#आपकी_निरर्थक_खुशी_हत्यारों_का_मनोबल_बढ़ा_रही_है मैने गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में लिखी पोस्ट में साफ तौर पर कहा था कि वो कौन है, उनके ...
#आपकी_निरर्थक_खुशी_हत्यारों_का_मनोबल_बढ़ा_रही_है
मैने गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में लिखी पोस्ट में साफ तौर पर कहा था कि वो कौन है, उनके विचार क्या हैं इन सब बातों से अलग मैं केवल और केवल उनकी हत्या का विरोध करता हूँ । हत्यारातंत्र का मनोबल बढ़ता चला जा रहा है । बात सिर्फ पत्रकारों की नहीं है बात है, इस जगह कोई भी हो सकता है । और है भी कभी डाॅक्टर नारंग, कभी अख़लाक तो कभी राहुल सिंह तो कभी गौरी लंकेश ।
आप विचारों का विरोध करें, बिना विरोध सुधार की कोई गुंजाईश नहीं मगर किसी की हत्या का जश्न ना मनाएं क्योंकि यह हत्यारों का मनोबल बढ़ाता है । हत्या करने या करवाने वाले आपके सोचने की क्षमता भांप चुके हैं, उन्हें पता है आप अपने ही तर्कों, कुतर्कों में उलझ जाएंगे और वो हंसते खिलखिलाते हुए आपके सामने से निकल जाएंगे ।
गौरी लंकेश उस विचारधारा की समर्थक थीं जिसे मैं कोढ़ मानता हूँ या ऐसा कहूँ कि मैं हर उस विचारधारा को कोढ़ मानता हूँ जिसने इंसान के सोचने की शक्ति छीन कर उसे अपना गुलाम बना लिया है । मुझे गौरी लंकेश की मृत्यु का दुःख इसलिए है क्योंकि वह मृत्यु नहीं हत्या थी जिसका मैं कभी समर्थन नहीं करता ।
काल अपना मुँह खोलता जा रहा है । उसे पता है कि आप अपने ही मोद में मग्न हैं । बिहार के अरवल राष्ट्रिय सहारा समाचार पत्र के पत्रकार "पंकज मिश्रा" की आज हत्या कर दी गयी । आप देखिए, सोचिए कि यहाँ फर्क नहीं पड़ रहा, हत्यारों के मन से डर मरता जा रहा है । उन्हें पता है कि आप इसे भी लूट का मामला, राजनीति का ममला या किसी और विचारधारा से जोड़ कर भूल जाएंगे । ना गौरी लंकेश से कोई नाता था ना पंकज मिश्रा मेरे अपने थे । मगर दुःख है क्योंकि यह हत्याएं हैं ।
इन सबसे अलग भी एक बात है कि मृत्यु परम सत्य है, सत्य पवित्र होता है और पवित्रा सम्मान और भावार्पण की अधिकारी है, गालियों की नहीं । आप मत शोक मनाईए किसी की मृत्यु का मगर उस मृत्यु के सम्मान में कम से कम कुछ देर मौन अवश्य धारण करिए जिसने एक आत्मा को अपने साथ ले जाना है और आत्मा तो सबसे पवित्र है ।
लंकेश के वध के बाद प्रभु राम गालियाँ बोल कर खुशी से नहीं फूले रहे होंगे कि चलो मार दिए राक्षस को । उन्होंने प्रणाम किया था लंकेश को क्योंकि उन्हें पता था कि लंकेश जैसा ज्ञानी और महाबली उनके नहीं अपनी नियती के हाथों मारा गया है । लक्ष्मण को बोले थे प्रभु राम कि जाओ लंकापति के अंतिम क्षणों में उनसे कुछ ज्ञान प्राप्त कर लो । यह वही लंकेश हैं जिनके पुतलों को बुराई का प्रतीक मान कर हम आज तक जलाते हैं । इसी तरह कंस वध के वक्त श्री कृष्ण उन्हें गालियाँ दे दे कर नहीं मारा होगा । मृत्यु है यह जो आपका सम्मान और आपकी श्रद्धांजली मांगती है ।
धीरझ झा
मैने गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में लिखी पोस्ट में साफ तौर पर कहा था कि वो कौन है, उनके विचार क्या हैं इन सब बातों से अलग मैं केवल और केवल उनकी हत्या का विरोध करता हूँ । हत्यारातंत्र का मनोबल बढ़ता चला जा रहा है । बात सिर्फ पत्रकारों की नहीं है बात है, इस जगह कोई भी हो सकता है । और है भी कभी डाॅक्टर नारंग, कभी अख़लाक तो कभी राहुल सिंह तो कभी गौरी लंकेश ।
आप विचारों का विरोध करें, बिना विरोध सुधार की कोई गुंजाईश नहीं मगर किसी की हत्या का जश्न ना मनाएं क्योंकि यह हत्यारों का मनोबल बढ़ाता है । हत्या करने या करवाने वाले आपके सोचने की क्षमता भांप चुके हैं, उन्हें पता है आप अपने ही तर्कों, कुतर्कों में उलझ जाएंगे और वो हंसते खिलखिलाते हुए आपके सामने से निकल जाएंगे ।
गौरी लंकेश उस विचारधारा की समर्थक थीं जिसे मैं कोढ़ मानता हूँ या ऐसा कहूँ कि मैं हर उस विचारधारा को कोढ़ मानता हूँ जिसने इंसान के सोचने की शक्ति छीन कर उसे अपना गुलाम बना लिया है । मुझे गौरी लंकेश की मृत्यु का दुःख इसलिए है क्योंकि वह मृत्यु नहीं हत्या थी जिसका मैं कभी समर्थन नहीं करता ।
काल अपना मुँह खोलता जा रहा है । उसे पता है कि आप अपने ही मोद में मग्न हैं । बिहार के अरवल राष्ट्रिय सहारा समाचार पत्र के पत्रकार "पंकज मिश्रा" की आज हत्या कर दी गयी । आप देखिए, सोचिए कि यहाँ फर्क नहीं पड़ रहा, हत्यारों के मन से डर मरता जा रहा है । उन्हें पता है कि आप इसे भी लूट का मामला, राजनीति का ममला या किसी और विचारधारा से जोड़ कर भूल जाएंगे । ना गौरी लंकेश से कोई नाता था ना पंकज मिश्रा मेरे अपने थे । मगर दुःख है क्योंकि यह हत्याएं हैं ।
इन सबसे अलग भी एक बात है कि मृत्यु परम सत्य है, सत्य पवित्र होता है और पवित्रा सम्मान और भावार्पण की अधिकारी है, गालियों की नहीं । आप मत शोक मनाईए किसी की मृत्यु का मगर उस मृत्यु के सम्मान में कम से कम कुछ देर मौन अवश्य धारण करिए जिसने एक आत्मा को अपने साथ ले जाना है और आत्मा तो सबसे पवित्र है ।
लंकेश के वध के बाद प्रभु राम गालियाँ बोल कर खुशी से नहीं फूले रहे होंगे कि चलो मार दिए राक्षस को । उन्होंने प्रणाम किया था लंकेश को क्योंकि उन्हें पता था कि लंकेश जैसा ज्ञानी और महाबली उनके नहीं अपनी नियती के हाथों मारा गया है । लक्ष्मण को बोले थे प्रभु राम कि जाओ लंकापति के अंतिम क्षणों में उनसे कुछ ज्ञान प्राप्त कर लो । यह वही लंकेश हैं जिनके पुतलों को बुराई का प्रतीक मान कर हम आज तक जलाते हैं । इसी तरह कंस वध के वक्त श्री कृष्ण उन्हें गालियाँ दे दे कर नहीं मारा होगा । मृत्यु है यह जो आपका सम्मान और आपकी श्रद्धांजली मांगती है ।
धीरझ झा
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