पू रे पाँच साल बाद किस्मत ज़बरदस्ती घर ले आई थी । वरना अभय ने तो जैसे घर से मोह ही तोड़ लिया था । नौकरी लगते ही जैसे उसे अपने शहर का राह्ता ...
पूरे पाँच साल बाद किस्मत ज़बरदस्ती घर ले आई थी । वरना अभय ने तो जैसे घर से मोह ही तोड़ लिया था । नौकरी लगते ही जैसे उसे अपने शहर का राह्ता ही भूल गया था । काम का बढ़ता हुआ लोड और शहर की ज़िंदगी के बीच उसे लगने लगा था जैसे सारी उम्र इसी तरह ही कट जाएगी । माँ हर बार फोन पर घर आने को कहती मगर वो हर बार काम का बहाना बना कर टाल देता । शहर की भीड़ भाड़ वाली ज़िंदगी में पूरी तरह घूलते मिलते ही अभय की ज़िंदगी में रिश्तों का महत्व कम होने लगा था ।
उसने तो सोचा था अभी वो कुछ साल और घर की तरफ रुख नहीं करेगा मगर अफ़सोस सब अपनी सोच के हिसाब से होता तो फिर दिक्कत ही क्या था । एक दिन अचानक ही तेज़ बुख़ार और खांसी ने धीरे धीरे टी बी का विकराल रूप कब ले लिया उसे खुद पता ना चला । घर खबर पहुंचते ही माँ पिता जी भागते हुए शहर पहुंचे । डाॅक्टर ने टोटली बेड रेस्ट और टी बी की हार्ड दवाईयों का बिना किसी रूकावट के लंबा कोर्स लेने का फर्मान सुना दिया । अभय अब असहाय था, अपना शरीर ही अब उसके अधीन नहीं था तो भला फैसले कहाँ से ले पाता । ना चाहते हुए भी उसे माँ पिता जी के साथ घर लौटना पड़ा ।
बहन और माँ की दिन रात सेवा और पिता जी की देखरेख में अभय जल्द ही ठीक होने लगा । घर के माहौल ने चंद ही महीनों में अभय का परिवार के प्रति कम हो रहा मोह फिर से बढ़ गया । इसीलिए तो उसने दिवाली घर से ही मना कर फिर उसके बाद शहर लौटने का मन बनाया ।
दिवाली की सफाई चल रही थी । पिता जी बाज़ार गये हुए थे । रिया और माँ पूरे घर की झाड़ पोंछ में लगे हुए थे । अपने कमरे में लैपटाॅप से आँखें गड़ाए हुए अभय उबने लगा था । उसके मन में आया कि बाहर चल कर माँ और रिया का कुछ हाथ बंटाया जाए । उसने देखा तो माँ सबसे पीछे वाला कमरा जो कभी उसका हुआ करता था के अलमारियों की झाड़ पोंछ कर रही है । अभय को देखते ही माँ ने घबराते हुए कहा "अरे बेटा तू बाहर क्यों आ गया । ये पुरानी धूल है तुझे नुक्सान करेगी जा अपने कमरे में ।"
छः महीने तक माँ ने अभय का तड़पना देखा था अब वो उसे फिर से उस हाल में कभी देखना नहीं चाहती थी इसीलिए छोटी छोटी बात का ध्यान रखती थी । मगर अभय ठहरा मनमौजी वो कहाँ मानने वाला था । उसने अलमारी के पास जाते हुए कहा "शहर की आम हवा से ज़्यादा सही है ये पुरानी धूल । सालों बाद इसकी खुशबू ले रहा हूँ माँ । थोड़ी देर रुकने दो फिर चला जाता हूँ ।" माँ को पता था अभय मानने वाला नहीं इसीलिए उसने अलमारी को झाड़ना रोक दिया और अभय को मुस्कुरा कर देखने लगी ।
"माँ मैं यहाँ था तो आधी सफाई मैं ही किया करता था ना दिवाली में ।"
"हाँ बेटा तुझे शौख़ भी तो बहुत था दिवाली का । महीने पहले से ही तू तैयारियों में जुट जाया करता था । तू गया साथ ही साथ दिवाली की आधी रौनक भी ले गया । तेरे बाद तो बस नाम की ही दिवाली रह गयी थी ।" बात करते करते माँ का चेहरा पुरानी यादों का समन्दर सा दिखने लगा और उदासियाँ उस समंदर में तैरती हुईं नज़र आने लगीं ।
"हाँ तो इस बार मैं आगया ना, इस बार हम पहले से भी बेहतर दिवाली मनाएंगे ।" अभय ने माँ को गले लगाते हुए कहा ।
"अरे माँ ये गणेश जी वाला फोटो फ्रेम तो नमन ने गिफ्ट किया था ना दिवाली में ?" अपनी पुरानी अलमारी में से झांक रही उस फोटो फ्रेम को उठाते हुए अभय ने माँ से पूछा ।
"हाँ उन्हों ने तो दिया । वो हर साल आपको कोई ना कोई गिफ्ट देते थे दिवाली पर और आप कंजूस कहीं के कभी उन्हें कुछ नहीं दिया ।" रिया ने अभय को चिढ़ाते हुए कहा ।
"हाँ हाँ तू देखने आती थी ना कि मैने उसे क्या दिया क्या नहीं ।"
"और नहीं तो क्या, आप अगर दस रुपये खर्च करते थे तब भी चार दिन तक सुनाते थे कि आपने पैसे खर्च किये तो भला कोई गिफ्ट देते तो कैसे ना सुनाते ।"
" माँ ये ज़्यादा बोल रही है । कितने सालों से पिटी नहीं ना मुझसे अब लगता है सारी कसर निकालनी पड़ेगी ।" अभय ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा ।
"हाथ तो लगाओ ज़रा फिर देखना । अब वो टाईम गया जब आप लाडले थे । आपके शहर जाने के बाद मैं घर की लाडली हो गयी हूँ ।" रिया की बात पर तीनों हंस दिये ।
"आज कल नमन कहाँ है कुछ पता है ?"
"हाँ अपने पिता के देहांत के बाद अपनी दुकान पर ही होते हैं ।" माँ की बात सुन अभय को झटका लगा ।
"नमन के पिता का देहांत हो गया ? मगर कब ?" अभय ने हैरानी के साथ पूछा ।
"दो साल हो गये । मैं और तेरे पापा गये थे । तब भी तेरे बारे में पूछ रहा था । मैने तुझे बताया भी था मगर तब तू इतना व्यस्त रहता था कि बात सुनने का टाईम कहाँ रहता था तेरे पास ।" माँ की बातों में नाराज़गी झलकने लगी । अभय शर्मींदा सा हो गया ।
रिया ने माहौल ग़मगीन सा होता देख अलमारी से पुरानी एल्बम निकालते हुए कहा "भईया आपको याद है हर दिवाली हम लोग कैसे शाम के समय बस्तियों की तरफ निकल जाते थे और वहाँ के बच्चों को बिस्कुट चाॅक्लेट दिया करते थे । ये फोटो देखो तब की ही है । पापा ने मेरे जन्मदिन पर कैमरा गिफ्ट किया था उसी से ली थी ।"
"हाँ रिया, कितना सुकून आता था ना । लेकिन आधे बिस्कुट चाॅक्लेट तो तू ही खा जाती थी ।" अभय ने रिया को चिढ़ाते हुए कहा, इस पर रिया ने हौले से अभय को मुक्का मार दिया ।
शाम तक घर की सफाई करते हुए ना जाने कितनी यादें अभय के सामने आ बिखरी थी । हर याद को उलट पलट कर देखते हुए अभय को लग रहा था जैसे वो कितने समय बाद नींद से जागा है । किसी सपने से लौट कर अपने घर, अपनों के बीच वापिस लौटा है । रात को अभय ने सबके लिए ये कह कर खाना बनाया कि आज सब थक गये हैं इसलिए सबको आराम देते।हुए आज वो खुद खाना बनाएगा । सबने बहँसी मज़ाक करते हुए खाना खत्म किया । एक अर्से बाद आज आज घर की खुशियाँ भी सबके साथ बैठी थीं ।
दिवाली का दिन आ गया था । सब आज अपने अपने काम में व्यस्त थे । माँ ने समझा अभय अभी तक सोया हुआ है । मगर जब घड़ी की सुई सुबह के छः से सरकते हुए बारह तक आई तब माँ ने सोचा कि अभय को उठा दिया जाए मगर अभय अपने कमरे गायब था । किसी को बता कर नही गया था कि कहाँ जा रहा है वो । माँ के बार बार परेशान होने पर रिया ने समझाया कि "माँ भईया कोई बच्चे थोड़े ना हैं । किसी काम से गये होंगे शाम तक आ जाएंगे ।"
मगर माँ के मन को चैन कहाँ । वो जानती थीं कि अभय अपने मन की करने वाला है उसके मन में अगर आया तो बिना किसी को बताए ही शहर चला जाएगा और आज त्यौहार के दिन वो बच्चा जो सालों बाद घर आया है वापिस चला जाएगा तो ये सही शगुन ना होगा । माँ अपनी ही उधेड़ बुन में बेचैन मन के साथ काम कर रही थी । ज़्यों ज़्यों समय बीत रहा था त्यों त्यों माँ का मन हौल रहा था । अभय अपना फोन भी तो नहीं उठा रहा था ।
शाम के छः बजे अभय ढेर सारे तोहफे लिए घर लौटा । उसे देखते ही माँ का प्यार भरा गुस्सा कुछ शबदों के साथ उनकी ज़ुबान से कुछ इस तरह झड़ने "क्या इतने बड़े हो गये हो बेटा की घर से जाते समय एक बार बताना भी सही नहीं समझते कि कहाँ जा रहे।हो कब तक लौटोगे ? सुबह ना जाने कब गये और अभी शाम ढलने पर घर आ रहे हो । एक तो इतने सालों बाद घर लौटे हो और उस पर..... ।" माँ आगे कुछ कहती इससे पहले अभय ने माँ को गले लगा लिया ।
"आज मैं घर लौट आया माँ । बड़े दिनों बाद लौटा हूँ बहुत सुकून मिल रहा है । और बता कर गया होता तो आपकी ये डांट जिसका स्वाद ही भूल गया था फिर से सुनने को कहाँ से मिलती ।" उसके माँ के सीने से लग जाने का असर था या उसकी बातों का ये पता नहीं पर जो भी था, माँ की आँखें भर आई थीं ।
"कुछ खाया या सुबह से भूखा ही है ।" माँ का हमेशा वाला सवाल अचानक से सामने आ खड़ा हुआ अभय के ।
"खाया ? पूछो क्या क्या खाया ।"
"अच्छा, गया कहाँ था जो क्या क्या खा लिया ?"
"कहाँ गया था ? अरे पूछो कहाँ कहाँ गया था ।" अब माँ ने बदमाश कह के अभय के बाजू पर एक थप्पड़ मारा ।
"बताएगा या बातें बनाता रहेगा ?"
"अच्छा बता रहा हूँ ना सब्र करो माँ । सबसे पहले नमन के यहाँ गया और वो भी दिवाली गिफ्ट ले कर (रिया की तरफ देखते हुए बनावटी गुरूर वाली मुस्कुराहट के साथ ) वहाँ सबसे मिला काफी देर बातें करते रहे । फिर उसे लेकर मिठाईयों के साथ बस्ती की ओर गया वहाँ बच्चों दीं मिठाईयाँ और काॅपियाँ पैंसिल्स । फिर कुछ दोस्तों और टीचर्स के यहाँ गये फिर आप सब के लिए थोड़े बहुत गिफ्टस लेने चला गया ।" गिफ्टस का नाम सुनते ही रिया ने अभय के हाथों से सारे लिफाफे छीन कर उन्हें खोलना शुरू कर दिया । उसके लिए एक नया कैमरा था जिसे वो कितने दिनों से खरीदना चाह रही थी । उसे देखते ही वो खुशी से झूम उठी । माँ के लिए साड़ी थी और पिता जी के लिए एक बढ़िया घड़ी ।
"इतना सब लाने की ज़रूरत क्या थी बेटा ।" माँ ने अभय को प्यार देखते हुए कहा ।
"ज़रूरत थी माँ । कल घर की सफाई नहीं की हमने बल्कि यादों को ताज़ा किया । और उस समय मुझे याद आया कि मैने ज़िंदगी में कुछ बड़ा पाने के लिए छोटे छोटे खुशियों के अनगिनत पल कहीं पीछे छोड़ दिए । मुझमें से पापा का वो डर खत्म होता जा रहा था जो असल में पिता के प्रति एक पुत्र का सम्मान होता है, मुझ में से वो मोह जो एक बेटे का माँ और भाई बहन के लिए होता है वो मोह मरता चला जा रहा था । मुझे लगने लगा था कि अच्छी कमाई कर के मैं घर पैसे भेज देता हूँ इतना ही बहुत है मगर कल मैने जाना कि मैने कितना कुछ खो दिया इन पाँच सालों में । कल पुरानी धूल उड़ रही थी ना माँ, उसने फिर से बहुत कुछ पुराना मुझ में ज़िंदा कर दिया।" अभय के चेहरे पर आँखों के आँसुओं के साथ साल की पहली बरसात में भीगी सी मुस्कुराहट उछलने लगी ।
"मेरा बच्चा ।" माँ ने बस इतना कह कर अभय को गले लगा लिया ।
"माँ बेटा आपस में ही मेरी माँ मेरा बच्चा करते रहते हैं । हम बाप बेटी को तो जैसे अपना ड्रामा दिखाने के लिए किराए पर बुलाया हो ।" दोनों को कुछ ज़्यादा ही भावुक होता देख पिता जी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा । और उनकी बात से सभी खिलखिला कर हँस पड़े । दिवाली की रौनक आज फिर से लौट आई थी । शाम होते ही घर दीये और लाईटों से कम खुशियों से ज़्यादा जगमगाने लगा । नमन के साथ और भी कई दोस्त अपने परिवार सहित अभय के घर पहुंचे । देखते ही देखते पाँच साल से सुनी पड़ी दिवाली आज नई दुल्हन सी चहकने लगी ।
मिठाईयाँ नए कपड़े, पटाखे, रौशन दीये ये सब दिवाली की रौनक नहीं बन पाते जब तक अपनों का साथ और स्नेह ना हो । दीपों के साथ साथ अपनों से मिलाप के इस त्यौहार दीपवली की आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं । आप सबका सदैव अपनों के साथ स्नेह बना रहे तथा हमेशा आपका जीवन खुशियों से जगमगाता रहे ।
धीरज झा
Keywords : Happy Diwali, Hindi Story, Meaning Of Real Love, Diwali Essay, Family Love
उसने तो सोचा था अभी वो कुछ साल और घर की तरफ रुख नहीं करेगा मगर अफ़सोस सब अपनी सोच के हिसाब से होता तो फिर दिक्कत ही क्या था । एक दिन अचानक ही तेज़ बुख़ार और खांसी ने धीरे धीरे टी बी का विकराल रूप कब ले लिया उसे खुद पता ना चला । घर खबर पहुंचते ही माँ पिता जी भागते हुए शहर पहुंचे । डाॅक्टर ने टोटली बेड रेस्ट और टी बी की हार्ड दवाईयों का बिना किसी रूकावट के लंबा कोर्स लेने का फर्मान सुना दिया । अभय अब असहाय था, अपना शरीर ही अब उसके अधीन नहीं था तो भला फैसले कहाँ से ले पाता । ना चाहते हुए भी उसे माँ पिता जी के साथ घर लौटना पड़ा ।
बहन और माँ की दिन रात सेवा और पिता जी की देखरेख में अभय जल्द ही ठीक होने लगा । घर के माहौल ने चंद ही महीनों में अभय का परिवार के प्रति कम हो रहा मोह फिर से बढ़ गया । इसीलिए तो उसने दिवाली घर से ही मना कर फिर उसके बाद शहर लौटने का मन बनाया ।
दिवाली की सफाई चल रही थी । पिता जी बाज़ार गये हुए थे । रिया और माँ पूरे घर की झाड़ पोंछ में लगे हुए थे । अपने कमरे में लैपटाॅप से आँखें गड़ाए हुए अभय उबने लगा था । उसके मन में आया कि बाहर चल कर माँ और रिया का कुछ हाथ बंटाया जाए । उसने देखा तो माँ सबसे पीछे वाला कमरा जो कभी उसका हुआ करता था के अलमारियों की झाड़ पोंछ कर रही है । अभय को देखते ही माँ ने घबराते हुए कहा "अरे बेटा तू बाहर क्यों आ गया । ये पुरानी धूल है तुझे नुक्सान करेगी जा अपने कमरे में ।"
छः महीने तक माँ ने अभय का तड़पना देखा था अब वो उसे फिर से उस हाल में कभी देखना नहीं चाहती थी इसीलिए छोटी छोटी बात का ध्यान रखती थी । मगर अभय ठहरा मनमौजी वो कहाँ मानने वाला था । उसने अलमारी के पास जाते हुए कहा "शहर की आम हवा से ज़्यादा सही है ये पुरानी धूल । सालों बाद इसकी खुशबू ले रहा हूँ माँ । थोड़ी देर रुकने दो फिर चला जाता हूँ ।" माँ को पता था अभय मानने वाला नहीं इसीलिए उसने अलमारी को झाड़ना रोक दिया और अभय को मुस्कुरा कर देखने लगी ।
"माँ मैं यहाँ था तो आधी सफाई मैं ही किया करता था ना दिवाली में ।"
"हाँ बेटा तुझे शौख़ भी तो बहुत था दिवाली का । महीने पहले से ही तू तैयारियों में जुट जाया करता था । तू गया साथ ही साथ दिवाली की आधी रौनक भी ले गया । तेरे बाद तो बस नाम की ही दिवाली रह गयी थी ।" बात करते करते माँ का चेहरा पुरानी यादों का समन्दर सा दिखने लगा और उदासियाँ उस समंदर में तैरती हुईं नज़र आने लगीं ।
"हाँ तो इस बार मैं आगया ना, इस बार हम पहले से भी बेहतर दिवाली मनाएंगे ।" अभय ने माँ को गले लगाते हुए कहा ।
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Pic Source:-2016diwali.com |
"हाँ उन्हों ने तो दिया । वो हर साल आपको कोई ना कोई गिफ्ट देते थे दिवाली पर और आप कंजूस कहीं के कभी उन्हें कुछ नहीं दिया ।" रिया ने अभय को चिढ़ाते हुए कहा ।
"हाँ हाँ तू देखने आती थी ना कि मैने उसे क्या दिया क्या नहीं ।"
"और नहीं तो क्या, आप अगर दस रुपये खर्च करते थे तब भी चार दिन तक सुनाते थे कि आपने पैसे खर्च किये तो भला कोई गिफ्ट देते तो कैसे ना सुनाते ।"
" माँ ये ज़्यादा बोल रही है । कितने सालों से पिटी नहीं ना मुझसे अब लगता है सारी कसर निकालनी पड़ेगी ।" अभय ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा ।
"हाथ तो लगाओ ज़रा फिर देखना । अब वो टाईम गया जब आप लाडले थे । आपके शहर जाने के बाद मैं घर की लाडली हो गयी हूँ ।" रिया की बात पर तीनों हंस दिये ।
"आज कल नमन कहाँ है कुछ पता है ?"
"हाँ अपने पिता के देहांत के बाद अपनी दुकान पर ही होते हैं ।" माँ की बात सुन अभय को झटका लगा ।
"नमन के पिता का देहांत हो गया ? मगर कब ?" अभय ने हैरानी के साथ पूछा ।
"दो साल हो गये । मैं और तेरे पापा गये थे । तब भी तेरे बारे में पूछ रहा था । मैने तुझे बताया भी था मगर तब तू इतना व्यस्त रहता था कि बात सुनने का टाईम कहाँ रहता था तेरे पास ।" माँ की बातों में नाराज़गी झलकने लगी । अभय शर्मींदा सा हो गया ।
रिया ने माहौल ग़मगीन सा होता देख अलमारी से पुरानी एल्बम निकालते हुए कहा "भईया आपको याद है हर दिवाली हम लोग कैसे शाम के समय बस्तियों की तरफ निकल जाते थे और वहाँ के बच्चों को बिस्कुट चाॅक्लेट दिया करते थे । ये फोटो देखो तब की ही है । पापा ने मेरे जन्मदिन पर कैमरा गिफ्ट किया था उसी से ली थी ।"
"हाँ रिया, कितना सुकून आता था ना । लेकिन आधे बिस्कुट चाॅक्लेट तो तू ही खा जाती थी ।" अभय ने रिया को चिढ़ाते हुए कहा, इस पर रिया ने हौले से अभय को मुक्का मार दिया ।
शाम तक घर की सफाई करते हुए ना जाने कितनी यादें अभय के सामने आ बिखरी थी । हर याद को उलट पलट कर देखते हुए अभय को लग रहा था जैसे वो कितने समय बाद नींद से जागा है । किसी सपने से लौट कर अपने घर, अपनों के बीच वापिस लौटा है । रात को अभय ने सबके लिए ये कह कर खाना बनाया कि आज सब थक गये हैं इसलिए सबको आराम देते।हुए आज वो खुद खाना बनाएगा । सबने बहँसी मज़ाक करते हुए खाना खत्म किया । एक अर्से बाद आज आज घर की खुशियाँ भी सबके साथ बैठी थीं ।
दिवाली का दिन आ गया था । सब आज अपने अपने काम में व्यस्त थे । माँ ने समझा अभय अभी तक सोया हुआ है । मगर जब घड़ी की सुई सुबह के छः से सरकते हुए बारह तक आई तब माँ ने सोचा कि अभय को उठा दिया जाए मगर अभय अपने कमरे गायब था । किसी को बता कर नही गया था कि कहाँ जा रहा है वो । माँ के बार बार परेशान होने पर रिया ने समझाया कि "माँ भईया कोई बच्चे थोड़े ना हैं । किसी काम से गये होंगे शाम तक आ जाएंगे ।"
मगर माँ के मन को चैन कहाँ । वो जानती थीं कि अभय अपने मन की करने वाला है उसके मन में अगर आया तो बिना किसी को बताए ही शहर चला जाएगा और आज त्यौहार के दिन वो बच्चा जो सालों बाद घर आया है वापिस चला जाएगा तो ये सही शगुन ना होगा । माँ अपनी ही उधेड़ बुन में बेचैन मन के साथ काम कर रही थी । ज़्यों ज़्यों समय बीत रहा था त्यों त्यों माँ का मन हौल रहा था । अभय अपना फोन भी तो नहीं उठा रहा था ।
शाम के छः बजे अभय ढेर सारे तोहफे लिए घर लौटा । उसे देखते ही माँ का प्यार भरा गुस्सा कुछ शबदों के साथ उनकी ज़ुबान से कुछ इस तरह झड़ने "क्या इतने बड़े हो गये हो बेटा की घर से जाते समय एक बार बताना भी सही नहीं समझते कि कहाँ जा रहे।हो कब तक लौटोगे ? सुबह ना जाने कब गये और अभी शाम ढलने पर घर आ रहे हो । एक तो इतने सालों बाद घर लौटे हो और उस पर..... ।" माँ आगे कुछ कहती इससे पहले अभय ने माँ को गले लगा लिया ।
"आज मैं घर लौट आया माँ । बड़े दिनों बाद लौटा हूँ बहुत सुकून मिल रहा है । और बता कर गया होता तो आपकी ये डांट जिसका स्वाद ही भूल गया था फिर से सुनने को कहाँ से मिलती ।" उसके माँ के सीने से लग जाने का असर था या उसकी बातों का ये पता नहीं पर जो भी था, माँ की आँखें भर आई थीं ।
"कुछ खाया या सुबह से भूखा ही है ।" माँ का हमेशा वाला सवाल अचानक से सामने आ खड़ा हुआ अभय के ।
"खाया ? पूछो क्या क्या खाया ।"
"अच्छा, गया कहाँ था जो क्या क्या खा लिया ?"
"कहाँ गया था ? अरे पूछो कहाँ कहाँ गया था ।" अब माँ ने बदमाश कह के अभय के बाजू पर एक थप्पड़ मारा ।
"बताएगा या बातें बनाता रहेगा ?"
"अच्छा बता रहा हूँ ना सब्र करो माँ । सबसे पहले नमन के यहाँ गया और वो भी दिवाली गिफ्ट ले कर (रिया की तरफ देखते हुए बनावटी गुरूर वाली मुस्कुराहट के साथ ) वहाँ सबसे मिला काफी देर बातें करते रहे । फिर उसे लेकर मिठाईयों के साथ बस्ती की ओर गया वहाँ बच्चों दीं मिठाईयाँ और काॅपियाँ पैंसिल्स । फिर कुछ दोस्तों और टीचर्स के यहाँ गये फिर आप सब के लिए थोड़े बहुत गिफ्टस लेने चला गया ।" गिफ्टस का नाम सुनते ही रिया ने अभय के हाथों से सारे लिफाफे छीन कर उन्हें खोलना शुरू कर दिया । उसके लिए एक नया कैमरा था जिसे वो कितने दिनों से खरीदना चाह रही थी । उसे देखते ही वो खुशी से झूम उठी । माँ के लिए साड़ी थी और पिता जी के लिए एक बढ़िया घड़ी ।
"इतना सब लाने की ज़रूरत क्या थी बेटा ।" माँ ने अभय को प्यार देखते हुए कहा ।
"ज़रूरत थी माँ । कल घर की सफाई नहीं की हमने बल्कि यादों को ताज़ा किया । और उस समय मुझे याद आया कि मैने ज़िंदगी में कुछ बड़ा पाने के लिए छोटे छोटे खुशियों के अनगिनत पल कहीं पीछे छोड़ दिए । मुझमें से पापा का वो डर खत्म होता जा रहा था जो असल में पिता के प्रति एक पुत्र का सम्मान होता है, मुझ में से वो मोह जो एक बेटे का माँ और भाई बहन के लिए होता है वो मोह मरता चला जा रहा था । मुझे लगने लगा था कि अच्छी कमाई कर के मैं घर पैसे भेज देता हूँ इतना ही बहुत है मगर कल मैने जाना कि मैने कितना कुछ खो दिया इन पाँच सालों में । कल पुरानी धूल उड़ रही थी ना माँ, उसने फिर से बहुत कुछ पुराना मुझ में ज़िंदा कर दिया।" अभय के चेहरे पर आँखों के आँसुओं के साथ साल की पहली बरसात में भीगी सी मुस्कुराहट उछलने लगी ।
"मेरा बच्चा ।" माँ ने बस इतना कह कर अभय को गले लगा लिया ।
"माँ बेटा आपस में ही मेरी माँ मेरा बच्चा करते रहते हैं । हम बाप बेटी को तो जैसे अपना ड्रामा दिखाने के लिए किराए पर बुलाया हो ।" दोनों को कुछ ज़्यादा ही भावुक होता देख पिता जी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा । और उनकी बात से सभी खिलखिला कर हँस पड़े । दिवाली की रौनक आज फिर से लौट आई थी । शाम होते ही घर दीये और लाईटों से कम खुशियों से ज़्यादा जगमगाने लगा । नमन के साथ और भी कई दोस्त अपने परिवार सहित अभय के घर पहुंचे । देखते ही देखते पाँच साल से सुनी पड़ी दिवाली आज नई दुल्हन सी चहकने लगी ।
मिठाईयाँ नए कपड़े, पटाखे, रौशन दीये ये सब दिवाली की रौनक नहीं बन पाते जब तक अपनों का साथ और स्नेह ना हो । दीपों के साथ साथ अपनों से मिलाप के इस त्यौहार दीपवली की आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं । आप सबका सदैव अपनों के साथ स्नेह बना रहे तथा हमेशा आपका जीवन खुशियों से जगमगाता रहे ।
धीरज झा
Keywords : Happy Diwali, Hindi Story, Meaning Of Real Love, Diwali Essay, Family Love
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