनी और पीड़ा और बढ़ गई थी । उस रात संयम टूट चुका था, मगर करें तो क्या करें कुछ समझ नहीं आरहा था । पिता जी को नींद के लिए तड़पते देख आत्मा छिल रही थी । शून्य की स्थिति में जा चुके मन में अचानक कुछ हलचल मची । मैं उठा और नहाने लगा । माँ हैरान थी मगर कुछ नहीं बोलीं । मैं नहा कर कटोरी में गंगाजल ले कर शिवालय की ओर बढ़ा । मन ही मन रोता रहा मगर महादेव से कहा कुछ नहीं । मेरी एक बहुत बुरी आदत है, मैने आज तक महादेव से कुछ नहीं मांगा कभी नहीं । मैं बस उन्हें नमन करता हूँ और मन ही मन रो लेता हूँ, मेरा मानना है कि वो खुद मेरी पीड़ा को समझ लेंगे, भावनाओं से बढ़ कर कोई शब्द नहीं और इसकी भाषा मेरे महादेव अच्छे से समझते हैं ।
मैने गंगाजल को कुछ मंत्रों से अभिमंत्रित किया, महादेव को नमन किया और वो जल पिता जी को पिला दिया । मैं खुद इस पर यकी नहीं कर पा रहा था कि ऐसा करने के कुछ देर बाद ही पिता जी गहरी नींद में थे । पीड़ा भले खत्म नहीं हुई मगर उस रात उन्हें कुछ आराम ज़रूर मिला ।
जिस दिन पिता जी हमें छोड़ कर गये उस दिन जब मैं कमरे में गया तो खुद को संभालना इस तरह था जैसे संपूर्ण श्रृष्टि मेरे कंधों पर हो और मुझे उसका भार उठाए मीलों चलना हो । कोई कह रहा था अभी सांस बाकि है, कोई कह रहा था नहीं अब खत्म, माँ चिल्ला रही थी, भाई बेसुद्ध थे । मैं बड़ा था मुझे सबको संभालना था मगर मेरी हिम्मत खत्म होती जा रही थी । मैं बिना कुछ सोचे समझे शिवालय की तरफ भागा, शिवलिंग को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने आँसुओं से उसका अभिषेक करते हुए जीवन में पहली बार महादेव से मांगा कि महादेव पापा को लौटा दो, महादेव पापा को लौटा दो । बार बार यही शब्द थे मेरी ज़ुबान पर ।
ऐसा लगा जैसे कोई पीठ पर हाथ रख कर कह रहा हो कि "बेटा ये नियती है, टाली नहीं जा सकती मगर हाँ मैं तुझे हिम्मत देता हूँ, खुद को और अपनों को संभालने की हिम्मत । मैं उठा बाहर गया । पिता जी को पास के हाॅस्पिटल ले जाया गया था इस उम्मीद में कि उनकी सांसे अभी चल रही हैं । मगर उनका पीला पड़ चुका चेहरा ये बता रहा था कि उन्हें गये हुए कई पल बीत गये । मेरी आँखों का पानी उस रात सूख गया था, क्योंकि मुझ में हिम्मत थी । पापा को लेकर मैं सबसे पहले अपनी हिम्मत छोड़ देने वालों में से था मगर आज मैं ही सबको हिम्मत दे रहा था । मुझे महादेव ने ये हिम्मत दी थी जिसके बिना ना जाने उस दिन क्या कर बैठता ।
मेरी दुर्गम परिस्थियाँ, मेरी पीड़ा, मेरा दुःख ये सब मेरी नियती है । मेरे कर्मों का लेखा जोखा । मैं नहीं जानता वे कौन से कर्म हैं जिनके बदले में मुझे ये सब झेलना पड़ रहा है । मैं जानता हूँ इसे ईश्वर भी नहीं बदल सकते, वो बस इससे निकलने का रास्ता बता सकते हैं इसे सहने की हिम्मत दे सकते हैं, इसीलिए मैं महादेव को कभी दोषी नहीं मानता । पिता जी ने सिखाया है कि महादेव को ज्य़ादा दुःख नहीं सुनाये जाते, वो खुद आपको हिम्मत देते हैं ।
मुझे भी मेरे महादेव से यही मिलता है, लड़ने की, आगे बढ़ने की हिम्मत । बाकि जो है सो मेरी नियती मेरे कर्म हैं । वो परमपिता हैं रास्ता दिखाएंगे उस रास्ते पर बढ़ते रहने की हिम्मत देंगे, मेरी रक्षा करते आए हैं और करते रहेंगे ।
महादेव आप सबकी रक्षा करें 🙏
हर हर महादेव
बम शंकर
धीरज झा
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