#दोस्ती (कहानी) "क्यों बे, आज फिर "भाभी जी" से झगड़ा हुआ क्या ? बोल ना क्या हुआ आज फिर गलिया दी क्या ?" भाभी जी शब्द पर ...
#दोस्ती (कहानी)
"क्यों बे, आज फिर "भाभी जी" से झगड़ा हुआ क्या ? बोल ना क्या हुआ आज फिर गलिया दी क्या ?" भाभी जी शब्द पर पूरा ज़ोर देते हुए विनय ने काऊंटर पर बैठे माधव को चिढ़ाते हुए कहा और फिर विनय और रौशन दोनों हंसने लगे ।
विनय माधव का इतना जिगरी दोस्त था कि दोनों को एक के सांस लेने के ढंग से पता लग जाता था कि कौन क्या सोच रहा है । कुछ दिनों से माधव की दुकान मंदी की मार झेल रही थी ऊपर से कुछ और भी परेशानियाँ थीं जिनमें वो उलझा रहता था सारा दिन । विनय को सब पता था कि बात क्या है मगर वो हर बार की तरह अपने बेतुके लतीफों और मज़ाक से माधव का ध्यान उसकी परेशानियों से हटाने की कोशिश कर रहा था ।
परेशानियाँ दुश्मन होती हैं खुशियों की और परेशानियों की कोख से जन्मी झुंझलाहट दुश्मन होती हैं रिश्तों की । इंसान अगर इस झुंझलाहट को पैदा होने से नहीं रोकता तो कितने रिश्ते भेंट चढ़ जाते हैं इस झुंझलाहट की वजह से ।
माधव जानता था कि विनय ये सब क्यों कर रहा है मगर आज उसका ध्यान परेशानियों से तो नहीं हटा मगर उसके बदले वो झुंझला ज़रूर गया । बहुत देर तक विनय का मज़ाक बर्दाश्त करने के बाद माधव ने हाथ में रखा 'की बोर्ड' ज़ोर से काऊंटर पर मारा और लाख खुद को रोकने के बाद भी गुस्से में बोल पड़ा "मा+×#$& साले, तुझे हर वक्त मज़ाक ही सूझता है । तुझे समझ नहीं आता कि किस हाल से गुज़र रहा हूँ मैं । अगर यही सब करना होता है तो मत आया कर मेरी दुकान पर । दफा हो जा यहाँ से ।" वैसे तो दोनों की दोस्ती में गालियाँ देना आम था मगर दोनों ने एक दूसरे को माँ बहन की गाली कभी भूल से भी नहीं दी थी ।
माधव को जब तक अपनी भूल का अहसास होता तब तक विनय अपने आँसुओं को रोकता हुआ अपनी बाईक स्टार्ट कर के निकल चुका था । माधव ने रौशन की तरफ देखा तो उसने पाया कि रौशन की नज़रें उसे कह रही हैं कि तुमने ये सही नहीं किया और इतना कहने के बाद रौशन भी वहाँ से चला गया ।
माधव अब अपनी सारी परेशानियों को समेट कर एक तरफ़ रख चुका था, अब तो उसके दिमाग में बस एक ही बात थी कि विनय अब उसके पास लौट कर नहीं आएगा । मन एक भाग कोमल तो दूसरा बड़ा ढीठ होता है अपनी गलती जल्दी नहीं मानता । माधव के मन के दूसरे कोने ने उससे कहने लगा "माना कि तू ने गाली दी उसे मगर उसे भी तो ऐसे मज़ाक नहीं करना चाहिए था ना । अगर वो नहीं आएगा तो ना आए उसके बिना तू मर नहीं जाएगा ।" ये सब सुन कर भी माधव के मन का कोमल कोना चुप था क्योंकि उसे पता था माधव और विनय की दोस्ती इतनी कमज़ोर नहीं है कि मन के बहलाने से बहल जाए ।
जैसे तैसे रात बीती, माधव को पूरी उम्मीद थी की विनय हमेशा की तरह दुकान खुलने के टाईम उसे लेने आएगा । मगर वो नहीं आया । माधव ये सोच कर दुकान पर पहुंचा कि हो सकता है उसे कोई काम आ गया हो और वो थोड़ी देर बाद आए । ऐसे ही खुद को समझाते समझाते शाम हो गयी मगर विनय नहीं आया । माधव आज दोपहर में घर खाना खाने भी नहीं आया था और अब रात को भी उसे भूख नहीं थी । बार बार माँ के कहने पर दो रोटियाँ निगल लीं माधव ने और चुप चाप सो गया ।
आज सुबह भी विनय नहीं आया था । मन का कठोर कोना उसे लगातार भड़का रहा था मगर अब उस कोने की आवाज़ धीमी पड़ती जा रही थी । बारह बजे के करीब जब माधव के बर्दाश्त की हद हो गयी तो उसने विनय को फोन लगाया । दो बार पूरी रिंग जाने पर भी फोन नहीं उठाया गया । माधव समझ गया कि विनय उससे बहुत नाराज़ है और अब कभी भी फोन नहीं उठाएगा । मगर दस मिनट बाद माधव के मोबाईल स्क्रीन पर राघव का नंबर झिलमिलाने लगा ।
माधव ने बिना देर किये फोन उठाया
"हैलो ।"
"हाँ हैलो, कहाँ था ? फोन नहीं उठाया ।"
"वो यार वाॅशरूम गया था । अभी देखा ।"
"ओह, अच्छा कल से दुकान पर नहीं आ रहा ? नाराज़ है क्या ?"
"अरे नहीं यार वो तबीयत ठीक नहीं थी कल से बस आराम कर रहा था ।"
"अच्छा, मगर तू ने बताया भी नहीं । अब कैसा है ?"
"अब आराम है ।"
"तो अब आयेगा दुकान पर ?"
"मम्मी को मार्केट ले जाना है । तो उन्हें सामान दिलवा कर दो घन्टे तक आता हूँ ।"
फोन कट गया । बात करते वक्त ऐसा लगा कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं मगर माधव जानता था कि विनय को बात लगी है क्योंकि सामने से या फोन पर इन दोनों के बीच आज तक इतनी नाॅर्मल बात कभी हुई ही नहीं ।
बेचैनी से दो घन्टे बिताने के बाद अब घड़ी की हर टिक टिक पर माधव का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा । इतना तो वो शायद अपनी ऑनलाईन गर्लफ्रेंड को सामने से मिलने पर भी नहीं घबराया था जितना आज विनय का सामना करने से घबरा रहा था ।
लगभग साढ़े तीन घंटे बाद विनय की बाईक दुकान के बाहर रुकी । आज उसकी बाईक के रुकने के अंदाज़ से ही लग रहा था कि बाईक भी उदास और सुस्त है ।
थोड़ी बहुत इधर उधर की बात करने के बाद माधव ने हिम्मत कर के पूछ लिया "नाराज़ है क्या ?"
"नहीं तो । नाराज़ क्यों रहूंगा ?"
"नहीं परसो मैं ज़्यादा ही गुस्सा हो गया था ना, इसलिये लगा कि शायद...।"
"तू पैदाईशी खड़ूस है । अगर तेरे गुस्सा होने की वजह से मैं नाराज़ होता रहूँ फिर तो शायद हम कभी बात ही ना कर पाएं ।" विनय मुस्कुरा दिया
"गाली के लिए साॅरी यार ।" दोनों आँखों में एक एक आँसू किनारों पर आ गया जिसे माधव ने बड़ी मुश्किल से रोका था ।
"सुन मेरी बात, तू मेरा दोस्त कम भाई ज़्यादा है और ये मैं ही नहीं तू भी जानता है और मैं सिर्फ तेरा भाई नहीं बल्कि मेरी बहन तेरी बहन और मेरी माँ तेरी माँ है तेरे लिए ये भी जानता हूँ । वो गुस्सा था जिसमें गालियाँ निकल गईं और वो तू ने मन से नहीं दीं और अगर दी भी होंगी मन से तो भला मैं क्तों बुरा मानूं ओ तेरी भी माँ है तू समझ ।" विनय एक ही सांस में अपनी सारी बात समझा गया माधव को ।
माधव अब उन लटके आँसुओं को बांधे रखने में नाकाम रहा और दोनो आँखों के आँसु एक समार रेखा खींचते हुए आकर होंठ पर मिल गये । माधव ने विनय का हाथ दबाते हुए मन ही मन उसका शुक्रिया किया ।
"तेरा रोना हो जाये तो चल सिगरेट पी लेते हैं । तेरे गुस्से के चक्कर में साली परसों शाम से नसीब नहीं हुई ।" विनय की बात पर माधव हंस पड़ा । दुकान का शटर आधे तक गिरा कर दोनों बाईक पे सवार हो कर अपने सिगरेट वाले अड्डे की तरफ़ चल दिये ।
धीरज झा
"क्यों बे, आज फिर "भाभी जी" से झगड़ा हुआ क्या ? बोल ना क्या हुआ आज फिर गलिया दी क्या ?" भाभी जी शब्द पर पूरा ज़ोर देते हुए विनय ने काऊंटर पर बैठे माधव को चिढ़ाते हुए कहा और फिर विनय और रौशन दोनों हंसने लगे ।
विनय माधव का इतना जिगरी दोस्त था कि दोनों को एक के सांस लेने के ढंग से पता लग जाता था कि कौन क्या सोच रहा है । कुछ दिनों से माधव की दुकान मंदी की मार झेल रही थी ऊपर से कुछ और भी परेशानियाँ थीं जिनमें वो उलझा रहता था सारा दिन । विनय को सब पता था कि बात क्या है मगर वो हर बार की तरह अपने बेतुके लतीफों और मज़ाक से माधव का ध्यान उसकी परेशानियों से हटाने की कोशिश कर रहा था ।
परेशानियाँ दुश्मन होती हैं खुशियों की और परेशानियों की कोख से जन्मी झुंझलाहट दुश्मन होती हैं रिश्तों की । इंसान अगर इस झुंझलाहट को पैदा होने से नहीं रोकता तो कितने रिश्ते भेंट चढ़ जाते हैं इस झुंझलाहट की वजह से ।
माधव जानता था कि विनय ये सब क्यों कर रहा है मगर आज उसका ध्यान परेशानियों से तो नहीं हटा मगर उसके बदले वो झुंझला ज़रूर गया । बहुत देर तक विनय का मज़ाक बर्दाश्त करने के बाद माधव ने हाथ में रखा 'की बोर्ड' ज़ोर से काऊंटर पर मारा और लाख खुद को रोकने के बाद भी गुस्से में बोल पड़ा "मा+×#$& साले, तुझे हर वक्त मज़ाक ही सूझता है । तुझे समझ नहीं आता कि किस हाल से गुज़र रहा हूँ मैं । अगर यही सब करना होता है तो मत आया कर मेरी दुकान पर । दफा हो जा यहाँ से ।" वैसे तो दोनों की दोस्ती में गालियाँ देना आम था मगर दोनों ने एक दूसरे को माँ बहन की गाली कभी भूल से भी नहीं दी थी ।
माधव को जब तक अपनी भूल का अहसास होता तब तक विनय अपने आँसुओं को रोकता हुआ अपनी बाईक स्टार्ट कर के निकल चुका था । माधव ने रौशन की तरफ देखा तो उसने पाया कि रौशन की नज़रें उसे कह रही हैं कि तुमने ये सही नहीं किया और इतना कहने के बाद रौशन भी वहाँ से चला गया ।
माधव अब अपनी सारी परेशानियों को समेट कर एक तरफ़ रख चुका था, अब तो उसके दिमाग में बस एक ही बात थी कि विनय अब उसके पास लौट कर नहीं आएगा । मन एक भाग कोमल तो दूसरा बड़ा ढीठ होता है अपनी गलती जल्दी नहीं मानता । माधव के मन के दूसरे कोने ने उससे कहने लगा "माना कि तू ने गाली दी उसे मगर उसे भी तो ऐसे मज़ाक नहीं करना चाहिए था ना । अगर वो नहीं आएगा तो ना आए उसके बिना तू मर नहीं जाएगा ।" ये सब सुन कर भी माधव के मन का कोमल कोना चुप था क्योंकि उसे पता था माधव और विनय की दोस्ती इतनी कमज़ोर नहीं है कि मन के बहलाने से बहल जाए ।
जैसे तैसे रात बीती, माधव को पूरी उम्मीद थी की विनय हमेशा की तरह दुकान खुलने के टाईम उसे लेने आएगा । मगर वो नहीं आया । माधव ये सोच कर दुकान पर पहुंचा कि हो सकता है उसे कोई काम आ गया हो और वो थोड़ी देर बाद आए । ऐसे ही खुद को समझाते समझाते शाम हो गयी मगर विनय नहीं आया । माधव आज दोपहर में घर खाना खाने भी नहीं आया था और अब रात को भी उसे भूख नहीं थी । बार बार माँ के कहने पर दो रोटियाँ निगल लीं माधव ने और चुप चाप सो गया ।
आज सुबह भी विनय नहीं आया था । मन का कठोर कोना उसे लगातार भड़का रहा था मगर अब उस कोने की आवाज़ धीमी पड़ती जा रही थी । बारह बजे के करीब जब माधव के बर्दाश्त की हद हो गयी तो उसने विनय को फोन लगाया । दो बार पूरी रिंग जाने पर भी फोन नहीं उठाया गया । माधव समझ गया कि विनय उससे बहुत नाराज़ है और अब कभी भी फोन नहीं उठाएगा । मगर दस मिनट बाद माधव के मोबाईल स्क्रीन पर राघव का नंबर झिलमिलाने लगा ।
माधव ने बिना देर किये फोन उठाया
"हैलो ।"
"हाँ हैलो, कहाँ था ? फोन नहीं उठाया ।"
"वो यार वाॅशरूम गया था । अभी देखा ।"
"ओह, अच्छा कल से दुकान पर नहीं आ रहा ? नाराज़ है क्या ?"
"अरे नहीं यार वो तबीयत ठीक नहीं थी कल से बस आराम कर रहा था ।"
"अच्छा, मगर तू ने बताया भी नहीं । अब कैसा है ?"
"अब आराम है ।"
"तो अब आयेगा दुकान पर ?"
"मम्मी को मार्केट ले जाना है । तो उन्हें सामान दिलवा कर दो घन्टे तक आता हूँ ।"
फोन कट गया । बात करते वक्त ऐसा लगा कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं मगर माधव जानता था कि विनय को बात लगी है क्योंकि सामने से या फोन पर इन दोनों के बीच आज तक इतनी नाॅर्मल बात कभी हुई ही नहीं ।
बेचैनी से दो घन्टे बिताने के बाद अब घड़ी की हर टिक टिक पर माधव का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा । इतना तो वो शायद अपनी ऑनलाईन गर्लफ्रेंड को सामने से मिलने पर भी नहीं घबराया था जितना आज विनय का सामना करने से घबरा रहा था ।
लगभग साढ़े तीन घंटे बाद विनय की बाईक दुकान के बाहर रुकी । आज उसकी बाईक के रुकने के अंदाज़ से ही लग रहा था कि बाईक भी उदास और सुस्त है ।
थोड़ी बहुत इधर उधर की बात करने के बाद माधव ने हिम्मत कर के पूछ लिया "नाराज़ है क्या ?"
"नहीं तो । नाराज़ क्यों रहूंगा ?"
"नहीं परसो मैं ज़्यादा ही गुस्सा हो गया था ना, इसलिये लगा कि शायद...।"
"तू पैदाईशी खड़ूस है । अगर तेरे गुस्सा होने की वजह से मैं नाराज़ होता रहूँ फिर तो शायद हम कभी बात ही ना कर पाएं ।" विनय मुस्कुरा दिया
"गाली के लिए साॅरी यार ।" दोनों आँखों में एक एक आँसू किनारों पर आ गया जिसे माधव ने बड़ी मुश्किल से रोका था ।
"सुन मेरी बात, तू मेरा दोस्त कम भाई ज़्यादा है और ये मैं ही नहीं तू भी जानता है और मैं सिर्फ तेरा भाई नहीं बल्कि मेरी बहन तेरी बहन और मेरी माँ तेरी माँ है तेरे लिए ये भी जानता हूँ । वो गुस्सा था जिसमें गालियाँ निकल गईं और वो तू ने मन से नहीं दीं और अगर दी भी होंगी मन से तो भला मैं क्तों बुरा मानूं ओ तेरी भी माँ है तू समझ ।" विनय एक ही सांस में अपनी सारी बात समझा गया माधव को ।
माधव अब उन लटके आँसुओं को बांधे रखने में नाकाम रहा और दोनो आँखों के आँसु एक समार रेखा खींचते हुए आकर होंठ पर मिल गये । माधव ने विनय का हाथ दबाते हुए मन ही मन उसका शुक्रिया किया ।
"तेरा रोना हो जाये तो चल सिगरेट पी लेते हैं । तेरे गुस्से के चक्कर में साली परसों शाम से नसीब नहीं हुई ।" विनय की बात पर माधव हंस पड़ा । दुकान का शटर आधे तक गिरा कर दोनों बाईक पे सवार हो कर अपने सिगरेट वाले अड्डे की तरफ़ चल दिये ।
धीरज झा
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