हमारे यहाँ सभी को देश की फिक्र है हर चौक चौराहे पर भ्रष्टाचार का ज़िक्र है हर कोई बातें करता है नेता जी के काले कारनामों की चर्चा गर्म होत...
हमारे यहाँ सभी को देश की फिक्र है
हर चौक चौराहे पर भ्रष्टाचार का ज़िक्र है
हर कोई बातें करता है
नेता जी के काले कारनामों की
चर्चा गर्म होती जाती है
घूस दे कर बनाए नकली मुख़्तारनामों की
जय गुरुदेव कह कर लोग आशाराम को कोस रहे हैं
अपने अपने सड़ेले गलेले मत सबके सामने परोस रहे हैं
किसी को महंगाई की शिकायत है
तो कोई काले धन को लेकर रो रहा है
हर आदमीं यहाँ चिंतित है देश के लिए
बड़ी सी डकार मार कर कहता है
साला इस देश में ये क्या गजब हो रहा है
मगर इन सबसे अलग एक ऐसी कौम है
जो बड़ी खुदगर्ज़ी से हर मुद्दे पर मौन है
उसे फर्क नहीं पड़ता कि कौन जिया कौन मरा
उसे चिंता नहीं इस बात की कि प्रधानाचार्य ने
इस महीने किसी ग़ैर देश का दौरा करा कि नहीं करा
ना उन देशद्रोहियों को वंदेमातरम से कुछ लेना है
ना उन गंवारों ने गाय का कुछ देना है
ना उन्हें तीन तलाक़ पर आये फैसले की फिक्र है
ना उनके बीच समी या इरफान पर फ़तवे लगने का ज़िक्र है
उन्हें तो इतना तक नहीं मालूम राम और रहीम कौन हैं
पूरा देश चिल्लाये जा रहा है बस एक यही लोग मौन हैं
रूपइया कितना ऊपर चढ़ा या शेयर बाज़ार कितना नीचे गिरा
देश ने तरक्की की या देश भाड़ मे गया
इन्हें इस बातों की कोई परवाह नहीं
यहाँ तक कि इन जाहिलों के बीच
मज़हबों का भी को झगड़ा नहीं
हाँ इन्हें बस एक बात की फिक्र है
इनके दिल ओ दिमाग में चलता यही ज़िक्र है
कि सुबह लंगर से खाई मगर अब कहाँ खाएंगे
आज तो बारिश हो गयी मज़दूरी कैसे कमाएंगे
अपना शरीर बुखार से जलता है तब तक ठीक है
मगर बच्चे की हालत बिगड़ी तो हम कहाँ जाएंगे
आज ट्रेनें रद्द हैं सामान उठाने को नहीं मिलेगा
छोटका बेचैन है कि उसे आज खाने को नहीं मिलेगा
जो अकेला है वो मर मरा गया तो लाश कौन उठाएगा
किसी को नहीं पता मगर उसका भी एक परिवार है
घोड़ासाहन एस्टेसन से दो कि.मी दूर
वहाँ तक उसके मरने की खबर कौन पहुंचाएगा
गंदी नालियों और माँ बहन की
गालियों से इनका गहरा नाता है
बाप का माल समझ कर लतिया देता है
जो भी इधर से आता जाता है
ये इसीलिए कुछ सोचते नहीं क्योंकि
देश का हिस्सा रहे ही नही
यहाँ सबको सब दिखता है
मगर सबके लिए ये ग़रीब
जैसे कहीं हैं ही नही
धीरज झा
हर चौक चौराहे पर भ्रष्टाचार का ज़िक्र है
हर कोई बातें करता है
नेता जी के काले कारनामों की
चर्चा गर्म होती जाती है
घूस दे कर बनाए नकली मुख़्तारनामों की
जय गुरुदेव कह कर लोग आशाराम को कोस रहे हैं
अपने अपने सड़ेले गलेले मत सबके सामने परोस रहे हैं
किसी को महंगाई की शिकायत है
तो कोई काले धन को लेकर रो रहा है
हर आदमीं यहाँ चिंतित है देश के लिए
बड़ी सी डकार मार कर कहता है
साला इस देश में ये क्या गजब हो रहा है
मगर इन सबसे अलग एक ऐसी कौम है
जो बड़ी खुदगर्ज़ी से हर मुद्दे पर मौन है
उसे फर्क नहीं पड़ता कि कौन जिया कौन मरा
उसे चिंता नहीं इस बात की कि प्रधानाचार्य ने
इस महीने किसी ग़ैर देश का दौरा करा कि नहीं करा
ना उन देशद्रोहियों को वंदेमातरम से कुछ लेना है
ना उन गंवारों ने गाय का कुछ देना है
ना उन्हें तीन तलाक़ पर आये फैसले की फिक्र है
ना उनके बीच समी या इरफान पर फ़तवे लगने का ज़िक्र है
उन्हें तो इतना तक नहीं मालूम राम और रहीम कौन हैं
पूरा देश चिल्लाये जा रहा है बस एक यही लोग मौन हैं
रूपइया कितना ऊपर चढ़ा या शेयर बाज़ार कितना नीचे गिरा
देश ने तरक्की की या देश भाड़ मे गया
इन्हें इस बातों की कोई परवाह नहीं
यहाँ तक कि इन जाहिलों के बीच
मज़हबों का भी को झगड़ा नहीं
हाँ इन्हें बस एक बात की फिक्र है
इनके दिल ओ दिमाग में चलता यही ज़िक्र है
कि सुबह लंगर से खाई मगर अब कहाँ खाएंगे
आज तो बारिश हो गयी मज़दूरी कैसे कमाएंगे
अपना शरीर बुखार से जलता है तब तक ठीक है
मगर बच्चे की हालत बिगड़ी तो हम कहाँ जाएंगे
आज ट्रेनें रद्द हैं सामान उठाने को नहीं मिलेगा
छोटका बेचैन है कि उसे आज खाने को नहीं मिलेगा
जो अकेला है वो मर मरा गया तो लाश कौन उठाएगा
किसी को नहीं पता मगर उसका भी एक परिवार है
घोड़ासाहन एस्टेसन से दो कि.मी दूर
वहाँ तक उसके मरने की खबर कौन पहुंचाएगा
गंदी नालियों और माँ बहन की
गालियों से इनका गहरा नाता है
बाप का माल समझ कर लतिया देता है
जो भी इधर से आता जाता है
ये इसीलिए कुछ सोचते नहीं क्योंकि
देश का हिस्सा रहे ही नही
यहाँ सबको सब दिखता है
मगर सबके लिए ये ग़रीब
जैसे कहीं हैं ही नही
धीरज झा
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