कुल्हाड़ी में लकड़ी का दस्ता न होता तो लकड़ी के काटने का रास्ता न होता आज क्रांति फिल्म का ये डायलॉग अचानक ही याद आगया मुझे । सच ही कहा ग...
कुल्हाड़ी में लकड़ी का दस्ता न होता
तो लकड़ी के काटने का रास्ता न होता
आज क्रांति फिल्म का ये डायलॉग अचानक ही याद आगया मुझे । सच ही कहा गया है कि अपना ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन होता है । बात चाहे औरतों के साथ घरेलू हिंसा की हो, चाहे बात पुरानी कुरीतियों को उन पर लादे जाने की, चाहे औरत हो कर ही एक बेटी को कोख में मार देने की, और फिर चाहे किन्हीं खास दिनों में उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार करने की, औरतों पर होने वाले इन अत्याचारों के पीछे हाथ भी औरतों का ही रहा है ।
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दौर बदला और तब से ले कर अब तक पूरी तरह ना सही मगर काफ़ी हद तक सुधार भी आया, अब एक दूसरे को समझा जाने लगा है, ना समझने की हालत में अलग हो जाते हैं, जैसा भी हो मगर वो स्थिति तो कम ही आती है जिसमें किसी को नरक की दुर्दशा भोगनी पड़ती थी । मगर औरत ने औरत से दुश्मनी का दस्तूर निभाना नहीं छोड़ा, पहले रिश्तों पर औरत औरत की दुश्मन रही और अब नारीवाद के नाम पर नारी ही नारी की इज्ज़त उछल रही है ।
बिहार, झारखण्ड, यूपी, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड सहित पूरे देश में कितने ऐसे क्षेत्र है जहाँ आज भी लड़कियों के लिए शिक्षा एक परिकथा से ज़्यादा और कुछ भी नहीं है, जहाँ औरतों के लिए गर्भवती होना जैसे मौत के आमने सामने खड़ा होने जैसा है क्योंकि वहां उनके लिए चिकत्सा सेवा के नाम पर कुछ भी नहीं है, जब किसी महिला की प्रसवपीड़ा तेज़ हो जाए तो उसे खटिया पर लाड कर दस दस कि.मी तक पैदल भागना पड़ता है परिवार वालों को, ऐसे ही और कितने मुद्दे हैं नारियों के हित के लिए मगर मैंने आज तक किसी बड़बोली फेम्निस्ट को इन सब मुद्दों के लिए आवाज़ उठाते हुए नहीं देखा । इनकी आवाज़ उठती है तो ब्रा ना पहनने की मुहीम को ले कर, जिसके साथ मन उसके साथ सोने की आज़ादी को ले कर, जिसको जहाँ मन वहां चूम सकें, जैसे मन वैसे कपडे पहन सकें । क्या ऐसे ही विचारों से नारीवाद सशक्त होगा ? और ये इन्हीं विचारों को नारीवाद बताकर औरतों पर ही वर करती हैं, गजब है यार ।
जब आप ये कहती हैं कि आप क्या पहले क्या खाएं किसके साथ उठे बैठे इन सब पर सवाल आपकी आज़ादी पर खतरा है तो फिर आपको ये हक़ किसने और कब दिया कि आप किसी की आस्था और परम्परा पर सवाल उठा सकें । आपसे तो किसी ने नहीं कहा कि आप भी सिंदूर लगाइए या इस परमप्र को मानिए फिर आप को दिक्कत क्यों ? खैर मनाइए आप सब कि आप अपने ए.सी कमरे में बैठ कर फेसबुक पर ऐसे बेहूदा विचार ठेल रही हैं, कहीं यही बात आपने सामने से गाँव कि किसी भी महिला को कही होती तो कसम से बता रहा हूँ वो आपका इस तरह से मुंह नोचती कि आप किसी को मुंह दिखने के काबिल ना रहतीं ।

आपकी फ़ौज की ही एक सदस्या कहती हैं कि “दो दिन तक भला कोई कैसे भूखा प्यासा रह सकता है, मैं शर्त लगाती हूँ कि पक्का ये औरतें छुप कर कुछ खा लेती होंगी ।” अगर इन मैडम ने सच में प्रेम को समझा होता तो कभी ऐसी बात ना करतीं इन्हें अगर पता होता कि वो सुख क्या होता है जब एक औरत अपनी पति और परिवार के लिए निर्जला रहती है और पति बार बार उसके आगे पीछे उसका प्यास से सूख रहा मुंह निहार रहा होता है तब ये भूखा प्यासा रहना कितना सुकून देता है आपको इसका अंदाज़ा भी नहीं हो सकता कभी । और हाँ इसके लिए किसी को बधित्भी नहीं किया जाता, जो होता है उनकी मर्ज़ी, उनकी आस्था और श्रद्धा से होता है ।
बाक़ी क्या फायदा ऐसी उलूल जुलूल बातें बनाने का जिसे फिर से डिलीट करना पड़े । ये तो थूक कर चाटने जैसा है । आप अपने सभी बेफालतू के मुद्दों पर बवाल मचाइए हमको उससे कोई दिक्कत नहीं, हम आदत भी नहीं किसी के निजी जीवन में घुसने की । आप दारू सुट्टा सब मारिए, अच्छे से आज़ादी का लुफ़्त उठाइए, यहाँ तक कि आप सही तरीके से सवाल भी उठा सकती हैं मगर ख़बरदार जो आपने आस्था या परम्परा पर बवाल खड़ा किया तो, और कुछ तो नहीं मगर इन छठी माई की उपासकों की हाय ज़रूर लगेगी और कसम से बता रहे हैं छठी माई और छठी माई का व्रत करने वालों की बद्दुआ बड़ी ख़राब होती है, कोढ़ भी फूट जाता है । लकड़ी का दस्ता बन कर लकड़ी को ही मत काटिए कहीं ऐसा ना हो कि आपको अपनी ही सोच पर रोना पड़े ।
बुरा लगा तो लगता रहे क्योंकि आपको बुरा ना लगेगा तो फिर लिखने का फायदा ही क्या हुआ । जय जय छठी मईया
धीरज झा
Keywords : Hindi, Chhath Puja, Maitreyi Pushpa, Khokhla Nariwad, Sindoor
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