#मुझे_यकीन_था_वो_आयेगा (रक्षबंधन स्पैश्ल कहानी) ******************************************************* मेरी ये कहानी मेरी उन सभी बहनों को ...
#मुझे_यकीन_था_वो_आयेगा (रक्षबंधन स्पैश्ल कहानी)
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मेरी ये कहानी मेरी उन सभी बहनों को समर्पित है जो फेसबुक से जुड़ कर मेरे दिल में अपनी जगह और सम्मान बना गयीं
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"सारा दिन घर के काम करो और फिर इन लोगों की बातें भी सुनों । अपना सामान खुद नहीं संभालना होता और जब गुम हो जाए तो मुझ पर आ कर रौब जमाओ । पता नहीं मेरी किस्मत में ही गुलामी लिखी है, शादी हुई तो सास ससुर की गुलामी, बाहर आ गये तो इनके पिता की गुलामी और अब इन बच्चों की गुलामी । ऐसे ही एक दिन मर जाओ ।" सरिता आज सुबह से ही झुंझलाई हुई थी । बेटे आशीष ने एक बार ही कहा माँ मेरी साईंस की बुक नहीं मिल रही और तब से सरिता घर के कोने कोने में ढूंढ रही है और साथ में यही सब बड़बड़ा रही है । गीतिका और आशीष एक दूसरे का चेहरा देख रहे कि आखिर माँ को हो क्या गया ।
"माँ, ये रही बुक, ड्राईंग रूम में टेबल पर ही पड़ी थी ।" आठ साल की गीतिका ने माँ के मूड को भांप कर डरते हुए कहा ।
"हम्म, ठीक है, भईया को दे दो ।" गीतिका का सहमा चेहरा देख सरिता को अहसास हुआ कि वो बच्चों पर बेफिज़ूल में ही गुस्सा कर रही है ।
फेसबुक पर अपने मन की हर छोटी बड़ी बात लिखने वाली सरिता ने आज एक बार भी फोन को हाथ नहीं लगाया था । आफिस जाते हुए गोपाल भी अच्छे से नहीं बुलाया बस नाशता और टिफिन दे कर अपने काम में लग गयी । गोपाल सब समझता था इसीलिए चुपचाप ऑफिस के लिए निकल गया ।
अब सरिता खुद को थोड़ा शांत करने की कोशिश कर रही थी मगर ना जाने क्यों आज वो हवा के आसरे लहराती हुई कटी पतंग बन गयी थी जिसका खुद पर कोई ज़ोर नहीं चल रहा था । अभी अभी उसने सोचा कि आज उसने सबका मन खराब किया है इसलिए वो रात के खाने में सबके पसंद की डिशिज़ बनाएगी जिससे सब खुश हो जाएं । बच्चे अपने कमरे में बैठे पढ़ रहे थे । सरिता अपने मन को शांत करने की कोशिश करते हुए खाना बना रही थी । कुछ पुराने ख़याल उसके ज़हन को इस तरह खरोंच रहे थे कि उसकी आँखों में ना चाहते हुए भी दर्द भर आया था ।
वो बुरी तरह चिल्ला कर रो देती उससे पहले ही दरवाज़े की घंटी बजी । आशीष ने दरवाज़ा खोला तो कोई अंजान सा चेहरा हाथ में चमचमाता बाॅक्स लिए खड़ा था ।
"तुम आशू हो ना ?" उस अंजान चेहरे पर सजे खुबसूरत होंठों ने मुस्कुराते हुए पूछा ।
"जी हाँ, पर आप कौन ?"
"मैं कौन ये तो अब आपकी मम्मी ही बताएंगी । कहाँ हैं वो ?"
"किचन में हैं । मैं बुलाता हूँ ।" इतना कह कर आशीष सरिता को बुलाने चला गया ।
"माँ, बाहर कोई अंकल आए हैं ।"
"ये कौन अंकल आगये इस वक्त ।" ये सोचते हुए सरिता बाहर निकली ।
दरवाज़े पर देखा तो एक छब्बीस सत्ताईस साल का लड़का हाथ में कुछ गिफ्टस् पैक जैसा लिये खड़ा था । दो मिनट उसके चेहरे को ग़ौर से देखने पर सरिता उसे पहचान गयी ।
"अरे समीर, तुम ! व्हाॅट ए प्लैज़ेंट सरप्राईज़ ।" सरिता ने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए कहा ।
"कैसी हैं दी ?" समीर ने मुस्कुरा कर सरिता का हाल पूछा ।
"मैं तो ठीक हूँ । पर तुम अचानक यहाँ कैसे ? तुम्हें तो घर का पता भी ठीक से नहीं मालूम था, फिर कैसे पहुंच गये । ना कोई मैसेज ना फोन ?" सरिता की आँखों में हैरानी और खुशी दोनों के मिले जुले भाव झलक रहे थे ।
"दी एक सलाह दूं ?" अचानक से ऐसा बोलने पर सरिता और हैरान हो गयी ।
"हाँ भोलो ना ।" अपनी हैरानी को दबाते हुए बोली
"अगर आप मेहमानों से ऐसे ही दरवाज़े पर खड़ा रख कर बात करती हैं तो अच्छा होगा यहाँ एक कुर्सी लगवा दें । मेरे जैसे।कुछ आलसी खड़े खड़े थक भी जाते हैं ।" समीर के इस व्यंग से सरिता को ख़याल आया कि अभी तक समीर बाहर ही खड़ा है । अपनी गलती का ध्यान आते सरिता शर्मा गयी और फिर समीर की बात पर हंसने लगी ।
"हाहाहाहा नहीं नहीं, वो तुमें अचानक देख कर इतनी हैरान हो गयी कि ध्यान ही नहीं रहा । आओ ना तुम्हारा अपना घर है ।" इतना कह कर सरिता समीर को अंदर बुला लाई । बच्चे अभी तक इस दुविधा में फंसे थे कि वो बस कभी अपनी माँ तो कभी समीर की सूरत निहार रहे थे ।
"माँ ये कौन हैं ?" छोटी सी गीतिका ने अपनी माँ के कान में फुसफुसाते।हुए सवाल किया ।
"बेटा ये वही समीर मामू हैं जिनसे फोन पर बात होती है । नमस्ते करो ।" बच्चों ने समीर को पहचान लिया क्योंकि उससे बच्चों की हमेशा बात कराया करती थी सरिता । बच्चों से समीर को नमस्ते की तो समीर ने अपने बैग से बड़ी बड़ी दो चाॅक्लेट्स निकार कर दोनों के हाथ में थमा दी ।
"दी अचानक से आगया, इससे कोई परेशानी तो नहीं हुई ना ।"
"अरे पगलू हो क्या ? तुम और मैं पिछले तीन साल से भाई बहन का रिश्ता निभा रहे हैं । ऐसा लगता है जैसे बच्चपन से जानती हूँ तुम्हें । हर खास दिन पर तुम्हारा घंटो फोन आता है । हाँ बस थोड़ा अच्छा इसलिए नहीं लग रहा।कि पहले बता दिये होते आने के बारे में तो सारा इंतज़ाम कर के रखती ।"
"पहले बता दिया होता तो आपके चेहरे पर सजी ये खुशी और हैरानी के मिले जुले भाव कैसे देख पाता ।" इस पर सरिता मुस्कुरा दी
"अच्छा मैं पहले ही बहुत लेट हूँ तो आप जल्दी से मुझे राखी बांध दीजिए ।" समीर की बात सुन कर सरिता की आँखों में ना जाने क्यों आँसू मुस्कुरा उठे ।
जल्दी जल्दी सरिता पूजा के कमरे में से सजी सजाई राखी की थाल उठा लाई । उसने समीर को राखी बांधी और उस दौरान वो समीर के चेहरे में कुछ तलाशती रही, शायद वो किसी अपने का चेहरा तलाश रही थी जो उसे समीर के चेहरे में साफ दिख रहा था । समीर ने वो गिफ्ट पैक जो वो अपने साथ लाया था वो सरिता को दिया । पहले तो सरिता ने साफ मना किया पर फिर समीर के कई बार आग्रह पर उसे लेना पड़ा ।
इसके बाद समीर बच्चों के साथ बातें करने लगा इतने में सरिता ने खाना लगा दिया । समीर ने भी बड़े चाव से खाना शुरू किया ।
"अच्छा समीर ये सब कैसे प्लाॅन किया तुमने । अभी परसो हमारी बात हुई पर तुमने आने का कोई ज़िक्र नहीं किया ।"
"दी तीन साल से हम फेसबुक पर सा हैं । इस दौरान आपकी सभी पोस्ट जिन्हें आप दिल की बातों के हैश टैग में लिखती हैं वो सब दिल से महसूस की हैं मैने । मेरी हर चिंता फिक्र को आपने बड़ी बहन बन कर बांटा है हमेशा । हमेशा मेरी सहायता के लिए तैयार रही हैं आप । कल जब अपनी छोटी बहन के पास बैठा था और फिर ऐसे ही बातें होने लगीं तो मैने आपकी पिछले साल की पोस्ट का ज़िक्र किया।जिसने आपने कहा था कि "कोई भी खास दिन या त्यौहार किसी खास से जुड़ा होता है और उसके रूठ जाते ही उस खास दिन के मायने भी बदल जाते हैं । फिर वो खास दिन जो कभी बेशुमार खुशियाँ दिया करते थे बाद में शूलों की तरह चुभते हैं ।" मैने कभी आपने नहीं पूछा कि आखिर क्या है ऐसा जो आपको इतना दुःखी करता है मगर आपका दर्द हमेशा महसूस किया है । मैं फेसबुक से जुड़ा था इसी लिए पर्सनल होना मुझे कभी सही नहीं लगा । यही सब भातें मैने जब बहन से बताईं तो उसने मुझसे कहा कि भईया हो सरिता दी हम सब से भले ना मिली हों मगर जब फोन आता है तो लगता ही नहीं कि वो हम सब से अलग हैं । आप कल उनके यहाँ जाईए और राखी बंधवाईए, उन्हें खुशी होगी और उनकी यही खुशी मेरे लिए आपका गिफ्ट होगा ।" मैं मुस्कुरा दिया उसकी बात सुन कर क्योंकि मैने पहले से ये सोच रखा था । पता मैने जीजू से ले लिया था और उन्हें कहा कि आपको ना बताएं । वो कुछ देर में आते ही होंगे ।"
ये सब सुन कर सरिता की आँखें ना चाहते हुए भी छलक पड़ीं । आज सुबह से वो जितना दुःखी थी उससे कहीं ज़्यादा वो इस वक्त खुश थी । उसके मन में इतनी खुशी भर गयी थी कि उसकी आँखों से छलकने लगी थी अब ।
"समीर, तुम नहीं जानते आज तुमने मुझे क्या कितना कीमती तोहफा दिया है । तुमने मेरे अंदर की वो कमी पूरी कर दी जिसने मुझे हमेशा अधूरा रखा । मेरा भाई रमन जो मुझे दुनिया की हर चीज़ से बढ़ कर प्यार करता था वो मुझसे ऐसे मुँह मोड़ गया जैसे मैं कभी थी ही नहीं । मैं पूरा साल अपने आप को बांधे रखती थी मगर इस दिन आकर टूट जाती थी । हर साल राखी की थाली इसी आस में तैयार रखती थी कि वो इस बार पक्का आयेगा मगर हर बार भूल जाती थी कि वो अब कभी नहीं आ सकता । ये राखी का दिन मुझे कचोटता है समीर पागल कर देता है ।" सरिता रो पड़ी
"वो दूर था मुझसे, मैने ही उसे ज़िद में आकर कहा था कि हर हाल में राखी पर आना है । मेरी ज़िद्द पूरी करने के लिए ही वो आरहा था मगर रास्ते में ही ना जाने कहाँ खो गया कि फिर दोबारा घर नहीं लौटा । मैं सोचती हूँ तो खुद से चिढ़ लगती है मुझे, मैं ज़िद्द ना करती तो वो ज़िंदा होता आज । मेरा प्यार ही उसके लिए काल बन गया । मगर मैने कभी नहीं माना कि वो चला गया है, मुझे हमेशा लगता था वो आयेगा । सब मुझे पागल समझते थे मगर देख समीर आज रमन आगया । आज इतनी तपस्या के बाद मुझे मेरा रमन मेरे समीर के रूप में मिल गया । आज मेरी राखी की थाली यूं ही पड़ी नहीं रही ।" समीर का राखी वाले हाथ पर सर रख के सरिता फूट फूट कर रो पड़ी और बच्चे उससे लिपट गये ।
"साॅरी दी, मैने आने में बहुत वक्त लगा दिया । मुझे बहुत पहले आजाना चाहिए था । मगर अब वादा करता हूँ मैं कभी आपको छोड़ कर नहीं जाऊंगा ।" समीर भी खुद को भावनाओं की इस लहर में बहने से ना रोक पाया और फूट फूट कर रो पड़ा ।
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कई बार भगवान आपके हिस्से से कोई चीज़ आपको नहीं देता जिससे आपको कई बार उसकी कमी बहुत महसूस होती है । मगर असल बात ये है कि अगर आपके पास वो एक चीज़ नहीं तब ही आप उसका असल महत्व जान पाते हैं और उस चीज़ के प्रति आपका सम्मान बढ़ता जाता है । फिर आपको बाहर बाहर से ही वो चीज़ इतनी ज़्यादा मिल जाती है कि आपको अहसास ही नहीं होता कि आपके खुद के पास वो नहीं है ।
अब मुझे ही देख लीजिए । हम तीन भाई, सगी बहन का खाता निल मगर इस बात का जब तक हमको अफ़सोस होता तब तक हमारे पास दो बहने थीं । और उन दो बहनों ने कभी ऐसा महसूस ही नहीं होने दिया कि मेरी कोई बहन नहीं । मुझ बिना बहन वाले भाई को स्नेह मिलने का सिलसिला यहीं नहीं थमा । आज फेसबुक बेहतरीन से लेकर बेकार तक हर तरह की सामग्री का बाज़ार है, बिल्कुल इस दुनिया की तरह । अब आप पर है आप यहाँ क्या चुनते हैं । मैने यहाँ रिश्ते कमाए हैं, हर तरह का रिश्ता और हर रिश्ते को दिल में जगह दी। बिना पाने की उम्मीद किये हर रिश्ता निभाया । आज के दिन जब मुझे रोना चाहिए कि मेरी कोई बहन नहीं तब मैं फूला नहीं समा रहा क्योंकि मेरे हाथ में पाँच राखियाँ और ढेरों दुआएं हैं उन सभी बहनों कीं जिन्होंने इस मंच से मुझ कांच खे टुकड़े को भाई नाम का हीरा बना कर अपने रिश्तों की माला में जोड़ लिया । शालिनी दी कहती हैं कि बात हो ना हो मगर स्नेह बना रहना चाहिए । सच में भले ही मैं इन सभी बहनों से बात नहीं कर पाता मगर सबका स्नेह मेरे साथ हमेशा बना रहा और हमेशा बना रहेगा । Shalini दी, इंदर दी, आशू दी, राधिका बहिनी, पूनम दी इन सबसे बात हो गयी । और जो बहनें बच गयीं उन सबको यहीं सेरक्षाबंधन की शुभकनाएं । सभी बहनें हमेशा खुश रहें, उनकी हर मनोकना पूरी हो । साथ ही साथ सबको ढेर सारा स्नेह ।
आप सबका भाई
धीरज झा
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मेरी ये कहानी मेरी उन सभी बहनों को समर्पित है जो फेसबुक से जुड़ कर मेरे दिल में अपनी जगह और सम्मान बना गयीं
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"सारा दिन घर के काम करो और फिर इन लोगों की बातें भी सुनों । अपना सामान खुद नहीं संभालना होता और जब गुम हो जाए तो मुझ पर आ कर रौब जमाओ । पता नहीं मेरी किस्मत में ही गुलामी लिखी है, शादी हुई तो सास ससुर की गुलामी, बाहर आ गये तो इनके पिता की गुलामी और अब इन बच्चों की गुलामी । ऐसे ही एक दिन मर जाओ ।" सरिता आज सुबह से ही झुंझलाई हुई थी । बेटे आशीष ने एक बार ही कहा माँ मेरी साईंस की बुक नहीं मिल रही और तब से सरिता घर के कोने कोने में ढूंढ रही है और साथ में यही सब बड़बड़ा रही है । गीतिका और आशीष एक दूसरे का चेहरा देख रहे कि आखिर माँ को हो क्या गया ।
"माँ, ये रही बुक, ड्राईंग रूम में टेबल पर ही पड़ी थी ।" आठ साल की गीतिका ने माँ के मूड को भांप कर डरते हुए कहा ।
"हम्म, ठीक है, भईया को दे दो ।" गीतिका का सहमा चेहरा देख सरिता को अहसास हुआ कि वो बच्चों पर बेफिज़ूल में ही गुस्सा कर रही है ।
फेसबुक पर अपने मन की हर छोटी बड़ी बात लिखने वाली सरिता ने आज एक बार भी फोन को हाथ नहीं लगाया था । आफिस जाते हुए गोपाल भी अच्छे से नहीं बुलाया बस नाशता और टिफिन दे कर अपने काम में लग गयी । गोपाल सब समझता था इसीलिए चुपचाप ऑफिस के लिए निकल गया ।
अब सरिता खुद को थोड़ा शांत करने की कोशिश कर रही थी मगर ना जाने क्यों आज वो हवा के आसरे लहराती हुई कटी पतंग बन गयी थी जिसका खुद पर कोई ज़ोर नहीं चल रहा था । अभी अभी उसने सोचा कि आज उसने सबका मन खराब किया है इसलिए वो रात के खाने में सबके पसंद की डिशिज़ बनाएगी जिससे सब खुश हो जाएं । बच्चे अपने कमरे में बैठे पढ़ रहे थे । सरिता अपने मन को शांत करने की कोशिश करते हुए खाना बना रही थी । कुछ पुराने ख़याल उसके ज़हन को इस तरह खरोंच रहे थे कि उसकी आँखों में ना चाहते हुए भी दर्द भर आया था ।
वो बुरी तरह चिल्ला कर रो देती उससे पहले ही दरवाज़े की घंटी बजी । आशीष ने दरवाज़ा खोला तो कोई अंजान सा चेहरा हाथ में चमचमाता बाॅक्स लिए खड़ा था ।
"तुम आशू हो ना ?" उस अंजान चेहरे पर सजे खुबसूरत होंठों ने मुस्कुराते हुए पूछा ।
"जी हाँ, पर आप कौन ?"
"मैं कौन ये तो अब आपकी मम्मी ही बताएंगी । कहाँ हैं वो ?"
"किचन में हैं । मैं बुलाता हूँ ।" इतना कह कर आशीष सरिता को बुलाने चला गया ।
"माँ, बाहर कोई अंकल आए हैं ।"
"ये कौन अंकल आगये इस वक्त ।" ये सोचते हुए सरिता बाहर निकली ।
दरवाज़े पर देखा तो एक छब्बीस सत्ताईस साल का लड़का हाथ में कुछ गिफ्टस् पैक जैसा लिये खड़ा था । दो मिनट उसके चेहरे को ग़ौर से देखने पर सरिता उसे पहचान गयी ।
"अरे समीर, तुम ! व्हाॅट ए प्लैज़ेंट सरप्राईज़ ।" सरिता ने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए कहा ।
"कैसी हैं दी ?" समीर ने मुस्कुरा कर सरिता का हाल पूछा ।
"मैं तो ठीक हूँ । पर तुम अचानक यहाँ कैसे ? तुम्हें तो घर का पता भी ठीक से नहीं मालूम था, फिर कैसे पहुंच गये । ना कोई मैसेज ना फोन ?" सरिता की आँखों में हैरानी और खुशी दोनों के मिले जुले भाव झलक रहे थे ।
"दी एक सलाह दूं ?" अचानक से ऐसा बोलने पर सरिता और हैरान हो गयी ।
"हाँ भोलो ना ।" अपनी हैरानी को दबाते हुए बोली
"अगर आप मेहमानों से ऐसे ही दरवाज़े पर खड़ा रख कर बात करती हैं तो अच्छा होगा यहाँ एक कुर्सी लगवा दें । मेरे जैसे।कुछ आलसी खड़े खड़े थक भी जाते हैं ।" समीर के इस व्यंग से सरिता को ख़याल आया कि अभी तक समीर बाहर ही खड़ा है । अपनी गलती का ध्यान आते सरिता शर्मा गयी और फिर समीर की बात पर हंसने लगी ।
"हाहाहाहा नहीं नहीं, वो तुमें अचानक देख कर इतनी हैरान हो गयी कि ध्यान ही नहीं रहा । आओ ना तुम्हारा अपना घर है ।" इतना कह कर सरिता समीर को अंदर बुला लाई । बच्चे अभी तक इस दुविधा में फंसे थे कि वो बस कभी अपनी माँ तो कभी समीर की सूरत निहार रहे थे ।
"माँ ये कौन हैं ?" छोटी सी गीतिका ने अपनी माँ के कान में फुसफुसाते।हुए सवाल किया ।
"बेटा ये वही समीर मामू हैं जिनसे फोन पर बात होती है । नमस्ते करो ।" बच्चों ने समीर को पहचान लिया क्योंकि उससे बच्चों की हमेशा बात कराया करती थी सरिता । बच्चों से समीर को नमस्ते की तो समीर ने अपने बैग से बड़ी बड़ी दो चाॅक्लेट्स निकार कर दोनों के हाथ में थमा दी ।
"दी अचानक से आगया, इससे कोई परेशानी तो नहीं हुई ना ।"
"अरे पगलू हो क्या ? तुम और मैं पिछले तीन साल से भाई बहन का रिश्ता निभा रहे हैं । ऐसा लगता है जैसे बच्चपन से जानती हूँ तुम्हें । हर खास दिन पर तुम्हारा घंटो फोन आता है । हाँ बस थोड़ा अच्छा इसलिए नहीं लग रहा।कि पहले बता दिये होते आने के बारे में तो सारा इंतज़ाम कर के रखती ।"
"पहले बता दिया होता तो आपके चेहरे पर सजी ये खुशी और हैरानी के मिले जुले भाव कैसे देख पाता ।" इस पर सरिता मुस्कुरा दी
"अच्छा मैं पहले ही बहुत लेट हूँ तो आप जल्दी से मुझे राखी बांध दीजिए ।" समीर की बात सुन कर सरिता की आँखों में ना जाने क्यों आँसू मुस्कुरा उठे ।
जल्दी जल्दी सरिता पूजा के कमरे में से सजी सजाई राखी की थाल उठा लाई । उसने समीर को राखी बांधी और उस दौरान वो समीर के चेहरे में कुछ तलाशती रही, शायद वो किसी अपने का चेहरा तलाश रही थी जो उसे समीर के चेहरे में साफ दिख रहा था । समीर ने वो गिफ्ट पैक जो वो अपने साथ लाया था वो सरिता को दिया । पहले तो सरिता ने साफ मना किया पर फिर समीर के कई बार आग्रह पर उसे लेना पड़ा ।
इसके बाद समीर बच्चों के साथ बातें करने लगा इतने में सरिता ने खाना लगा दिया । समीर ने भी बड़े चाव से खाना शुरू किया ।
"अच्छा समीर ये सब कैसे प्लाॅन किया तुमने । अभी परसो हमारी बात हुई पर तुमने आने का कोई ज़िक्र नहीं किया ।"
"दी तीन साल से हम फेसबुक पर सा हैं । इस दौरान आपकी सभी पोस्ट जिन्हें आप दिल की बातों के हैश टैग में लिखती हैं वो सब दिल से महसूस की हैं मैने । मेरी हर चिंता फिक्र को आपने बड़ी बहन बन कर बांटा है हमेशा । हमेशा मेरी सहायता के लिए तैयार रही हैं आप । कल जब अपनी छोटी बहन के पास बैठा था और फिर ऐसे ही बातें होने लगीं तो मैने आपकी पिछले साल की पोस्ट का ज़िक्र किया।जिसने आपने कहा था कि "कोई भी खास दिन या त्यौहार किसी खास से जुड़ा होता है और उसके रूठ जाते ही उस खास दिन के मायने भी बदल जाते हैं । फिर वो खास दिन जो कभी बेशुमार खुशियाँ दिया करते थे बाद में शूलों की तरह चुभते हैं ।" मैने कभी आपने नहीं पूछा कि आखिर क्या है ऐसा जो आपको इतना दुःखी करता है मगर आपका दर्द हमेशा महसूस किया है । मैं फेसबुक से जुड़ा था इसी लिए पर्सनल होना मुझे कभी सही नहीं लगा । यही सब भातें मैने जब बहन से बताईं तो उसने मुझसे कहा कि भईया हो सरिता दी हम सब से भले ना मिली हों मगर जब फोन आता है तो लगता ही नहीं कि वो हम सब से अलग हैं । आप कल उनके यहाँ जाईए और राखी बंधवाईए, उन्हें खुशी होगी और उनकी यही खुशी मेरे लिए आपका गिफ्ट होगा ।" मैं मुस्कुरा दिया उसकी बात सुन कर क्योंकि मैने पहले से ये सोच रखा था । पता मैने जीजू से ले लिया था और उन्हें कहा कि आपको ना बताएं । वो कुछ देर में आते ही होंगे ।"
ये सब सुन कर सरिता की आँखें ना चाहते हुए भी छलक पड़ीं । आज सुबह से वो जितना दुःखी थी उससे कहीं ज़्यादा वो इस वक्त खुश थी । उसके मन में इतनी खुशी भर गयी थी कि उसकी आँखों से छलकने लगी थी अब ।
"समीर, तुम नहीं जानते आज तुमने मुझे क्या कितना कीमती तोहफा दिया है । तुमने मेरे अंदर की वो कमी पूरी कर दी जिसने मुझे हमेशा अधूरा रखा । मेरा भाई रमन जो मुझे दुनिया की हर चीज़ से बढ़ कर प्यार करता था वो मुझसे ऐसे मुँह मोड़ गया जैसे मैं कभी थी ही नहीं । मैं पूरा साल अपने आप को बांधे रखती थी मगर इस दिन आकर टूट जाती थी । हर साल राखी की थाली इसी आस में तैयार रखती थी कि वो इस बार पक्का आयेगा मगर हर बार भूल जाती थी कि वो अब कभी नहीं आ सकता । ये राखी का दिन मुझे कचोटता है समीर पागल कर देता है ।" सरिता रो पड़ी
"वो दूर था मुझसे, मैने ही उसे ज़िद में आकर कहा था कि हर हाल में राखी पर आना है । मेरी ज़िद्द पूरी करने के लिए ही वो आरहा था मगर रास्ते में ही ना जाने कहाँ खो गया कि फिर दोबारा घर नहीं लौटा । मैं सोचती हूँ तो खुद से चिढ़ लगती है मुझे, मैं ज़िद्द ना करती तो वो ज़िंदा होता आज । मेरा प्यार ही उसके लिए काल बन गया । मगर मैने कभी नहीं माना कि वो चला गया है, मुझे हमेशा लगता था वो आयेगा । सब मुझे पागल समझते थे मगर देख समीर आज रमन आगया । आज इतनी तपस्या के बाद मुझे मेरा रमन मेरे समीर के रूप में मिल गया । आज मेरी राखी की थाली यूं ही पड़ी नहीं रही ।" समीर का राखी वाले हाथ पर सर रख के सरिता फूट फूट कर रो पड़ी और बच्चे उससे लिपट गये ।
"साॅरी दी, मैने आने में बहुत वक्त लगा दिया । मुझे बहुत पहले आजाना चाहिए था । मगर अब वादा करता हूँ मैं कभी आपको छोड़ कर नहीं जाऊंगा ।" समीर भी खुद को भावनाओं की इस लहर में बहने से ना रोक पाया और फूट फूट कर रो पड़ा ।
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कई बार भगवान आपके हिस्से से कोई चीज़ आपको नहीं देता जिससे आपको कई बार उसकी कमी बहुत महसूस होती है । मगर असल बात ये है कि अगर आपके पास वो एक चीज़ नहीं तब ही आप उसका असल महत्व जान पाते हैं और उस चीज़ के प्रति आपका सम्मान बढ़ता जाता है । फिर आपको बाहर बाहर से ही वो चीज़ इतनी ज़्यादा मिल जाती है कि आपको अहसास ही नहीं होता कि आपके खुद के पास वो नहीं है ।
अब मुझे ही देख लीजिए । हम तीन भाई, सगी बहन का खाता निल मगर इस बात का जब तक हमको अफ़सोस होता तब तक हमारे पास दो बहने थीं । और उन दो बहनों ने कभी ऐसा महसूस ही नहीं होने दिया कि मेरी कोई बहन नहीं । मुझ बिना बहन वाले भाई को स्नेह मिलने का सिलसिला यहीं नहीं थमा । आज फेसबुक बेहतरीन से लेकर बेकार तक हर तरह की सामग्री का बाज़ार है, बिल्कुल इस दुनिया की तरह । अब आप पर है आप यहाँ क्या चुनते हैं । मैने यहाँ रिश्ते कमाए हैं, हर तरह का रिश्ता और हर रिश्ते को दिल में जगह दी। बिना पाने की उम्मीद किये हर रिश्ता निभाया । आज के दिन जब मुझे रोना चाहिए कि मेरी कोई बहन नहीं तब मैं फूला नहीं समा रहा क्योंकि मेरे हाथ में पाँच राखियाँ और ढेरों दुआएं हैं उन सभी बहनों कीं जिन्होंने इस मंच से मुझ कांच खे टुकड़े को भाई नाम का हीरा बना कर अपने रिश्तों की माला में जोड़ लिया । शालिनी दी कहती हैं कि बात हो ना हो मगर स्नेह बना रहना चाहिए । सच में भले ही मैं इन सभी बहनों से बात नहीं कर पाता मगर सबका स्नेह मेरे साथ हमेशा बना रहा और हमेशा बना रहेगा । Shalini दी, इंदर दी, आशू दी, राधिका बहिनी, पूनम दी इन सबसे बात हो गयी । और जो बहनें बच गयीं उन सबको यहीं सेरक्षाबंधन की शुभकनाएं । सभी बहनें हमेशा खुश रहें, उनकी हर मनोकना पूरी हो । साथ ही साथ सबको ढेर सारा स्नेह ।
आप सबका भाई
धीरज झा
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