आ सान नहीं होता अपनों, अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति को छोड़ कर रोटी की तलाश में घर से मीलों दूर आना । छठ घाट पर सभी पबनईतिनों के पति लोग ...
आसान नहीं होता अपनों, अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति को छोड़ कर रोटी की तलाश में घर से मीलों दूर आना । छठ घाट पर सभी पबनईतिनों के पति लोग जब सर पर छठ का डाला लिए पहुंचे होंगे तब उस ख़ुशी और आनंद भरे माहौल में रामसरन की दुल्हिन की आँखों से कुछ आंसुओं के टुकड़े गंगामाई की गोद में समां गए होंगे । इस बार फिर रामसरन नहीं आ पाया छठ में घर । भले वो साल में चार बार आता हो घर लेकिन छठ में उसके ना उपस्थित होने की पीड़ा को उसकी दुल्हिन किसी के सामने नहीं रख सकती । ये पीड़ा बस उसके अपने लिए ही नहीं बल्कि ये सोच कर भी उठती है कि आज छठ पबनी के दिन भी उसका मरद अकेला गाँव की यादों में डूबा होगा । केवल रामसरन ही क्यों उस जैसे बहुत से लोग जो अपनी माटी से दूर हैं सबका इस दिन यही हाल होता है ।
लेकिन अब रामसरन उतना भी उदास नहीं होता क्योंकि उसने अपने साथियों के संग परदेस में भी खुश रहने का बहाना खोज लिया है । सालों पहले जब अकेला सरदार जी के ट्यूबेल पर डंड देने पहुंचा था तब सरदार जी ने बड़े अचरज से देखा था की ये भईया भला क्या कर रहा है मगर रामसरन ने हर साल ये जारी रखा और आज रामसरन और उसके साथियों ने अपना अलग घाट बना लिया है जहाँ रामसरन जैसे ना जाने कितने अकेले लोग साथ मिल कर गाँव की रौनक का कुछ हिस्सा परदेस तक खींच लेट हैं ।
ये है हमारे शहर का घाट, पिछले तीन चार सालों से यहीं पांडव सरोवर के किनारे छठ पूजा मनाई जाती है । परदेस में रह रहे बिहारी बंधुओं और उनका परिवार यहाँ आ कर गाँव के छठ घाट की कमी को काफ़ी हद तक पूरा कर लेते हैं । इन्हीं सबके साथ माँ कहाँ अर्घ देगी इस समस्या का समाधान भी हो गया । अब सोचना नहीं पड़ता वरना पहले ये सबसे बड़ी चिंता होती थी कि इस बार छठ पूजा कहाँ होगी, होगी भी या नहीं होगी । मैंने खुद ये दुःख झेला है जब मैं घर से दूर रहता था, इस ख़ुशी के मौके पर भी मुंह उतरा हुआ था । बार बार घर फोन करता था बस ये जानने के लिए कि सब कैसा चल रहा है । वहां किसी ऐसी जगह के बारे में पता नहीं था जहाँ छठ घाट सजाया जाता हो । शायद तब कोई मुझे किसी छठ घाट पर ले जाता तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता ।
अपनी जिम्मेदारियों से थोडा वक़्त मांग कर खुश हो जाना ही जीवन है । वरना खुला समय मिलने का इंतजार करते रहें तो शायद खुश हो ही ना पायें । इसी लिए अगर घर से दूर हैं तो उदास होने की जगह खुशियाँ ढूंढने निकल पड़ें निश्चित ही कहीं न कहीं मिल ही जाएँगी । आप सब को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
धीरज झा
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