#कलेक्टर_बन_जाएगा_सब_सही_हो_जाएगा (कहानी) "पता नहीं कौन जनम का पाप किए हैं जो ऐसा जिनगी मिला हम लोगों को । सारा दिन लोग सब के घर का झाड़...
#कलेक्टर_बन_जाएगा_सब_सही_हो_जाएगा (कहानी)
"पता नहीं कौन जनम का पाप किए हैं जो ऐसा जिनगी मिला हम लोगों को । सारा दिन लोग सब के घर का झाड़ू बहाड़ू करो और फिर अपना घरे आ कर मरो ।" सुषमा ऐसे ही चिड़चिड़ा जाया करती थी जब कभी वो ज़्यादा परेशान होती तो । आज भी डाॅक्टराईन जिसके यहाँ सुषमा साफ सफाई करने जाती है ने कुछ उल्टा सीधा बोल दिया होगा, उसी का गुस्सा निकाल रही है घर संभालते हुए । घर क्या है, एक बड़ा सा कमरा जिसमें दो चारपाई लगा है और एक तरफ़ ज़मीन पर गैस चुल्हा रखा हुआ है, जहाँ सुषमा खाना बनाती है । कमरे के आगे ही छोटा सा बरामदा टाईप है जहाँ दो कुर्सी और एक टेबल जिसके गोड़ा में छोटा सा पटरी रख कर उसे सही से टिकाया है, रखा हुआ है । ये भी कोई अपना थोड़े है, डक्टराईन ही दी थी, इसी तरह पुराना छोटा रंगीन टी वी, छोटका फ्रिज सब सुषमा ने ऐसे ही इकप्ठा किया था । कुछ मुंह खोल के माँग लाई किसी का थोड़ा बहुत दाम अपनी तनख्वाह में से कटवा दिया । इसी तरह घर पूरा हो गया ।
इधर सुषमा का पति अशोक एक फैक्ट्री में फोर मैन है । अच्छा पैसा कमा लेता है मशीन के साथ मशीन बन कर । ओवर टाईम का अलग से मिलता है । घर का सारा सामान और खर्च सुषमा चलाती है और अशोक का तनख्वाह जमा होता रहता है । छः साल हो गया है दोनों को इस परदेस में आए और इन छः सालों में अशोक और सुषमा तीन लाख रुपया जमा कर लिये हैं ।हालांकि सुषमा ऐसे वैसों के यहाँ काम नहीं करती, सब बड़े लोग हैं । अशोक के मैनेजर ने कहा था अशोक से कि तुम्हारी बस्ती की तरफ कोई काम करने वाली हो तो बताना, अशोक सुषमा से कहा कि उनको काम वाली चाहिए, सुषमा बोली हम करेंगे । जैसे अपने घर करते हैं वैसे थोड़ी देर उनके यहाँ कर देंगे । पहले अशोक बहुत मना किया मगर दोनों के सपने के आगे अशोक को भी ये मंज़ूर करना पड़ा । काजुल तो सुषमा पहले ही बहुत थी, मनेजर की बीवी ने उसे चार पाँच और बड़े बड़े घर दिला दिए काम करने के लिए । सुषमा की गाड़ी चल पड़ी । अच्छा कमाने लगी और फिर पैसा जमा होना भी शुरू हो गया । मगर इन सबके बाद भी सुषमा को अच्छा नहीं लगता घर घर काम करना पर करे भी तो क्या करे दोनों का सपना था ही इतना बड़ा ।
सुषमा बड़बड़ाते हुए बाहर नल पर बर्तन माँज रही थी, अशोक भी अभी घर पहुंचा था घर से बाहर ही जब उसने बर्तनों की उठा पटक सुनी तो समझ गया आज महरानी का मन गड़बड़ है । आज प्रेम का ज़्यादा डोज़ लगेगा । जैसे ही घर में घुसा कि उसके नौ साल के बेटे ने चारपाई से उछल कर अशोक को गले लगा लिया । अशोक चौंका नहीं क्योंकि ये तो रोज़ का था और जिस किसी दिनी किसी कारण से ऐसा ना हो तब अशोक चौंकता था यह सोच कर कि आज बेटा जी कहाँ हैं ?
अशोक ने भी बड़े प्यार से बेटे का सर सहलाया और बेटे ने रोज़ की तरह पिता की ऊपर की जेब से चार टाॅफियाँ निकाल ली जो अशोक रोज़ काम से आते हुए उसके लिए लेते आता था । ना जाने आज कैसे बिना सुषमा का मन जाने वो पाव भर जलेबी भी ले आया था मटरा की दुकान से जो सुषमा को बहुत पसंद थी ।
"क्या जी, मम्मी काहे मुंह फुलाई हैं ?" अशोक ने बेटे के कान में फुसफुसा कर पूछा ।
"पता नहीं, मुझसे भी बात नहीं की ।" बेटा अपनी बात बता ही रहा था कि उधर से सुषमा बर्तन का टोकरा उठाए आगयी ।
"चाय बना दें ?" सुषमा ने अपने गुस्से को ढांपते हुए कहा जबकि वो जानती थी कि अशोक जान गया होगा उसका मन ।
"नहीं बैठों तुम हम बनाते हैं । आज इस्पेसल पिलाते हैं । सारा थकान दूर हो जाएगा ।"
"रहने दीजिए ये थकान तो हमारे करम में है, एस्पेसल चाय क्या इसे कोई दूर नहीं कर सकता ।" चूल्हा जला कर चाय का सस्पीन उस पर चढ़ाते हुए सुषमा दुःखी मन से बोली । इधर समय की मांग को देखते हुए विनीत भी बैग उठा कर दस मिनट पहले ही ट्यूश्न के लिए निकल गया ।
"क्या हो गया ? फिर किसी ने कुछ कहा क्या ?" अशोक अब चारपाई से उतर कर सुषमा के पास ही ज़मीन पर जा बैठा और बड़े प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा ।
"कहने वाले रोज़ कहते हैं जी । उनका खाते हैं तो कहेंगे ही । गुस्सा हमको अपने करम पर है काहे हम लोगों को ऐसा बनाई कि इतना मेहनत करने के बाद भी लोगों का बात सुनना पड़ता है ।" इतना कह कर सुषमा ना चाहते हुए भी रो पड़ी ।
"देखो सुसमा, आदमी का लक्ष्य जितना बड़ा होता है ना उसका रास्ता उतना ही कठिन होता है । ऊ गाँव का ज़िंदगी भी याद करो जहाँ सारा दिन खटती थी और फिर भी कुछ हाथ नहीं लगता था । चाहते तो वहीं रह जाते, जितना बन पाता कमाते उतने में खा पी के जिनगी बिताते और बबुआ के बड़ा होने पर अपनी तरह किसी फैक्टरी में लगा देते । मगर हमारा लक्ष्य बड़ा है हमको बबुआ को कलक्टर बनाना है ।भईया लोग कईसे हंसा था ना जब हम ई बात सबके सामने बोले तो । तुम उसी दिन बोली ना कि हमको शहर ले चलो, हम भी कमाएंगे आ दुनू मिल के बबुआ को कलक्टर बनाएंगे । उस दिन अजीब सा ताकत आ गया था देह में सुसमा । ऐसा लगा जईसे भगवान कह रहे हैं कि तुम भिर जाओ हम हैं तुम्हारे साथ । देखो हम केतना आराम से बढ़ रहे हैं आगे । दुःख तकलीफ तो सबको लगा है, अपने अस्तर पर हर कोनो मेहनत उतना ही करता है । आ ई सब के बाद भी दिक्कत बुझाता है तो छोड़ दो काम । तुम बहुत कर ली काम, काफी पईसा भी आ हो गया है । अब हम कर लेंगे तुम बस घर पर रहो आ घर संभालो ।" सुषमा के आँसू पोंछते हुए अशोक ने उसे हिम्मत दी ।
"बाबू बहुत छोटा था, पर तब भी उसको साथ ले जाते थे जहाँ भी काम करने जाते । इसके रोने पर कितना लोग से बात भी सुने कि इसको घरे छोड़ आया करी । तबो हम कईसे कईसे कर के सब किये । अब जब सब थोड़ा सही होने को आया है तो हम हार मान लें । आप इतना परेम से समझा देते हैं तो हिम्मत आ जाता है । मगर कभी कभी सच में मन दुःखी हो जाता है सोच कर कि न जाने कब तक अईसा करना होगा ।"
"अरे दिक्कत नहीं है जादा दिन का । अईसहीं एतना मेहनत थोड़े न करता हैं । अईसहीं बेटा को ऐतना औकात से फाजिल जा के एतना महंगा इस्कूल में थोड़े ना पढ़ाते हैं । बस बबुआ मन लगा के पढ़ता रहे और कलक्टर बन जाए सब सही हो जाएगा ।" 'बस बबुआ कलक्टर बन जाए सब सही हो जाएगा' कह कह कर अशोक ने सुषमा के सीने में उठने वाले कितने तूफानों को शांत किया था ।
"अच्छा तब हम एको काम नहीं करेंगे कह देते हैं । हमहूं एगो काम वाली रखेंगे आ सब उसी से कराएंगे । मगर हम उसको डांटेंगे नहीं ।" अशोक के कहने भर से ही सुषमा सपने सजाने लगती और फिर दोनों हंस देते ।
अगली सुबह
"ऐ बबुआ उठो इस्कूल बस छूट जाएगा बाबू ।" सुषमा अपने बेटे विनीत का सर सहलाते हुए उसे उठा रही थी ।
"अरे इसको तो बुखार है ?" उसका सर छूते ही सुषमा बोली । अशोक ने भी देखा ।
"हाँ हल्का बुखार तो लगता है ।" अशोक ने कहा ।
"अरे हल्का कहाँ है, देखिए तप रहा है सीधे । नहीं आज इस्कूल नहीं जाएगा । आरम करो बेटा तुम, थोड़ी देर में पापा डाॅक्टर के पास ले जाएंगे ।" सुषमा के माथे पर ममता के रंग में रंगी चिंता की लकीरें छा गयीं जिसमें हद से ज़्यादा फिक्र झलकती है ।
"नहीं मम्मी आज टेस्ट है मेरा, बहुत तैयारी की है । मैं नहीं छोड़ सकता स्कूल ।" विनीत ने बिस्तर से उठते हुए कहा ।
"जादा अंग्रेजी नहीं झाड़ो कह दिए ना नहीं जाना तो नहीं जाना ।" सुषमा थोड़ा सख़्त होते हुए बोली ।
"अरे बच्चा कह रहा है कि ज़रूरी है तो जाने दो । हम इसे डाॅक्टर को दिखाते हुए स्कूल छोड़ देंगे फिर आधा छुट्टी में ले आएंगे ।
काफी बहस के बाद विनीत का स्कूल जाना तय हो गया । अशोक ने विनीत को साईकिल पर बैठाया और डाॅक्टर के पास ले गया । डाॅक्टर ने मामूली बुखार बताया और कुछ दवाईयाँ दे कर अराम करने की सलाह दी । अशोक ने विनीत से कहा कि वो टेस्ट दे कर कल की छुट्टी की अर्जी दे दे और फिर हम आधा छुट्टी में तुमको ले आएंगे । मगर विनीत ने मना कर दिया और कहा कि " पापा टेस्ट आधा रिसेस के बाद है। आप चिंता मत करिए मैं ठीक हूँ । टेस्ट देकर स्कूल बस से ही आजाऊंगा ।" अशोक को भी विश्वास हो गया कि विनीत ठीक है । उसे उसके स्कूल छोड़ कर अशोक फैक्ट्री के लिए निकल गया ।
दोपहर का समय
अशोक का फोन बजता है
"हैलो ।"
"सुनए ना, ऊ बबुआ के इस्कूल से फोन आया था । ऊ बुला रहे हैं जल्दी । हमारा मन घबरा रहा है । हम कहे थे उसको मत जाने दीजिए उसका मन ठीक नहीं ।" घबराई हुई सुषमा फोन पर ही रोने लगी ।
"तुम रो नहीं, हम पहुंचते हैं स्कूल तुम भी पहुंचो । देखते हैं का बात है ।" इतना कह कर अशोक तेजी में स्कूल के लिए निकल पड़ा ।
स्कूल में भीड़ लगी हुई थी । सारे बच्चे क्लासरूम से बाहर थे । सारे टीचरस में भागा दौड़ी मची पड़ी थी । अशोक और सुषमा ये देख कर घबरा गये । कांपते मन के साथ दोनों स्कूल में दाखिल हुए और भीड़ को लांघ कर आगे पहुंचे तो देखा चारो तरफ खून के धब्बे पड़े हुए थे । खून देखते ही सुषमा का मन आशंका के काले बादलों से घिर गया उसका सर चकराने लगा । अशोक ने किसी तरह खुद को और सुषमा को संभाला । प्रिंसीपल की नज़र उन दोनों पर पड़ी तो वो उन्हें अपने ऑफिस में ले गया ।
"कसाँ है हमारा बबुआ ? ई खून का निशान कैसा है ? आप हमको काहे बुलाए ?" एक के बाद एक सवाल दागती गयी सुषमा ।
"आप पानी पीजिए और शांत रहिए । सब ठीक है । विनीत भी अब ठीक.....।" आधी बात प्रिंसीपल सर के मुंह में ही रह गयी ।
"अब ठीक है ? अब ठीक है से का मतलब है आपका ? कहाँ है हमारा बबुआ ? हमको अभी देखना है उसको ? अब ठीक है मतलब का है ?" सुषमा एक दम से चीख़ कर बोलने लगी । ममता की कोमल काया ने बाघिन का रूप ले लिया था जो शायद किसी पर भी वार कर सकती थी अपने बच्चे के लिए ।
"आपकी हालत समझ सकता हूँ, मगर अभी समय ऐसे गुस्सा करने का नहीं है । विनीत ने जो किया है उसके लिए मैं और कुछ लोग और आपको प्रणाम करना चाहते हैं कि आपने विनीत जैसे बेटे को जन्म दिया ।" प्रिंसीपल ने सुषमा को समझाते हुए बताया ।
"सर साफ साफ बताईए बात क्या है ? हमारा बच्चा कहाँ है ?" अशोक ने अपनी चुप्पी तोड़ी
"आप मेरे साथ चलिए ।" प्रिंसीपल उन दोनों को अपने साथ गाड़ी में बैठा कर हाॅस्पिटल की तरफ निकल पड़े ।
रास्ते में प्रिंसीपल सर ने शर्मिंदगी भरे स्वर में सारी बात बताते हुए सारी बात बतानी शुरू की "ये हमारी गलती या हमारा दुर्भाग्य था कि एक जानवर को हमने इस स्कूल में पाल रखा था । आज ग्यारह बजे के करीब विनीत खून से लथपथ मेरे ऑफिस में भागता हुआ आया । उसके साथ उसकी ही क्लाॅस की एक बच्ची थी जिसके सर पर चोट लगने के कारण कपड़े पूरी तरह खून से भीग गये थे । मैं दोनों को देख कर दंग रह गया, मेरे बार बार पूछने पर भी दोनों ने कुछ नहीं बताया । बच्चों की आँखों में डर पूरी तरह से झलक रहा था । तभी पीछे से चपरासी ने मुझे साथ चलने को कहा और मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा । स्कूल के पिछले भाग में जो टाॅयलेट के पीछे है और जहाँ बस स्कूल में काम करने वाले ही कभी कभार सफाई के लिए जाते हैं वहाँ एक आदमीं अधमरा पड़ा था । मुझे चपरासी ने बताया कि ये स्कूल से कूड़ा उठाने आता है । आधा मामला मेरे समझ आगया था इसीलिए मैने बिना देर किये पुलिस को बुलाया और बच्चों को हाॅस्पिटल में एडमिट करवा दिया ।" " सब सुनने के बाद सुषमा अशोक से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी । अशोक का मन हुआ कि वह उसे ये कह कर हिम्मत दे कि बबुआ कलेक्टर बन जाएगा सब सही हो जाएगा । मगर उसका मन खुद इतना डरा था कि झूठी हिमत देने की हिम्मत भी उसमें नहीं बची थी ।
कुछ देर में प्रिसीपल सर के साथ दोनों को उस हाॅस्पिटल पहुंच गये जहाँ विनीत को एडमिट किया था । वहाँ डाक्टर ने बताया कि बच्ची की चोट तो उतनी गहरी नहीं थी मगर जो लड़का था उसके सर पर काफी गहरी चोट है जिस कारण वो बेहोश हो गया है । हमने अपनी पूरी कोशिश कर ली है उम्मीद है कुछ घंटों में होश आजाये ।
इतना सुनते ही सुषमा के होश गायब हो गये । किसी तरह अशोक ने उसे संभाला । कुछ देर बाद सुषमा बड़बड़ाने लगी "हमने कहा था आज मत जाओ इस्कूल, आपहीं बाप बेटे नहीं माने । आज ऊ नहीं आता तो ये सब नहीं होता ना ।" सुषमा इतना कह कर फिर रोने लगी ।
"जो होता है अच्छे के लिए ही होता है सुसमा । आज अगर बबुआ इस्कूल नहीं आता तो उस बच्ची के साथ अनर्थ हो जाता । तुमको गर्ब होना चाहिए अपना बबुआ पर और सुनो उसको कुछो नहीं होगा । हम कह रहे हैं ना । तुमको गर्ब देखना है तो उस बच्ची के माँ बाप की आँख में अपने बच्चे के लिए और हमारे लिए झलकता सम्मान देखो तुम अपना सब दुःख भूल जाओगी ।" इतना कह कर अशोक ने सुषमा को गले लगा लिया ।
बच्ची के माँ बाप ने अशोक और सुषमा का रोते हुए धन्यवाद किया और उन्हीं के पास बैठे उन्हें ढाढस बंधाते रहे । कुछ घंटे बेचैनी में काटने के बाद नर्स ने उन्हें आ कर बताया कि उनके बच्चे को होश आगया है । दोनों आई सी यू की तरफ भागे । सने बेड पर पड़ा विनीत दर्द में भी मुस्कुरा रहा था । सुषमा ने जा कर डरते डरते उसके गाल सहलाए और फिर आँसुओं के बोझ तले दबे होंठों के साथ उसे देख थोड़ा मुस्कुरा दी । दो तीन दिन में विनीत एक दम ठीक हो गया ।
बच्ची के बयान पर अपराधी को गिरफतार कर लिया गया था मगर पूरा घटनाक्रम विनीत ने पुलिस को बताते हुए कहा " जब मैं टाॅयलेट के लिए गया तो मैने पीछे से कुछ आवाज़ें सुनीं । जब मैं उन आवाज़ों के पीछे गया तो मैने देखा कि एक आदमी अनन्या का मुंह दबा रहा है और अनन्या उससे बचने कीकोशिश कर रही है । अनन्या के सर पर चोट भी थी, ये सब मुझे गलत लगा और मैने वहाँ पड़ा डंडा उस आदमी के सर पर मार दिया और अन्यया को वहाँ से ले कर भागने लगा मगर उसने पीछे से वही डंडा मेरे सर पर मार दिया । मुझे मारने के साथ ही वो आदमी खुद ही लड़खड़ा कर गिर पड़ा और उसका सर पत्थर से टकराने की वजह से बेहोश हो गया । और जैसे तैसे मैं अनन्या को लेकर प्रिंसीपल सर के ऑफिस तक पहुंचा ।"
विनीत की इस बहादुरी के लिए उसे सरकार की तरफ से इनाम मिला और साथ ही साथ उसकी पूरी पढ़ाई का खर्चा भी सरकार की तरफ से उठाने की घोषणा भी की गयी । अब सुषमा घर घर काम नहीं करती और अशोक को अभी से अपने बेटे पर गर्व है । अब वो कहता है बेटा कलेक्टर बने ना बने पर एक सच्चा इंसान ज़रूर बन गया ।
धीरज झा
"पता नहीं कौन जनम का पाप किए हैं जो ऐसा जिनगी मिला हम लोगों को । सारा दिन लोग सब के घर का झाड़ू बहाड़ू करो और फिर अपना घरे आ कर मरो ।" सुषमा ऐसे ही चिड़चिड़ा जाया करती थी जब कभी वो ज़्यादा परेशान होती तो । आज भी डाॅक्टराईन जिसके यहाँ सुषमा साफ सफाई करने जाती है ने कुछ उल्टा सीधा बोल दिया होगा, उसी का गुस्सा निकाल रही है घर संभालते हुए । घर क्या है, एक बड़ा सा कमरा जिसमें दो चारपाई लगा है और एक तरफ़ ज़मीन पर गैस चुल्हा रखा हुआ है, जहाँ सुषमा खाना बनाती है । कमरे के आगे ही छोटा सा बरामदा टाईप है जहाँ दो कुर्सी और एक टेबल जिसके गोड़ा में छोटा सा पटरी रख कर उसे सही से टिकाया है, रखा हुआ है । ये भी कोई अपना थोड़े है, डक्टराईन ही दी थी, इसी तरह पुराना छोटा रंगीन टी वी, छोटका फ्रिज सब सुषमा ने ऐसे ही इकप्ठा किया था । कुछ मुंह खोल के माँग लाई किसी का थोड़ा बहुत दाम अपनी तनख्वाह में से कटवा दिया । इसी तरह घर पूरा हो गया ।
इधर सुषमा का पति अशोक एक फैक्ट्री में फोर मैन है । अच्छा पैसा कमा लेता है मशीन के साथ मशीन बन कर । ओवर टाईम का अलग से मिलता है । घर का सारा सामान और खर्च सुषमा चलाती है और अशोक का तनख्वाह जमा होता रहता है । छः साल हो गया है दोनों को इस परदेस में आए और इन छः सालों में अशोक और सुषमा तीन लाख रुपया जमा कर लिये हैं ।हालांकि सुषमा ऐसे वैसों के यहाँ काम नहीं करती, सब बड़े लोग हैं । अशोक के मैनेजर ने कहा था अशोक से कि तुम्हारी बस्ती की तरफ कोई काम करने वाली हो तो बताना, अशोक सुषमा से कहा कि उनको काम वाली चाहिए, सुषमा बोली हम करेंगे । जैसे अपने घर करते हैं वैसे थोड़ी देर उनके यहाँ कर देंगे । पहले अशोक बहुत मना किया मगर दोनों के सपने के आगे अशोक को भी ये मंज़ूर करना पड़ा । काजुल तो सुषमा पहले ही बहुत थी, मनेजर की बीवी ने उसे चार पाँच और बड़े बड़े घर दिला दिए काम करने के लिए । सुषमा की गाड़ी चल पड़ी । अच्छा कमाने लगी और फिर पैसा जमा होना भी शुरू हो गया । मगर इन सबके बाद भी सुषमा को अच्छा नहीं लगता घर घर काम करना पर करे भी तो क्या करे दोनों का सपना था ही इतना बड़ा ।
सुषमा बड़बड़ाते हुए बाहर नल पर बर्तन माँज रही थी, अशोक भी अभी घर पहुंचा था घर से बाहर ही जब उसने बर्तनों की उठा पटक सुनी तो समझ गया आज महरानी का मन गड़बड़ है । आज प्रेम का ज़्यादा डोज़ लगेगा । जैसे ही घर में घुसा कि उसके नौ साल के बेटे ने चारपाई से उछल कर अशोक को गले लगा लिया । अशोक चौंका नहीं क्योंकि ये तो रोज़ का था और जिस किसी दिनी किसी कारण से ऐसा ना हो तब अशोक चौंकता था यह सोच कर कि आज बेटा जी कहाँ हैं ?
अशोक ने भी बड़े प्यार से बेटे का सर सहलाया और बेटे ने रोज़ की तरह पिता की ऊपर की जेब से चार टाॅफियाँ निकाल ली जो अशोक रोज़ काम से आते हुए उसके लिए लेते आता था । ना जाने आज कैसे बिना सुषमा का मन जाने वो पाव भर जलेबी भी ले आया था मटरा की दुकान से जो सुषमा को बहुत पसंद थी ।
"क्या जी, मम्मी काहे मुंह फुलाई हैं ?" अशोक ने बेटे के कान में फुसफुसा कर पूछा ।
"पता नहीं, मुझसे भी बात नहीं की ।" बेटा अपनी बात बता ही रहा था कि उधर से सुषमा बर्तन का टोकरा उठाए आगयी ।
"चाय बना दें ?" सुषमा ने अपने गुस्से को ढांपते हुए कहा जबकि वो जानती थी कि अशोक जान गया होगा उसका मन ।
"नहीं बैठों तुम हम बनाते हैं । आज इस्पेसल पिलाते हैं । सारा थकान दूर हो जाएगा ।"
"रहने दीजिए ये थकान तो हमारे करम में है, एस्पेसल चाय क्या इसे कोई दूर नहीं कर सकता ।" चूल्हा जला कर चाय का सस्पीन उस पर चढ़ाते हुए सुषमा दुःखी मन से बोली । इधर समय की मांग को देखते हुए विनीत भी बैग उठा कर दस मिनट पहले ही ट्यूश्न के लिए निकल गया ।
"क्या हो गया ? फिर किसी ने कुछ कहा क्या ?" अशोक अब चारपाई से उतर कर सुषमा के पास ही ज़मीन पर जा बैठा और बड़े प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा ।
"कहने वाले रोज़ कहते हैं जी । उनका खाते हैं तो कहेंगे ही । गुस्सा हमको अपने करम पर है काहे हम लोगों को ऐसा बनाई कि इतना मेहनत करने के बाद भी लोगों का बात सुनना पड़ता है ।" इतना कह कर सुषमा ना चाहते हुए भी रो पड़ी ।
"देखो सुसमा, आदमी का लक्ष्य जितना बड़ा होता है ना उसका रास्ता उतना ही कठिन होता है । ऊ गाँव का ज़िंदगी भी याद करो जहाँ सारा दिन खटती थी और फिर भी कुछ हाथ नहीं लगता था । चाहते तो वहीं रह जाते, जितना बन पाता कमाते उतने में खा पी के जिनगी बिताते और बबुआ के बड़ा होने पर अपनी तरह किसी फैक्टरी में लगा देते । मगर हमारा लक्ष्य बड़ा है हमको बबुआ को कलक्टर बनाना है ।भईया लोग कईसे हंसा था ना जब हम ई बात सबके सामने बोले तो । तुम उसी दिन बोली ना कि हमको शहर ले चलो, हम भी कमाएंगे आ दुनू मिल के बबुआ को कलक्टर बनाएंगे । उस दिन अजीब सा ताकत आ गया था देह में सुसमा । ऐसा लगा जईसे भगवान कह रहे हैं कि तुम भिर जाओ हम हैं तुम्हारे साथ । देखो हम केतना आराम से बढ़ रहे हैं आगे । दुःख तकलीफ तो सबको लगा है, अपने अस्तर पर हर कोनो मेहनत उतना ही करता है । आ ई सब के बाद भी दिक्कत बुझाता है तो छोड़ दो काम । तुम बहुत कर ली काम, काफी पईसा भी आ हो गया है । अब हम कर लेंगे तुम बस घर पर रहो आ घर संभालो ।" सुषमा के आँसू पोंछते हुए अशोक ने उसे हिम्मत दी ।
"बाबू बहुत छोटा था, पर तब भी उसको साथ ले जाते थे जहाँ भी काम करने जाते । इसके रोने पर कितना लोग से बात भी सुने कि इसको घरे छोड़ आया करी । तबो हम कईसे कईसे कर के सब किये । अब जब सब थोड़ा सही होने को आया है तो हम हार मान लें । आप इतना परेम से समझा देते हैं तो हिम्मत आ जाता है । मगर कभी कभी सच में मन दुःखी हो जाता है सोच कर कि न जाने कब तक अईसा करना होगा ।"
"अरे दिक्कत नहीं है जादा दिन का । अईसहीं एतना मेहनत थोड़े न करता हैं । अईसहीं बेटा को ऐतना औकात से फाजिल जा के एतना महंगा इस्कूल में थोड़े ना पढ़ाते हैं । बस बबुआ मन लगा के पढ़ता रहे और कलक्टर बन जाए सब सही हो जाएगा ।" 'बस बबुआ कलक्टर बन जाए सब सही हो जाएगा' कह कह कर अशोक ने सुषमा के सीने में उठने वाले कितने तूफानों को शांत किया था ।
"अच्छा तब हम एको काम नहीं करेंगे कह देते हैं । हमहूं एगो काम वाली रखेंगे आ सब उसी से कराएंगे । मगर हम उसको डांटेंगे नहीं ।" अशोक के कहने भर से ही सुषमा सपने सजाने लगती और फिर दोनों हंस देते ।
अगली सुबह
"ऐ बबुआ उठो इस्कूल बस छूट जाएगा बाबू ।" सुषमा अपने बेटे विनीत का सर सहलाते हुए उसे उठा रही थी ।
"अरे इसको तो बुखार है ?" उसका सर छूते ही सुषमा बोली । अशोक ने भी देखा ।
"हाँ हल्का बुखार तो लगता है ।" अशोक ने कहा ।
"अरे हल्का कहाँ है, देखिए तप रहा है सीधे । नहीं आज इस्कूल नहीं जाएगा । आरम करो बेटा तुम, थोड़ी देर में पापा डाॅक्टर के पास ले जाएंगे ।" सुषमा के माथे पर ममता के रंग में रंगी चिंता की लकीरें छा गयीं जिसमें हद से ज़्यादा फिक्र झलकती है ।
"नहीं मम्मी आज टेस्ट है मेरा, बहुत तैयारी की है । मैं नहीं छोड़ सकता स्कूल ।" विनीत ने बिस्तर से उठते हुए कहा ।
"जादा अंग्रेजी नहीं झाड़ो कह दिए ना नहीं जाना तो नहीं जाना ।" सुषमा थोड़ा सख़्त होते हुए बोली ।
"अरे बच्चा कह रहा है कि ज़रूरी है तो जाने दो । हम इसे डाॅक्टर को दिखाते हुए स्कूल छोड़ देंगे फिर आधा छुट्टी में ले आएंगे ।
काफी बहस के बाद विनीत का स्कूल जाना तय हो गया । अशोक ने विनीत को साईकिल पर बैठाया और डाॅक्टर के पास ले गया । डाॅक्टर ने मामूली बुखार बताया और कुछ दवाईयाँ दे कर अराम करने की सलाह दी । अशोक ने विनीत से कहा कि वो टेस्ट दे कर कल की छुट्टी की अर्जी दे दे और फिर हम आधा छुट्टी में तुमको ले आएंगे । मगर विनीत ने मना कर दिया और कहा कि " पापा टेस्ट आधा रिसेस के बाद है। आप चिंता मत करिए मैं ठीक हूँ । टेस्ट देकर स्कूल बस से ही आजाऊंगा ।" अशोक को भी विश्वास हो गया कि विनीत ठीक है । उसे उसके स्कूल छोड़ कर अशोक फैक्ट्री के लिए निकल गया ।
दोपहर का समय
अशोक का फोन बजता है
"हैलो ।"
"सुनए ना, ऊ बबुआ के इस्कूल से फोन आया था । ऊ बुला रहे हैं जल्दी । हमारा मन घबरा रहा है । हम कहे थे उसको मत जाने दीजिए उसका मन ठीक नहीं ।" घबराई हुई सुषमा फोन पर ही रोने लगी ।
"तुम रो नहीं, हम पहुंचते हैं स्कूल तुम भी पहुंचो । देखते हैं का बात है ।" इतना कह कर अशोक तेजी में स्कूल के लिए निकल पड़ा ।
स्कूल में भीड़ लगी हुई थी । सारे बच्चे क्लासरूम से बाहर थे । सारे टीचरस में भागा दौड़ी मची पड़ी थी । अशोक और सुषमा ये देख कर घबरा गये । कांपते मन के साथ दोनों स्कूल में दाखिल हुए और भीड़ को लांघ कर आगे पहुंचे तो देखा चारो तरफ खून के धब्बे पड़े हुए थे । खून देखते ही सुषमा का मन आशंका के काले बादलों से घिर गया उसका सर चकराने लगा । अशोक ने किसी तरह खुद को और सुषमा को संभाला । प्रिंसीपल की नज़र उन दोनों पर पड़ी तो वो उन्हें अपने ऑफिस में ले गया ।
"कसाँ है हमारा बबुआ ? ई खून का निशान कैसा है ? आप हमको काहे बुलाए ?" एक के बाद एक सवाल दागती गयी सुषमा ।
"आप पानी पीजिए और शांत रहिए । सब ठीक है । विनीत भी अब ठीक.....।" आधी बात प्रिंसीपल सर के मुंह में ही रह गयी ।
"अब ठीक है ? अब ठीक है से का मतलब है आपका ? कहाँ है हमारा बबुआ ? हमको अभी देखना है उसको ? अब ठीक है मतलब का है ?" सुषमा एक दम से चीख़ कर बोलने लगी । ममता की कोमल काया ने बाघिन का रूप ले लिया था जो शायद किसी पर भी वार कर सकती थी अपने बच्चे के लिए ।
"आपकी हालत समझ सकता हूँ, मगर अभी समय ऐसे गुस्सा करने का नहीं है । विनीत ने जो किया है उसके लिए मैं और कुछ लोग और आपको प्रणाम करना चाहते हैं कि आपने विनीत जैसे बेटे को जन्म दिया ।" प्रिंसीपल ने सुषमा को समझाते हुए बताया ।
"सर साफ साफ बताईए बात क्या है ? हमारा बच्चा कहाँ है ?" अशोक ने अपनी चुप्पी तोड़ी
"आप मेरे साथ चलिए ।" प्रिंसीपल उन दोनों को अपने साथ गाड़ी में बैठा कर हाॅस्पिटल की तरफ निकल पड़े ।
रास्ते में प्रिंसीपल सर ने शर्मिंदगी भरे स्वर में सारी बात बताते हुए सारी बात बतानी शुरू की "ये हमारी गलती या हमारा दुर्भाग्य था कि एक जानवर को हमने इस स्कूल में पाल रखा था । आज ग्यारह बजे के करीब विनीत खून से लथपथ मेरे ऑफिस में भागता हुआ आया । उसके साथ उसकी ही क्लाॅस की एक बच्ची थी जिसके सर पर चोट लगने के कारण कपड़े पूरी तरह खून से भीग गये थे । मैं दोनों को देख कर दंग रह गया, मेरे बार बार पूछने पर भी दोनों ने कुछ नहीं बताया । बच्चों की आँखों में डर पूरी तरह से झलक रहा था । तभी पीछे से चपरासी ने मुझे साथ चलने को कहा और मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा । स्कूल के पिछले भाग में जो टाॅयलेट के पीछे है और जहाँ बस स्कूल में काम करने वाले ही कभी कभार सफाई के लिए जाते हैं वहाँ एक आदमीं अधमरा पड़ा था । मुझे चपरासी ने बताया कि ये स्कूल से कूड़ा उठाने आता है । आधा मामला मेरे समझ आगया था इसीलिए मैने बिना देर किये पुलिस को बुलाया और बच्चों को हाॅस्पिटल में एडमिट करवा दिया ।" " सब सुनने के बाद सुषमा अशोक से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी । अशोक का मन हुआ कि वह उसे ये कह कर हिम्मत दे कि बबुआ कलेक्टर बन जाएगा सब सही हो जाएगा । मगर उसका मन खुद इतना डरा था कि झूठी हिमत देने की हिम्मत भी उसमें नहीं बची थी ।
कुछ देर में प्रिसीपल सर के साथ दोनों को उस हाॅस्पिटल पहुंच गये जहाँ विनीत को एडमिट किया था । वहाँ डाक्टर ने बताया कि बच्ची की चोट तो उतनी गहरी नहीं थी मगर जो लड़का था उसके सर पर काफी गहरी चोट है जिस कारण वो बेहोश हो गया है । हमने अपनी पूरी कोशिश कर ली है उम्मीद है कुछ घंटों में होश आजाये ।
इतना सुनते ही सुषमा के होश गायब हो गये । किसी तरह अशोक ने उसे संभाला । कुछ देर बाद सुषमा बड़बड़ाने लगी "हमने कहा था आज मत जाओ इस्कूल, आपहीं बाप बेटे नहीं माने । आज ऊ नहीं आता तो ये सब नहीं होता ना ।" सुषमा इतना कह कर फिर रोने लगी ।
"जो होता है अच्छे के लिए ही होता है सुसमा । आज अगर बबुआ इस्कूल नहीं आता तो उस बच्ची के साथ अनर्थ हो जाता । तुमको गर्ब होना चाहिए अपना बबुआ पर और सुनो उसको कुछो नहीं होगा । हम कह रहे हैं ना । तुमको गर्ब देखना है तो उस बच्ची के माँ बाप की आँख में अपने बच्चे के लिए और हमारे लिए झलकता सम्मान देखो तुम अपना सब दुःख भूल जाओगी ।" इतना कह कर अशोक ने सुषमा को गले लगा लिया ।
बच्ची के माँ बाप ने अशोक और सुषमा का रोते हुए धन्यवाद किया और उन्हीं के पास बैठे उन्हें ढाढस बंधाते रहे । कुछ घंटे बेचैनी में काटने के बाद नर्स ने उन्हें आ कर बताया कि उनके बच्चे को होश आगया है । दोनों आई सी यू की तरफ भागे । सने बेड पर पड़ा विनीत दर्द में भी मुस्कुरा रहा था । सुषमा ने जा कर डरते डरते उसके गाल सहलाए और फिर आँसुओं के बोझ तले दबे होंठों के साथ उसे देख थोड़ा मुस्कुरा दी । दो तीन दिन में विनीत एक दम ठीक हो गया ।
बच्ची के बयान पर अपराधी को गिरफतार कर लिया गया था मगर पूरा घटनाक्रम विनीत ने पुलिस को बताते हुए कहा " जब मैं टाॅयलेट के लिए गया तो मैने पीछे से कुछ आवाज़ें सुनीं । जब मैं उन आवाज़ों के पीछे गया तो मैने देखा कि एक आदमी अनन्या का मुंह दबा रहा है और अनन्या उससे बचने कीकोशिश कर रही है । अनन्या के सर पर चोट भी थी, ये सब मुझे गलत लगा और मैने वहाँ पड़ा डंडा उस आदमी के सर पर मार दिया और अन्यया को वहाँ से ले कर भागने लगा मगर उसने पीछे से वही डंडा मेरे सर पर मार दिया । मुझे मारने के साथ ही वो आदमी खुद ही लड़खड़ा कर गिर पड़ा और उसका सर पत्थर से टकराने की वजह से बेहोश हो गया । और जैसे तैसे मैं अनन्या को लेकर प्रिंसीपल सर के ऑफिस तक पहुंचा ।"
विनीत की इस बहादुरी के लिए उसे सरकार की तरफ से इनाम मिला और साथ ही साथ उसकी पूरी पढ़ाई का खर्चा भी सरकार की तरफ से उठाने की घोषणा भी की गयी । अब सुषमा घर घर काम नहीं करती और अशोक को अभी से अपने बेटे पर गर्व है । अब वो कहता है बेटा कलेक्टर बने ना बने पर एक सच्चा इंसान ज़रूर बन गया ।
धीरज झा
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