" हेलो ! " " हाँ पापा कहिये. " रमन गमे से बोललक... " बेटा कहाँ बारू तू. " " पापा बताया था ना दोस...
" हेलो ! "
" हाँ पापा कहिये. " रमन गमे से बोललक...
" बेटा कहाँ बारू तू. "
" पापा बताया था ना दोस्तों के साथ जा रहा हूँ. आज कॉलेज में कम्पटीश्न है." रमन झुंझला गईल ई ओकरा जबाब से स्पष्ट हो गइल की ऊ खिसिआ के बोल रहल बा.
" ओह, हम बिसर गेल रहनी अ, अच्छा बाद में फोन करेम. " निरंजन बाबू तनिका सहम गइलन बेटा के अइसन बोली सुन के. रमन बिना कुछो बोललही फोन काट दिहलस. निरंजन बाबू के ई अहसास हो गईल की ऊ गलती कईलन अ. एगो समय रहे जब निरंजन बाबू के डरे केहू बोले न. मन के जेतना साफ रहलन हमेसा सोभाब से ओतने गरम. पर बुजुर्ग लोग सहिये कहगइलन न की बख़त हर बाप के अपन औलादे से हरा देबेला. निरंजन बाबूओ अपन एकलौता औलाद से हार गेल रहलन. उनकर गुस्सा उनकर रोब सब गायब हो गईल. पर निरंजन बाबू के कोनो सिकायत न रहे केकरो से.
साँझ के पहर हो गईल, घाम अपन झोरी डंटा उठा के चल दिहलस, आ अन्हार अपन पैर पसारे लागल. निरंजन बाबू घर के बरामदा में दिन में पाँच बेर पढ़ल अखबार के छौमा बेरी पढ़ईत रहलन तभिये रमन के मोटरसाईकिल रूकल. रमन भनभनाई खिसिआएल घर में घुसल आ अबते अपन पिता पर बरस पढ़ल.
" रऊई के केतना बेरी समझईली, जब हम दोस लोग के बीच में रहि तब हमरा फोन न करेम, हमरा ई भासा बोले में अजीब लागेला ऊ लोग सब के बीच में, केहू जान जाई की हम बिहारी हईं त बेकार में हमार नाम खराब हो जाई. ए ही खातिर हम पहिलका कॉलेज छोड़ के दूर कॉलेज में दाखिला लेहनी की कोनों हमरा उहवाँ बिहारी न समझे, लेकिन रऊआ के कुठो समझ आबे तब न. " रमन बिना कुछो सुने ई सब बोल दिहलस आ निरंजन बाबू बिना मुड़ी ऊठईले अखबार पर नजर गड़एले रहलन पर उनकर लोर से अखबार जरूर भीज गईल.
" हँ बेटा गलती हो गईल हिनका से. साँचो गलती हो गईल बड़ा भारी गलती भईल की ई अपन मान मरयादा प्रतिष्ठा अपन माटी अपन सम्मान अपना ऊ बड़का हबेली अपनी जमीन जायदाद सब छोड़ के आ गईलन ई अंजान सहर मे जहाँ कोनो मरईत के हाल पूछे बला नईखे. साँचो ई गलतीये कईलन के अपना बेटा के भविस्य ला एतना दूर च लएलन. पर का करब पागल बाड़े न ई जा ज माफ क दिह इनका के. जानत ह बबुआ जब तू छोट रहल न त एक दिन खेल के अईल, तब तोहरा मुँह से बड़ा गंदा गारी निकल गईल तब तोहर ई बूढ़ बाप जे तहिया जवान रहलन तोहरा मारे के बदले दोसरके दिन ई सहर के टिकट कटा लेलन ई कह के की हम एकरा ईहाँ न राखेम आ हम एकरा से दूर न रह सकेली एहि खातिर हम सब अब इहमाँ से दूर सहर चल जाएम जे ऊहाँ एकरा पढ़ा लिखा के अच्छा इंसान बना सकी. पर ई पाप कईलन जे अपना जन्मभूमि अपना मतारी बाप के छोड़ इहवाँ चलईलन आ ऊ पाप के सजा तू दे रहल बा बबुआ, बहुत निमन कर रहल बा तू. साबास. आ एक बात अऊर, हुनका के सौख न रहे तोहरा फोन करे के, हुनकर दमा बला पंप खतम होए बला बाटे. अही खातिर तोहरा के फोन कईलन की बबुआ अबईत बेरिया ले ले अईह." रमन के माऐ से जब अपन बेटा के मुँह से ओकर बाप खातिर ई लिहुछल बोली बरदास्त न भईल त सब बोल दिहलस. सारा गुबार निकाल दिहलस जे ऊ जमा कईले रहे कतना दिन से.
" का रमा तू हों बुढ़बक बा का. बेटा थक के आईल बा आ अबते तू सुना दिहलू. जा,जाके चाय नास्ता लाबा. " निरंजन बाबू के मुँह पर अभियो कोनो गिला न रहे उलटा ऊ अपना पत्नीये के प्रेम से डाँट देहलन. रमन कुछो न बोललक आ के अपन पिता के पैर में गिर के रोए लागल.
निरंजन बाबू ओकरा के चुप करएलन आ कहलन " का बबुआ हमर सेर बेटा हो के ई लोर बहबईत तनिको न सोभेला तोहरा के अच्छा. हाथ मे का बा दिखएबा न हमरा के. " निरंजन बाबू रमन के हाथ में पुरस्कार में मिलल सील्ड देख के कहलन.
" पपा ई हमरा के भासन प्रतियोगिता में पहिला ईनाम मिलल बा. "
" वाह बेटा वाह ! एतना बड़का खुसी के बात आ तू अब बतबईत बाड़ू हमरा के वाह, खूब जिया हमर लाल खूब नाम रौसन कर. कोना मुद्दा पर भासन देहला तू ? " निरंजन बाबू के सब दर्द बेटा के ई सफलता देख के दूर हो गईल.
" पपा, हर प्रदेस के लोक भासा के महत्वता पर भासन देबो के रहे त हम भोजपूरी के महत्वता पर भासन दे के ई इनाम जीत लेहली. " ई बात बतबईत बेरिया रमन के आँख में एगो सरम रहे. ई बात के सरम की जोना भासा के लेल ऊ ईनाम पएलक ऊहे भासा बोले में ओकरा लाज लागेला.
ई सब संवाद के बीच भोजपूरी एगो कोना में बईठल ई अपन हालत के चिंता में ढूब गईल ओकरा बुझएबे न कईल की ऊ भासन में मिलल पुरूस्कार पर खुस होए की नएका पीढ़ी के बीच अपन ई हालत पर लोर बहाबे.
धीरज झा
Keywords : Bhojpuri Story, Father's life, Bhojpuri's Pain, Sacrifices,
" हाँ पापा कहिये. " रमन गमे से बोललक...
" बेटा कहाँ बारू तू. "
" पापा बताया था ना दोस्तों के साथ जा रहा हूँ. आज कॉलेज में कम्पटीश्न है." रमन झुंझला गईल ई ओकरा जबाब से स्पष्ट हो गइल की ऊ खिसिआ के बोल रहल बा.
" ओह, हम बिसर गेल रहनी अ, अच्छा बाद में फोन करेम. " निरंजन बाबू तनिका सहम गइलन बेटा के अइसन बोली सुन के. रमन बिना कुछो बोललही फोन काट दिहलस. निरंजन बाबू के ई अहसास हो गईल की ऊ गलती कईलन अ. एगो समय रहे जब निरंजन बाबू के डरे केहू बोले न. मन के जेतना साफ रहलन हमेसा सोभाब से ओतने गरम. पर बुजुर्ग लोग सहिये कहगइलन न की बख़त हर बाप के अपन औलादे से हरा देबेला. निरंजन बाबूओ अपन एकलौता औलाद से हार गेल रहलन. उनकर गुस्सा उनकर रोब सब गायब हो गईल. पर निरंजन बाबू के कोनो सिकायत न रहे केकरो से.
साँझ के पहर हो गईल, घाम अपन झोरी डंटा उठा के चल दिहलस, आ अन्हार अपन पैर पसारे लागल. निरंजन बाबू घर के बरामदा में दिन में पाँच बेर पढ़ल अखबार के छौमा बेरी पढ़ईत रहलन तभिये रमन के मोटरसाईकिल रूकल. रमन भनभनाई खिसिआएल घर में घुसल आ अबते अपन पिता पर बरस पढ़ल.
" रऊई के केतना बेरी समझईली, जब हम दोस लोग के बीच में रहि तब हमरा फोन न करेम, हमरा ई भासा बोले में अजीब लागेला ऊ लोग सब के बीच में, केहू जान जाई की हम बिहारी हईं त बेकार में हमार नाम खराब हो जाई. ए ही खातिर हम पहिलका कॉलेज छोड़ के दूर कॉलेज में दाखिला लेहनी की कोनों हमरा उहवाँ बिहारी न समझे, लेकिन रऊआ के कुठो समझ आबे तब न. " रमन बिना कुछो सुने ई सब बोल दिहलस आ निरंजन बाबू बिना मुड़ी ऊठईले अखबार पर नजर गड़एले रहलन पर उनकर लोर से अखबार जरूर भीज गईल.
" हँ बेटा गलती हो गईल हिनका से. साँचो गलती हो गईल बड़ा भारी गलती भईल की ई अपन मान मरयादा प्रतिष्ठा अपन माटी अपन सम्मान अपना ऊ बड़का हबेली अपनी जमीन जायदाद सब छोड़ के आ गईलन ई अंजान सहर मे जहाँ कोनो मरईत के हाल पूछे बला नईखे. साँचो ई गलतीये कईलन के अपना बेटा के भविस्य ला एतना दूर च लएलन. पर का करब पागल बाड़े न ई जा ज माफ क दिह इनका के. जानत ह बबुआ जब तू छोट रहल न त एक दिन खेल के अईल, तब तोहरा मुँह से बड़ा गंदा गारी निकल गईल तब तोहर ई बूढ़ बाप जे तहिया जवान रहलन तोहरा मारे के बदले दोसरके दिन ई सहर के टिकट कटा लेलन ई कह के की हम एकरा ईहाँ न राखेम आ हम एकरा से दूर न रह सकेली एहि खातिर हम सब अब इहमाँ से दूर सहर चल जाएम जे ऊहाँ एकरा पढ़ा लिखा के अच्छा इंसान बना सकी. पर ई पाप कईलन जे अपना जन्मभूमि अपना मतारी बाप के छोड़ इहवाँ चलईलन आ ऊ पाप के सजा तू दे रहल बा बबुआ, बहुत निमन कर रहल बा तू. साबास. आ एक बात अऊर, हुनका के सौख न रहे तोहरा फोन करे के, हुनकर दमा बला पंप खतम होए बला बाटे. अही खातिर तोहरा के फोन कईलन की बबुआ अबईत बेरिया ले ले अईह." रमन के माऐ से जब अपन बेटा के मुँह से ओकर बाप खातिर ई लिहुछल बोली बरदास्त न भईल त सब बोल दिहलस. सारा गुबार निकाल दिहलस जे ऊ जमा कईले रहे कतना दिन से.
" का रमा तू हों बुढ़बक बा का. बेटा थक के आईल बा आ अबते तू सुना दिहलू. जा,जाके चाय नास्ता लाबा. " निरंजन बाबू के मुँह पर अभियो कोनो गिला न रहे उलटा ऊ अपना पत्नीये के प्रेम से डाँट देहलन. रमन कुछो न बोललक आ के अपन पिता के पैर में गिर के रोए लागल.
निरंजन बाबू ओकरा के चुप करएलन आ कहलन " का बबुआ हमर सेर बेटा हो के ई लोर बहबईत तनिको न सोभेला तोहरा के अच्छा. हाथ मे का बा दिखएबा न हमरा के. " निरंजन बाबू रमन के हाथ में पुरस्कार में मिलल सील्ड देख के कहलन.
" पपा ई हमरा के भासन प्रतियोगिता में पहिला ईनाम मिलल बा. "
" वाह बेटा वाह ! एतना बड़का खुसी के बात आ तू अब बतबईत बाड़ू हमरा के वाह, खूब जिया हमर लाल खूब नाम रौसन कर. कोना मुद्दा पर भासन देहला तू ? " निरंजन बाबू के सब दर्द बेटा के ई सफलता देख के दूर हो गईल.
" पपा, हर प्रदेस के लोक भासा के महत्वता पर भासन देबो के रहे त हम भोजपूरी के महत्वता पर भासन दे के ई इनाम जीत लेहली. " ई बात बतबईत बेरिया रमन के आँख में एगो सरम रहे. ई बात के सरम की जोना भासा के लेल ऊ ईनाम पएलक ऊहे भासा बोले में ओकरा लाज लागेला.
ई सब संवाद के बीच भोजपूरी एगो कोना में बईठल ई अपन हालत के चिंता में ढूब गईल ओकरा बुझएबे न कईल की ऊ भासन में मिलल पुरूस्कार पर खुस होए की नएका पीढ़ी के बीच अपन ई हालत पर लोर बहाबे.
धीरज झा
Keywords : Bhojpuri Story, Father's life, Bhojpuri's Pain, Sacrifices,
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