क भी कभी सोचता हूँ कि अगर दुनियाँ में बुरे लोग ना होते तो इन मुट्ठी भर अच्छे लोगों की अच्छाई को जान ही कौन पाता । सच में बनाने वाले ने दु...
कभी कभी सोचता हूँ कि अगर दुनियाँ में बुरे लोग ना होते तो इन मुट्ठी भर अच्छे लोगों की अच्छाई को जान ही कौन पाता । सच में बनाने वाले ने दुनिया को एक बेहतरीन साहित्यिक किताब और उस बेहतरीन फिल्म की तरह बनाया है जो सबको समझ नहीं आती । कहने को हर किसी ने ज़िंदगी जी है मगर इसे समझने वाले बहुत कम लोग हुए हैं । और जिन्होंने समझा उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट बनी रही फिर चाहे वो जिस भी हाल में जी रहे हों ।
"बिंदो मौसी, कहाँ हो दरवाज़ा खोलो । (मर तो ना गयी बुढ़िया, 'मन में' )" निमेस की बेटी गुड़िया ने बिंदो मौसी का दरवाज़ा पीटते हुए कहा
"अरे ज़िंदा हूँ मरी ना हूँ अभी । दम साध ले अभी आई ।" बिंदो तेज़ आवाज़ में बोलते हुए अपने धीमें कदम दरवाज़े की तरफ बढ़ाए । दो कमरों का एक छोटा सा घर जिसमें बिंदो मौसी अकेली रहा करती थीं । अंग्रेज़ों के ज़माने में बिंदो के दादा ने बड़ा सा घर बनवाया था । उन दिनों बिंदो के पूरे खानदान की ठाठ थी । बड़े बाबुओं में नाम आता था बिंदो के बाप दादाओं का । उस समय में ऐसा घर पूरे जिले में किसी का नहीं था । राजा साहब के महल के बाद इन्हीं का घर सबसे शानदार था । होता भी कैसे ना, डरी सहमी फूस की झोंपड़ियों के बीच सीना तान कर खड़ा छोटी इंटों का ऊंचे कोठे वाला यह घर अजूबा था यहाँ के लोगों के लिए । मगर धीरे धीरे वक्त की दीमक ने उस महलनुमा।बड़े से घर को दो कमरों के एक छोटे से मकान में बदल कर रख दिया । एक भाई और दो बहनों में बंटी जायदाद में इस मकान का बड़ा सा हिस्सा बिंदो को यह सोच कर दे दिया गया कि वो अकेली है उसके बुढ़ापे में ये घर किसी ना किसी तरह उसके काम आएगा । मगर बुढ़ापा अपनी उम्र के साथ बदकिस्मती को भी खींच लाता है । और उसी बदकिस्मती ने बिंदो मौसी के बड़े से मकान को इन दो कमरों में बदल दिया ।
"अरे मौसी हमने भला ऐसा कब कहा कि तुम मर गयी ?"
"मेरे दरवाज़े को एक बार से दो बार खटखटाने के साथ ही सभी के दिमाग में पहली बात यही आती है कि कहीं बुढ़िया निकल तो ना ली । और गलत भी क्या है । अब उम्र भी तो हो गयी है । कौन जाने राम जी कब बुला लें ।" बिंदो मौसी ने खुद को ऐसा दिखाया जैसे उसे मौत की कोई परवाह ही नहीं, लेकिन सच तो ये था कि जितना बिंदो मौसी मौत से डरती ठी उतना तो शायद ही कोई डरता हो इस इलाके में । डर का ये आलम था कि रात के समय बिंदो मौसी किसी हाल में अपना दरवाज़ा नहीं खोलती थी फिर भले ही कोई भी उनके दरवाज़े पर सर पटक पटक कर मर ही क्यों ना जाए । और हाँ उनकी रात शाम के ढलते ही हो जाया करती थी । उन्हें दर रहता था कि कोई उन्हें मार कर उनके पास बचे गहनों को चुरा कर ले जायेगा ।
“अरे मौसी मरे तुम्हारे दुश्मन, तुमको तो अभी भूपा के बीटा बेटी को गोद में खिलाना है और फिर उनकी भी शादी में तुमको नाचना है ।” गुड़िया ने थोड़े भावुक माहौल को मज़ाकिया बनाने के लिए कहा । बिंदो मौसी भी अपने नाचने का सोच कर हँस पड़ी ।
“अच्छा ये लो सुखमन चाचा के यहाँ से छांछ लाई, सोचा थोड़ी तुम्हें भी देती जाऊं ।”
“अरे बहुत अच्छा किया, बड़े दिनों से कढ़ी खाने का मन हो रहा था । भगवान तुझे जोड़ा बच्चे दें ।” गुड़िया बच्चों का नाम सुनते शर्मा कर भाग गयी ।
गुड़िया तो चली गयी मगर मौसी के लिए एक दर्द छोड़ गयी, जो मौसी अपनी मुस्कुराहटों के पीछे छुपाये फिरती थी । वो दर्द था भूपा, जिसके बच्चों का ज़िक्र कर के गुड़िया ने अभी अभी मौसी को हंसाया था । भूपा जिसकी वजह से बिंदो मौसी को सारा गाँव ही मौसी कहता था । भूपा बिंदो की बहन का लड़का था, जो पास वाले गाँव में ही बिआही थी । दोनों बहनों का भाग्य भगवान ने शायद उस जादुई कलम से लिखा था जिसका जिखा कुछ ही देर में मिट जाता है । एक बहन का सुहाग उसे बेसहारा छोड़ कर ना जाने कहाँ चला गया और दूसरी खुद इस संसार को छोड़ कर राम को प्यारी हो गयी । बिंदो की बहन के गुज़र जाने के बाद उसके पति ने दूसरी शादी कर ली और इसी के साथ भूपा बाप के होते हुए भी अनाथों सा हो गया । लेकिन बिंदो मौसी उसका हाल समझ सकती थी इसीलिए हमेशा उसे अपने ही पास रखा । भले ही भूपा का दिन अपने गाँव में पिता के काम में हाथ बताते हुए गुज़रता मगर शाम होते होते वो बिंदो मौसी के चूल्हे के पास ही बैठा मिलता ।
भूपा बचपन से ही गुमसुम सा रहता था, थोडा बहुत अगर खुल कर बात करता था तो वो सिर्फ बिंदो मौसी से ही । उसके पिता ने लिखा पढ़ी करने लायक शिक्षा उसे दिला दी थी । भूपा के चेहरे पर हर वक़्त एक अजीब सी घृणा झलकती थी, जैसे उसे यहाँ के पत्ते पत्ते से नफ़रत हो । बस वो बिंदो मौसी के पास ही थोड़ा चैन से रहता था । मन ही मन वो यहाँ से बहार निकलने के लिए बेचैन रहता था ।
एक दिन चूल्हे के पास बैठे हुए उसने बिंदो मौसी से कहा “मौसी हमको बिदेस जाना है ।”
“बिदेस ? बेटा सुना है वो तो दरिया पार उस दूसरी दुनिया में है ।” मौसी आश्चर्य से बोली
“अरे नहीं मौसी है तो इसी दुनिया में बस यहाँ से बहुत अलग है । हम कल सहर गए थे वहां हमको हमारा एक दोस्त मिला वो वहीँ रहता है वो हमको बोला के हमें साथ ले जायेगा । मौसी वहां बहुत पैसा है, जितना यहाँ एक साल में कमाएंगे ना उतना वहां एक दिन में कम लेते हैं । हम वहां जा कर खूब पैसा कमाएंगे और लौट के जब आएंगे तब तुमको सहर ले जायेंगे वहीँ हम दोनों एक बड़े से घर में रहेंगे ।” अपने सपनों को उसने मौसी की आँखों में डालने की पूरी कोशिश की ।
“अरे ना बेटा हम तो अब यहीं जन्मे और यहीं मर जायेंगे, यहाँ से जाना ही होता तो किस्मत हमको दोबारा यहाँ कहे धकेलती । लेकिन तू जा, हम चाहते हैं टू बहुत बड़ा आदमी बने ।” शायद मौसी के आँखों में अपने सपने सजाने की कोशिश में कामयाब हो गया था भूपा लेकिन मौसी के आंसुओं ने सपने आँखों में सजने से पहले ही बहा दिए ।
“आसान नहीं है मौसी । पूरा दो लाख रुपैया चाहिए ।” भूपा इतना कहने के साथ ही मायूस हो गया
“बाप रे, इतना पैसा ? ना भूपा इतना ऊँचा खाब ना देख, गिरेगा तो बड़ी चोट आएगी ।”
“सच कह रही हो मौसी, वैसे भी मुझ अभागे के करम में खुशियाँ भला कहाँ से आएँगी । सौतेली माँ बापू और बापू की संपत्ति पर कुंडली मारे ना बैठी होती तो सब बेच कर जाते और कुछ सालों बाद उससे दस गुना खरीद लेते मगर हमारे करम ऐसे कहाँ मौसी । अनाथ की तरफ़ से तो भगवान भी नज़र फेर लेता है ।” इतना कह कर भूपा थाली छोड़ कर उठ गया । उसकी थाली में पड़ी डेढ़ रोटी और मौसी दोनों बेबस नज़रों से उसे जाता देखते रहे ।
पूरी रात मौसी ने खुली आँखों के साथ काट दी । उसे लग रहा था जैसे उसकी बहन उससे ये शिकायत कर रही हो कि “बिंदो तू ने मेरे बेटे का खयाल नहीं रखा, तेरे ही सहारे तो उसे छोड़ गयी थी ।” इतना सोचते ही बिंदो मौसी खटिया से उठी और मुंह पोंछ कर धन्ने सेठ के घर की तरफ चल पड़ी ।
शाम हो रात के रंग में मिलने को तैयार थी लेकिन अभी तक भूपा खाना खाने नहीं आया था । बिंदो का मन ना जाने क्यों घबरा रहा था । वो उठी और अपनी धीमी चाल के साथ बाहर आंगन में आगयी । उसका मन शांत था मगर भूपा के अभी तक खाने के लिए ना आने पर वो सोच में पड़ गयी । मगर उसे ज़्यादा देर परेशां ना होना पड़ा क्योंकि सामने से भूपा चला आरहा था ।
“आज बहुत देर कर दी ? कहाँ रह गया था ?” मौसी ने भूपा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा ।
“मैं घर छोड़ आया मौसी, अब अपने बाप की सूरत भी ना देखूंगा कभी ।” आँखों में भरे गुस्से को आंसुओं के साथ बहाने की कोशिश करते हुए भूपा ने कहा
“पागल हो गया है क्या ? ऐसा क्या हुआ जो तू घर छोड़ आया । और ख़बरदार जो अपने पिता के लिए ऐसा बोला ।”
“कैसा पिता मौसी ? क्या एक पिता ऐसा होता है जो पैसा होने के बाद भी अपनी औलाद की ख़ुशी के लिए उसकी मदद ना कर पाए ? क्या पिता अपनी दूसरी पत्नी के लिए अपनी औलाद को भूल जाता है ? अगर पिता ऐसा होता है तो मुझे नहीं चाहिए ऐसा पिता ।” इसी के साथ भूपा बुरी तरह से रोने लगा । शायद वो टूट गया था ।
बिंदो मौसी ने उसका सर अपने साइन से लगते हुए कहा “ना मेरा बच्चा रो मत, तेरी मौसी जिंदा है अभी लाडले । तुझे बिदेस जाना है ना ? तो तू जायेगा ।”
“मौसी बिदेस जाने के लिए बहुत से पैसे चाहिए, ऐसे ही थोड़े चला जाऊंगा और मुझ अभागे का कौन है.....” भूपा इससे आगे कुछ कहता की बिंदो ने उसके सर पर हल्की सी चपत लगायी ।
“मैं तेरी कुछ ना लगती क्या ?”
“मौसी तू ही तो मेरी सब कुछ है लेकिन टू क्या कर सकती है भला ।” भूपा की बात सुन कर मौसी अचानक से उठ खड़ी हुई और अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी । भूपा मौसी को देखता रहा । मौसी ने अलमारी से एक लिफ़ाफ़ा निकला और भूपा के हाथों में ला कर धर दिया ।
“ये क्या है मौसी ?” भूपा आश्चर्य के साथ लिफाफे को देखते हुए कहा ।
“एक लाख रुपए हैं बाक़ी के दस दिन में मिल जाएंगे । टू बस बिदेस जाने की तयारी कर ।
“लेकिन, मौसी ये ये, मौसी ये आये कहाँ से ?” ख़ुशी के साथ आश्चर्य के मिले भाव भूपा के चेहरे पर खेलने लगे थे ।
“कुछ ना बस वो, ये कमरे छोड़ कर माकन का उधर वाला हिस्सा मैंने बेच दिया । धन्ना सेठ कबसे पीछे पढ़ा था माकन के लिए । वैसे भी वो कमीना है आज तो कल माकन किसी ना किसी तरह हथिया ही लेता तो मैंने सोचा आज जब बच्चे को ज़रुरत है तब ही क्यों ना बेच दूँ । तुझसे बढ़ कर भला कुछ हो सकता है क्या मेरे लिए ।” वो माकन जिसे बिंदो ने अपनी जान से ज़्यादा हिफाज़त के साथ संभाले रखा था उसे उसने भूपा के लिए बिना कुछ सोचे ही बेच दिया और फिर भी मुस्कुरा रही ठी ये देख कर की उसका भूपा खुश है अब ।
“मौसी, ये तूने क्या किया ? मौसी मुझ अनाथ के लिए तूने अपनी जान से प्यारी संपत्ति बेच दी ।” भूपा बिंदो से लिपट कर बुरी बच्चों जैसे रोने लगा ।
“ख़बरदार जो खुद को फिर अनाथ कहा । अरे भले ही तेरी माँ नहीं हूँ मगर मौसी तो हूँ और मौसी माँ का ही रूप होती है पगले । तू कहेगा तो मैं ये दो कमरे भी बेच दूंगी मगर दोबारा कभी खुद को अनाथ ना कहना ।” बिंदो का दिल छिल जाता था भूपा के मुंह से अनाथ शब्द सुन कर ।
भूपा कुछ बोलने की हालत में नहीं था वो बस रोता रहा । अगले दिन से भूपा ने विदेश जाने की तैयारियां शुरू कर दीं । तीन महीनों के अन्दर भूपा का सारा काम होगया और अब अगले दिन उसकी रवानगी थी । आज रात को चूल्हे के आगे बैठी बिंदो को देख चूल्हे की आग भी ताव नहीं पकड़ रही थी । ताव पकडती भी कैसे उसके आँखों से बरस रही नमी ने पूरे कमरे को मुर्दे जैसा शांत और ठंडा कर रखा था ।
भूपा बिंदो मौसी के दर्द से अंजान अपने ही सपनों में खोया था । बिंदो ने एक और रोटी के लिए पूछा तो भूपा बोला “हाँ मौसी आज तो खूब खिला, अब पता ना तेरे हाथों का ये खाना कब नसीब हो ।” भूपा की ख़ुशी में गढ़े गए इन शब्दों ने घाव में एक नया तीर घुस जाने जैसा काम किया । ना चाहते हुए भी बिंदो की सिसकियाँ छूट गयीं ।
“ऐ मौसी, क्या हुआ तुझे ? ऐसे काहे रोने लगी ?”भूपा ने घबरा कर पूछा
“भूपा तू हमेशा अपने आप को अनाथ कहता रहा ना मगर असल में सबसे बड़ी अनाथ तो मैं हूँ रे । तू जब तक यहाँ था मुझे कभी अपने अकेलेपन का दुःख नहीं खला मगर आज ना जाने क्यों बहुत दर लग रहा है । ऐ भूपा सच बता तू मुझे भूल तो नहीं जाएगा ना ?” आज बिंदो अपनी आँखों का सारा पानी निचोड़ देना चाहती थी जिससे भूपा के जाने के बाद उसकी आँखों में कुछ बचे ही ना ।
“अरे मौसी, तेरे बिना मेरा है ही कौन और मैं बिदेस जितना अपने लिए जा रहा हूँ उतना ही तेरे लिए भी । मैं जल्दी लौटूंगा और खूब सरे पैसे के साथ लौटूंगा । और उसके बाद तुझे दुनिया की बहुत सी खुशियाँ दूंगा ।” भूपा ने बिंदो मौसी को गले से लगा लिया
बिंदो मौसी ने मन ही मन कहा “बीटा तू खुश रहना और मुझे याद रखना मेरे लिए यही सबसे बड़ी ख़ुशी होगी ।”
अगले दिन भूपा रवाना होने वाला था । उसने बिंदो मौसी के पैर छूते हुए दो बूंद आंसुओं से उन्हें धो दिया । बिंदों ने भूपा को आखरी बार गले से लगते हुए उसके कान में काहा “अपनी खबर देते रहना । वरना कहीं ऐसा ना हो तेरा इंतज़ार मेरी ज़िन्दगी से लम्बा हो जाए ।” भूपा ने इस बात का कुछ जवाब ना दिया शायद वो बोल पाने की हालत में नहीं था । बस आगे की तरफ बढ़ने लगा और ऐसे बाधा की फिर कभी लौट कर नहीं देखा ।
आज बारह साल हो गए थे भूपा को गए और बिंदो को उसका इंतज़ार करते हुए मगर आज तक ना भूपा लौटा ना बिंदो का इंतज़ार खत्म हुआ । बिंदो रोज़ उसे भूलने की कोशिश करती मगर कभी वो मकान जो उसके लिए बेचा था, कभी कोई आस पड़ोस का, कभी चूल्हे से उतरती रोटियाँ मिल कर हमेशा उसकी याद को ताज़ा कर देतीं ।
“मौसी, मौसी दरवाज़ा खोल । जल्दी खोल नहीं तो तोड़ दूंगी ।” गुड़िया पागलों की तरह दरवाज़ा पीट रही थी ।
“ऐ लड़की पागल हो गयी है क्या ? दरवाज़ा तोड़ देगी ? सबर नहीं है क्या, आ तो रही हूँ ।” जिस सूट पर वो फूल बूटियां बना रही थी उसे एक तरफ रख कर गुड़िया पे भनभनाते हुए बिंदों ने दरवाज़ा खोला ।
“मौसी पागल मैं नहीं टू हो जाएगी, वो भी ख़ुशी से जब मैं तुझे एक खुश खबरी दूंगी तो ।” गुड़िया ने चहकते हुए कहा ।
“क्या हुआ तेरा रिश्ता तय हो गया क्या ।” बिंदो ने खुश हो कर पूछा क्योंकि और तो कोई खबर ठी नहीं जिससे वो फ़िलहाल खुश हो जाती ।
गुड़िया को शर्म आगयी मगर अभी उसने शर्म को एक तरफ करके कहा “नहीं बुढ़िया, तेरा भूपा लौट आया है । अभी हमारे घर है इधर ही आरहा है । बड़ी सी गाड़ी में ।”
गुड़िया के मुंह से ये खबर सुनते ही बिंदो जैसे बुत होगई । उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सच भी हो सकता है । शायद उसका इंतज़ार अब दम तोड़ चूका था और मरे हुए को जिंदगी मिल जाए अचानक से तो कुछ पल के लिए होश ही कहाँ रहता है । गुड़िया ने उसे जोर से हिलाया “कहाँ खो गयी मौसी ?”
“कहाँ है, कहाँ है मेरा भूपा ? अरे राम मैंने कुछ बनाया भी नहीं । आते ही कहेगा मौसी मुझे भूख लगी है । मैं भला उसे क्या खिलाऊँगी ? अच्छा गुड़ पढ़ा हुआ है और पोहा भी है, उसे नाश्ते में गुड़ और पोहा.....।” बिंदो जैसे सच में पागल हो गयी थी, अकेले ही बडबडा रही थी । तभी अचानक से वर्षों बाद किसी अपने की छुं को उसने अपने पैरों पर महसूस किया । वो झट से अपने ख्यालों के कैद से बहार आई और सामने देखा तो भूपा था मगर ये वो भूपा नहीं था ये तो कोई विदेशी था । महंगे कपड़े, अजीब ढंग के बाल, तन से जो खुश्बू आरही थी वो भी भूपा की नहीं थी, कानों में सोने के कुंडल थे, आँखों पर रंगीन चश्मा, होंठों पर बिखरी मुस्कराहट से वो मासूमियत गायब ठी जो भूपा के चेहरे पर हँसते ही खेल जाया करती थी । मगर जो भी था ये था तो भूपा ही ।
बिंदो के आँखों में उमड़ आये आंसुओं ने उसे अपने भूपा का चेहरा देखने से रोक रखा था । आंसुओं को पोंछते हुए उसने अपने बूढ़े शरीर की सारी ताकत अपनी बाँहों में समेट कर भूपा को गले से लगा लिया । और उसके माथे से चेहरे तक चुम्बनों की बौछार करने । भूपा बस खड़ा मुस्कुराता रहा । बिदो को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी बारह सालों की तपस्या का फल उसके सामने बैठा है, कुछ देर भूपा के सामने रहने के बाद तब उसे यकीन आया कि वो सच में लौट आया है ।
कुछ देर हाल चाल बताने पूछने और शिकायतों का दौर चलने के बाद बिंदो ने भूपा से कहा “अरे मैं भूल ही गयी कि तुझे भूख भी लगी होगी । रुक मैं तेरे लिए पोहा और गुड़ ले के आती हूँ ।”
“अरे नहीं मौसी, हम शहर से ही खाना खा के आये थे । अब निकलना है परसों वापसी भी है ।” इतना सुनते ही बिंदो को लगा जैसे वो किसी सुनहरे सपने से जाग कर फिर से उस अकेलेपन के दलदल में जा धंसी हो ।
“निकलना है ? तो फिर आया ही क्यों था ?” भूपा के शब्दों के अघात से बिंधे हुए दिल में से अचानक ही ये सारे सवाल निकल आये ।
“वो तो मैं अपने बाप को उसकी और अपनी औकात में फरक दिखने आया था तो सोचा तुमसे भी मिलता ही चलूं और तुम्हारा कुछ रुपैया भी लौटना था हमको, बताओ मौसी वो रुपैया लौटा दें या फिर से ये माकन तुमको खरीद दें ।” भूपा के ये शब्द बिंदो मौसी को ऐसे लगे जैसे किसी ने गहरे घाव में ऊँगली डाल कर घुमा दिया हो ।
“बाह बेटा, लगता है बहुत पैसा हो गया है तुम्हारे पास । लेकिन बेटा हमारी तो अब उम्र हो चली, कब हैं कब नहीं पता नहीं । ये जो था ये तुम्हारा ही था, ये जो बचा है ये भी तुम्हारा ही है । मैंने कोई मदद ना की ठी तुम्हारी मैंने बस अपने बेटे की परेशानी दूर की थी । काश तुम समझ पते कि एक माँ के दिल को बस उसके बच्चों का सामने रहना ही सुकून दे सकता है और इस सुकून की बराबरी तुम्हारा ये रुपैया नहीं कर पायेगा । ले जाओ बेटा ये पैसे और हाँ अगर ज़्यादा हों तो किसी मुझ जैसी अभागी और अनाथ बुढ़िया को दे देना जिसके पास ज़िन्दगी के कुछ साल बचे हों ।” बिंदो मौसी ने अपने उठ रहे दर्द की सारी पीड़ा अपने शब्दों में बयाँ कर दी ।
“तुम मौसी हो ना इसलिए नहीं समझोगी अगर मेरी माँ होती तो वो समझती और खुश होती अपने बच्चे को कामयाब देख कर ।” अब ये साबित हो चूका था कि इन बारह सालों में वो भूपा खतम हो चूका है ये जो भूपा है इसे पैसे के घमंड ने जन्म दिया है जिस पर किसी भी भावुकता या किसी के दर्द का कोई असर नहीं होता ।
उसकी बात सुन कर बिंदो मौसी के होंठों के एक छोर से दूसरे तक पीड़ा से सनी हुई एक मुस्कान दौड़ गयी । मौसी ने उसी मुस्कान के साथ कहा “हर बार माँ ही समझे ? काश की कभी बच्चे भी माँ को समझ पाते तो हम जैसे बूढ़े कभी अनाथ ना होते । जाओ भूपेन्द्र बाबू, ये देहात का गाँव है, तुम जैसे बिदेसी यहाँ की हवा और मिट्टी को एक आंख नहीं भाते । ये तुम्हारी तबियत बिगड़ दें उससे पहले चले जाओ यहाँ से ।” इतना कह कर बिंदो मौसी ने अपना मुंह फेर लिया । शायद वो अब और अपने आंसुओं को रोक नहीं सकती ठी और भूपा के सामने रो कर वो खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चाहती थी ।
भूपा के पास अब कहने को कुछ नहीं था । उसने अनमने मन से बिंदो मौसी के पैर छुए और चला गया । बिंदो मौसी ने गुस्से और दुःख से घिरे होने पर भी मन ही मन भूपा को हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद दिया ।
गुड़िया ये सब देख रही ठी मगर अभी उसने कुछ बोलना सही नहीं समझा वो ये सोच कर चली गयी कि शायद बिंदो मौसी थोडा रो ले तो उसका मन हल्का हो जाए । गुड़िया ये भी जानती ठी कि आज बिंदो खाना नहीं बनाएगी इसीलिए बहाने से उसने बिंदो की पसंद के नमकीन चावल बनाए और उसके यहाँ दे आई । अभी भी बिंदो एक दम शांत बैठी हुई थी, इतनी शांत ठी कि उसकी आँखों से उसके मन की बेचैनी झलक रही थी । गुड़िया उससे खाना खा लेने का वादा ले कर घर लौट गयी ।
सुबह एक नया दिन चढ़ा, दिनकर बाबा फिर से अपने पूरे तेज के साथ चमके । दिन अपनी शुरुआत कर रहा था मगर बिंदो मौसी के जीवन का अंत हो चूका था । गुड़िया जब आंख खुलते ही बिंदो मौसी के यहाँ पहुंची और दरवाज़े को खुला पाया तब ही वो समझ गयी कुछ ठीक नहीं । बिंदो अपनी खटिया से उतर कर ज़मीन पर दिवार के सहारे वैसे ही बैठी ठी जैसे रात गुड़िया उसे छोड़ कर गयी थी । चेहरा अभी भी शांत था मगर आँखों की बेचैनी गायब थी । शरीर पीला पड़ गया था, शायद गुड़िया के जाने के कुछ देर बाद ही बिंदो भी वहां से हमेशा के लिए चली गयी थी । शायद भूपा आया ही था उसे मुक्ति देने, शायद भूपा के इंतज़ार ने ही मौत से थोड़ी सांसे उधर मांगी थीं जिनकी अवधी भूपा के जाते ही पूरी हो गयी । सालों का इंतज़ार खत्म हो गया था और उसके साथ ही बिंदो मौसी भी जा चुकी थी ।
धीरज झा
Keywords : Hindi Story, Old Age, Bino Mausi, Sacrifices
आपको यह कहानी कैसी लगी इसके बारे में नीचे कमेन्ट बाक्स में हमें अवश्य बताएं.
"बिंदो मौसी, कहाँ हो दरवाज़ा खोलो । (मर तो ना गयी बुढ़िया, 'मन में' )" निमेस की बेटी गुड़िया ने बिंदो मौसी का दरवाज़ा पीटते हुए कहा
"अरे ज़िंदा हूँ मरी ना हूँ अभी । दम साध ले अभी आई ।" बिंदो तेज़ आवाज़ में बोलते हुए अपने धीमें कदम दरवाज़े की तरफ बढ़ाए । दो कमरों का एक छोटा सा घर जिसमें बिंदो मौसी अकेली रहा करती थीं । अंग्रेज़ों के ज़माने में बिंदो के दादा ने बड़ा सा घर बनवाया था । उन दिनों बिंदो के पूरे खानदान की ठाठ थी । बड़े बाबुओं में नाम आता था बिंदो के बाप दादाओं का । उस समय में ऐसा घर पूरे जिले में किसी का नहीं था । राजा साहब के महल के बाद इन्हीं का घर सबसे शानदार था । होता भी कैसे ना, डरी सहमी फूस की झोंपड़ियों के बीच सीना तान कर खड़ा छोटी इंटों का ऊंचे कोठे वाला यह घर अजूबा था यहाँ के लोगों के लिए । मगर धीरे धीरे वक्त की दीमक ने उस महलनुमा।बड़े से घर को दो कमरों के एक छोटे से मकान में बदल कर रख दिया । एक भाई और दो बहनों में बंटी जायदाद में इस मकान का बड़ा सा हिस्सा बिंदो को यह सोच कर दे दिया गया कि वो अकेली है उसके बुढ़ापे में ये घर किसी ना किसी तरह उसके काम आएगा । मगर बुढ़ापा अपनी उम्र के साथ बदकिस्मती को भी खींच लाता है । और उसी बदकिस्मती ने बिंदो मौसी के बड़े से मकान को इन दो कमरों में बदल दिया ।
"अरे मौसी हमने भला ऐसा कब कहा कि तुम मर गयी ?"
"मेरे दरवाज़े को एक बार से दो बार खटखटाने के साथ ही सभी के दिमाग में पहली बात यही आती है कि कहीं बुढ़िया निकल तो ना ली । और गलत भी क्या है । अब उम्र भी तो हो गयी है । कौन जाने राम जी कब बुला लें ।" बिंदो मौसी ने खुद को ऐसा दिखाया जैसे उसे मौत की कोई परवाह ही नहीं, लेकिन सच तो ये था कि जितना बिंदो मौसी मौत से डरती ठी उतना तो शायद ही कोई डरता हो इस इलाके में । डर का ये आलम था कि रात के समय बिंदो मौसी किसी हाल में अपना दरवाज़ा नहीं खोलती थी फिर भले ही कोई भी उनके दरवाज़े पर सर पटक पटक कर मर ही क्यों ना जाए । और हाँ उनकी रात शाम के ढलते ही हो जाया करती थी । उन्हें दर रहता था कि कोई उन्हें मार कर उनके पास बचे गहनों को चुरा कर ले जायेगा ।
“अरे मौसी मरे तुम्हारे दुश्मन, तुमको तो अभी भूपा के बीटा बेटी को गोद में खिलाना है और फिर उनकी भी शादी में तुमको नाचना है ।” गुड़िया ने थोड़े भावुक माहौल को मज़ाकिया बनाने के लिए कहा । बिंदो मौसी भी अपने नाचने का सोच कर हँस पड़ी ।
“अच्छा ये लो सुखमन चाचा के यहाँ से छांछ लाई, सोचा थोड़ी तुम्हें भी देती जाऊं ।”
“अरे बहुत अच्छा किया, बड़े दिनों से कढ़ी खाने का मन हो रहा था । भगवान तुझे जोड़ा बच्चे दें ।” गुड़िया बच्चों का नाम सुनते शर्मा कर भाग गयी ।
गुड़िया तो चली गयी मगर मौसी के लिए एक दर्द छोड़ गयी, जो मौसी अपनी मुस्कुराहटों के पीछे छुपाये फिरती थी । वो दर्द था भूपा, जिसके बच्चों का ज़िक्र कर के गुड़िया ने अभी अभी मौसी को हंसाया था । भूपा जिसकी वजह से बिंदो मौसी को सारा गाँव ही मौसी कहता था । भूपा बिंदो की बहन का लड़का था, जो पास वाले गाँव में ही बिआही थी । दोनों बहनों का भाग्य भगवान ने शायद उस जादुई कलम से लिखा था जिसका जिखा कुछ ही देर में मिट जाता है । एक बहन का सुहाग उसे बेसहारा छोड़ कर ना जाने कहाँ चला गया और दूसरी खुद इस संसार को छोड़ कर राम को प्यारी हो गयी । बिंदो की बहन के गुज़र जाने के बाद उसके पति ने दूसरी शादी कर ली और इसी के साथ भूपा बाप के होते हुए भी अनाथों सा हो गया । लेकिन बिंदो मौसी उसका हाल समझ सकती थी इसीलिए हमेशा उसे अपने ही पास रखा । भले ही भूपा का दिन अपने गाँव में पिता के काम में हाथ बताते हुए गुज़रता मगर शाम होते होते वो बिंदो मौसी के चूल्हे के पास ही बैठा मिलता ।
भूपा बचपन से ही गुमसुम सा रहता था, थोडा बहुत अगर खुल कर बात करता था तो वो सिर्फ बिंदो मौसी से ही । उसके पिता ने लिखा पढ़ी करने लायक शिक्षा उसे दिला दी थी । भूपा के चेहरे पर हर वक़्त एक अजीब सी घृणा झलकती थी, जैसे उसे यहाँ के पत्ते पत्ते से नफ़रत हो । बस वो बिंदो मौसी के पास ही थोड़ा चैन से रहता था । मन ही मन वो यहाँ से बहार निकलने के लिए बेचैन रहता था ।
एक दिन चूल्हे के पास बैठे हुए उसने बिंदो मौसी से कहा “मौसी हमको बिदेस जाना है ।”
“बिदेस ? बेटा सुना है वो तो दरिया पार उस दूसरी दुनिया में है ।” मौसी आश्चर्य से बोली
“अरे नहीं मौसी है तो इसी दुनिया में बस यहाँ से बहुत अलग है । हम कल सहर गए थे वहां हमको हमारा एक दोस्त मिला वो वहीँ रहता है वो हमको बोला के हमें साथ ले जायेगा । मौसी वहां बहुत पैसा है, जितना यहाँ एक साल में कमाएंगे ना उतना वहां एक दिन में कम लेते हैं । हम वहां जा कर खूब पैसा कमाएंगे और लौट के जब आएंगे तब तुमको सहर ले जायेंगे वहीँ हम दोनों एक बड़े से घर में रहेंगे ।” अपने सपनों को उसने मौसी की आँखों में डालने की पूरी कोशिश की ।
“अरे ना बेटा हम तो अब यहीं जन्मे और यहीं मर जायेंगे, यहाँ से जाना ही होता तो किस्मत हमको दोबारा यहाँ कहे धकेलती । लेकिन तू जा, हम चाहते हैं टू बहुत बड़ा आदमी बने ।” शायद मौसी के आँखों में अपने सपने सजाने की कोशिश में कामयाब हो गया था भूपा लेकिन मौसी के आंसुओं ने सपने आँखों में सजने से पहले ही बहा दिए ।
“आसान नहीं है मौसी । पूरा दो लाख रुपैया चाहिए ।” भूपा इतना कहने के साथ ही मायूस हो गया
“बाप रे, इतना पैसा ? ना भूपा इतना ऊँचा खाब ना देख, गिरेगा तो बड़ी चोट आएगी ।”
“सच कह रही हो मौसी, वैसे भी मुझ अभागे के करम में खुशियाँ भला कहाँ से आएँगी । सौतेली माँ बापू और बापू की संपत्ति पर कुंडली मारे ना बैठी होती तो सब बेच कर जाते और कुछ सालों बाद उससे दस गुना खरीद लेते मगर हमारे करम ऐसे कहाँ मौसी । अनाथ की तरफ़ से तो भगवान भी नज़र फेर लेता है ।” इतना कह कर भूपा थाली छोड़ कर उठ गया । उसकी थाली में पड़ी डेढ़ रोटी और मौसी दोनों बेबस नज़रों से उसे जाता देखते रहे ।
पूरी रात मौसी ने खुली आँखों के साथ काट दी । उसे लग रहा था जैसे उसकी बहन उससे ये शिकायत कर रही हो कि “बिंदो तू ने मेरे बेटे का खयाल नहीं रखा, तेरे ही सहारे तो उसे छोड़ गयी थी ।” इतना सोचते ही बिंदो मौसी खटिया से उठी और मुंह पोंछ कर धन्ने सेठ के घर की तरफ चल पड़ी ।
शाम हो रात के रंग में मिलने को तैयार थी लेकिन अभी तक भूपा खाना खाने नहीं आया था । बिंदो का मन ना जाने क्यों घबरा रहा था । वो उठी और अपनी धीमी चाल के साथ बाहर आंगन में आगयी । उसका मन शांत था मगर भूपा के अभी तक खाने के लिए ना आने पर वो सोच में पड़ गयी । मगर उसे ज़्यादा देर परेशां ना होना पड़ा क्योंकि सामने से भूपा चला आरहा था ।
“आज बहुत देर कर दी ? कहाँ रह गया था ?” मौसी ने भूपा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा ।
“मैं घर छोड़ आया मौसी, अब अपने बाप की सूरत भी ना देखूंगा कभी ।” आँखों में भरे गुस्से को आंसुओं के साथ बहाने की कोशिश करते हुए भूपा ने कहा
“पागल हो गया है क्या ? ऐसा क्या हुआ जो तू घर छोड़ आया । और ख़बरदार जो अपने पिता के लिए ऐसा बोला ।”
“कैसा पिता मौसी ? क्या एक पिता ऐसा होता है जो पैसा होने के बाद भी अपनी औलाद की ख़ुशी के लिए उसकी मदद ना कर पाए ? क्या पिता अपनी दूसरी पत्नी के लिए अपनी औलाद को भूल जाता है ? अगर पिता ऐसा होता है तो मुझे नहीं चाहिए ऐसा पिता ।” इसी के साथ भूपा बुरी तरह से रोने लगा । शायद वो टूट गया था ।
बिंदो मौसी ने उसका सर अपने साइन से लगते हुए कहा “ना मेरा बच्चा रो मत, तेरी मौसी जिंदा है अभी लाडले । तुझे बिदेस जाना है ना ? तो तू जायेगा ।”
“मौसी बिदेस जाने के लिए बहुत से पैसे चाहिए, ऐसे ही थोड़े चला जाऊंगा और मुझ अभागे का कौन है.....” भूपा इससे आगे कुछ कहता की बिंदो ने उसके सर पर हल्की सी चपत लगायी ।
“मैं तेरी कुछ ना लगती क्या ?”
“मौसी तू ही तो मेरी सब कुछ है लेकिन टू क्या कर सकती है भला ।” भूपा की बात सुन कर मौसी अचानक से उठ खड़ी हुई और अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी । भूपा मौसी को देखता रहा । मौसी ने अलमारी से एक लिफ़ाफ़ा निकला और भूपा के हाथों में ला कर धर दिया ।
“ये क्या है मौसी ?” भूपा आश्चर्य के साथ लिफाफे को देखते हुए कहा ।
“एक लाख रुपए हैं बाक़ी के दस दिन में मिल जाएंगे । टू बस बिदेस जाने की तयारी कर ।
“लेकिन, मौसी ये ये, मौसी ये आये कहाँ से ?” ख़ुशी के साथ आश्चर्य के मिले भाव भूपा के चेहरे पर खेलने लगे थे ।
“कुछ ना बस वो, ये कमरे छोड़ कर माकन का उधर वाला हिस्सा मैंने बेच दिया । धन्ना सेठ कबसे पीछे पढ़ा था माकन के लिए । वैसे भी वो कमीना है आज तो कल माकन किसी ना किसी तरह हथिया ही लेता तो मैंने सोचा आज जब बच्चे को ज़रुरत है तब ही क्यों ना बेच दूँ । तुझसे बढ़ कर भला कुछ हो सकता है क्या मेरे लिए ।” वो माकन जिसे बिंदो ने अपनी जान से ज़्यादा हिफाज़त के साथ संभाले रखा था उसे उसने भूपा के लिए बिना कुछ सोचे ही बेच दिया और फिर भी मुस्कुरा रही ठी ये देख कर की उसका भूपा खुश है अब ।
“मौसी, ये तूने क्या किया ? मौसी मुझ अनाथ के लिए तूने अपनी जान से प्यारी संपत्ति बेच दी ।” भूपा बिंदो से लिपट कर बुरी बच्चों जैसे रोने लगा ।
“ख़बरदार जो खुद को फिर अनाथ कहा । अरे भले ही तेरी माँ नहीं हूँ मगर मौसी तो हूँ और मौसी माँ का ही रूप होती है पगले । तू कहेगा तो मैं ये दो कमरे भी बेच दूंगी मगर दोबारा कभी खुद को अनाथ ना कहना ।” बिंदो का दिल छिल जाता था भूपा के मुंह से अनाथ शब्द सुन कर ।
भूपा कुछ बोलने की हालत में नहीं था वो बस रोता रहा । अगले दिन से भूपा ने विदेश जाने की तैयारियां शुरू कर दीं । तीन महीनों के अन्दर भूपा का सारा काम होगया और अब अगले दिन उसकी रवानगी थी । आज रात को चूल्हे के आगे बैठी बिंदो को देख चूल्हे की आग भी ताव नहीं पकड़ रही थी । ताव पकडती भी कैसे उसके आँखों से बरस रही नमी ने पूरे कमरे को मुर्दे जैसा शांत और ठंडा कर रखा था ।
भूपा बिंदो मौसी के दर्द से अंजान अपने ही सपनों में खोया था । बिंदो ने एक और रोटी के लिए पूछा तो भूपा बोला “हाँ मौसी आज तो खूब खिला, अब पता ना तेरे हाथों का ये खाना कब नसीब हो ।” भूपा की ख़ुशी में गढ़े गए इन शब्दों ने घाव में एक नया तीर घुस जाने जैसा काम किया । ना चाहते हुए भी बिंदो की सिसकियाँ छूट गयीं ।
“ऐ मौसी, क्या हुआ तुझे ? ऐसे काहे रोने लगी ?”भूपा ने घबरा कर पूछा
“भूपा तू हमेशा अपने आप को अनाथ कहता रहा ना मगर असल में सबसे बड़ी अनाथ तो मैं हूँ रे । तू जब तक यहाँ था मुझे कभी अपने अकेलेपन का दुःख नहीं खला मगर आज ना जाने क्यों बहुत दर लग रहा है । ऐ भूपा सच बता तू मुझे भूल तो नहीं जाएगा ना ?” आज बिंदो अपनी आँखों का सारा पानी निचोड़ देना चाहती थी जिससे भूपा के जाने के बाद उसकी आँखों में कुछ बचे ही ना ।
“अरे मौसी, तेरे बिना मेरा है ही कौन और मैं बिदेस जितना अपने लिए जा रहा हूँ उतना ही तेरे लिए भी । मैं जल्दी लौटूंगा और खूब सरे पैसे के साथ लौटूंगा । और उसके बाद तुझे दुनिया की बहुत सी खुशियाँ दूंगा ।” भूपा ने बिंदो मौसी को गले से लगा लिया
बिंदो मौसी ने मन ही मन कहा “बीटा तू खुश रहना और मुझे याद रखना मेरे लिए यही सबसे बड़ी ख़ुशी होगी ।”
अगले दिन भूपा रवाना होने वाला था । उसने बिंदो मौसी के पैर छूते हुए दो बूंद आंसुओं से उन्हें धो दिया । बिंदों ने भूपा को आखरी बार गले से लगते हुए उसके कान में काहा “अपनी खबर देते रहना । वरना कहीं ऐसा ना हो तेरा इंतज़ार मेरी ज़िन्दगी से लम्बा हो जाए ।” भूपा ने इस बात का कुछ जवाब ना दिया शायद वो बोल पाने की हालत में नहीं था । बस आगे की तरफ बढ़ने लगा और ऐसे बाधा की फिर कभी लौट कर नहीं देखा ।
आज बारह साल हो गए थे भूपा को गए और बिंदो को उसका इंतज़ार करते हुए मगर आज तक ना भूपा लौटा ना बिंदो का इंतज़ार खत्म हुआ । बिंदो रोज़ उसे भूलने की कोशिश करती मगर कभी वो मकान जो उसके लिए बेचा था, कभी कोई आस पड़ोस का, कभी चूल्हे से उतरती रोटियाँ मिल कर हमेशा उसकी याद को ताज़ा कर देतीं ।
“मौसी, मौसी दरवाज़ा खोल । जल्दी खोल नहीं तो तोड़ दूंगी ।” गुड़िया पागलों की तरह दरवाज़ा पीट रही थी ।
“ऐ लड़की पागल हो गयी है क्या ? दरवाज़ा तोड़ देगी ? सबर नहीं है क्या, आ तो रही हूँ ।” जिस सूट पर वो फूल बूटियां बना रही थी उसे एक तरफ रख कर गुड़िया पे भनभनाते हुए बिंदों ने दरवाज़ा खोला ।
“मौसी पागल मैं नहीं टू हो जाएगी, वो भी ख़ुशी से जब मैं तुझे एक खुश खबरी दूंगी तो ।” गुड़िया ने चहकते हुए कहा ।
“क्या हुआ तेरा रिश्ता तय हो गया क्या ।” बिंदो ने खुश हो कर पूछा क्योंकि और तो कोई खबर ठी नहीं जिससे वो फ़िलहाल खुश हो जाती ।
गुड़िया को शर्म आगयी मगर अभी उसने शर्म को एक तरफ करके कहा “नहीं बुढ़िया, तेरा भूपा लौट आया है । अभी हमारे घर है इधर ही आरहा है । बड़ी सी गाड़ी में ।”
गुड़िया के मुंह से ये खबर सुनते ही बिंदो जैसे बुत होगई । उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सच भी हो सकता है । शायद उसका इंतज़ार अब दम तोड़ चूका था और मरे हुए को जिंदगी मिल जाए अचानक से तो कुछ पल के लिए होश ही कहाँ रहता है । गुड़िया ने उसे जोर से हिलाया “कहाँ खो गयी मौसी ?”
“कहाँ है, कहाँ है मेरा भूपा ? अरे राम मैंने कुछ बनाया भी नहीं । आते ही कहेगा मौसी मुझे भूख लगी है । मैं भला उसे क्या खिलाऊँगी ? अच्छा गुड़ पढ़ा हुआ है और पोहा भी है, उसे नाश्ते में गुड़ और पोहा.....।” बिंदो जैसे सच में पागल हो गयी थी, अकेले ही बडबडा रही थी । तभी अचानक से वर्षों बाद किसी अपने की छुं को उसने अपने पैरों पर महसूस किया । वो झट से अपने ख्यालों के कैद से बहार आई और सामने देखा तो भूपा था मगर ये वो भूपा नहीं था ये तो कोई विदेशी था । महंगे कपड़े, अजीब ढंग के बाल, तन से जो खुश्बू आरही थी वो भी भूपा की नहीं थी, कानों में सोने के कुंडल थे, आँखों पर रंगीन चश्मा, होंठों पर बिखरी मुस्कराहट से वो मासूमियत गायब ठी जो भूपा के चेहरे पर हँसते ही खेल जाया करती थी । मगर जो भी था ये था तो भूपा ही ।
बिंदो के आँखों में उमड़ आये आंसुओं ने उसे अपने भूपा का चेहरा देखने से रोक रखा था । आंसुओं को पोंछते हुए उसने अपने बूढ़े शरीर की सारी ताकत अपनी बाँहों में समेट कर भूपा को गले से लगा लिया । और उसके माथे से चेहरे तक चुम्बनों की बौछार करने । भूपा बस खड़ा मुस्कुराता रहा । बिदो को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी बारह सालों की तपस्या का फल उसके सामने बैठा है, कुछ देर भूपा के सामने रहने के बाद तब उसे यकीन आया कि वो सच में लौट आया है ।
कुछ देर हाल चाल बताने पूछने और शिकायतों का दौर चलने के बाद बिंदो ने भूपा से कहा “अरे मैं भूल ही गयी कि तुझे भूख भी लगी होगी । रुक मैं तेरे लिए पोहा और गुड़ ले के आती हूँ ।”
“अरे नहीं मौसी, हम शहर से ही खाना खा के आये थे । अब निकलना है परसों वापसी भी है ।” इतना सुनते ही बिंदो को लगा जैसे वो किसी सुनहरे सपने से जाग कर फिर से उस अकेलेपन के दलदल में जा धंसी हो ।
“निकलना है ? तो फिर आया ही क्यों था ?” भूपा के शब्दों के अघात से बिंधे हुए दिल में से अचानक ही ये सारे सवाल निकल आये ।
“वो तो मैं अपने बाप को उसकी और अपनी औकात में फरक दिखने आया था तो सोचा तुमसे भी मिलता ही चलूं और तुम्हारा कुछ रुपैया भी लौटना था हमको, बताओ मौसी वो रुपैया लौटा दें या फिर से ये माकन तुमको खरीद दें ।” भूपा के ये शब्द बिंदो मौसी को ऐसे लगे जैसे किसी ने गहरे घाव में ऊँगली डाल कर घुमा दिया हो ।
“बाह बेटा, लगता है बहुत पैसा हो गया है तुम्हारे पास । लेकिन बेटा हमारी तो अब उम्र हो चली, कब हैं कब नहीं पता नहीं । ये जो था ये तुम्हारा ही था, ये जो बचा है ये भी तुम्हारा ही है । मैंने कोई मदद ना की ठी तुम्हारी मैंने बस अपने बेटे की परेशानी दूर की थी । काश तुम समझ पते कि एक माँ के दिल को बस उसके बच्चों का सामने रहना ही सुकून दे सकता है और इस सुकून की बराबरी तुम्हारा ये रुपैया नहीं कर पायेगा । ले जाओ बेटा ये पैसे और हाँ अगर ज़्यादा हों तो किसी मुझ जैसी अभागी और अनाथ बुढ़िया को दे देना जिसके पास ज़िन्दगी के कुछ साल बचे हों ।” बिंदो मौसी ने अपने उठ रहे दर्द की सारी पीड़ा अपने शब्दों में बयाँ कर दी ।
“तुम मौसी हो ना इसलिए नहीं समझोगी अगर मेरी माँ होती तो वो समझती और खुश होती अपने बच्चे को कामयाब देख कर ।” अब ये साबित हो चूका था कि इन बारह सालों में वो भूपा खतम हो चूका है ये जो भूपा है इसे पैसे के घमंड ने जन्म दिया है जिस पर किसी भी भावुकता या किसी के दर्द का कोई असर नहीं होता ।
उसकी बात सुन कर बिंदो मौसी के होंठों के एक छोर से दूसरे तक पीड़ा से सनी हुई एक मुस्कान दौड़ गयी । मौसी ने उसी मुस्कान के साथ कहा “हर बार माँ ही समझे ? काश की कभी बच्चे भी माँ को समझ पाते तो हम जैसे बूढ़े कभी अनाथ ना होते । जाओ भूपेन्द्र बाबू, ये देहात का गाँव है, तुम जैसे बिदेसी यहाँ की हवा और मिट्टी को एक आंख नहीं भाते । ये तुम्हारी तबियत बिगड़ दें उससे पहले चले जाओ यहाँ से ।” इतना कह कर बिंदो मौसी ने अपना मुंह फेर लिया । शायद वो अब और अपने आंसुओं को रोक नहीं सकती ठी और भूपा के सामने रो कर वो खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चाहती थी ।
भूपा के पास अब कहने को कुछ नहीं था । उसने अनमने मन से बिंदो मौसी के पैर छुए और चला गया । बिंदो मौसी ने गुस्से और दुःख से घिरे होने पर भी मन ही मन भूपा को हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद दिया ।
गुड़िया ये सब देख रही ठी मगर अभी उसने कुछ बोलना सही नहीं समझा वो ये सोच कर चली गयी कि शायद बिंदो मौसी थोडा रो ले तो उसका मन हल्का हो जाए । गुड़िया ये भी जानती ठी कि आज बिंदो खाना नहीं बनाएगी इसीलिए बहाने से उसने बिंदो की पसंद के नमकीन चावल बनाए और उसके यहाँ दे आई । अभी भी बिंदो एक दम शांत बैठी हुई थी, इतनी शांत ठी कि उसकी आँखों से उसके मन की बेचैनी झलक रही थी । गुड़िया उससे खाना खा लेने का वादा ले कर घर लौट गयी ।
सुबह एक नया दिन चढ़ा, दिनकर बाबा फिर से अपने पूरे तेज के साथ चमके । दिन अपनी शुरुआत कर रहा था मगर बिंदो मौसी के जीवन का अंत हो चूका था । गुड़िया जब आंख खुलते ही बिंदो मौसी के यहाँ पहुंची और दरवाज़े को खुला पाया तब ही वो समझ गयी कुछ ठीक नहीं । बिंदो अपनी खटिया से उतर कर ज़मीन पर दिवार के सहारे वैसे ही बैठी ठी जैसे रात गुड़िया उसे छोड़ कर गयी थी । चेहरा अभी भी शांत था मगर आँखों की बेचैनी गायब थी । शरीर पीला पड़ गया था, शायद गुड़िया के जाने के कुछ देर बाद ही बिंदो भी वहां से हमेशा के लिए चली गयी थी । शायद भूपा आया ही था उसे मुक्ति देने, शायद भूपा के इंतज़ार ने ही मौत से थोड़ी सांसे उधर मांगी थीं जिनकी अवधी भूपा के जाते ही पूरी हो गयी । सालों का इंतज़ार खत्म हो गया था और उसके साथ ही बिंदो मौसी भी जा चुकी थी ।
धीरज झा
Keywords : Hindi Story, Old Age, Bino Mausi, Sacrifices
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