सुलगते आग का टुकड़ा हूँ, आग़ोश में ले तो ले कौन गर्म हवा हूँ जेठ की मेरी छुअन को सहे तो सहे कौन भले ही नेक काम किए सब का दिल ए अज़ीज़ र...
सुलगते आग का टुकड़ा हूँ, आग़ोश में ले तो ले कौन
गर्म हवा हूँ जेठ की मेरी छुअन को सहे तो सहे कौन
भले ही नेक काम किए सब का दिल ए अज़ीज़ रहा
मगर अब लाश हो चुका हूँ घर अपने रखे तो रखे कौन
मैं जब अपनी राह चला तो बहुत आए हमसफ़र बन कर
मगर मैं तुफाँ था मेरी मौज में संग मेरे बहे तो बहे कौन
मैने जलते हुए घरों को देख पूछा कि ये घर कौन जला गया
बात यहाँ आकर दम तोड़ गयी कि पहले सच कहे तो कहे कौन
ईमानवालों की महफिल में भटकती हुई एक तवायफ़ पहुंच गयी
अब सवाल ये खड़ा हुआ कि ईमान में अब रहे तो रहे कौन
धीरज झा
गर्म हवा हूँ जेठ की मेरी छुअन को सहे तो सहे कौन
भले ही नेक काम किए सब का दिल ए अज़ीज़ रहा
मगर अब लाश हो चुका हूँ घर अपने रखे तो रखे कौन
मैं जब अपनी राह चला तो बहुत आए हमसफ़र बन कर
मगर मैं तुफाँ था मेरी मौज में संग मेरे बहे तो बहे कौन
मैने जलते हुए घरों को देख पूछा कि ये घर कौन जला गया
बात यहाँ आकर दम तोड़ गयी कि पहले सच कहे तो कहे कौन
ईमानवालों की महफिल में भटकती हुई एक तवायफ़ पहुंच गयी
अब सवाल ये खड़ा हुआ कि ईमान में अब रहे तो रहे कौन
धीरज झा
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